एक पहचान 'संपादकीय'
नहीं वरण हुआ, अभी तक कुंवारी है।
जन, गण के मन में बड़ी दुश्वरी है।
लाखो जिंदगी मौत के घाट उतारी है।
गली-चौराहा, शहर सारा खामोश बडा हैं।
संदेश को समझो, आदेश सरकारी है।
बंदिशों का दौर नहीं, अगर जिंदगी प्यारी है।
मरना है तुझको ऐ गरीब, यह तेरी लाचारी है।
रखवाली पर बैठा तेरी, बड़ा व्याभिचारी है।
लाश भी नहीं छुएगा कोई, ऐसी महामारी है।
नहीं वरण हुआ, अभी तक कुंवारी है।....
विश्व में कोविड-19 नामक महामारी ने परिवर्तन की एक बयार चला दी है। कई देशों को इसका भयानक परिणाम झेलना पड़ रहा है। हमारा देश भी उसी रास्ते पर चल रहा है। देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर और कोरोना के भय के कारण 'लॉक डाउन' का समर्थन तो किया है। लेकिन अक्षमता हीन वर्ग की इतनी बड़ी उपेक्षा इससे पूर्व कभी नही हुई है और संभवतः भविष्य में भी ना हो। विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था भारत की पहचान विश्व में "गाय, गरीब और गांधी" से होती है। गाय के नाम पर देश में राजनीति तो खूब होती है। सेवा और सद्भावना कचरा चाट रही है। 'गांधी' एक ऐसा विषय है, जिसे छेड़ने मात्र से छेड़ने वाले का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। चाहे वह कितना ही बड़ा और बुद्धिमान राजनीतिज्ञ क्यों ना हो। अब हमारी वैश्विक पहचान का सबसे बड़ा कारण गरीबी है। देश की कुल आबादी का 40% भाग गरीब है। यह देश के पंजीकृत गरीब है। जो उनसे भी गरीब है यह साधारण भाषा में 'महान गरीब' है। उनकी बला से झाड़ पर बैठी है सरकार और उसकी योजनाएं। ऐसे महान गरीबों को दरकिनार कर दिया जाए तो सरकार की 'लॉक डाउन' में जनसेवा की गाथा विश्व में अवश्य प्रसिद्ध होगी। क्योंकि कोरोना महामारी क्या करेगी या क्या नहीं करेगी? यह दूर की कौड़ी है। अपने कार्यालयों में बैठकर चिकनी-चुपड़ी बातों से गरीब, मजदूर और जरूरतमंद का पेट नहीं भरेगा। दूध मुंहे बच्चों की किलकारी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके समाधान के लिए लंबी-लंबी बात हांकने के अलावा धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आता है। क्या मजाक बन गया है, सिद्ध पुरुष और शक्तिशाली लोग गाल बजाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं? देश की गरीब जनता के सामने विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो चुकी है। छोटी-छोटी, सामान्य समस्याएं भी वृहद और विकराल हो गई है। जिसके समाधान का कोई मार्ग प्रशस्त नहीं किया गया है। यदि इस पर कार्य किया भी जा रहा है। उसके क्या परिणाम होगे, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
वर्तमान ऐसा सुनहरा अवसर लेकर आया है। जिसका सही ढंग से उपयोग करने पर गरीब-मजदूर वर्ग का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो सकता है। क्योंकि साथ में कोरोना वायरस के जैसी ढाल भी है। पता नहीं फिर ऐसा मौका मिले, ना मिले।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'