भारत ने हसीना को शरण देने से इंकार किया
इकबाल अंसारी/अखिलेश पांडेय
नई दिल्ली/ढाका। बांग्लादेश में हुए सत्ता पलट के बाद देश छोड़कर भारत भाग कर आई शेख हसीना को सूत्रों के अनुसार, भारत ने शरण देने से इंकार कर दिया है। सूत्रों ने मीडिया को बताया कि बातचीत के बाद भारत ने उनसे कहा कि वह हरसंभव मदद करेगा, लेकिन शरण नहीं दे पाएगा।पता चला है कि अब वह फिनलैंड या स्विट्जरलैंड जा रही हैं।
बांग्लादेश में राजनीतिक संकट के बीच क्या पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में रहेंगी? पूर्व विदेश सचिव और बांग्लादेश में पूर्व राजदूत हर्षवर्धन श्रृंगला ने एएनआई से कहा, “मेरे लिए यह कहना मुश्किल है। ध्यान रखें कि शेख हसीना 1975 से लेकर 1979 तक यहीं थीं, जब वह अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद अपने देश वापस चली गईं। भारत ने कभी भी अपने पड़ोस में रहने वालों को सुरक्षित पनाह या शरण देने से इनकार नहीं किया है। लेकिन मेरा मानना है कि कई अन्य स्थान हैं, जहां प्रधानमंत्री जा सकती हैं…।हम इस समय अटकलें नहीं लगा सकते।”
विदित रहे कि पडोसी देश बांग्लादेश में चल रहे आरक्षण विरोधी आंदोलन के चलते वहाँ हालात इस तरह बेकाबू हो गये कि प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़कर भागना पड़ा।
आपको बता दें कि एक दिन पहले यानी रविवार को बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों और सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थकों के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में झड़प में सैकड़ों लोगों की मौत हो गयी थी। बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए थे। देशभार में कर्फ्यू लगा दिया गया था और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं।
रविवार को हुई झड़पों से कुछ दिन पहले ही बांग्लादेश में पुलिस और मुख्य रूप से छात्र प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें देखने को मिली थीं। जिसमें 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। प्रदर्शनकारी विवादास्पद आरक्षण प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। जिसके तहत 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले लड़ाकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है। बांग्लादेश में आरक्षण प्रणाली के तहत कुल 56 फीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं। अब इन नौकरियां में से 30 फीसदी आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों के लिए, 10 फीसदी आरक्षण पिछड़े प्रशासनिक जिलों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं के लिए, पांच प्रतिशत आरक्षण जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए और एक प्रतिशत दिव्यांग लोगों के लिए आरक्षित है।