शनिवार, 23 सितंबर 2023
15 अक्तूबर से शुरू होगी शारदीय 'नवरात्रि'
शनिवार, 26 अगस्त 2023
परिणीति व राघव ने महाकाल के दर्शन किए
शनिवार, 19 अगस्त 2023
नागपंचमी: सोमवार को होगी नाग देवता की पूजा
शुक्रवार, 11 अगस्त 2023
'प्रदोष व्रत' करने से खुलेंगे तरक्की के नए रास्ते
'प्रदोष व्रत' करने से खुलेंगे तरक्की के नए रास्ते
सरस्वती उपाध्याय
अयोध्या। सावन का पवित्र महीना चल रहा है और सावन के पवित्र महीने में जहां एक तरफ शिव भक्त भगवान शिव की पूजा आराधना कर रहे हैं तो वहीं इसी सावन के माह में कई पर्व और त्योहार भी ऐसे पड़ते हैं, जो अपने आप में महत्वपूर्ण होते हैं। अधिक मास होने की वजह से इस साल का सावन पूरे 2 महीने का है। इसमें दो की जगह चार प्रदोष व्रत भी पड़ेंगे। सावन माह में प्रदोष व्रत का बड़ा अधिक महत्व माना जाता है। भगवान शंकर को प्रदोष का व्रत समर्पित होता है।
अधिक मास में सावन का अंतिम प्रदोष का व्रत 13 अगस्त को है। ज्योतिष के मुताबिक 13 अगस्त को दिन रविवार पड़ रहा है, जिसकी वजह से यह रवि प्रदोष व्रत होगा। प्रदोष व्रत में विधि-विधान पूर्वक अगर ज्यादा पूजा आराधना करते हैं तो उनको विशेष तरह के लाभ भी मिलते हैं। इतना ही नहीं इस दिन ज्योतिष के बताए गए कुछ उपाय करने से कैरियर में तरक्की के नए रास्ते भी खुलते हैं, तो चलिए जानते हैं। आखिर कैसे करें प्रदोष व्रत के दिन उपाय ?
अयोध्या के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित कल्कि राम बताते हैं कि हिंदू पंचांग के मुताबिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखा जाएगा जो 13 अगस्त को है। जिस का शुभ मुहूर्त सुबह 8:19 से शुरू होकर 14 अगस्त सुबह 10:25 पर समाप्त होगा। प्रदोष व्रत में सिद्धि योग का निर्माण भी हो रहा है। अगर आप अपने करियर में तरक्की पाना चाहते हैं तो प्रदोष व्रत के दिन कुछ उपाय मंत्र करने से आपके जीवन में तरक्की ही तरक्की मिलेगी।
अगर आप अपने कैरियर में सफलता और तरक्की पाना चाहते हैं तो प्रदोष व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा आराधना करें। शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करें, इसके साथ आप मुट्ठी में गेहूं भगवान शंकर के शिवलिंग पर अर्पित कर दें। ऐसा अगर आप करते हैं तो आपके जीवन में तथा कैरियर में बड़ी तरक्की और समानता मिल सकती है।
अगर आपकी कुंडली में सूर्य कमजोर है, जिसकी वजह से आपकी तरक्की में कई तरह की बाधाएं उत्पन्न हो रही है तो आप प्रदोष व्रत के दिन अष्टांग ध्यान करने के बाद एक लोटे में जल लेकर भगवान सूर्य को जल अर्पित करें। इसके अलावा जल में लाल चंदन लाल फूल गुड़ डालकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें। अगर आप ऐसा करते हैं तो कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होगी और आपको करियर में तरक्की मिलेगी।
अगर आप व्यापार कर रहे हैं और आपके व्यापार में लगातार धन संबंधित परेशानियां हो रही है तो आपको प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग पर 21 बेलपत्र अर्पित करना चाहिए। इसके साथ ही बेलपत्र पर चंदन से ओम नमः शिवाय जरूर लिखना चाहिए फिर एक-एक बेलपत्र भगवान शंकर के शिवलिंग पर अर्पित करें। अगर आप ऐसा करते हैं तो धन संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाएंगे।
सोमवार, 7 अगस्त 2023
कर्म का फल 'अध्यात्म'
शनिवार, 5 अगस्त 2023
तीज व्रत, सुहागिन एवं कन्याएं भी रख सकती हैं
मंगलवार, 25 जुलाई 2023
शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि को मनेगी 'नाग पंचमी'
शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि को मनेगी 'नाग पंचमी'
सरस्वती उपाध्याय
नाग पंचमी का त्योहार सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस बार नाग पंचमी 21 अगस्त 2023 को है। नाग पंचमी के अवसर पर नाग देवता की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा करने पर कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। पौराणिक काल से ही सांपों को देवताओं की तरह पूजा जाता है। मान्यता है, नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही राहु-केतु के बुरे प्रभाव एवं कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। वहीं शास्त्रों में कुछ ऐसी बातों का भी जिक्र किया है, जिन्हें गलती से भी नाग पंचमी के दिन नहीं करना चाहिए, वरना पुण्य की पाप लग सकता है और कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कौन से वे कार्य हैं, जिन्हें नाग पंचमी के दिन नहीं करना चाहिए…!
नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। ऐसे में इस दिन सांपों को कोई कष्ट न पहुंचाएं। इस दिन उनकी पूजा करें और उनकी रक्षा करने का संकल्प लें।
नाग पंचमी के दिन जीवित सांप को दूध न पिलाएं, क्योंकि सांप के लिए दूध जहर के समान हो सकता है। साथ ही इस दिन गलती से भी जीवित नाग की पूजा करने और उसे कष्ट देने से पाप लगता है। इस दिन नाग देवता की मूर्ति या फोटो की पूजा करें और उनकी प्रतिमा का दूध से अभिषेक करें।
धार्मिक शास्त्रों में कहा जाता है कि नाग पंचमी के दिन तवा और लोहे की कढ़ाई में भोजन नहीं पकाना चाहिए। ऐसा करने से नाग देवता को कष्ट होता है। साथ ही इस दिन किसी भी नुकीली और धारदार वस्तुओं जैसे सुई, चाकू, का इस्तेमाल अशुभ माना जाता है।
नाग पंचमी के दिन भूमि की खुदाई भी नहीं करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मिट्टी या जमीन में सांपों के बिल या बांबी के टूटने का डर रहता है।
नाग पंचमी के दिन तांबे के लोटे से शिवलिंग या नाग देव को दूध अर्पित नहीं करना चाहिए। जल चढ़ाने के लिए हमेशा तांबे और दूध के लिए पीतल के लोटे का इस्तेमाल करें।
गुरुवार, 20 जुलाई 2023
मलमास: पूजा-पाठ, जप-तप, दान का महत्व
मलमास: पूजा-पाठ, जप-तप, दान का महत्व
सरस्वती उपाध्याय
अधिकमास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। इसे पुरुषोत्तम मास या मलमास भी कहते हैं। मान्यता है कि अधिकमास में सभी देवी-देवता देवलोक से आकर पृथ्वीलोक पर वास करते है। वहीं इस साल अधिकमास सावन महीने में लगा है, जिससे इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। अधिकमास की शुरुआत मंगलवार 18 जुलाई 2023 से हो गई है और इसका समापन बुधवार 16 अगस्त 2023 को होगा। अधिकमास में भले ही शुभ-मांगलिक कार्यों को वर्जित माना गया है। लेकिन इस दौरान पूजा-पाठ, जप-तप और दान का खास महत्व होता है।
ज्योतिष के अनुसार, अधिकमास में अगर आप अपनी राशि के अनुसार दान करेंगे तो इससे ग्रह-दोषों से भी मुक्ति मिलेगी। जानते हैं राशि के अनुसार, अधिकमास में किन चीजों का करें दान।
मेष राशि : मालपुआ, घी, चांदी, लाल वस्त्र, केला, अनार, तांबा, मूंगा और गेंहू का दान मेष राशि वाले कर सकते हैं।
वृषभ राशि : आप अधिकमास पर सफेद वस्त्र, चांदी, सोना, मालपुआ, मावा, शकर, चावल, केला, मोती आदि दान करें।
मिथुन राशि : मिथुन राशि वालों को पन्ना, मूंग दाल, तेल, कांसा, केला, सिंदूर और साड़ी का दान करना शुभ रहेगा।
कर्क राशि : अधिकमास पर कर्क राशि वाले लोग मोती, चांदी, मटका, तेल, सफेद वस्त्र, गाय, मालपुआ, मावा, दूध, चावल आदि दान में कर सकते हैं।
सिंह राशि : सिंह राशि के स्वामी सूर्य देव हैं। अधिकमास पर लाल वस्त्र, तांबा, पीतल, सोना, चांदी, गेंहू, मसूर दाल, माणिक्य रत्न, धार्मिक पुस्तकें और अनार का दान देना बहुत शुभ रहेगा।
कन्या राशि : अधिकमास में भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए हरी मूंग दाल, सोना, केले का दान करें। इसके साथ ही आप गौशाला में घास का दान करें या गाय को हरी घास खिलाएं।
तुला राशि : तुला राशि वाले लोग सफेद वस्त्र, मालपुआ, मावा, चीनी या मिश्री, चावल और केले का दान कर सकते हैं।
वृश्चिक राशि : वृश्चिक राशि वाले लोगों को लाल वस्त्र, मौसमी फल, अनार, तांबा, मूंगा और गेंहू का दान करना उत्तम रहेगा।
धनु राशि : धनु राशि वाले लोगों को अधिकमास में पीले कपड़े, चने की दाल, लकड़ी का सामान, घी, तिल, अनाज और दूध आदि का दान करना चाहिए।
मकर राशि : मकर राशि वाले तेल, दवाइयां, नीले कपड़े, औजार, लोहा, मौसमी फल का आदि का दान कर सकते हैं।
कुंभ राशि : कुंभ राशि के स्वामी शनि देव हैं। ऐसे में आप तेल, दवाइयां, नीले कपड़े, औजार, लोहा, मौसमी फल का आदि का दान कर सकते हैं।
मीन राशि : मीन राशि वाले लोग पीले वस्त्र, चने की दाल, घी, दूध और दूध से बनी मिठाईयां दान कर सकते हैं।
सोमवार, 17 जुलाई 2023
सोमवती अमावस्या की बधाई, शिव की पूजा करें
सोमवती अमावस्या की बधाई, शिव की पूजा करें
अश्वनी उपाध्याय
गाजियाबाद। सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि ने सभी भक्तों को हरियाली सोमवती अमावस्या की बधाई दी। उन्होंने कहा कि सोमवती अमावस्या को भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से सभी प्रकार के विकारों, कष्टों व संकटों से छुटकारा मिलता है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि हिंदू धर्म में सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व है। जब अमावस्या सोमवार को पडती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सावन मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने, आराधना करने, जलाभिषेक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
आज सावन का दूसरा सोमवार भी है, इस कारण इसका महत्व और भी बढ गया है। श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि सोमवती अमावस्या को भगवान शिव का व्रत रखने से भगवान प्रसन्न होते हैं। इस दिन नमकीन या खटटा नहीं सिर्फ मीठा भोजन वह भी एक समय शाम को ही करना चाहिए। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने व दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कालसर्प दोष से पीडित व शनि प्रकोप से पीडित लोगों तथा ऐसे व्यक्ति जिनके अज्ञात शत्रु है, उनके लिए भी यह अमावस्या खास है।
इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से कालसर्प दोष, शनि प्रकोप से मुक्ति मिलती है। सावन का सोमवार भी पडने से भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा-अर्चना करने के साथ कई गुना फल की प्राप्ति होगी। पीपल के पेड की पूजा करने, जल चढाने, उसकी 108 परिक्रमा करने व तुलसी की पूजा करने से भी सभी प्रकार के विकारों, कष्टों व संकटों का निवारण होता है। नमः शिवाय या ओम नमः शिवाय का जाप करने से भी भगवान प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव की पूजा करने से पितरों को भी तृप्ति मिलेगी और पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा।
साथ ही सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों का आशीर्वाद भी मिलेगा।
बुधवार, 12 जुलाई 2023
शिव की पूजा में 'केतकी' का फूल चढ़ाना पाप
शिव की पूजा में 'केतकी' का फूल चढ़ाना पाप
सरस्वती उपाध्याय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, किसी भी देव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें उनकी पसंदीदा वस्तुएं दी जाती हैं। सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं को अर्पित करना प्रचलित है। लेकिन कुछ चीजें देवताओं को देने से वे जल्द ही नाराज़ हो जाते हैं। आइए पता करें...!
सावन का महीना बहुत पावन और पवित्र है। यह कहते हैं कि इस माह में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया एक छोटा सा काम भी बहुत जल्द काम करेगा। शिव भगवान बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। ऐसे में श्रद्धालु महादेव को अपनी प्रिय वस्तुएं देते हैं। लेकिन शास्त्र कहते हैं कि कुछ चीजें भूलकर भी महादेव को नहीं देनी चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि भगवान शिव को एक फूल भी नहीं देना चाहिए। यह एक केतकी का फूल है। शिव पुराण में एक कथा है, जो बताती है कि पूजा में केतकी के फूल का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता है ?
आइए, केतकी के फूल और भगवान शिव के बारे में जानें...!
केतकी के फूल की पौराणिक कथा...
शिव पुराण में भगवान शिव को केतकी का फूल अर्पित न करने की कथा के बारे में बताया गया है। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच विवाद हो गया कि कौन सर्वश्रेष्ठ है और इस विवाद को खत्म करने के लिए दोनों को भगवान शिव के पास जाना पड़ा। उस समय महादेव ने एक ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कर उसका आदि और अंत खोजने को कहा। साथ ही, कहा कि जो खोज लेगा, वहीं श्रेष्ठ कहलाएगा।
इस तरह से आदि अंत खोजने की हुई शुरुआत
ज्योतिर्लिंग का आदि-अंत खोजने के लिए भगवान विष्णु ऊपर की ओर और ब्रह्मा जी नीचे की ओर बढ़ें।
शिवलिंग का आदि-अंत खोजने के लिए ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने लाख कोशिश की। लेकिन उन्हें कुछ न मिला। जब ब्रह्मा जी अंत ढूंढते-ढूंढते थक गए, तब उन्हें रास्ते में केतकी का फूल मिला।ब्रह्मा जी ने केतकी के फूल को बहलाकर शिव दी के आगे झूठ बोलने को कहा और दोनों ने महादेव के सामने जाकर झूठ बोलकर ये स्वीकार किया कि उन्हें शिवलिंग का अंत मिल गया।
भगवान शिव ने दिया केतकी को श्राप
महादेव जानते थे कि ब्रह्मदेव झूठ बोल रहे हैं और उनकी इस बात से वे क्रोधित हो गए और ब्रह्मा जी को पांचवा सिर काट दिया। वहीं, केतकी के फूल को शाप दिया कि शिल जी को पूजा में केतकी के फूल का इस्तेमाल वर्जित रहेगा।
तब से ही महादेव की पूजा में केतकी के फूल को चढ़ाना मना है। केतकी का फूल चढ़ाना पाप माना गया है। इसलिए सावन या महादेव की पूजा के समय भूलवश भी केतकी का फूल अर्पित न करें।
मंगलवार, 11 जुलाई 2023
नदियों में स्नान करना पुण्य कर्म, जानिए विधि
नदियों में स्नान करना पुण्य कर्म, जानिए विधि
पुण्य अवसरों पर नदियों में इस तरह से करें स्नान
राजेंद्र गुप्ता
अक्सर लोग अमावस्या या पूर्णिमा पर या किसी विशेष दिन जब स्नान करने जाते हैं, तो बस दो या तीन चार डुबकी लगा कर आ जाते हैं। लेकिन, ऐसा तो आप किसी भी नदी में कर सकते हैं। यह स्नान तो साधारण ही हुआ। नदी के पास रहने वाले लोग ऐसा स्नान रोज ही करते हैं। तब क्या है तीर्थ, माघ, अमावस्या, पूर्णिमा और कुंभ में स्नान करने के नियम जिससे स्नान का पूर्ण लाभ मिले?
प्रात: काल स्नान का महत्व : तीर्थ में प्रात: काल स्नान करने का महत्व है। प्रात: काल स्नान करने से दुष्ट विचार और आत्मा पास नहीं आते। रूप, तेज, बल पवित्रता, आयु, आरोग्य, निर्लोभता, दुःस्वप्न का नाश, तप और मेधा यह दस गुण प्रातः स्नान करने वाले को प्राप्त होते हैं। अतएव लक्ष्मी, पुष्टी व आरोग्य की वृद्धि चाहने वाले मनुष्य को सदेव स्नान करना चाहिए।
नदी स्नान की विधि : उषा की लाली से पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है। इससे प्रजापत्य का फल प्राप्त होता है। नदी से दूर तट पर ही देह पर हाथ मलमलकर नहा ले, तब नदी में गोता लगाएं। शास्त्रों में इसे मलापकर्षण स्नान कहा गया है। यह अमंत्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ और शुचिता दोनों के लिए आवश्यक है। देह में मल रह जाने से शुचिता में कमी आ जाती है और रोम छिद्रों के न खुलने से स्वास्थ में भी अवरोध होता है। इसलिए मोटे कपड़े से प्रत्येक अंग को रगड़-रगड़ कर स्नान करना चाहिए।
शिखा धारण कर रखी है तो : निवीत होकर बेसन आदी से यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर लें। इसके बाद शिखा बांधकर दोनों हाथों में पवित्री पहनकर आचमन आदी से शुद्ध होकर दाहिने हाथ में जल लेकर शास्त्रानुसार संकल्प करें। संकल्प के पश्चात मंत्र पड़कर शरीर पर मिट्टी लगाएं। इसके पश्चात गंगाजी की उन उक्तियों को बोलें। इसके पश्चात नाभी पर्यंत जल मे जाकर, जल की ऊपरी सतह हटाकर, कान औए नाक बंद कर प्रवाह की और या सूर्य की और मुख करके स्नान करें। तीन, पांच ,सात या बारह डुबकियां लगाए। डुबकी लगाने से पहले शिखा खोल लें।
हमारे शरीर में 9 छिद्र होते हैं उन छिद्रों को साफ-सुधरा बनाने रखने से जहां मन पवित्र रहता है वहीं शरीर पूर्णत: शुद्ध बना रहकर निरोगी रहता है। मलपूर्ण शरीर शुद्ध तीर्थ में स्नान करने से शुद्ध होता है। इस प्रकार दृष्टफल-शरीर की स्वच्छता, अदृष्टफल-पापनाश तथा पुण्य की प्राप्ति, यह दोनों प्रकार के फल मिलते हैं। अशक्तजनों को असमर्थ होने पर सिर के नीचे ही स्नान करना चाहिए अथवा गीले कपड़े से शरीर को पोछना भी एक प्रकार का स्नान है।
स्नान में निषिद्ध कार्य : नदी के जल में वस्त्र नहीं निचोड़ना चाहिए। जल में मल-मूत्र त्यागना और थूकना नदी का पाप माना गया है। शोचकाल वस्त्र पहनकर तीर्थ में स्नान करना निषिद्ध है। तेल लगाकर तथा देह को मलमलकर नदी में नहाना मना है।
स्नान के बाद क्या करें : हिन्दू धर्म अनुसार स्नान और ध्यान का बहुत महत्व है। स्नान के पश्चात ध्यान, पूजा या जप आदि कार्य सम्पन्न किए जाते हैं।
अध्यात्म: सावन में 'महामृत्युंजय' मंत्र का करें जाप
अध्यात्म: सावन में 'महामृत्युंजय' मंत्र का करें जाप
अयोध्या। सावन का पवित्र माह चल रहा है। सावन का यह माह भगवान शंकर को समर्पित होता है। सावन में भगवान शिव की आराधना करने से समस्त मनोकामना की भी पूर्ति होती है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, सावन के महीने में अगर सच्चे मन से भगवान शंकर को प्रसन्न करना है, तो प्रत्येक दिन शिव मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए। रुद्राभिषेक करना चाहिए। ऐसी मान्यता है, जो भी भक्त सच्चे मन और सच्ची श्रद्धा से सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना करते है। उनके मंत्रों का जप करता है, तो भगवान शंकर जल्दी प्रसन्न होते हैं। आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताएंगे महामृत्युंजय मंत्र के बारे में, तो चलिए जानते हैं।
अयोध्या के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित कल्कि राम बताते हैं, कि सावन का पवित्र महीना चल रहा है। ऐसे में देवाधिदेव महादेव की प्रसन्नता के लिए लोग नाना प्रकार के उपाय कर रहे हैं। इसी उपाय के बीच भगवान शंकर का अमोघ मंत्र महामृत्युंजय मंत्र एक ऐसी संजीवनी मंत्र है, जो समस्त कामनाओं की सिद्धि करने वाला है। दीर्घायु जीवन की प्राप्ति सौभाग्य की प्राप्ति कालसर्प दोष से मुक्ति जो भी भक्त इस मंत्र की अभिलाषा के साथ जब करता है। भगवान भोलेनाथ उसकी सारी मुरादें पूरी करते हैं।
देवा दी देव महादेव को महामृत्युंजय मंत्र काफी प्रिय माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र का जप करने से भगवान शंकर जल्द प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं को पूरा करते हैं। इतना ही नहीं, महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु से भी बचा जा सकता है।
महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए आसन पर बैठकर जब करना चाहिए। पूरब दिशा की तरफ मुंह करके मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र का जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का अवश्य प्रयोग करना चाहिए। मंत्र का जप करने वाले दिन में मांस और प्याज लहसुन का सेवन करना वर्जित होता है. इतना ही नहीं स्वच्छ और भक्ति भाव के साथ भगवान शंकर के मंत्र का जप करना चाहिए।
अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं और आप इससे निजात पा रहे हैं, तो अपने घर में महामृत्युंजय मंत्र का जप करें ऐसा करने से सभी परेशानियां दूर होंगी।
अगर आपको भैया डर सता रहा है और आप भविष्य में होने वाली बातों को लेकर परेशान हैं, तो आप महामृत्युंजय का जप कर सकते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र का जप करके आप आर्थिक तंगी और कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं, और अगर आप पैसों की तंगी से परेशान है, तो प्रतिदिन महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
शुक्रवार, 16 जून 2023
भगवाइयों की रीत: न प्राण जाएं, न वचन ही जाई
भगवाइयों की रीत: न प्राण जाएं, न वचन ही जाई
राजेंद्र शर्मा
एक बात तो भगवाइयों के विरोधियों को भी माननी पड़ेगी। भगवाई जो कहते हैं, वो करते जरूर हैं। हमेशा की तो हम नहीं कहते, पर पिछले चालीस साल से ज्यादा से ही तो हम ही देख रहे हैं। तब कहा था कि मंदिर वहीं बनाएंगे। मंदिर वहीं बन रहा है या नहीं!
हां! चार दशक से ज्यादा लग गए। बेशक, इस बीच अडवाणी पीएम के डिप्टी के डिप्टी ही रह गए और मोदी गुजरात से आकर पीएम बन गए। सारथी जी रथी बन गए और रथी मार्गदर्शक बनकर राह देखते ही रह गए।
वहीं, मोदी अगले साल बड़े चुनाव से पहले, भव्य मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे हैं। इसीलिए, तो कहते हैं कि भगवाइयों के घर में देर तो हो सकती है, पर जो कह दिया, सो पूरा जरूर करते हैं। अपने भगवाई, रघुकुल वालों से कम हैं क्या ? रघुकुल की रीत रही है — प्राण जाय, पर वचन न जाई। भगवाइयों की रीत और आगे वाली है–न प्राण जाएं, न वचन ही जाई !
लेकिन, स्मृति ईरानी के दरबार में तो चालीस साल तो क्या चालीस घंटे की भी देर नहीं है ? देखा नहीं, कैसे ईरानी ने अपनी अमेठी में एक मीडिया हाउस के पत्रकार को प्यार से समझाया कि उनसे मुंह खुलवाने की जिद नहीं करे। ईरानी ने कुछ कहने-कुछ बोलने की जिद करने पर, मालिक से कहने का वचन भी दिया था और चौबीस घंटे से पहले-पहले, अखबार के मालिक ने उनके अपना वचन पूरा करने के सम्मान में, पत्रकार को दरवाजा दिखा दिया और मालिक ने पत्रकार को सिर्फ दरवाजा ही नहीं दिखाया।
उसने तो अतीत में जाकर, विगत प्रभाव से ही पत्रकार को दरवाजा दिखा दिया। उसने कहा — कौन पत्रकार ? हमारा ऐसे किसी पत्रकार से न कभी कोई संबंध था, न है और न होगा ! ईरानी ने जो कहा, उससे भी सवाया कर के दिखा दिया। पत्रकार को ‘हैं’ से ‘था’ कराने का वादा था, पर उन्होंने तो पत्रकार को ‘कभी नहीं था’ ही करा दिया।
लेकिन, कोई यह न समझे कि स्मृति ईरानी ने कोई अपनी नाराजगी या अपना रौब दिखाने के लिए ही पत्रकार से जो कहा था, सो किया। बेशक, मोदी का उनके सिर पर वरदहस्त है और मोदी ने भी मालिकों से कह-कहकर, नौ साल में बहुतेरे पत्रकारों को, वर्तमान से भूतपूर्व कराया है।
रवीश जैसों को भूतपूर्व कराने के लिए तो, उनके चैनल को ही खरीदवाकर, पत्रकारों समेत चैनल की स्वतंत्रता को बाकी सब चैनलों की तरह भूतपूर्व कराया है। फिर भी ईरानी ने जो कहा, वह सिर्फ अपने आदर्श, मोदी अनुसरण करने का ही मामला नहीं है। उनके जो कहा, सो किया में उनकी अपनी ऑरीजिनेलिटी भी है। ऑरीजिनेलिटी है, खांटी हिंदुत्व की सेवा की ! ईरानी ने वादे के मुताबिक, मालिक से शिकायत की, पत्रकार विपिन यादव की।
लेकिन, मालिक ने विपिन यादव को तो खैर पहचानने से ही इंकार कर दिया, लेकिन राशिद हुसैन से कह-बताकर अपने मीडिया हाउस का पट्टा उतरवा लिया। इस तरह गेहूं के साथ, शाह साहब ने जिसे घुन बताया था, वह भी पिस गयाफिर भी जो भारत को डैमोक्रेसी की मम्मी डिक्लेअर होते देखकर खुश नहीं होते हैं, उन्हें तो इसमें भी पत्रकार की नौकरी जैसी छोटी चीज ही दिखाई दे रही है, जबकि अब पता चल रहा है कि वह नौकरी भी बिना तनख्वाह वाली थी — पट्टा ले जाओ, खुद कमाओ-खाओ !
अरे भाई ये भी तो देखो कि सेंगोल वाले राजा लोग जो कहते हैं, वह करते जरूर हैं। हमें पक्का है कि एक दिन खाते में पंद्रह लाख भी आएंगे और अच्छे दिन भी। साल की दो करोड़ के हिसाब से नई नौकरियां भी आ जाएंगी। बस जरा-सी देरी पर उम्मीद छोड़ बैठना तो देशप्रेम नहीं है।
मंगलवार, 7 सितंबर 2021
मानकर बेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू की
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। सालबेग 17वीं शताब्दी की शुरूआत में मुगलिया शासन के एक सैनिक थे, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग की माता ब्राह्मण थीं, जबकि पिता मुस्लिम थे। उनके पिता मुगल सेना में सूबेदार थे। इसलिए सालबेग भी मुगल सेना में भर्ती हो गए थे। एक बार मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए सालबेग बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव सही नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर बेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव सही हो चुके थे।
इसके बाद बेग ने मंदिर में जा कर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया क्योंकि जगन्नाथ पुरी नें गैर हिन्दू का प्रवेश वर्जित है। इसके बाद सालबेग मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, बावजूद उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर बेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनको दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।
बुधवार, 18 अगस्त 2021
शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत माना गया
सोमवार, 16 अगस्त 2021
प्रदोष व्रत: शिव को अधिक प्रिय है सावन का महीना
सोमवार, 9 अगस्त 2021
तीज: शुक्ल-पक्ष की तिथि 11 मिनट पर शुरू होगी
रविवार, 25 जुलाई 2021
22 अगस्त तक चलेगा सावन का महीना: महत्व
आज से सावन का माह आरम्भ हो रहा है। जो 22 अगस्त तक चलेगा। सनातन धर्म में सावन का माह बेहद अहम माना गया है। ये महीना महादेव को काफी प्रिय होता हैं। इस माह में महादेव भक्त भगवान शिव तथा माता पार्वती की उपासना करते हैं। इतना ही नहीं कुछ लोग व्रत रखते हैं। परपरा है कि इस माह में विधि- विधान से आरधना करने से आपकी सभी इच्छाएं पूरी होती है। महादेव को भाग, धतूरा, बेलपत्र, फूल, फल आदि चीजें अर्पित की जाती है। भोलेनाथ को बेलपत्र बेहद प्रिय हैं।
स्कंदपुराण में बेलपत्र का जिक्र किया गया है। इस पुराण के मुताबिक, एक बार माता पार्वती ने अपना पसीना पोंछकर फेंका जिसकी कुछ बूंदे मंदार पार्वती पर गिरी जिससे बेल के पेड़ की उत्पत्ति हुई है।
मंगलवार, 20 अप्रैल 2021
या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता: नवरात्रि
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
मार्कंडेय के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मावैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। इनके नाम इस प्रकार हैं- माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करे। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
नवदुर्गाओं में
नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है। ऐसा माना गया है कि माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विश्वास किया जाता है कि इनकी आराधना से भक्त को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माँ की कृपा का पात्र बन सकता ही है। माँ की आराधना के लिए इस श्लोक का प्रयोग होता है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।
स्तुति
अर्थ
हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।
सोमवार, 19 अप्रैल 2021
या देवी सर्वभूतेषु महागौरी रूपेण संस्थिता: नवरात्रि
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
स्वरूपइनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी।' इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
कथा
माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं। जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं। वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है। उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है। उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।
एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”। महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था। वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।
पूजन विधि
अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा करते हैं।
महत्व
माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।
मां महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है। इसकी उपासना से अर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इसके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए। महागौरी के पूजन से सभी नौ देवियां प्रसन्न होती है।
उपासना
पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
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