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बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

20 फरवरी को रखा जाएगा 'जया एकादशी' का व्रत

20 फरवरी को रखा जाएगा 'जया एकादशी' का व्रत 

सरस्वती उपाध्याय 
प्रत्येक महीने में एकादशी दो बार आती है। एक बार कृष्ण पक्ष में और दूसरी बार शुक्ल पक्ष में। कृष्ण पक्ष की एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है और शुक्ल पक्ष की एकादशी अमावस्या के बाद आती है। शुक्ल-पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। शास्त्रों में ये एकादशी बड़ी ही फलदायी बताई गई है। एकादशी में भगवान विष्णु के निमित्त व्रत करने और उनकी पूजा करने का विधान है। जया एकादशी व्रत को ग्रहस्थ और जो गृहस्थ नहीं हैं। दोनों ये व्रत कर सकते हैं। एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।

जया एकादशी 2024 व्रत शुभ मुहूर्त, तिथि और पारण का समय

हिंदू पंचांग के मुताबिक, एकादशी तिथि का आरंभ 19 फरवरी  सुबह 08 बजकर 49 मिनट से होगी और  इसका समापन 20 फरवरी को सुबह 09 बजकर 55 मिनट पर होगा। ऐसे में जया एकादशी का व्रत 20 फरवरी को रखा जाएगा। जया एकादशी व्रत का पारण का समय 21 फरवरी को सुबह 6 बजकर 55 मिनट से सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक रहेगा।

जया एकादशी व्रत का महत्व

जया एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत और भय आदि से भी छुटकारा मिलता है।

एकादशी के दिन भूलकर भी न करें ये काम

एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
एकादशी के दिन मांस, मदिर और नशीली चीजों से दूरी बनाकर रखना चाहिए।
एकादशी के दिन किसी को अपशब्द न कहें और न ही किसी से लड़ाई-झगड़ा करें।
एकादशी व्रत के दिन देर तक नहीं सोना चाहिए।
एकादशी के दिन तुलसी को स्पर्श करना और तोड़ना दोनों वर्जित होता है।

14 फरवरी को मनाया जाएगा 'बसंत पंचमी' का पर्व

14 फरवरी को मनाया जाएगा 'बसंत पंचमी' का पर्व 

सरस्वती उपाध्याय 
इस साल बसंत पंचमी का त्यौहार 14 फरवरी को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग खासकर बच्चे ज्ञान की देवी मां सरस्वती की विधिविधान पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं और विद्या, कला सहित समृद्धि की कामना करते हैं। बता दें कि यह दिन शिक्षा और कला के क्षेत्र में नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। ऐसे में यदि आप मां सरस्वती की मूर्ति स्थापित करने की सोच रहे हैं, तो उससे पहले वास्तुशास्त्र के कुछ नियमों का पालन अवश्य करें। इससे आपके जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही, आपके ज्ञान में भी बढ़ोतरी होगी। आइए जानते हैं विस्तार से यहां…।

बसंत पंचमी के दिन इस दिशा में रखें मां सरस्वती की मूर्ति, शुभ फलों की होगी प्राप्ति

जानिए शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी 13 फरवरी 2024 को दोपहर 02 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी जोकि अगले दिन यानी 14 पर फरवरी 2024 को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी। इस दौरान पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजे से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा।

इन नामों से मनाते हैं यह पर्व
बसंत पंचमी

सरस्वती पंचमी
इन नियमों का करें पालन
वहीं, यदि आप ज्ञान की देवी मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करने की सोच रहे हैं तो उससे पहले वास्तु के इन नियमों को जान लें। यदि आप मां सरस्वती की मूर्ति को अपने घर में स्थापित करने की सोच रहे हैं, तो आप वास्तुशास्त्र के इन नियमों का पालन करें। जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहेगी।
वास्तु शास्त्र में दी गई जानकारी के अनुसार, मां सरस्वती की मूर्ति को उत्तर की दिशा में स्थापित करना बहुत ही शुभ माना गया है। इसलिए यदि आप इसी दिशा में माता की मूर्ति या तस्वीर लगाइए, जिससे आपको हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी।
वास्तुशास्त्र के अनुसार, इस बात का ध्यान रखें कि मां सरस्वती कमल पुष्प पर बैठी हुई मुद्रा में हों। यह मुद्रा उनकी सौंदर्य, सौम्यता और आशीर्वाद को दर्शाती है।
इसके अलावा, मूर्ति की अच्छी गुणवत्ता पर ध्यान दें क्योंकि खंडित या टूटी हुई मूर्ति की स्थापना से नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश हो सकती है।

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

आतंरिक शांति के लिए काम करें, फायदा होगा

आतंरिक शांति के लिए काम करें, फायदा होगा

इकबाल अंसारी 

तिरुवनंतपुरम। तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने कहा है कि अगर भारत और चीन के लोग ‘अहिंसा’ और ‘करुणा’ के मार्ग पर चलते हुए आतंरिक शांति के लिए काम करें तो पूरी दुनिया को इसका फायदा होगा। उन्होंने कहा, ‘‘भारत ने पिछले कई सालों में कई क्षेत्रों में प्रगति की है, खासतौर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में। बाहरी निरस्त्रीकरण आवश्यक है लेकिन आतंरिक निरस्त्रीकरण भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।’’ तिब्बत के 87 वर्षीय आध्यात्मिक गुरु ने ‘मनोरमा ईयर बुक 2023’ के लिए लिखे लेख में कहा, ‘‘इस संदर्भ में मैं वास्तव में महसूस करता हूं कि अहिंसा और करुणा के खजाने में निहित शांतिपूर्ण समझ की अपनी महान परंपरा के कारण भारत अग्रणी भूमिका निभा सकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा ज्ञान किसी एक धर्म से परे है और इसमें समकालीन समाज में अधिक एकीकृत और नैतिक रूप से आधारित तरीके को प्रोत्साहित करने की क्षमता है। इसलिए मैं सभी को ‘करुणा और अहिंसा’ के लिए प्रोत्साहित करता हूं।’’ वैश्विक शांति प्राप्त करने के लिए उन्होंने कहा कि लोगों को अपने मन को शांत करने की जरूरत है और यह भौतिक विकास एवं आनंद से अधिक महत्वपूर्ण है। दलाई लामा ने कहा कि मानव का स्वभाव करुणामयी होना चाहिए। उन्होंने कहा,‘‘करुणा मानव स्वभाव का चमत्कार है। जैसे ही हम जन्म लेते हैं, मां हमारा ख्याल रखती है। इसलिए उम्र के शुरुआती चरण में ही हम समझ जाते हैं कि करुणा सभी खुशियों की जड़ है।’’

महात्मा गांधी को ‘अहिंसा’ की प्रतिमूर्ति के तौर पर बताते हुए दलाई लामा ने कहा कि वह उनके आदर्शों से बहुत प्रभावित हैं जिनका डॉ.मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला ने भी अनुकरण किया। उन्होंने कहा, ‘‘ मेरे लिए वह (महात्मा गांधी) आज भी आदर्श राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने अपने व्यक्तिगत विचारों से ऊपर परोपकार को रखा और सभी महान आध्यात्मिक परंपराओं का सम्मान किया।’’ स्वयं को भारत में सबसे लंबे समय तक रहने वाले मेहमानों से एक बताते हुए दलाई लामा ने कहा कि कम्युनिस्ट चीन के उनके देश पर हमले के बाद वह वहां से भागे और छह दशक से भी अधिक समय तक भारत में रहे थे। उन्होंने तिब्बती शरणार्थियों का स्वागत करने और उनके बच्चों को स्कूलों और तिब्बत के अध्ययन केंद्र के भिक्षुओं को अपनी शिक्षा जारी रखने का अवसर देने के लिए भारत का आभार व्यक्त किया।

दलाई लामा ने कहा कि तिब्बती हमेशा से भारतीय विचारों से प्रभावित रहे हैं। उन्होंने कहा कि मानव होने के नाते वह मानवता के एकीकरण और विश्व की धार्मिक परंपराओं जिनका दर्शन भले अलग-अलग क्यों न हो, में सौहार्द्र को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बती और दलाई लामा होने के नाते वह तिब्बती भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं।

सोमवार, 8 मार्च 2021

देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मंदिर सर्वाधिक

जन गण मन के आराध्य भगवान शिव सहज उपलब्धता और समाज के आखरी छोर पर खडे व्यक्ति के लिए भी सिर्फ कल्याण की कामना यही शिव है। किरात भील जैसे आदिवासी एवं जनजाति से लेकर कुलीन एवम अभिजात्य वर्ग तक अनपढ़ गंवार से लेकर ज्ञानी अज्ञानी तक सांसारिक मोहमाया में फंसे लोगो से लेकर तपस्वियों, योगियों, निर्धन, फक्कडों, साधन सम्पन्न सभी तबके के आराध्य देव है भगवान शिव, भारत वर्ष में अन्य देवी-देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मन्दिर सर्वाधिक है। हर गली मुहल्ले गांव देहात घाट अखाडे बगीचे पर्वत नदी जलाशय के किनारे यहां तक की बियाबान जंगलों मे भी शिवलिंग के दर्शन हो जाते है। यह इस बात का साक्ष्य है कि हमारे श्रृजनता का भगवान शिव में अगाध प्रेम भरा है। वस्तुत: इनका आशुतोष होना अवघडदानी होना केवल वेलपत्र या जल चढानें मात्र से ही प्रशन्न होना आदि कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो इनको जन गण मन का देव अर्थात् महादेव बनाती है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना गया है। शिव को अनादि अनन्त अजन्मां माना गया है। यानि उनका न आरम्भ है न अन्त ।न उनका जन्म हुआ है न वे मृत्यु को प्राप्त होते है। इस तरह से भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर है। शिव की साकार यानि मुर्ति रूप एवम निराकार यानि अमूर्त रूप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याण कारी माना गया है। धार्मिक आस्था से इन शिव नामों का ध्यान मात्र ही शुभ फल देता है। शिव के इन सभी रूप और नामों का स्मरण मात्र ही हर भक्त के सभी दु:ख और कष्टों को दूर कर उसकी हर इच्छा और सुख की पूर्ति करने वाला माना गया है।इसी का एक रूप गाजीपुर जनपद के आखिरी छोर पर स्थित कामेश्वर नाथ धाम कारो जनपद बलिया का है।रामायण काल से पूर्व में इस स्थान पर गंगा सरजू का संगम था और इसी स्थान पर भगवान शिव समाधिस्थ हो तपस्यारत थे। उस समय तारकासुर नामक दैत्य राज के आतंक से पूरा ब्रम्हांड व्यथित था। उसके आतंक से मुक्ति का एक ही उपाय था कि किसी तरह से समाधिस्थ शिव में काम भावना का संचार हो और शिव पुत्र कार्तिकेय का जन्म हो जिनके हाथो तारकासुर का बध होना निश्चित था। देवताओं के आग्रह पर देव सेनापति कामदेव समाधिस्थ शिव की साधना भूमिं कारो की धरती पर पधारे। सर्वप्रथम कामदेव ने अप्सराओं ,गंधर्वों के नृत्य गान से भगवान शिव को जगाने का प्रयास किया। विफल होने पर कामदेव ने आम्र बृक्ष के पत्तों मे छिपकर अपने पुष्प धनुष से पंच बाण हर्षण प्रहस्टचेता सम्मोहन प्राहिणों एवम मोहिनी का शिव ह्रदय में प्रहार कर शिव की समाधि को भंग कर दिया। इस पंच बाण के प्रहार से क्रोधित भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। तभी से वह जला पेंड युगो युगो से आज भी प्रमाण के रूप में अपनी जगह पर खडा है।इस कामेश्वर नाथ का वर्णन बाल्मीकि रामायण के बाल सर्ग के 23 के दस पन्द्रह में मिलता है। जिसमे अयोध्या से बक्सर जाते समय महर्षि विश्वामित्र भगवान राम को बताते है की देखो रघुनंदन यही वह स्थान है जहां तपस्या रत भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। कन्दर्पो मूर्ति मानसित्त काम इत्युच्यते बुधै: तपस्यामि: स्थाणु: नियमेन समाहितम्।इस स्थान पर हर काल हर खण्ड में ऋषि मुनी प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष रूप से साधना रत रहते है। इस स्थान पर भगवान राम अनुज लक्ष्मण एवम महर्षि विश्वामित्र के साथ रात्रि विश्राम करने के पश्चात बक्सर गये थे। स्कन्द पुराण के अनुसार महर्षि दुर्वासा ने भी इसी आम के बृक्ष के नीचे तपस्या किया था।महात्मां बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां पर रूके थे। ह्वेन सांग एवम फाह्यान ने अपने यात्रा बृतांत में यहां का वर्णन किया है। शिव पुराण देवीपुराण स्कंद पुराण पद्मपुराण बाल्मीकि रामायण समेत ढेर सारे ग्रन्थों में कामेश्वर धाम का वर्णन मिलता है। महर्षि वाल्मीकि गर्ग पराशर अरण्य गालव भृगु वशिष्ठ अत्रि गौतम आरूणी आदि ब्रह्म वेत्ता ऋषि मुनियों से सेवित इस पावन तीर्थ का दर्शन स्पर्श करने वाले नर नारी स्वयं नारायण हो जाते है। मन्दिर के ब्यवस्थापक रामाशंकर दास के देख रेख में करोणो रूपये खर्च कर धाम का सुन्दरीकरण किया गया है। चितबडागांव मुहम्मदाबाद मार्ग पर धर्मापुर में भव्य प्रवेश द्वार, कामेश्वर धाम के पास पोखरे के समीप भव्य द्वार, सत्संग हाल,प्रवचन मंच,समेत अनेक निर्माण कार्य सम्पन्न है और कुछ का निर्माण कार्य चल रहा है। शिव रात्रि एवम सावन मास में लाखो लोग यहा आकर बाबा कामेश्वर नाथ का दर्शन पूजन करते है। सावन मास में लोग उजियार घाट से गंगा स्नान कर गंगा जल लेकर कारो आते है और बाबा कामेश्वर नाथ जी को अर्पित करते है। 

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

सनातन धर्म: भगवान के प्रथम विवाह की चर्चा हुई

सनातन धर्म सभा मन्दिर में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में पूज्य श्री स्वामी नारायण चैतन्य महराज रुद्रपुर द्वारा भगवान के प्रथम विवाह की चर्चा करते हुए भक्तों से बताते हैं, कि महाराज सुखदेव महाराज राजा परीक्षित से बोले सुनो राजन विदर्भ देश के राजा भीष्मक की एक बेटी थी। जिसका नाम रुकमणी था। विश्वक के पांच बेटे थे। भाइयों में एकलौती बहन थी। रुकमणी भीष्मक अपनी पुत्री के विवाह के लिए योग्य वर का विचार मन में कर रहे थे।
और अपने पुत्रों से परामर्श लिया कि मेरा मन हो रहा है। क्यों ना द्वारिकाधीश कृष्ण के साथ तुम्हारी बहन रुक्मणी का विवाह कर दिया जाए इस बात से रुक्मी नाराज हो गया जब रुकमणी जी को मालूम हुआ कि मेरा विवाह शिशुपाल के साथ हमारे भाई करने के लिए तैयार हैं। तो रुकमणी जी ने मन ही मन द्वारिकाधीश का स्मरण करते हुए मन से वर्ण कर लिया और पंडित जी के द्वारा प्रेम पत्र अपना संदेश रुकमणी जी ने भगवान द्वारिकाधीश के पास भेजा भगवान प्रेम पत्र को पढ़कर विदर्भ देश के लिए अपना रथ लेकर रुकमणी की ओर बढ़ाते चले गए सैनिक देखते जा रहे है।
वाह गजब की जोड़ी है। भगवान ने रुक्मणी को इशारा करते हुए रुकमणी जी का हाथ पकड़कर रथ में बैठा लिया और हवा में बातें करते रुकमणी हरण करके भगवान द्वारिका पुरी ले आए प्रभु का प्रथम विवाह भीष्मक की पुत्री लक्ष्मी स्वरूपा कन्या भगवती रुक्मणी के साथ संपन्न हुआ लक्ष्मी केवल नारायण की है । और नारायण की ही रहेगी जो अपने आप को लक्ष्मीपति समझने की चेष्टा करता है। उन्हें फिर शीशपाल की तरह रोना पड़ता है।
इस मौके पर पंडित विजय कुमार शास्त्री सनातन धर्म मंदिर सभा के अध्यक्ष वेदराज बजाज जय किशन अरोरा सुजीत बत्रा सोमनाथ छाबड़ा किशन बत्रा लालचंद बत्रा विजय अरोरा गुलशन कालरा अशोक भुड्डी राजकुमार भुड्डी अशोक बंगा राजमणि लवली हुड़िया लेखराज भुड्डी लेखराज नागपाल ज्ञानचंद बजाज पंकज सेतिया मनीष फुटेला गुलशन मुरादिया जगमोहन बजाज धर्मचंद खेड़ा हरिशचंद्र छाबड़ा साबुन ज्योति छाबड़ा अनीता भुड्डी राधा बजाज मधु नागपाल ज्योति छाबड़ा राजबाला चौहान प्रीति सुधा फूलारानी सत्या सुखीजा निर्मला मित्तल आदि मौजूद थे।

शनिवार, 12 दिसंबर 2020

उद्घाटन के बाद सीएम 'योगी' ने गहन अध्ययन किया

संदीप मिश्र

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में नवनिर्मित कैलाश मानसरोवर भवन का लोकार्पण किया। सीएम योगी ने लोकार्पण करने के बाद अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की हर मंजिल पर जाकर गहन अवलोकन किया। इस भवन का निर्माण उत्तर-प्रदेश सरकार के धर्मार्थ विभाग द्वारा किया गया है। नवनिर्मित कैलाश मानसरोवर भवन का निर्माण 9000 वर्ग मीटर में लगभग 69.48 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है।

एससी ने एसबीआई को कड़ी फटकार लगाई

एससी ने एसबीआई को कड़ी फटकार लगाई  इकबाल अंसारी  नई दिल्ली। चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को कड़ी फटकार लग...