शुक्रवार, 10 नवंबर 2023
आज मनाया जाएगा 'धनतेरस' का पर्व
सोमवार, 18 सितंबर 2023
आज मनाई जाएगी गणेश चतुर्थी, तुलसी वर्जित
बुधवार, 6 सितंबर 2023
जन्माष्टमी पर दान-पुण्य करना बेहद लाभदायक
मंगलवार, 5 सितंबर 2023
6 सितंबर को जन्माष्टमी व्रत रखना शुभ होगा
मंगलवार, 29 अगस्त 2023
30-31 अगस्त, 2 दिन मनाईं जाएगी रक्षाबंधन
बुधवार, 23 अगस्त 2023
27 अगस्त को मनाई जाएगी 'पुत्रदा एकादशी'
27 अगस्त को मनाई जाएगी 'पुत्रदा एकादशी'
सरस्वती उपाध्याय
सनातन धर्म में एकादशी का बड़ा महत्व है। पुत्रदा एकादशी व्रत सावन महीने की शुक्ल-पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी का बड़ा ही महत्व बताया गया है। इसे पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है। एक सावन महीने के शुक्ल पक्ष में और दूसरा पौष मास के शुक्ल पक्ष में। इस बार सावन की पुत्रदा एकादशी 27 अगस्त यानि रविवार के दिन मनाई जाएगी।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से निसंतान दंपतियों को सुख मिलता है। इस व्रत को भी संतान की लंबी आयु और सुखद जीवन के लिए किया जाता है। बता दें कि सालभर में कुल 24 एकादशियां होती है, लेकिन जब अधिकमास या मलमास आता है, तो इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
शुभ मुहूर्त और पारण का समय
- शुक्ल एकादशी तिथि आरंभ- 27 अगस्त 2023 को प्रात 12 बजकर 08 मिनट पर
- शुक्ल एकादशी तिथि समापन - 27 अगस्त 2023 को रात 9 बजकर 32 मिनट पर
- पुत्रदा एकादशी व्रत तिथि- 27 अगस्त 2023
- एकादशी व्रत पारण समय - 28 अगस्त 2023 को सुबह 5 बजकर 57 मिनट से सुबह 8 बजकर 31तक
महत्व
पुत्रदा एकादशी का व्रत केवल पुत्र से नहीं है, बल्कि संतान से है। संतान पुत्र भी हो सकता है और पुत्री भी। मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। इसके आलावा जो व्यक्ति ऐश्वर्य, संतति, स्वर्ग, मोक्ष, सब कुछ पाना चाहता है, उसे यह व्रत करना चाहिए। वहीं जो लोग संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं या जिनकी पहले से संतान है और वे अपने बच्चे का सुनहरा भविष्य चाहते हैं, जीवन में उनकी खूब तरक्की चाहते हैं, उन लोगों के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत किसी वरदान से कम नहीं है। पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान सुख बढ़ता है।
शनिवार, 8 जुलाई 2023
रुद्राभिषेक: 15 को मनाईं जाएगी 'महाशिवरात्रि'
15 जुलाई को सावन शिवरात्रि, जानिए महत्व
सरस्वती उपाध्याय
10 जुलाई को सावन का पहला सोमवार पड़ रहा है। 59 दिनों के इस सावन महिने में शश योग, गजकेसरी योग, बुध व शुक्र के संयोग से लक्ष्मी नारायण योग और सूर्य व बुध की युति से बुधादित्य राजयोग का निर्माण होगा। वही, 15 जुलाई शनिवार को सावन शिवरात्रि है। इस दिन 2 बड़े ही दुर्लभ संयोग बन रहे है, जिसका कई जातकों को बहुत ही शुभ फल मिलेगा।
कहते है, सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने पर विशेष फल प्राप्त होता है।
मासिक शिवरात्रि पर बनेंगे 2 योग
पंचांग के अनुसार, सावन की शिवरात्रि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन पड़ती है, इस साल 15 जुलाई 2023, शनिवार के दिन चतुर्दशी तिथि पड़ेगी,चतुर्दशी तिथि को त 8:32 बजे चतुर्दशी तिथि का आरंभ हो जाएगा और 16 जुलाई रात 10:08 बजे इसका इस बार सावन शिवरात्रि पर दो शुभ योग बन रहे हैं, जिसमें वृद्धि और ध्रुव योग शामिल हैं। वही इस दिन मृगशिरा नक्षत्र भी बन रहा है। इस दौरान भोलेनाथ की पूजा करना बेहद फलदायी होगा।इसका लाभ कुंभ, मीन, कर्क वृश्चिक राशि के जातकों के लिए बहुत ही फलदायी होगा।
पंचांग के अनुसार, सावन शिवरात्रि के दिन शनि प्रदोष का होना बहुत अद्भुत संयोग है। संतान प्राप्ति की कामना और शनि दोष से मुक्ति के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन व्रत करने और भगवान शिव और शनिदेव की पूजा र्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और शनि का प्रभाव यानी साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि महादशा के दुष्प्रभावों में कमी आती है। इस पूरे सावन में 8 सोमवार व्रत और 4 एकादशी पड़ेगी।वही 18 जुलाई से लेकर 16 अगस्त तक सावन अधिकमास या मलमास रहेगा। इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।
राशि के अनुसार करें ऐसे पूजा
मेष राशि के जातक जल में चंदन, गुड़हल फूल और गुड़ मिलाकर शिव का अभिषेक करें। वृषभ राशि के जातक गाय के दूध से महादेव का अभिषेक करें। मिथुन राशि के जातक जल में दही मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें।
कर्क राशि के जातक आशीर्वाद पाने के लिए गाय के दूध में भांग मिलाकर महादेव का अभिषेक करें। चंदन और पुष्प अर्पित करें।सिंह राशि के जातक जल में लाल पुष्प अर्पित कर भगवान शिव का अभिषेक करें। कन्या राशि के जातक गन्ने के रस में काले तिल मिलाकर महादेव का अभिषेक करें। भगवान शिव को भांग, धतूरा, मदार के फूल अर्पित करें।
तुला राशि के जातक भगवान शिव का आशीर्वाद पाने हेतु सावन शिवरात्रि पर गाय के दूध में मिश्री डालकर भगवान शिव का अभिषेक करें। महादेव को चंदन, अखंडित चावल और दूध अर्पित करें। वृश्चिक राशि के जातक सावन शिवरात्रि पर जल में बेलपत्र, शहद और सुगंध मिलाकर महादेव का अभिषेक करें।
धनु राशि के जातक भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए जल में केसर मिलाकर महादेव का अभिषेक करें। साथ ही केसर मिश्रित खीर भोग में अर्पित करें। मकर राशि के जातक भगवान शिव की विधिवत पूजा करें। पूजा के दौरान भगवान शिव को भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि चीजें अर्पित करें।
कुंभ राशि के जातक गन्ने के रस में शहद और सुगंध मिलाकर अभिषेक करें। साथ ही शिव चालीसा का पाठ शिव मंत्र का जाप करें।मीन राशि के जातक सावन शिवरात्रि पर गन्ने के रस में केसर मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। पूजा के समय सभी जातक ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
शिवरात्रि पर करें ये खास उपाय, मिलेगा लाभ
धन की प्राप्ति के लिए दूध, दही, शहद, शक्कर और घी से भगवान शिव का अभिषेक करें और फिर जल धारा अर्पित कर प्रार्थना करें। संतान के लिए शिव लिंग पर घी अर्पित कर जल की धारा अर्पित करें और प्रार्थना करें ।विवाह के लिए शिवलिंग पर 108 बेल पत्र अर्पित करें और हर बेल पत्र के साथ “नमः शिवाय” का जाप करें।
सावन शिवरात्रि 15 जुलाई 2023 दिन शनिवार
त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ – 14 जुलाई, शाम 7 बजकर 18 मिनट से
त्रयोदशी तिथि का समापन – 15 जुलाई, रात 8 बजकर 33 मिनट तक
चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ – 15 जुलाई, रात 8 बजकर 33 मिनट से
चतुर्दशी तिथि का समापन – 16 जुलाई, रात 10 बजकर 9 मिनट तक।
बुधवार, 5 जुलाई 2023
1 लाख 10 हजार कावड़ियों ने गंगा जल भरा
1 लाख 10 हजार कावड़ियों ने गंगा जल भरा
श्रीराम मौर्य
हरिद्वार। सावन के महीने के आगाज के साथ ही धर्मनगरी हरिद्वार में कांवड़ मेले का भी शुभारंभ हो गया है। शिव भक्तों के बम-बम भोले के जयकारों से धर्मनगरी गुंजायमान है। सावन महीने के शुरू होने के साथ ही कल एक लाख दस हजार कांवड़ यात्रियों ने गंगा पूजन के बाद जल भरा।
सावन के महीने की शुरूआत मंगवार से हो गई है। मंगलवार से ही हरिद्वार में कांवड़ मेले की भी शुरूआत हो गई है। यूं तो हरिद्वार में एक हफ्ते पहले से ही कांवड़ यात्रियों का यहां आना शुरू हो गया था लेकिन कल से भक्तों की भारी भीड़ यहां उमड़ रही है। बम-बम भोले के जयकारों से धर्मनगरी गूंज रही है।
एक लाख दस हजार कांवड़ यात्रियों ने भरा जल
मंगलवार को सावन महीने के पहले दिन दूर-दराज से आए एक लाख दस हजार कांवड़ यात्रियों ने गंगा पूजन के बाद मां गंगा का जल भरा। बम-बम भोले और हर-हर शंभू के जयकारों के बीच गंगा जल भर कर कांड़यात्रियों ने कांवड़ उठाई और लंबे-लंबे डग भरते हुए अपने-अपने गंतव्यों के लिए रवाना हुए।
घाटों पर हर तरफ नजर आए कांवड़िए
धर्मनगरी में हरकी पैड़ी समेत तमाम घाटों पर जहां तक नजर जा रही है वहां तक भगवाधारी कांवड़िए ही नजर आ रहे हैं। पहले ही दिन भक्तों की भीड़ हरिद्वार में उमड़ी। जल भरने के लिए सबसे ज्यादा कांवड़िए दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश से आए थे। इनमें ज्यादातर कावड़िए पैदल गंगा जल लेकर अपने गंतव्यों के लिए रवाना हुए। गंगाजल लेकर कांवड़ियों को नहर पटरी मार्ग से वापस भेजा जा रहा है।
शनिवार, 1 जुलाई 2023
काले रंग के कपड़े पहनने से नाराज हो जाते हैं 'शिव'
काले रंग के कपड़े पहनने से नाराज हो जाते हैं 'शिव'
सरस्वती उपाध्याय
सावन का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। 4 जुलाई 2023 को सावन शुरू होगा। सावन में सोमवार का व्रत करना और शिवलिंग पर जल चढ़ाना भोलेनाथ को खुश करता है। आप भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। सावन में भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। लेकिन शिव सावन में एक छोटी-सी गलती से नाराज़ हो जाते हैं। शिवजी सावन में इस रंग के कपड़े पहनने से नाराज होते हैं, इसलिए आपको सावन में किस रंग का कपड़ा नहीं पहनना चाहिए।
इस रंग के कपड़े सावन में नहीं पहनें...
भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो रंगों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सावन में काले कपड़े नहीं पहनना चाहिए।
शनिदेव को छोड़कर सभी देवताओं को काला रंग अशुभ लगता है। ऐसे में भगवान शिव को काले कपड़े पहनना परेशान करता है।
सावन में काले कपड़े पहनकर पूजा नहीं करनी चाहिए। जब भगवान शिव नाराज़ हो जाते हैं, तो मनाना मुश्किल हो जाता है।
इस रंग के कपड़े पहनने से भोलेनाथ होंगे खुश...
सफेद और आसमानी रंग के कपड़े पहनना सावन में महादेव को खुश करेगा। इससे भगवान भोलेनाथ खुश होते हैं। पीले और केसरी रंग के कपड़े भी शुभ हैं। इस रंगों के कपड़े पहनकर पूजा करना अच्छा होता है। सावन में लाल कपड़े पहनना भी अच्छा है। भगवान शिव को हरा बहुत अच्छा लगता है। हरे कपड़े पहनकर शिव की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं।
गुरुवार, 29 जून 2023
5 महीनों तक शुभ कार्यों पर पूर्णता विराम
5 महीनों तक शुभ कार्यों पर पूर्णता विराम
सरस्वती उपाध्याय
देवउठनी एकादशी से लगभग 5 महीने पहले हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल-पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है, जो इस साल आज यानी 29 जून मनाई जा रही है। साल की सभी एकादशीयों में देवशयनी एकादशी अपना एक विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु 5 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु सीधे 5 महीनों के बाद ही जागते हैं। यही वजह है कि देवशयनी एकादशी से हिंदू धर्म में पूर्णता 5 महीनों तक शुभ व मांगलिक कार्यों पर पूर्णता विराम लग जाता है।
कर्मकांड ज्योतिषी व भागवताचार्य मनीष उपाध्याय का कहना है कि सभी एकादशी में निर्जला, देवउठनी और देवशयनी एकादशी का अधिक महत्व है। देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। जिसके बाद नारायण सीधे देवउठनी एकादशी के दिन भी जागते हैं। उन्होंने बताया कि इस साल चातुर्मास 29 जून यानी देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होने जा रहा है। जिसके चलते आज से हिंदू धर्म में सभी मांगलिक कार्य होने बंद हो जाएंगे।
5 माह तक रहेगा चातुर्मास
ज्योतिषी के मुताबिक 29 जून से शुरू होने वाला चातुर्मास इस साल 5 महीने तक रहने वाला है। उन्होंने बताया कि हर साल चातुर्मास 4 महीने का होता है। लेकिन इस साल दो बार सावन होने की वजह से भगवान का विश्राम काल बढ़ गया है।
श्रीहरि की पूजा रहेगी फलदाई
पंडित मनीष उपाध्याय बताते हैं कि देवशयनी एकादशी से श्री हरि विश्राम के लिए क्षीर सागर में चले जाते हैं। ऐसे में जो भी इस दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से आराधना करता हैं, तो उसे कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है।
सोमवार, 26 जून 2023
आधार कार्ड के बिना नहीं होंगे महाकाल के दर्शन
आधार कार्ड के बिना नहीं होंगे महाकाल के दर्शन
दुष्यंत टीकम
उज्जैन। मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में दिनों दिन बढ़ती दर्शनार्थियों की संख्या के कारण स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए अब आगामी 11 जुलाई से आधार कार्ड से दर्शन की व्यवस्था की जाएगी। अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भगवान महाकालेश्वर मंदिर में देश के विभिन्न क्षेत्रों से हजारों की संख्या में लोग आते हैं।
विशेषकर श्रावण माह में इनकी संख्या अत्यधिक होती है। इसे दृष्टिगत रखते हुए मंदिर प्रबंध समिति ने उज्जैन वासियों के लिए श्रावण मास में 11 जुलाई से बाबा महाकाल के दर्शन हेतु आधार कार्ड दिखाकर दर्शन सुगमता पूर्वक करने की व्यवस्था की है।
साथ ही एक बार अपना आधार कार्ड दर्शन हेतु पंजीयन कराने पर बार-बार आधार कार्ड ले जाने की भी आवश्यकता नहीं होगी। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध कराई जायेगी। उज्जैन रहवासियों को बाबा महाकालेश्वर के दर्शन सुगमता पूर्वक हो सकें, इसके लिए मंदिर समिति को महापौर मुकेश टटवाल ने इस संबंध में प्रस्ताव दिया था।
बुधवार, 29 मार्च 2023
नवरात्रि का नौवां दिन मां 'सिद्धिदात्री' को समर्पित
नवरात्रि का नौवां दिन मां 'सिद्धिदात्री' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
30 मार्च को चैत्र नवरात्रि का नौवां दिन है। इसी के साथ नवरात्रि का समापन हो जाता है। इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं और सिंह पर सवार होती हैं। उनके दाहिने नीचे वाले हाथ में चक्र,ऊपर वाले हाथ में गदा और बाई तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। माता की पूजा से सारे मनोरथ सिद्ध होते हैं। साथ ही यश, बल,कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। जानिए, नवरात्रि के नौवें दिन का शुभ मुहूर्त, मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, भोग आदि की जानकारी...
महानवमी पूजन और हवन का शुभ मुहूर्त...
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र के मुताबिक चैत्र नवमी तिथि 29 मार्च को रात 09 बजकर 07 बजे से शुरू होगी और 30 मार्च को रात 11 बजकर 30 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के हिसाब से महानवमी का पर्व 30 मार्च को मनाया जाएगा। इस दिन राम नवमी भी मनाई जाती है। इसलिए, मां सिद्धिदात्री के साथ श्रीराम का भी पूजन किया जाएगा। मां सिद्धिदात्री और प्रभु श्रीराम के पूजन और हवन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 25 मिनट से 6 बजकर 54 मिनट तक, इसके बाद 8 बजकर 37 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा 3 बजकर 6 मिनट से शाम 5 बजकर 22 मिनट तक रहेगा।
महानवमी पर 4 विशेष योग बनेंगे...
इस बार 4 विशेष योग बनने से महानवमी और भी खास हो गई है। इस बार चैत्र महानवमी पर गुरु पुष्य योग, अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। ये सभी योग अत्यंत मंगलकारी माने गए हैं। इसमें सर्वार्थ सिद्धि योग तो पूरे दिन रहेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया कोई भी काम सफल होता है। अगर आप किसी विशेष काम के लिए नई शुरुआत करना चाहते हैं, तो इस दिन से कर सकते हैं।
मां सिद्धिदात्री पूजा और कन्या पूजन विधि...
महानवमी के मौके पर मां सिद्धिदात्री की पूजा के लिए रोजान की तरह सबसे पहले कलश की पूजा करें। इसके बाद मातारानी को रोली, कुमकुम,पुष्प, चुनरी, अक्षत, भोग, धूप-दीप आदि अर्पित करें। इसके बाद घर में माता के मंत्रों का जाप करते हुए हवन करें, मां को भोग लगाएं। पूजन के बाद कन्या पूजन करें। कन्या पूजन में 2 वर्ष से 9 वर्ष तक की 9 कन्याओं को बैठाएं और साथ में एक बालक को बैठाएं। उनके चरण धुलवाएं, विधिवत उन्हें भोजन कराएं, तिलक लगाएं, आरती उतारें, दक्षिणा दें और चरण छूकर आशीष लें। इसके बाद व्रत का पारण करें।
माता को लगाएं ये भोग...
माता की पूजा के दौरान उन्हें उनका प्रिय भोग हलवा, पूड़ी, चने और नारियल जरूर चढ़ाएं। कन्याओं को भोजन कराते समय भी उनकी थाली में माता के प्रिय भोग को जरूर रखें। इस तरह मां सिद्धिदात्री की विधिवत पूजा करने से माता अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं। भक्तों की मुराद को पूरा करती हैं।
मंगलवार, 28 मार्च 2023
नवरात्रि का आठवां दिन मां 'महागौरी' को समर्पित
नवरात्रि का आठवां दिन मां 'महागौरी' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन 29 मार्च 2023 दिन बुधवार को मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा होगी। महाअष्टमी तिथि का विशेष महत्व होता है। इस दिन कन्या पूजन भी होती है। मां महागौरी की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और अखंड सुहाग के साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
ऐसे पड़ा मां गौरी का नाम महागौरी...
अष्टमी के दिन माता के महागौरी रूप की पूजा करते हैं। इस दिन महागौरी की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भोलेनाथ को पाने के लिए मां गौरी ने सालों तक कड़ी तपस्या की थी। इस घोर तप में मां गौरी धुल-मिट्टी से ढंक गई थीं। इसके बाद शिव जी ने स्वयं अपनी जटाओं से बहती गंगा से मां के इस रूप को साफ किया था। माता के रूप की इस कांति को शिवजी ने पुनर्स्थापित किया, इसी कारण उनका नाम महागौरी पड़ा।
जानें, माता के रूप का मतलब...
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि 29 मार्च को मनाई जाएगी। अष्टमी के दिन माता के महागौरी रूप की पूजा की जाती है। माता का रूप पूर्णतः गौर वर्ण का है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। माता महागौरी के भी आभूषण और वस्त्र सफेद रंग के हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। इनकी 4 भुजाएं हैं। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है, जबकि नीचे वाले हाथ में मां ने त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांये हाथ में डमरू और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। इनका वाहन वृषभ है, इसीलिए माता के इस रूप को वृषारूढ़ा भी कहा गया है।
मां महागौरी पूजन के शुभ मुहूर्त...
ब्रह्म मुहूर्त - 04:42 am से 05:29 am
विजय मुहूर्त - 02:30 pm से 03:19 pm
गोधूलि मुहूर्त - 06:36 pm से 06:59 pm
अमृत काल- 09:02 am से 10:49 am
माता महागौरी का स्पेशल भोग...
हिंदू धर्म के मुताबिक, नवरात्रि के आठवे दिन मां महागौरी को भोग में नारियल और चीनी की मिठाई बनाकर चढाने से माता प्रसन्न होती हैं और हर तरह की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। घर धन-संपदा से भर देती हैं।
माता महागौरी का पसंदीदा रंग...
माता को सफेद रंग काफी पसंद है।
मां महागौरी की पूजा विधि...
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को सफेद रंग पसंद है। मां को स्नान कराने के बाद सफेद पुष्प अर्पित करें। रोली-कुमकुम लगाएं। इसके बाद नारियल और काले चने का भोग लगाएं। आरती भी करें और फिर कन्या पूजन कर, पारण करें।
चैत्र शुक्ल अष्टमी तिथि समाप्त - 29 मार्च 2023, रात 09.07
लाभ (उन्नति) - सुबह 06.15 - सुबह 07.48
अमृत (सर्वोत्तम) - सुबह 07.48 - सुबह 09.21
शुभ (उत्तम) - सुबह 10.53 - दोपहर 12.26
शोभन योग - 28 मार्च 2023, रात 11.36 - 30 मार्च 2023, प्रात: 12.13
रवि योग - 29 मार्च 2023, रात 08.07 - 30 मार्च 2023, सुबह 06.14
इस मंत्र का करें जाप...
नवरात्रि के महाअष्टमी के दिन आप महागौरी के इस मंत्र का जाप जरूर करें। मंत्र इस प्रकार है- 'सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।' इस मंत्र का 21 बार जाप करें, इससे आपको कई गुना लाभ मिलेगा।
मां महागौरी के मंत्र...
श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो। कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
दुर्गाष्टमी कन्या पूजन विधि...
चैत्र नवरात्रि के अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन किया जाता है। इस दिन घर पर नौ कन्याओं को आदरपूर्वक आमंत्रित करें और उनकी पूजा करें। फिर सभी को हलवा, खीर और पूड़ी का भोग और समर्थ्य अनुसार दक्षिणा देकर आदरपूर्वक घर से विदा करें। मान्यता है कि नवरात्रि की अष्टमी के दिन कन्या पूजन करने से मां भगवती प्रसन्न होती हैं और भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं।
अष्टमी के दिन क्यों होती है महागौरी की पूजा ?
पुराणों के अनुसार, माता दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिन तक युद्ध कर उसे हराया था। इसलिए, नवरात्रि के नौ दिनों तक उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अष्टमी के दिन ही माता ने चंड-मुंड राक्षसों का संहार किया था। इसलिए इस दिन की पूजा का खास महत्त्व माना जाता है। अष्टमी के दिन को कुल देवी और माता अन्नपूर्णा का दिन भी माना जाता है। इसी कारण से माना जाता है कि इस दिन देवी की पूजा करने से आपके कुल में चली आ रही मुसीबतें और परेशानियां कम होती हैं और आने वाले कुल की रक्षा होती है। अष्टमी के दिन कन्याओं को भोजन कराने से घर में धन-धान्य और सौभाग्य बना रहता है।
सोमवार, 27 मार्च 2023
नवरात्रि का सातवां दिन मां 'कालरात्रि' को समर्पित
नवरात्रि का सातवां दिन मां 'कालरात्रि' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
चैत्र मास में पड़ने वाली नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप, यानि मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि के दौरान मां कालरात्रि की पूजा से भक्तों के सभी प्रकार के भय दूर होते हैं। मां कालरात्रि के आशीर्वाद से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है। उसे अग्नि, जल, शत्रु, रात्रि आदि किसी प्रकार का भय कभी नहीं होता। भगवती के इस भव्य स्वरूप के शुभ प्रभाव से साधक के पास भूल से भी नकारात्मक शक्तियां या बलाएं नहीं फटकती हैं। आईए, जानते हैं देवी कालरात्रि की पूजा का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन से जुड़े नियम...
पूजा का महत्व...
मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है। मां कालरात्रि की पूजा करने से भय दूर होता है, संकटों से रक्षा होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। शुभफल प्रदान करने के कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है। इस देवी की आराधना से अकाल मृत्यु का डर भी भाग जाता है, रोग और दोष भी दूर होते हैं। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इसलिए इस देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव भी कम होते हैं।
माता कालरात्रि का स्वरूप...
देवी कालरात्रि कृष्ण वर्ण की हैं। गले में विद्युत की माला और बाल बिखरे हुए हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबकि बाएँ तरफ दोनों हाथ में क्रमशः खडग और वज्र हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी के इस रूप की पूजा करने से दुष्टों का विनाश होता है।
नवरात्र का सातवां दिन है। इस दिन आदिशक्ति देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। भक्तों के लिए मां कालरात्रि सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इस कारण मां का नाम ‘शुभंकारी’ भी है।
माता का मंत्र...
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
स्तुति...
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
पूजा का शुभ मुहूर्त...
चैत्र शुक्ल सप्तमी तिथि - 27 मार्च, शाम 05.27 बजे से 28 मार्च, रात 07.02 बजे तक
द्विपुष्कर योग -28 मार्च, सुबह 06.16 बजे से शाम 05.32 बजे तक
सौभाग्य योग - 27 मार्च, रात 11.20 बजे से 28 मार्च, रात 11.36 बजे तक
निशिता काल मुहूर्त - 28 मार्च, मध्यरात्रि 12.03 बजे से प्रात: 12.49 बजे तक
मां कालरात्रि की पूजा विधि...
काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा मध्यरात्रि (निशिता काल मुहूर्त) में शुभ फलदायी मानी गई है। अगर रात्रि में ना हो सके, तो सुबह के समय भी पूजा को शुभ माना जाता है। सप्तमी तिथि दिन वाले सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान ध्यान करने के बाद मां कालरात्रि की पूजा एवं व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लें। इसके बाद मां कालरात्रि फोटो या प्रतिमा पर गंगाजल अर्पित करें और फिर उसके बाद देवी का आह्वान करें। फिरमां कालरात्रि की रोली, अक्षत, फल, फूल, मिष्ठान, वस्त्र, सिंदूर, धूप, दीप, आदि को अर्पित करके उनकी पूजा करें।
मां कालरात्रि को प्रिय...
इस देवी को लाल रंग प्रिय है, इसलिए इनकी पूजा में लाल गुलाब या लाल गुड़हल का फूल अर्पित करना चाहिए। हालांकि इनको रातरानी का फूल भी चढ़ाना शुभ होता है। देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए साधक को उनकी पूजा में गुड़ और हलवे का भोग जरूर लगाना चाहिए। इससे देवी कालरात्रि प्रसन्न होती हैं। देवी को भोग लगाने के बाद माता को विशेष रूप से पान और सुपारी भी चढ़ाएं।
नवरात्रि का छठा दिन मां 'कात्यायनी' को समर्पित
नवरात्रि का छठा दिन मां 'कात्यायनी' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
दुर्गा पूजा के छठवें दिन देवी के कात्यायनी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्त को सहज भाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
मां का स्वरूप...
मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं,इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बायें हाथ में कमल और तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक व आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। भगवान कृष्ण को पाने के लिए व्रज की गोपियों ने इन्ही की पूजा कालिंदी नदी के तट पर की थी।ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
कौन हैं मां कात्यायनी ?
कत नामक एक प्रसिद्द महर्षि थे,उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्द महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत अधिक बढ़ गया था तब भगवान ब्रह्मा,विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज़ का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को प्रकट किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की और देवी इनकी पुत्री कात्यायनी कहलाईं।
पूजा विधि...
दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश व देवी के स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा कि जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में सुगन्धित पुष्प लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान करना चाहिए। मां को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें। मां कात्यायनी को शहद बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन मां को भोग में शहद अर्पित करें। देवी की पूजा के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए।
पूजा फल...
देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है। मां कात्यायिनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम,मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। उसके रोग,शोक, संताप और भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं।
किनको होगा लाभ ?
जिनके विवाह में विलम्ब हो रहा हो या जिनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है वे जातक विशेष रूप से मां कात्यायिनी की उपासना करें,लाभ होगा।
स्तुति मंत्र...
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि।।
शनिवार, 25 मार्च 2023
नवरात्रि का पांचवां दिन मां 'स्कंदमाता' को समर्पित
नवरात्रि का पांचवां दिन मां 'स्कंदमाता' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
नवरात्रि के पांचवें दिन भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाली मां दुर्गा के पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा करने का विधान है। ये देवी पार्वती का ही स्वरूप है।
कौन हैं स्कंदमाता ?
भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय'नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है, इनका वाहन मयूर है। स्कंदमाता के विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे हुए हैं।
दिव्य है इनका स्वरूप...
शास्त्रानुसार सिंह पर सवार स्कन्दमातृस्वरूपणी देवी की चार भुजाएं हैं,जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं और नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्णन पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। नवरात्र पूजन के पांचवे दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है।
पूजा विधि...
मां के श्रृंगार के लिए खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा भक्ति-भाव और विनम्रता के साथ करनी चाहिए। पूजा में कुमकुम,अक्षत,पुष्प,फल आदि से पूजा करें। चंदन लगाएं, माता के सामने घी का दीपक जलाएं। आज के दिन भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।
बच्चों को होगा फायदा...
स्कंदमाता की पूजा में पीले फूल अर्पित करें और पीली चीजों का भोग लगाएं। संतान संबंधी कष्टों को दूर करने के लिए इस दिन बच्चों को फल-मिठाई बांटना भी बहुत अच्छा माना गया है।
उपासना का फल...
पौराणिक मान्यता है कि इनकी पूजा से भगवान कार्तिकेय की पूजा स्वयं ही हो जाती है एवं स्कंदमाता की आराधना से सूनी गोद भर जाती है। इनकी साधना से साधकों को आरोग्य,बुद्धिमता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं व भक्तों को परम शांति एवं सुख का अनुभव होने लगता है। सूर्यमण्डल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक आलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। संतान सुख एवं रोगमुक्ति के लिए स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए।
इस मंत्र से करें आराधना...
1. सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
2. या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
शुक्रवार, 24 मार्च 2023
नवरात्रि का चौथा दिन मां 'कूष्मांडा' को समर्पित
नवरात्रि का चौथा दिन मां 'कूष्मांडा' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
इन दिनों शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा-आराधना की जाती है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्मांडा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी मां कूष्माण्डा (कूष्मांडा) कहलाती हैं।
मां कूष्मांडा की पूजन विधि, मंत्र एवं भोग...
देवी कूष्मांडा की पूजन विधि...
नवरात्रि में इस दिन भी रोज की भांति सबसे पहले कलश की पूजा कर माता कूष्मांडा को नमन करें।
इस दिन पूजा में बैठने के लिए हरे रंग के आसन का प्रयोग करना बेहतर होता है।
देवी को लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चूड़ी भी अर्पित करना चाहिए।
मां कूष्मांडा को इस निवेदन के साथ जल पुष्प अर्पित करें कि, उनके आशीर्वाद से आपका और आपके स्वजनों का स्वास्थ्य अच्छा रहे।
अगर आपके घर में कोई लंबे समय से बीमार है तो इस दिन मां से खास निवेदन कर उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करनी चाहिए।
देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं।
मां कूष्मांडा को विविध प्रकार के फलों का भोग अपनी क्षमतानुसार लगाएं।
पूजा के बाद अपने से बड़ों को प्रणाम कर प्रसाद वितरित करें।
देवी कूष्मांडा योग-ध्यान की देवी भी हैं। देवी का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का भी है। उदराग्नि को शांत करती हैं। इसलिए, देवी का मानसिक जाप करें। देवी कवच को पांच बार पढ़ना चाहिए।
देवी को प्रसन्न करने के मंत्र...
श्लोक...
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सरल मंत्र- 'ॐ कूष्माण्डायै नम:।।'
मां कूष्मांडा की उपासना का मंत्र...
देवी कूष्मांडा की उपासना इस मंत्र के उच्चारण से की जाती है- कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
मंत्र: या देवि सर्वभूतेषू सृष्टि रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
प्रसाद- माता कूष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुए का भोग लगाकर किसी भी दुर्गा मंदिर में ब्राह्मणों को इसका प्रसाद देना चाहिए। इससे माता की कृपा स्वरूप उनके भक्तों को ज्ञान की प्राप्ति होती है, बुद्धि और कौशल का विकास होता है और इस अपूर्व दान से हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाता है।
गुरुवार, 23 मार्च 2023
नवरात्रि का तीसरा दिन मां 'चंद्रघंटा' को समर्पित
नवरात्रि का तीसरा दिन मां 'चंद्रघंटा' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
देवी दुर्गा के हर रुप को विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है। मां चंद्रघंटा को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं और फिर देवी की आरती करें। इस तरह मां चंद्रघंटा की पूजा करने से साहस के साथ सौम्यता और विनम्रता में वृद्धि होती है।
मां चंद्रघंटा का मंत्र...
- ऐं श्रीं शक्तयै नम:
- या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।
- पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
मां चंद्रघंटा के उपाय...
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के समक्ष एक छोटे लाल वस्त्र में लौंग, पान, सुपारी रखकर मां के चरणों में चढ़ाएं और देवी के नवार्ण मंत्र का 108 बार जाप करें। मां चंद्रघंटा के बीज मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। अगले दिन ये लाल पोटली सुरक्षित स्थान पर रख दें। जब भी किसी शुभ कार्य के लिए जाएं या फिर कोर्ट कचहेरी से संबंधित मामलों से जुड़ा कोई कार्य हो तो इस पोटली को साथ रखे। कहते हैं, इससे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और शत्रु की हर चाल नाकाम होती है।
मंगलवार, 21 मार्च 2023
परंपरा: 'माह-ए-रमजान' का महीना प्रारंभ, रोजे
परंपरा: 'माह-ए-रमजान' का महीना प्रारंभ, रोजे
सरस्वती उपाध्याय
इस्लामिक कैलेंडर का 9वां महीना रमजान का पाक महीना होता है। रमजान मुसलमानों के सबसे प्रमुख त्योहारों में शामिल है। इस पूरे महीने के दौरान दुनियाभर के सभी मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं और रोजे रखते हैं। यह त्योहार 30 दिनों का होता है, जो हर साल चांद के दीदार के साथ शुरू होता है। इस दौरान सभी मुस्लिम समुदाय के लोग सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करते हैं। फिर नमाज पढ़कर सहरी खाते हैं। सहरी के बाद वे सीधे शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन करके अपना रोजा खोलते हैं, जिसे इफ्तार कहा जाता है।
इस बार रमजान 23 मार्च से शुरू हो रहा है। इस त्योहार की खुशी के मौके पर कई लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बधाई से जुड़े संदेश भेजते हैं।
नवरात्रि का पहला दिन मां 'शैलपुत्री' को समर्पित
नवरात्रि का पहला दिन मां 'शैलपुत्री' को समर्पित
सरस्वती उपाध्याय
नवदुर्गा सनातन धर्म में भगवती माता दुर्गा जिन्हे आदिशक्ति जगत जननी जगदम्बा भी कहा जाता है, भगवती के नौ मुख्य रूप है, जिनकी विशेष पूजा व साधना नवरात्रि के दौरान और वैसे भी विशेष रूप से करी जाती है। इन नवों/नौ दुर्गा देवियों को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं और सभी परम भगवती दुर्गा जी से ही प्रकट होती है।
दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नाङ्कित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं–
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
नौ रूप...
देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है।
शैलपुत्री...
दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएँ हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।
मंत्र...
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
कहानी...
एक बार जब सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमन्त्रित किया, पर अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं। सती अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमन्त्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहाँ जाना उचित नहीं है। परन्तु सती सन्तुष्ट नहीं हुईं।
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुँचीं तो सिर्फ माँ ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुँचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने-आप को जलाकर भस्म कर लिया।
इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने ताण्डव करते हुये उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी फिर से भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिव की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनन्त है।
प्राधिकृत प्रकाशन विवरण
प्राधिकृत प्रकाशन विवरण 1. अंक-51, (वर्ष-11) पंजीकरण:- UPHIN/2010/57254 2. सोमवार, दिसंबर 11, 2023 3. शक-1945, माघ, कृष्ण-पक्ष, तिथि-चतुर्दश...
-
यूपी में ग्रीष्मकालीन अवकाश की घोषणा: परिषद संदीप मिश्र/बृजेश केसरवानी लखनऊ/प्रयागराज। उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद की ओ...
-
55 साल की उम्र में भी बरकरार है खूबसूरती कविता गर्ग मुंबई। 55 की उम्र में भी यह हसीना बेहद खूबसूरत दिखती है, और मलाइका की हॉटनेस उसकी ...
-
वर्षा: पानी में डूबी दिल्ली, बाढ़ के हालात बनें इकबाल अंसारी नई दिल्ली। इन दिनों उत्तर भारत में हो रही भारी बारिश ने कहर बर...