मीना चौधरी
नई दिल्ली। नोटबंदी,जीएसटी,सीएए, धारा 370 के बाद मोदी सरकार की योजना के तहत विवाह कानून में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘हमने लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु पर पुनर्विचार करने के लिए एक समिति बनाई है। समिति द्वारा रिपोर्ट सौंपने के बाद केंद्र निर्णय लेगी। ’इसी साल दो जून को केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) को कम करने और पोषण स्तर में सुधार करने के उपाय के रूप में महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 से 21 वर्ष बढ़ाने की संभावनाओं की जांच करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया था। यह दावा करते हुए कि महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए सरकार ‘अथक परिश्रम’ कर रही है, प्रधानमंत्री ने कहा कि एक रुपये तक के बेहद सस्ते सैनेटरी पैड बनाए गए और इसे देश में 5 करोड़ महिलाओं को दिया गया है। मालूम हो कि बाल विवाह को खत्म करने के लिए लड़कों और लड़कियों की शादी के लिए न्यूनतम आयु सीमा तय की गई थी।
बता दे बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम, 1929 28 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पारित हुआ, लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की उम्र 18 साल तय की गई जिसे बाद में लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 कर दिया गया। इसके प्रायोजक हरबिलास सारडा के बाद इसे शारदा अधिनियम के नाम से जाना जाता है। यह 1 अप्रैल 1930 को छह महीने बाद लागू हुआ और यह केवल हिंदुओं के लिए नहीं बल्कि ब्रिटिश भारत के सभी लोगो पर लागू होता है। यह भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन का परिणाम था। ब्रिटिश अधिकारियों के कड़े विरोध के बावजूद, ब्रिटिश भारतीय सरकार द्वारा कानून पारित किया गया, जिसमें अधिकांश भारतीय थे।हालाँकि, इसका ब्रिटिश ब्रिटिश सरकार से कार्यान्वयन में कमी थी, इसका मुख्य कारण ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उनके वफादार हिंदू और मुस्लिम सांप्रदायिक समूहों से समर्थन खोना था।
गौरतलब है कि उम्र 21 ही क्यों? इसका लॉजिक सामने आना चाहिए। हालांकि, उम्र बढ़ाने से कुछ फायदे सामने होंगे। पहला, लड़कियों को पढ़ने का मौका मिलेगा, वो ग्रैजुएट हो सकेंगी। दूसरा, 18-19 की उम्र में शादी कर उनका एक्सपोजर खत्म हो जाता है, वो उन्हें कुछ हद तक मिलेगा। तीसरा, इस उम्र तक वो शारीरिक और मानसिक रूप से भी मैच्योर होंगी। अपने खिलाफ हो रही हिंसा पर भी वो शायद दो लोगों से कह सकें। शादी या रिप्रोडक्टिव फैसले में भी उनका कुछ रोल होगा। इसके अलावा, मां मैच्योर होगी तो आने वाली पीढ़ी मैच्योर होगी।
मगर सवाल उठता है ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में इसे लेकर विवाद हो सकता है। हमारे समाज की सच्चाई के साथ इस फैसला का तालमेल कैसे बैठेगा, यह भी देखना होगा। इस तबके में 21 की उम्र में लड़कियों को शादी के लिए लड़के भी नहीं मिलते। साथ ही, इस फैसले से महिलाओं का हेल्थ स्टेटस नहीं सुधरने वाला। महिलाओं के खराब स्वास्थ्य के लिए गरीबी जिम्मेदार है। भारत में 10 सालों में शादी की उम्र खुद-ब-खुद बढ़ी है। गरीब जनसंख्या की शादी ही कम उम्र में हो रही है, मिडल क्लास या इससे ऊपर में ज्यादा उम्र में शादी हो रही है। गरीब वर्ग में लड़की 18 के बाद मां बनती है या फिर 21 के बाद, बात वही होगी क्योंकि कुपोषित वो हमेशा ही रहेगी। 18 साल की उम्र तक लड़की का शरीर पूरी तरह से विकसित हो जाते है इसलिए मां बनने में दिक्कत नहीं है। उसकी सेहत पर उम्र का रोल बहुत कम है।
बता दे सरकार के लिए यह कानून बनाना आसान होगा क्योंकि उसे तो सिर्फ उम्र को बदलना है। मगर अगर सही बदलाव लाना है तो स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम करना पड़ेगा। आंगनवाड़ियों में मां और बच्चे को अच्छा खाना देना होगा, हेल्थ सर्विस देनी होंगी। वह कहती हैं, 1978 एक्ट ने लड़कियों के लिए शादी की मिनिमम उम्र 18 और लड़कों के लिए 21 रखी गई। इससे पहले लड़कियों के लिए यह उम्र 15 थी। ऐक्ट में यह भी कहा गया कि इससे बच्चों की संख्या भी कम होगी। उस वक्त जनसंख्या विस्फोट से जोड़कर इस आइडिया को खुलकर कहा गया। मुझे लगता है कि अभी भी इसे जनसंख्या से भी जोड़कर देखा जा रहा है। देखने वाली बात यह है कि जिस कागार पर युवा वर्ग अपनी मनचाही जिंदगी जीने की चाह में लिव इन रिलेशनशिप मे रिश्ता ढूंढता है और कुछ प्रेमी इस आस में समय गुजारते हैं वह कब बालिग हो और कब वह शादी करें लेकिन अब प्रेमी जोड़ों को बालिग होने का स्त्री की आयु वर्तमान में 18 वर्ष और यदि कानून पारित हो जाता है तो यही आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष होने से प्रेमी जोड़ों को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।