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रविवार, 12 मई 2024

6 जून को रखा जाएगा 'वट सावित्री' व्रत, जानिए

6 जून को रखा जाएगा 'वट सावित्री' व्रत, जानिए 

सरस्वती उपाध्याय 
वट सावित्री व्रत, जिसे सावित्री अमावस्या या वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, 6 जून 2024 को रविवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस त्योहार को लेकर ये मान्यता है कि इस व्रत को रखने से परिवार के लोगों को सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है। बहुत से लोग ये भी मानते हैं कि इस व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है। इस दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संतापों का नाश करने वाली मानी जाती है।

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

1- इस दिन महिलाएं प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।

2- फिर शृंगार करके तैयार हो जाएं। साथ ही सभी पूजन सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर लें और थाली सजा लें।

3- किसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करें।

4- फिर बरगद के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं।

5- वट के वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम करके परिक्रमा पूर्ण करें।

6- अब हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें। इसके बाद पूजा संपन्न होने पर ब्राह्मणों को फल और वस्त्रों करें।

वट सावित्री व्रत का महत्व

वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान आदि करके सोलह शृंगार करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत के दिन विधिवत पूजन करने से महिलाओं अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है। पूजा का सामान तैयार करके बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करती हैं और कथा सुनती हैं।

वट सावित्री व्रत पूजा मुहूर्त

वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर रखा जाता है। पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि की शुरुआत 5 जून की शाम को 5 बजकर 54 मिनट पर हो रही है। इसका समापन 6 जून 2024 शाम 6 बजकर 07 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए इस साल वट सावित्री व्रत 6 जून को रखा जाएगा। वहीं इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर होगा।

शनिवार, 13 जनवरी 2024

15 को मनाया जाएगा 'मकर संक्रांति' का पर्व

15 को मनाया जाएगा 'मकर संक्रांति' का पर्व

सरस्वती उपाध्याय 
मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व होता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब ये पर्व मनाया जाता है। इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति से ही ऋतु परिवर्तन भी होने लगता है। इस दिन स्नान और दान-पुण्य जैसे कार्यों का विशेष महत्व मा रज्जोना जाता है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने और खाने का खास महत्व होता है। इसी कारण इस पर्व को कई जगहों पर खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इसी त्यौहार पर सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं। सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है। इसलिए यहां से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
उदयातिथि के अनुसार, मकर संक्रांति इस बार 15 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य रात 2 बजकर 54 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
मकर संक्रांति पुण्यकाल – सुबह 07 बजकर 15 मिनट से शाम 06 बजकर 21 मिनट तक
मकर संक्रांति महा पुण्यकाल -सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक

मकर संक्रांति शुभ संयोग

15 जनवरी 2024 को मकर संक्रांति पर 77 सालों के बाद वरीयान योग और रवि योग का संयोग बन रहा है‌। इस दिन बुध और मंगल भी एक ही राशि धनु में विराजमान रहेंगे।

वरीयान योग – 15 जनवरी को यह योग प्रात: 2 बजकर 40 मिनट से लेकर रात 11 बजकर 11 मिनट तक रहेगा।

रवि योग – 15 जनवरी को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा 

सोमवार – पांच साल बाद मकर संक्रांति सोमवार के दिन पड़ रही है। ऐसे में सूर्य संग शिव का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा।

मकर संक्रांति पूजन विधि

इस दिन प्रातः काल स्नान कर लोटे में लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें। सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें।श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें या गीता का पाठ करें। नए अन्न, कम्बल, तिल और घी का दान करें। भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनाएं। भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें। संध्या काल में अन्न का सेवन न करें। इस दिन किसी गरीब व्यक्ति को बर्तन समेत तिल का दान करने से शनि से जुड़ी हर पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

मंगलवार, 2 जनवरी 2024

मौनी अमावस्या का विशेष महत्व, जानिए

मौनी अमावस्या का विशेष महत्व, जानिए 

सरस्वती उपाध्याय 
शास्त्रों में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व है। माघ माह में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या और माघ अमावस्या भी कहते हैं। वहीं इस दिन ऋषि मनु का जन्म हुआ था। आपको बता दें कि इस दिन व्रत और दान करने का महत्व है। इस दिन दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं यह तिथि पितरों को समर्पित भी मानी गई है। इस दिन लोगों को तर्पण और श्राद्ध करना चाहिए, जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष है। साथ ही इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु का पूजन करना बेहद शुभ होता है। आइए जानते हैं मौनी।

अमावस्या शुभ मुहुर्त और तिथि…

मौनी अमावस्या तिथि 2024
वैदिक पंचांग के अनुसार मौनी अमावस्या तिथि 9 फरवरी को सुबह 8 बजकर 1 मिनट से आरंभ होगी, जो अगले दिन 10 फरवरी सुबह 4 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए मौनी अमावस्या 9 फरवरी को मनाई जाएगी।

मौनी अमावस्या शुभ मुहूर्त 2024

ब्रह्म मुहूर्त- 05:21 AM से 06:13 AM

सर्वार्थ सिद्धि योग- 07:05 AM से 11:29 PM

अभिजित मुहूर्त- 12:13 PM से 12:58 PM

विजय मुहूर्त- 02:26 PM से 03:10 PM

अमृत काल- 02:17 PM से 03:42 PM

इन चीजोंं का करें दान

अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण और श्राद्ध करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही जीवन में सुख- समृद्धि बनी रहती है। वहीं अमावस्या के दिन तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, वस्त्र और आंवला दान में करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं अगर आपकी कुंडली में पितृ या सूर्य दोष है तो आप एक लोटे में जल लेकर उसमें लाल पुष्प और काले तिल डालें। फिर पितरों का ध्यान करते हुए इस जल को सूर्यदेव को अर्पित कर दें। ऐसा करने से आपको सूर्य देव और पितरों का आशार्वाद प्राप्त होगा।

मौनी अमावस्या का धार्मिक महत्व

सभी अमावस्या तिथियों में मौनी अमावस्या को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। साथ ही इस दिन स्नान दान करने और मौन व्रत रहने की परंपरा है। ऐसा करने से मन को शांति मिलती है। वहीं इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विधान है। इस दिन पर ओम नमो भगवते वासुदेवाय, ओम खखोल्काय नम:, ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए।

सोमवार, 13 नवंबर 2023

आज गोवर्धन पूजन करने का विधान, जानिए

आज गोवर्धन पूजन करने का विधान, जानिए 

सरस्वती उपाध्याय 
पांच दिन के दीपावली महापर्व में चौथे दिन गोवर्धन की पूजा अर्चना की जाती है और हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल-पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन करने का विधान है। इस तिथि को अन्नकूट के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इस दिन घरों में अन्नकूट का भोग बनाया जाता है। गोवर्धन पूजन के दिन घरों में गोबर से गोवर्धन महाराज की प्रतिमा बनाई जाती है और पूरे परिवार के साथ शुभ मुहूर्त में पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने देवराज इंद्र का घमंड चूर किया था और अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। गोवर्धन पूजा का पर्व दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है। लेकिन इस बार अमावस्या तिथि दो दिन होने की वजह से गोवर्धन पूजन को लेकर बेहद कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा का पर्व कब है? साथ ही पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा का सही विधान...

गोवर्धन पूजा 2023

इस बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर दिन सोमवार से दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से हो रही है और तिथि का समापन 14 नवंबर दिन मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 36 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि को मानते हुए गोवर्धन पूजन 14 नवंबर को मनाया जाएगा।

प्रतिपदा तिथि की शुरुआत- 13 नवंबर, दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से
तिथि का समापन - 14 नवंबर, दोपहर 2 बजकर 36 मिनट पर

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त...
गोवर्धन पूजन का शुभ मुहूर्त 14 नवंबर दिन मंगलवार को शाम 5 बजकर 25 मिनट से रात 9 बजकर 38 मिनट तक होगा।

गोवर्धन पूजा की कथा...
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि को देवराज इंद्र की पूजा हुआ करती थी लेकिन भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा कि पूजा का कोई लाभ नहीं मिल रहा है।इसलिए देवराज इंद्र की पूजा ना करें। भगवान कृष्ण की बात मानकर ब्रजवासियों ने पूजा नहीं की। जब यह जानकारी इंद्र को मिली तो इंद्रदेव ने अपने घमंड के चलते पूरे ब्रज में तूफान और बारिश का कहर मचाया। तब भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की था और इंद्र के घमंड को तोड़ा था। साथ ही भगवान को सभी तरह की मौसमी सब्जियों से तैयार अन्नकूट को भोग लगाया था। तब से हर साल इस तिथि पर गोवर्धन पूजा की जाती है और अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

गोवर्धन पूजा का भोग...
गोवर्धन पूजन के दिन भगवान कृष्ण के लिए 56 भोग बनाए जाते हैं। साथ ही अन्नकूट का भी भोग लगता है और प्रसाद भी वितरण किया जाता है।

गोवर्धन पूजन-विधि...
गोवर्धन पूजा करने के लिए घर के आंगन में गाय के गोबर से भगवान कृष्ण की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके साथ ही गाय, बछड़े व ब्रज आदि की भी प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद उसको फूलों से सजाया जाता है। फिर शुभ मुहूर्त में गोवर्धन महाराज को रोली, अक्षत, चंदन लगाएं। फिर दूध, पान, खील बताशे, अन्नकूट अर्पित किए जाते हैं और विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इसके बाद पूरे परिवार के साथ पानी में दूध मिलाकर गोवर्धन महाराज की परिक्रमा की जाती है और फिर आरती की जाती है। इसके बाद गोवर्धन महाराज के जयाकरे लगाए जाते हैं और घर के बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है।

गोवर्धन महाराज आरती...
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े, तोपे चढ़े दूध की धार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा, और चकलेश्वर विश्राम
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ, ठोड़ी पे हीरा लाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ, तेरी झांकी बनी विशाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण। करो भक्त का बेड़ा पार
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

सोमवार, 23 अक्तूबर 2023

आज मनाया जाएगा 'विजयदशमी' का पर्व

आज मनाया जाएगा 'विजयदशमी' का पर्व 

सरस्वती उपाध्याय 
मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023 को देशभर में दशहरे का त्योहार बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि के समापन के अगले दिन दशमी तिथि पर विशेष रूप से मां दुर्गा, भगवान राम की पूजा की जाती है। इसके अलावा दशहरे पर हवन, पूजन और शस्त्र पूजा करने का विधान होता है। दशहरे की शाम को रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों को दहन विसेष रूप से किया जाता है। यह त्योहार असत्य पर सत्य की जीत और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन 10 दिन से चलने वाले युद्ध में मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया था और भगवान राम ने रावण का अंत करके लंका पर विजय प्राप्त की थी। आइए जानते हैं दशहरे पर पूजा का और रावण दहन का शुभ मुहूर्त क्या होगा ?

विजयादशमी पूजा का महत्व
दशहरे की पूजा दोपहर के समय करना उत्तम रहता है। वैदिक शास्त्र के अनुसार विजयादशमी पर मां दुर्गा के साथ देवी अपराजिता की पूजा करने का विधान होता है। विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजा, दुर्गा पूजा, भगवान राम की पूजा और शमी पूजा का काफी महत्व होता है। दशहरे की पूजा विजय मुहूर्त में की जाती है। 

विजयादशमी तिथि 2023
दशमी तिथि प्रारंभ- दशमी तिथि 23 अक्तूबर को शाम बजकर 44 मिनट से शुरू 
दशमी तिथि समाप्त- 24 अक्तूबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 14 मिनट तक

विजयादशमी शस्त्र पूजा और रावण दहन का शुभ मुहूर्त 2023

अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक

पहला विजयी मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से 02 बजकर 43 मिनट तक
दूसरा विजयी मुहूर्त- इस विजय मुहूर्त की अवधि शाम के समय होती जब आसमान में तारे दिखाई देते हैं।

अपराह्र पूजा का समय- दोपहर 01 बजकर 13 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट तक
गोधूलि पूजा मुहूर्त- शाम 05 बजकर 43 मिनट से 06 बजकर 09 मिनट तक

रावण दहन का मुहूर्त 
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में रावण दहन करना शुभ माना जाता है। ऐसे में 24 अक्तूबर को शाम 05 बजकर 43 मिनट के बाद रावण दहन किया जा सकता है। वहीं रावण दहन का सबसे उत्तम समय शाम 07 बजकर 19 मिनट से रात 08 बजकर 54 मिनट के बीच का रहेगा। 

दशहरा पूजा विधि
दशहरे की पूजा दोपहर के समय करना उत्तम रहता है। इस दिन बही-खाते की पूजा करना बहुत शुभ माना गया है। इस दिन गाय के गोबर से षट्कोणीय आकृति बनाकर  9 गोले व 2 कटोरियां बनाई जाती हैं। इन कटोरियों में से एक में चांदी का सिक्का और दूसरी में रोली, चावल, जौ व फल रख दें। इसके बाद रोली,चावल,पुष्प एवं जौ के ज्वारे से भगवान राम का स्मरण करते हुए पूजा करें। पूजा के बाद बहन अपने भाइयों के दाएं कान में जौ लगाकर भगवान से अपने भाई के अच्छे जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। इस दिन शमी वृक्ष का पूजन कर शाम को उसके नीचे दीपक लगाएं। इसके बाद यथाशक्ति अनुसार दान-दक्षिणा दें।

रविवार, 22 अक्तूबर 2023

माता सिद्धिदात्री को समर्पित 'नवरात्रि' का नौवां दिन

माता सिद्धिदात्री को समर्पित 'नवरात्रि' का नौवां दिन 

सरस्वती उपाध्याय 
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।

सिद्धिदात्री- नवदुर्गाओं में नवम

श्लोक
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमसुरैरपि | सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||

सिद्धियां
मुख्य लेख: सिद्धि
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। इनके नाम इस प्रकार हैं-
माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए।
माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है।

प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करे। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है। ऐसा माना गया है कि माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विश्वास किया जाता है कि इनकी आराधना से भक्त को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माँ की कृपा का पात्र बन सकता ही है। माँ की आराधना के लिए इस श्लोक का प्रयोग होता है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।

शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

माता महागौरी को समर्पित 'नवरात्रि' का आठवां दिन

माता महागौरी को समर्पित 'नवरात्रि' का आठवां दिन

सरस्वती उपाध्याय 
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। आदिशक्ति श्रीदुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। मां महागौरी का रंग अत्यंत गौर वर्ण है इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। मान्यता के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। तभी से इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया।

मां महागौरी का स्वरूप
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

अर्थ - मां दुर्गा का आठवां स्वरूप है महागौरी का। देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण आदि भी सफेद ही हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका स्वभाव अति शांत है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी हुई है।

पूजन का महत्व
आदि शक्ति देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप की पूजा करने से सभी ग्रहदोष दूर हो जाते हैं। मां महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजन-आराधना से दांपत्य सुख, व्यापार, धन और सुख-समृद्धि बढ़ती है। मनुष्य को सदैव इनका ध्यान करना चाहिए,इनकी कृपा से आलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये भक्तों के कष्ट जल्दी ही दूर कर देती हैं एवं इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। ये मनुष्य की वृतियों को सत्य की ओर प्रेरित करके असत्य का विनाश करती हैं। भक्तों के लिए यह देवी अन्नपूर्णा का स्वरूप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। ये धन, वैभव, अन्न-धन और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।

पूजन विधि
अष्टमी तिथि के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात महागौरी की पूजा में श्वेत, लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें एवं सर्वप्रथम कलश पूजन के पश्चात मां की विधि-विधान से पूजा करें। देवी महागौरी को चंदन, रोली, मौली, कुमकुम, अक्षत, मोगरे का फूल अर्पित करें व देवी के सिद्ध मंत्र श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: का जाप करें। माता के प्रिय भोग हलवा-पूरी,चना एवं नारियल का प्रसाद चढ़ाएं। फिर 9 कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराएं। माता रानी को चुनरी अर्पित करें।  सुख-समृद्धि के लिए घर की छत पर लाल रंग की ध्वजा लगाएं।

मां महागौरी का प्रिय पुष्प
मां महागौरी को पूजा के दौरान सफेद, मोरपंखी या पीले रंग का पुष्प अर्पित करना चाहिए। ऐसे में मां दुर्गा को चमेली व केसर का फूल अर्पित किया जा सकता है।

मां महागौरी का वंदना मंत्र

श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

माता कालरात्रि को समर्पित 'नवरात्रि' का सातवां दिन

माता कालरात्रि को समर्पित 'नवरात्रि' का सातवां दिन 

सरस्वती उपाध्याय 
माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी - काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री , धूम्रवर्णा कालरात्रि मां के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं।

कालरात्रि- नवदुर्गाओं में सप्तम्

यह ध्यान रखना जरूरी है कि मां काली और कालरात्रि का उपयोग एक दूसरे के परिपूरक है, हालांकि इन दो देवीओं को कुछ लोगों द्वारा अलग-अलग सत्ताओं के रूप में माना गया है। डेविड किन्स्ले के मुताबिक, काली का उल्लेख हिंदू धर्म में लगभग ६०० ईसा के आसपास एक अलग देवी के रूप में किया गया है। कालानुक्रमिक रूप से, कालरात्रि महाभारत में वर्णित(लगभग 3200) ईसा पूर्व वर्तमान काली का ही वर्णन है।
माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस,भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, जो उनके आगमन से पलायन करते हैं।
शिल्प प्रकाश में संदर्भित एक प्राचीन तांत्रिक पाठ, सौधिकागम, देवी कालरात्रि का वर्णन रात्रि के नियंत्रा रूप में किया गया है। सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य (सिद्धियों और निधियों विशेष रूप से ज्ञान, शक्ति और धन) का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है और अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।

श्लोक
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता | लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी || वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा | वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||

वर्णन
इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।

कालरात्रि का रक्तपान
माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

महिमा
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।
माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। वे शुभंकारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए।

मंत्र
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर।

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः |

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

माता कात्यायनी को समर्पित 'नवरात्रि' का छठा दिन

माता कात्यायनी को समर्पित 'नवरात्रि' का छठा दिन 

सरस्वती उपाध्याय 
कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं।

कात्यायनी - नवदुर्गाओं में षष्ठम्

मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

'कात्यायनी' अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेेमावती व ईश्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, में भी प्रचलित हैं। यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख प्रथम किया है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं , जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। वे शक्ति की आदि रूपा है, जिसका उल्लेख पाणिनि पर पतञ्जलि के महाभाष्य में किया गया है, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में रचित है। उनका वर्णन देवीभागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में किया गया है जिसे ४०० से ५०० ईसा में लिपिबद्ध किया गया था। बौद्ध और जैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रंथों, विशेष रूप से कालिका पुराण (१० वीं शताब्दी) में उनका उल्लेख है, जिसमें उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है।
परम्परागत रूप से देवी दुर्गा की तरह वे लाल रंग से जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि उत्सव के षष्ठी को उनकी पूजा की जाती है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।

श्लोक
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

कथा
माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं।
ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।
माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।

उपासना
नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र

ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥

महिमा
माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।

बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

स्कंदमाता को समर्पित 'नवरात्रि' का पांचवां दिन

स्कंदमाता को समर्पित 'नवरात्रि' का पांचवां दिन 

सरस्वती उपाध्याय 
नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

स्कंदमाता - नवदुर्गाओं में पंचम

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया |

शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||

कथा
भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

स्वरूप
स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह (शेर) है।

महत्व
नवरात्रि-पूजन के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है।
साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है। इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।
माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है। यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है।
हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है।

उपासना
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

माता कुष्मांडा को समर्पित 'नवरात्रि' का चौथा दिन

माता कुष्मांडा को समर्पित 'नवरात्रि' का चौथा दिन 

सरस्वती उपाध्याय 
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।

कूष्मांडा - नवदुर्गाओं में चतुर्थ

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।
इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन शेर है।

श्लोक
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

महिमा
माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

विधि-विधान से माँ के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख स्वरूप संसार उसके लिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है। माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।

माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।

उपासना
चतुर्थी के दिन माँ कूष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र [2] विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं।

पूजन
इस दिन जहाँ तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माताजी प्रसन्न होती हैं। और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

माता चंद्रघंटा को समर्पित 'नवरात्रि' का तीसरा दिन

माता चंद्रघंटा को समर्पित 'नवरात्रि' का तीसरा दिन 

सरस्वती उपाध्याय 
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है। लोकवेद के अनुसार माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।

श्लोक
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||

स्वरूप
माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।

कृपा
मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं। इनकी आराधना सद्यः फलदायी है। माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है। इनका ध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिए इस घंटे की ध्वनि निनादित हो उठती है।
माँ का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। इनकी आराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति-गुण की वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। माँ चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करते हैं। माँ के आराधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता रहता है। यह दिव्य क्रिया साधारण चक्षुओं से दिखाई नहीं देती, किन्तु साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव भली-भाँति करते रहते हैं। विद्यार्थियों के लिए मां साक्षात विद्या प्रदान करती है। वहीं, देवी साधक की सभी प्रकार से रक्षा करती है।

साधना
हमें चाहिए कि अपने मन, वचन, कर्म एवं काया को विहित विधि-विधान के अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध एवं पवित्र करके माँ चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना में तत्पर हों। उनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं। हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए परम कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है। हालांकि इन सब क्रियाओं का प्रमाण हमारे पवित्र धर्म ग्रंथों में कहीं नहीं मिलता, देवी देवताओं के मूल व साधना की सही विधि तत्वदर्शी यानि संत पूर्ण संत ही बता सकते हैं एसा हमारे वित्र धर्म ग्रंथों प्रमाणित करते हैं।
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में तृतीय दिन इसका जाप करना चाहिए। मां चन्द्रघंटा को नारंगी रंग प्रिय है। भक्त को जहां तक संभव हो, पुजन के समय सूर्य के आभा के समान रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। भोजन में दही और हलवा खिलाएँ। भेंट में कलश और मंदिर की घंटी भेंट करना चाहिए।

शनिवार, 23 सितंबर 2023

15 अक्तूबर से शुरू होगी शारदीय 'नवरात्रि'

15 अक्तूबर से शुरू होगी शारदीय 'नवरात्रि' 

सरस्वती उपाध्याय 
शारदीय नवरात्र पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती है। इस शारदीय नवरात्रों में मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी। नवरात्रि की शुरूआत जिस दिन से होती है, उस दिन के आधार पर उनकी सवारी तय होती है। इस साल नवरात्रि की शुरूआत रविवार 15 अक्तूबर से हो रही है। हाथी को ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में मां दुर्गा इस बार ढेर सारी खुशियां और सुख समृद्धि लेकर आ रही हैं।
अगले नौ दिनों तक मां दुर्गा की नौ रुपों में पूजा की जाएगी। वसंत की शुरूआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। यह समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माना जाता है। नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की स्तुति को समर्पित हैं। यह पूजा मां दुर्गा ऊर्जा व शक्ति के लिए की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के अलग-अलग रुपों को समर्पित है। ज्योतिषाचार्य डॉ.सुशांतराज के अनुसार, नवरात्रि के सातवें दिन कला और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा होती है, आठवें दिन यज्ञ होता है। नवें दिन को महानवमी कहा जाता है। इस दिन कन्या पूजना होता है।
नवरात्रि में घटस्थापना का बड़ा महत्व है। कलश में हल्दी की गांठ, सुपारी, दुर्वा, पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। कलश के नीचे बालू की वेदी बनाकर जौ बोए जाते हैं। इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती व दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।

शनिवार, 26 अगस्त 2023

परिणीति व राघव ने महाकाल के दर्शन किए

परिणीति व राघव ने महाकाल के दर्शन किए   

ओम प्रकाश चौबे   
उज्जैन। बॉलीवुड एक्ट्रेस परिणीति चोपड़ा और राज्यसभा सदस्य राघव चड्‌ढा ने शनिवार को महाकाल के दर्शन किए। दोनों दोपहर 12 बजे उज्जैन पहुंचे। यहां अंजू श्री होटल में ठहरे। कुछ देर रुक कर दोपहर 1 बजे महाकालेश्वर मंदिर पहुंचे। परिणीति चोपड़ा और आम आदमी पार्टी के निलंबित सांसद राघव चड्‌ढा ने मंदिर के नंदी हॉल से भगवान महाकाल से आशीर्वाद लिया। मंदिर के नियमानुसार राघव ने धोती-सोला, परिणीति ने साड़ी पहन रखी थी। कपल ने 30 मिनट शांति पाठ पूजन किया। पूजन यश गुरु ने संपन्न कराया। मंदिर में 1 घंटा रहे। मीडिया से बात नहीं की। राघव चड्‌ढा 'जय महाकाल' का जयकारा लगाकर रवाना हुए।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों अगले महीने 25 सितंबर को शादी करने वाले हैं। इसी साल 13 मई को कपल ने दिल्ली में सगाई की है। इंगेजमेंट सेरेमनी सिर्फ उनके करीबी दोस्तों और परिवार के सदस्यों की मौजूदगी में हुई। परिणीति चोपड़ा 8 महीने पहले (25 दिसंबर, 2022) पिता के साथ महाकाल के दर्शन करने उज्जैन आई थीं। वे भस्म आरती में शामिल हुईं। गर्भगृह की देहरी से भगवान महाकाल के दर्शन किए। माथा टेक कर भगवान महाकाल का आशीर्वाद लिया। 
तब मंदिर प्रशासन ने साल के अंतिम दिन और नए साल के पहले हफ्ते के दौरान 24 दिसंबर से 5 जनवरी तक गर्भगृह में प्रवेश प्रतिबंधित कर रखा था। कारण- इन दिनों होने वाली भीड़ थी। ऐसे में परिणीति गर्भगृह में दर्शन के लिए नहीं पहुंच सकी थीं।

शनिवार, 19 अगस्त 2023

नागपंचमी: सोमवार को होगी नाग देवता की पूजा

नागपंचमी: सोमवार को होगी नाग देवता की पूजा 

सरस्वती उपाध्याय   
नाग पंचमी सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू धर्म में नागों की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान भोलेनाथ के आभूषण नाग देव की पूजा की जाती है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार नागों की पूजा करने से आध्यात्मिक शक्ति, अनंत धन और मनचाहे परिणाम मिल सकते हैं। नाग पंचमी इस बार 21 अगस्त, सोमवार को पड़ रहा है। इस दिन महिलाएं सांपों को दूध देकर नाग देवता की पूजा करती हैं। 
शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, नाग पंचमी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। 21 अगस्त को रात 12 बजकर 21 मिनट पर पंचमी तिथि शुरू होगी और 22 अगस्त को रात 2 बजे समाप्त होगी। सुबह 5 बजे 53 मिनट से 8 बजे 30 मिनट तक नाग पंचमी की पूजा होगी।
पूजन विधि 
नाग पंचमी में आठ देवताओं को मानते हैं। इस दिन अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख को पूजा जाता है। नाग पंचमी से एक दिन पहले चतुर्थी के दिन एक बार खाना खाना चाहिए, फिर पंचमी के दिन उपवास करके शाम को खाना चाहिए। लकड़ी की चौकी पर नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति को पूजा करने के लिए रखा जाता है। फिर नाग देवता को हल्दी, रोली (लाल सिंदूर), चावल और फूल चढ़ाकर पूजा की जाती है। लकड़ी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को कच्चा दूध, घी और चीनी मिलाकर अर्पित किया जाता है। सर्प देवता को पूजन करने के बाद आरती उतारी जाती है। आप चाहें तो किसी सपेरे को कुछ दक्षिणा देकर सर्प को यह दूध पिला सकते हैं। अंत में, आपको नाग पंचमी की कहानी सुननी चाहिए।
इस दिन भूलकर न करें ये काम 
इस दिन खेत में हल चलाना या भूमि की खुदाई करना बहुत अशुभ है। यही कारण है कि ऐसा करने से पूरी तरह से परहेज करना चाहिए। साग भी नहीं तोड़ना चाहिए।
नाग पंचमी के दिन धारदार और नुकीली चीजों से बचना चाहिए। सूई-धागे का मुख्य रूप से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ऐसा करना मना है।
चूल्हे पर खाना बनाते समय लोहे की कढ़ाही या तवा का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे नाग देवता को चोट लग सकती है।
नाग पंचमी के दिन किसी को बुरा नहीं कहना चाहिए। इसे बहुत गलत समझा जाता है।

शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

'प्रदोष व्रत' करने से खुलेंगे तरक्की के नए रास्ते

'प्रदोष व्रत' करने से खुलेंगे तरक्की के नए रास्ते    

सरस्वती उपाध्याय 

अयोध्या। सावन का पवित्र महीना चल रहा है और सावन के पवित्र महीने में जहां एक तरफ शिव भक्त भगवान शिव की पूजा आराधना कर रहे हैं तो वहीं इसी सावन के माह में कई पर्व और त्योहार भी ऐसे पड़ते हैं, जो अपने आप में महत्वपूर्ण होते हैं। अधिक मास होने की वजह से इस साल का सावन पूरे 2 महीने का है। इसमें दो की जगह चार प्रदोष व्रत भी पड़ेंगे। सावन माह में प्रदोष व्रत का बड़ा अधिक महत्व माना जाता है। भगवान शंकर को प्रदोष का व्रत समर्पित होता है।

अधिक मास में सावन का अंतिम प्रदोष का व्रत 13 अगस्त को है। ज्योतिष के मुताबिक 13 अगस्त को दिन रविवार पड़ रहा है, जिसकी वजह से यह रवि प्रदोष व्रत होगा। प्रदोष व्रत में विधि-विधान पूर्वक अगर ज्यादा पूजा आराधना करते हैं तो उनको विशेष तरह के लाभ भी मिलते हैं। इतना ही नहीं इस दिन ज्योतिष के बताए गए कुछ उपाय करने से कैरियर में तरक्की के नए रास्ते भी खुलते हैं, तो चलिए जानते हैं। आखिर कैसे करें प्रदोष व्रत के दिन उपाय ?

अयोध्या के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित कल्कि राम बताते हैं कि हिंदू पंचांग के मुताबिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखा जाएगा जो 13 अगस्त को है। जिस का शुभ मुहूर्त सुबह 8:19 से शुरू होकर 14 अगस्त सुबह 10:25 पर समाप्त होगा। प्रदोष व्रत में सिद्धि योग का निर्माण भी हो रहा है‌। अगर आप अपने करियर में तरक्की पाना चाहते हैं तो प्रदोष व्रत के दिन कुछ उपाय मंत्र करने से आपके जीवन में तरक्की ही तरक्की मिलेगी।

अगर आप अपने कैरियर में सफलता और तरक्की पाना चाहते हैं तो प्रदोष व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा आराधना करें। शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करें, इसके साथ आप मुट्ठी में गेहूं भगवान शंकर के शिवलिंग पर अर्पित कर दें। ऐसा अगर आप करते हैं तो आपके जीवन में तथा कैरियर में बड़ी तरक्की और समानता मिल सकती है।

अगर आपकी कुंडली में सूर्य कमजोर है, जिसकी वजह से आपकी तरक्की में कई तरह की बाधाएं उत्पन्न हो रही है तो आप प्रदोष व्रत के दिन अष्टांग ध्यान करने के बाद एक लोटे में जल लेकर भगवान सूर्य को जल अर्पित करें। इसके अलावा जल में लाल चंदन लाल फूल गुड़ डालकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें। अगर आप ऐसा करते हैं तो कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होगी और आपको करियर में तरक्की मिलेगी।

अगर आप व्यापार कर रहे हैं और आपके व्यापार में लगातार धन संबंधित परेशानियां हो रही है तो आपको प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग पर 21 बेलपत्र अर्पित करना चाहिए। इसके साथ ही बेलपत्र पर चंदन से ओम नमः शिवाय जरूर लिखना चाहिए फिर एक-एक बेलपत्र भगवान शंकर के शिवलिंग पर अर्पित करें। अगर आप ऐसा करते हैं तो धन संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाएंगे।

सोमवार, 7 अगस्त 2023

कर्म का फल 'अध्यात्म'

कर्म का फल       'अध्यात्म'

सरस्वती उपाध्याय 
एक बार भगवान शिव और माता पार्वती एक मंदिर के पास से गुज़र रहे थे। माता पार्वती की नज़र एक पति-पत्नि के जोड़े पर पड़ती है, जो मंदिर से दर्शन कर के आ रहे थे। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उन की हालत देखकर माता पार्वती भगवान शिव से कहती है," प्रभु आप इन दोनो पर कृपा क्यों नहीं करते। "
भगवान शिव कहते हैं, " मैंने तो बहुत बार कोशिश की परंतु यह अपने कर्मों के कारण उस का फल नहीं भोग पाते।
माँ पार्वती कहती है, " आप एक बार मेरे कहने पर इन पर कृपा कर दो।
भगवान शिव माता पार्वती की बात मान जाते है और कहा कि , " मैंने इन के 100 कदमों की दूरी पर सोने के सिक्के रख दिए है. जब वह वहां तक पहुँचेगे तो देख सकेंगे।" माता पार्वती प्रभु का कथन सुनकर सोचती है कि अब इन दोनों को अमीर बनने से कोई नहीं रोक सकता।
अभी वह पति -पत्नी 10 कदम ही चले होते हैं कि पीछे से सुंदर भजन की आवाज आती है। मुड़कर देखते हैं तो एक अंधे पति -पत्नी का जोड़ा भजन गा रहे होते हैं। वे दोनों रुककर उन्हें देखने लगते हैं और उनके चले जाने के बाद दोनों कहते हैं, " पति अंधा सो अंधा पर उसकी पत्नी भी अंधी।"
यह कहकर उस का पति उस अंधे व्यक्ति की तरह भजन गाता हुआ उस की नकल करते हुए आगे चलने लगता है। उस की पत्नी उस से कहती है कि ,"अगर उन की नकल ही करनी है तो क्यों ना हम भी उनकी ही तरह आँखें बंद करकर भजन गुनगुनाएं ।" और वह दोनों ऐसा ही करते हैं।
जहाँ पर भगवान शिव ने सिक्के रखे होते हैं वह रास्ता दोनों पति- पत्नी आँखे बंद कर के निकल जाते हैं। 
यह सब देख माँ पार्वती कहती है, " प्रभु आप ठीक ही कहते थे। यह अपने कर्मों के कारण ही इस हालत में है।"
भगवान शिव बताते हैं कि यह पति- पत्नी अपनी श्रद्धा से मंदिर नहीं आते थे। अपने पड़ोस के पति -पत्नी की नकल करके मंदिर आते थे। 
इस लिए हमें किसी की नकल करने से बचना चाहिए। क्या पता हमारी यह आदत ही हमारी तरक्की के रास्ते में रूकावट हो। क्योंकि जीवन एक परीक्षा है और  जिसमें बहुत से लोग असफल हो जाते हैं जिसका कारण दूसरों की नकल करना है। इसलिए दूसरों की नकल करने से बचें, क्योंकि जीवन की परीक्षा में हर एक का पेपर अलग अलग होता है।

शनिवार, 5 अगस्त 2023

तीज व्रत, सुहागिन एवं कन्याएं भी रख सकती हैं

तीज व्रत, सुहागिन एवं कन्याएं भी रख सकती हैं 

सरस्वती उपाध्याय 
भगवान भोलेनाथ को सावन का पावन महीना बहुत प्रिय है। इस महीने को कई मान्यताएं मिली हैं। कहते हैं कि सावन महीने में भगवान शिव और माता पार्वती धरती पर आते हैं और अपने अनुयायियों की हर इच्छा पूरी करते हैं। तीज-त्यौहार इस महीने विशेष महत्व रखते हैं, जैसे सावन में सोमवार व्रत बहुत शुभ माना जाता है। हरियाली तीज भी सावन के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की व्यवस्था की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हरियाली तीज का व्रत करने से पति को लंबी आयु मिलती है और अखंड सौभाग्य मिलता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाओं के अलावा कुंवारी कन्याएं भी कर सकती हैं। हरियाली तीज व्रत के प्रभाव से प्यारा जीवन साथी मिलता है और दाम्पत्य जीवन खुशहाल होता है।
कुंवारी लड़कियां इस विधि के साथ करें हरियाली तीज की पूजा
हरियाली तीज के दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनना चाहिए। यदि संभव हो तो हरियाली तीज पर हरे रंग के कपड़े पहनें। अब माता पार्वती और भगवान शिव का ध्यान करते हुए निर्जला व्रत का संकल्प लें। एक चौकी पर गंगाजल और शुद्ध मिट्टी मिलाकर शिवलिंग, पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाएं। शिवजी को धतूरा, सफेद फूल, बेलपत्र, आम के पत्ते आदि चढ़ाएं। 16 श्रृंगार (सिन्दूर चढ़ाएं और सुहाग सामग्री) माता पार्वती को दें। शिव पुराण, शिव स्त्रोत, और शिव मंत्रों का जाप करें। हरियाली तीज की कहानी सुनें। शाम को भी इसी तरह मां गौरी और देवताओं की पूजा करें। संध्या के समय भगवान शिव की आरती करें। आरती के बाद खीर खाना चाहिए। देवी पार्वती और भगवान शिव के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।
डेट और शुभ मुहूर्त
तृतिया तिथि आरंभ- रात 8 बजकर 1 मिनट से (18 अगस्त 2023)
तृतिया तिथि समापन- रात 10 बजकर 19 मिनट पर (19 अगस्त 2023)
हरियाली तीज व्रत तिथि- 19 अगस्त 2023
मान्यताओं के आधार पर जानकारी प्रकाशित की गई है।

मंगलवार, 25 जुलाई 2023

शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि को मनेगी 'नाग पंचमी'

शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि को मनेगी 'नाग पंचमी'

सरस्वती उपाध्याय 

नाग पंचमी का त्योहार सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस बार नाग पंचमी 21 अगस्त 2023 को है। नाग पंचमी के अवसर पर नाग देवता की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा करने पर कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। पौराणिक काल से ही सांपों को देवताओं की तरह पूजा जाता है। मान्यता है, नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही राहु-केतु के बुरे प्रभाव एवं कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। वहीं शास्त्रों में कुछ ऐसी बातों का भी जिक्र किया है, जिन्हें गलती से भी नाग पंचमी के दिन नहीं करना चाहिए, वरना पुण्य की पाप लग सकता है और कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कौन से वे कार्य हैं, जिन्हें नाग पंचमी के दिन नहीं करना चाहिए…!

नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। ऐसे में इस दिन सांपों को कोई कष्ट न पहुंचाएं। इस दिन उनकी पूजा करें और उनकी रक्षा करने का संकल्प लें।

नाग पंचमी के दिन जीवित सांप को दूध न पिलाएं, क्योंकि सांप के लिए दूध जहर के समान हो सकता है। साथ ही इस दिन गलती से भी जीवित नाग की पूजा करने और उसे कष्ट देने से पाप लगता है। इस दिन नाग देवता की मूर्ति या फोटो की पूजा करें और उनकी प्रतिमा का दूध से अभिषेक करें।

धार्मिक शास्त्रों में कहा जाता है कि नाग पंचमी के दिन तवा और लोहे की कढ़ाई में भोजन नहीं पकाना चाहिए। ऐसा करने से नाग देवता को कष्ट होता है। साथ ही इस दिन किसी भी नुकीली और धारदार वस्तुओं जैसे सुई, चाकू, का इस्तेमाल अशुभ माना जाता है।

नाग पंचमी के दिन भूमि की खुदाई भी नहीं करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मिट्टी या जमीन में सांपों के बिल या बांबी के टूटने का डर रहता है।

नाग पंचमी के दिन तांबे के लोटे से शिवलिंग या नाग देव को दूध अर्पित नहीं करना चाहिए। जल चढ़ाने के लिए हमेशा तांबे और दूध के लिए पीतल के लोटे का इस्तेमाल करें।

गुरुवार, 20 जुलाई 2023

मलमास: पूजा-पाठ, जप-तप, दान का महत्व

मलमास: पूजा-पाठ, जप-तप, दान का महत्व

सरस्वती उपाध्याय

अधिकमास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। इसे पुरुषोत्तम मास या मलमास भी कहते हैं। मान्यता है कि अधिकमास में सभी देवी-देवता देवलोक से आकर पृथ्वीलोक पर वास करते है। वहीं इस साल अधिकमास सावन महीने में लगा है, जिससे इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। अधिकमास की शुरुआत मंगलवार 18 जुलाई 2023 से हो गई है और इसका समापन बुधवार 16 अगस्त 2023 को होगा। अधिकमास में भले ही शुभ-मांगलिक कार्यों को वर्जित माना गया है। लेकिन इस दौरान पूजा-पाठ, जप-तप और दान का खास महत्व होता है।

ज्योतिष के अनुसार, अधिकमास में अगर आप अपनी राशि के अनुसार दान करेंगे तो इससे ग्रह-दोषों से भी मुक्ति मिलेगी। जानते हैं राशि के अनुसार, अधिकमास में किन चीजों का करें दान।

मेष राशि : मालपुआ, घी, चांदी, लाल वस्त्र, केला, अनार, तांबा, मूंगा और गेंहू का दान मेष राशि वाले कर सकते हैं।

वृषभ राशि : आप अधिकमास पर सफेद वस्त्र, चांदी, सोना, मालपुआ, मावा, शकर, चावल, केला, मोती आदि दान करें।

मिथुन राशि : मिथुन राशि वालों को पन्ना, मूंग दाल, तेल, कांसा, केला, सिंदूर और साड़ी का दान करना शुभ रहेगा।

कर्क राशि : अधिकमास पर कर्क राशि वाले लोग मोती, चांदी, मटका, तेल, सफेद वस्त्र, गाय, मालपुआ, मावा, दूध, चावल आदि दान में कर सकते हैं।

सिंह राशि : सिंह राशि के स्वामी सूर्य देव हैं। अधिकमास पर लाल वस्त्र, तांबा, पीतल, सोना, चांदी, गेंहू, मसूर दाल, माणिक्य रत्न, धार्मिक पुस्तकें और अनार का दान देना बहुत शुभ रहेगा।

कन्या राशि : अधिकमास में भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए हरी मूंग दाल, सोना, केले का दान करें। इसके साथ ही आप गौशाला में घास का दान करें या गाय को हरी घास खिलाएं।

तुला राशि : तुला राशि वाले लोग सफेद वस्त्र, मालपुआ, मावा, चीनी या मिश्री, चावल और केले का दान कर सकते हैं।

वृश्चिक राशि : वृश्चिक राशि वाले लोगों को लाल वस्त्र, मौसमी फल, अनार, तांबा, मूंगा और गेंहू का दान करना उत्तम रहेगा।

धनु राशि : धनु राशि वाले लोगों को अधिकमास में पीले कपड़े, चने की दाल, लकड़ी का सामान, घी, तिल, अनाज और दूध आदि का दान करना चाहिए।

मकर राशि : मकर राशि वाले तेल, दवाइयां, नीले कपड़े, औजार, लोहा, मौसमी फल का आदि का दान कर सकते हैं।

कुंभ राशि : कुंभ राशि के स्वामी शनि देव हैं। ऐसे में आप तेल, दवाइयां, नीले कपड़े, औजार, लोहा, मौसमी फल का आदि का दान कर सकते हैं।

मीन राशि : मीन राशि वाले लोग पीले वस्त्र, चने की दाल, घी, दूध और दूध से बनी मिठाईयां दान कर सकते हैं।

अध्यात्म: आज मनाया जाएगा 'छठ' पर्व, जानिए

अध्यात्म: आज मनाया जाएगा 'छठ' पर्व, जानिए  सरस्वती उपाध्याय  हर साल कार्तिक मास की शुक्ल-पक्ष की चतुर्थी तिथि को छठ पर्व की शुरुआत ह...