गुरुवार, 21 जुलाई 2022
देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनीं, मुर्मू
मुसीबत आती है, भगवान और पुलिस याद आती है: सिंह
मुसीबत आती है, भगवान और पुलिस याद आती है: सिंह
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। समाज में पुलिस को लेकर नकारात्मक दृष्टिकोण पर चिंता व्यक्त करते हुए मुंबई के पुलिस आयुक्त रह चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद सत्यपाल सिंह ने कहा है कि समाज में पुलिस को लेकर जो दृष्टिकोण है, वो ठीक नहीं है। मुसीबत आती है, तो भगवान और पुलिस याद आती है और मुसीबत जाते ही लोग भगवान को भूल जाते हैं और पुलिस को नजर अंदाज कर देते हैं। डॉ. सत्यपाल सिंह ने यह बात “विभाजित समाज में पुलिस और न्याय”विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही, जिसमें श्री सिंह के अलावा वरिष्ठ पत्रकार मनीष छिब्बर, महाराष्ट्र की पहली महिला आईपीएस रही डॉ. मीरान बोरवकंर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ शीतल शर्मा मौजूद थी। संगोष्ठी का आयोजन राजेन्द्र पुनेठा स्मृति न्यास और यूरोपियन यूनियन के ज़ा मौनिए कार्यक्रम ने मिलकर किया।
उन्होंने कहा कि पुलिस ही देश और लोकतंत्र की सुरक्षा का मुख्य औजार है। अगर जजों के पास पुलिस ना हो तो वे फैसले नहीं सुना सकते हैं। देश में कहीं भी त्योहार हो, मेला हो, या परीक्षा, यात्रा, जनसभा हो, पहली जरूरत पुलिस की होती है। लेकिन पुलिस में संख्या बल कम है, काम का बोझ अत्यधिक है और एक पुलिसकर्मी को औसतन 12 से 15 घंटे तक काम करना पड़ता है।
डॉ. सिंह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार प्रति एक लाख आबादी पर पुलिस बल 222 की संख्या में होना चाहिए। भारत में यह 171 मान्य है लेकिन मौजूदा स्थिति में ये संख्या 137 ही है। उन्होंने हर बार पुलिस को दागदार साबित करने की प्रवृत्ति की भी कड़ी आलोचना की और कहा कि सरकार के अनेक विभाग पुलिस की तुलना में बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। लेकिन, समाज हो या अदालत, सबको पुलिस को लेकर पूर्वाग्रह रहता है और वे पुलिस को लेकर शिकायत समाधान का तंत्र बनाने की वकालत कर रहे हैं। उनके लिए पुलिस को बुरा भला कहना फैशन बन गया है। डॉ. सिंह ने कहा कि पुलिस सुधार की बात बहुत समय से चली आ रही है लेकिन कहीं भी पुलिस स्थापना बोर्ड तक नहीं है। पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के तबादले और तैनाती राजनीतिक नेताओं द्वारा की जाती है। पुलिस चूंकि राज्य का विषय है इसलिए राजनीति पुलिस सुधार होने नहीं देती। इसी कारण पुलिस सबसे ज्यादा विभाजन करती है। अलग अलग पार्टी, जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर विभाजन होता है। राजनीतिक आका जैसा चाहते हैं, वैसा होता है।
उन्होंने कहा कि यदि पुलिस कर्मी अपनी नौकरी के वक्त ली गई शपथ का पालन करें और बिना किसी भेदभाव के कानून व्यवस्था कायम रखें तो बहुत फर्क पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पुलिस कमजोर होगी तो आंतरिक सुरक्षा कमजोर होगी। अच्छी पुलिसिंग के लिए हमारे व्यवहार में परिवर्तन लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सौभाग्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पुलिस सुधारों के लिए इस साल 18500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार मनीष छिब्बर ने कहा कि भारत में यह सामान्य रूप में लोग मानते हैं कि देश की पुलिस भ्रष्ट है। रोज़ाना पुलिसकर्मियों और अधिकारियों का सामना आलोचना से होता है। पुलिस से अपेक्षा बहुत ज्यादा है और आउटपुट बहुत कम है। गोष्ठी की विषय वस्तु पर चर्चा करते हुए श्री छिब्बर ने कहा कि दरअसल 'रूल ऑफ लॉ' के गायब होने के कारण ही समाज में विभाजन या ध्रुवीकरण हो रहा है। ऐसा पहली बार दिखाई दे रहा है कि न्यायाधीशों की आलोचना इस स्तर पर पहुंच गई है कि लोग सवाल पूछने की जगह पत्थर फेंक रहे हैं। उन्होंने पुलिस व्यवस्था में अत्यधिक राजनीतिक दखलंदाजी का मुद्दा उठाया और कहा कि पंजाब में एक साल में 5 महानिदेशक आ गए। जबकि केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट की व्यवस्था है कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और पुलिस महानिदेशक को दो साल से पहले नहीं बदलना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार से विधायकों को थानेदारों और हवलदारों के तबादले और तैनाती से दूर रखने की जरूरत है।
छिब्बर ने कहा कि एक और महत्वपूर्ण बात कैदियों को लेकर है कि भारत की जेलों में 70 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं और 30 फीसदी से कम सजायाफ्ता हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार एक जमानत नीति बनाने की जरूरत है। इससे भी पुलिस के भेदभाव पूर्ण व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकेगा। पुणे की पुलिस आयुक्त रह चुकीं डॉ. मीरान बोरवंकर ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पुलिस में मज़हबी विभाजन के उदाहरण मुंबई में पहली बार 1993-94 के दंगों के दौरान दिखाई दिए। ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया जिनके बारे में कोई कल्पना नहीं कर सकता। इसी तरह पुलिस में लैंगिक भेदभाव भी है। पुलिस में महिलाओं को टेलिफ़ोन आपरेटर, वायरलेस आपरेटर, कंप्यूटर आपरेटर या ऐसी ही साइडलाइन वाली तैनाती दी जाती है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में उन्होंने पाया कि आदिवासी एवं दलित समाज की महिला पुलिसकर्मी मुख्य धारा की तैनाती पाना चाहती हैं।
डॉ. बोरवंकर ने कहा कि पुलिस प्रशिक्षण में शारीरिक पहलुओं पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया है जबकि संविधान एवं रूल ऑफ लाॅ यानी कानून का शासन की ट्रेनिंग की कमी है। उन्होंने कहा कि संवेदनशीलता की कमी के कारण पुलिसकर्मी अक्खड़, घमंडी और ज्यादा कठोर हो गये हैं। उन्होंने कहा कि स्वैच्छिक संगठनों, शिक्षाविदों, न्यायविदों को शामिल करके पुलिस को संवेदनशील बनाने का प्रभावी प्रशिक्षण देने की जरूरत है। उन्हें धर्म, जाति, लिंग और क्षेत्र के मामले में संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। उन्होंने राजनेताओं और ऊंचे पदों पर नियुक्त अधिकारियों द्वारा पुलिसबल का प्रयोग अपने रसूख के प्रदर्शन के लिए किये जाने की आलोचना की और कहा कि यह पुलिस का दुरुपयोग है। हमें एक सतर्क, जागरूक, सहयोगी पुलिस की जरूरत है। जवाहर लाल विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. शीतल शर्मा ने कहा कि समाज में संघर्ष अपरिहार्य है और संघर्ष होगा तो पुलिस की भी जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि पुलिस की स्थिति लोकतंत्र की सेहत का सूचकांक होता है। संघर्ष को नियंत्रित करने और शांति व्यवस्था बनाए रखने की भूमिका को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि खाकी में खड़े पुलिसकर्मी भारत के निर्माण में सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने पुलिस की जरूरतों को पूरा करने पर बल देते हुए कहा कि जब पुलिस की जरूरतें पूरी नहीं होंगी तो पुलिस आपकी अपेक्षा कैसे पूरी कर सकती है। कार्यक्रम में देश के तमाम वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद, पूर्व पुलिस अधिकारी और अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
आयुक्त ने नगर निगम के सभी पार्किंग का निरीक्षण किया
शिवभक्त कांवडियों की सेवा के लिए शिविर का शुभारंभ
तेलंगाना में चावल खरीद अभियान को बहाल किया जाएं
तेलंगाना में चावल खरीद अभियान को बहाल किया जाएं
इकबाल अंसारी
हैदराबाद। केंद्र ने निर्णय किया है कि केंद्रीय हिस्से (एफसीआई और डीसीपी के अंतर्गत राज्य द्वारा) के मद्देनजर तेलंगाना में चावल खरीद अभियान को बहाल कर दिया जाएं। उपभोक्ता कार्य, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, वाणिज्य और उद्योग तथा कपड़ा मंत्री पियूष गोयल ने यहां मीडिया कर्मियों को सम्बोधित करते हुये यह बात कही। गोयल ने तेलंगाना सरकार की आलोचना करते हुये कहा कि राज्य सरकार ने केंद्र द्वारा लगातार ध्यानाकर्षित करने के बावजूद प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत अप्रैल और मई माह का राशन निर्धनजनों को वितरित नहीं किया है। पीयूष गोयल ने गरीबों और किसानों के लिये केंद्र की चिंता और प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने कहा कि पीएमजीकेएवाई के जरिये, केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि किसी भी गरीब का हक न मारा जाये और उन्हें उसके पूरे अधिकार मिलें। गोयल ने कहा, “तेलंगाना सरकार ने अप्रैल और मई, 2022 के मद्देनजर डीसीपी स्टॉक से पर्याप्त मात्रा (1.90 लाख मीट्रिक टन) में अनाज उठाया है, लेकिन उसे वितरित नहीं किया है। इस तरह केंद्रीय योजना के लाभार्थियों को लाभों से वंचित कर दिया गया है।”
एक केंद्रीय दल ने मौके पर जाकर धान के भंडारण की जांच की थी। गोयल ने दल द्वारा दी गई सूचना को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि 31 मार्च, 2022 को चूक-कर्ता चक्की मालिकों की सूची तैयार की गई थी। सूची में वे चक्की मालिक शामिल थे, जिनके यहां धान की कमी थी। इसके विषय में तेलंगाना राज्य सरकार को भी सूचित कर दिया गया था, ताकि वह फौरी कार्रवाई करे, क्योंकि 40 मिलों में 4,53,896 बोरे कम पाये गये थे। इसके बाद 21 मई, 2022 को दूसरे सर्वेक्षण के बारे में भी राज्य सरकार को बताया गया, जिसके अनुसारः 63 मिलों में कुल 1,37,872 बोरे कम पाये गये, यानी केएमएस 2020-21 (रबी) के हवाले से 12 मिलों, केएमएस 2021-22 (खरीफ) के हवाले से 51 मिलों और 593 मिलों, यानी केएमएस 2020-21 (रबी) की 101 मिलें तथा केएमएस 2021-22 (खरीफ) के हवाले से 492 मिलों में गड़बड़ी थी। धान के भंडारण आंकने योग्य न था, जिसके कारण धान के स्टॉक की मौके पर पुष्टि न हो सकी।
उल्लेखनीय है कि तेलंगाना सरकार के नागरिक आपूर्ति आयुक्त और कार्यवाहक सचिव ने चार अक्टूबर, 2021 को अपने पत्र द्वारा आश्वस्त किया था कि “केएमएस-2020-21 के दौरान धान/चावल की भौतिक पुष्टि के समय आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिये, राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि स्टॉक को हमेशा मूल्यांकन करने की स्थिति में रखा जाये और साथ ही उसका पूरा हिसाब-किताब भी रखा जाये। इसके विषय में मानक संचालन प्रक्रिया का भी पालन किया जायेगा।” बहरहाल, जिन मिलों में कमी पाई गई है, उन मिल मालिकों के खिलाफ राज्य सरकार ने अब तक कोई सख्त कार्यवाई नहीं की है। गोयल ने बताया कि 20 प्रतिशत तक के एथेनॉल मिश्रण के लिये तेलंगाना को 36 करोड़ लीटर अतिरिक्त वार्षिक क्षमता की जरूरत है। लेकिन, राज्य सरकार ने इसका प्रसंस्करण नहीं किया। उन्होंने कहा कि एथेनॉल के प्रसंस्करण से किसानों को मदद मिल सकती थी, युवाओं के लिये रोजगार पैदा हो सकते थे और निवेश को भी लाया जा सकता था। इससे पेट्रोलियम के आयात को कम करने में भी मदद मिल सकती थी और इस तरह विदेशी मुद्रा की बचत हो सकती थी। गोयल ने तेलंगाना सरकार से आग्रह किया कि वह गरीबों के प्रति किये गये वायदे को पूरा करे, ताकि लाभार्थियों तक उनका हक पहुंच सके।
तेलंगाना राज्य ने खरीद के सम्बंध में विकेंद्रीकृत प्रणाली को अपनाया है, जिसमें राज्य सरकार, केंद्र सरकार की ओर से धान की खरीद करती है। राज्य अपनी एजेंसियों के जरिये किसानों से धान खरीदता है। धान की कुटाई के बाद जो चावल निकलता है, राज्य उसे एनएफएसए/ओडब्लूएस के तहत अपनी खपत के लिये रख लेता है। चावल का केवल बेशी स्टॉक ही केंद्रीय हिस्से के तौर पर भारतीय खाद्य निगम को सौंपा जाता है। केंद्रीय योजनाओं के लिये खरीद और वितरण में लगने वाला सारा खर्च केंद्र सरकार वहन करती है। प्रक्रियानुसार, धान के स्टॉक की भौतिक पुष्टि राज्य सरकार और एफसीआई का संयुक्त दल करता है। वह राज्य सरकार द्वारा की गई घोषणा के आलोक में धान और चावल की उपलब्धि की जांच करता है। भौतिक पुष्टिकरण के दौरान विभिन्न मिलों में धान के स्टॉक में कमी पाई गई। लिहाजा, राज्य सरकार से निवेदन किया गया कि उन चूक-कर्ता मिल मालिकों के खिलाफ कार्रवाई की जाये, जिनके यहां पुष्टि करते समय धान की कमी पकड़ी गई। बहरहाल, जून माह तक राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। तेलंगाना सरकार के नागरिक आपूर्ति विभाग ने अप्रैल 2022 से शुरू होने वाले प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना-छठवें चरण के तहत वितरण के लिये भूसी वाला चावल उठाया था। इस योजना के तहत केंद्र सरकार मुफ्त अनाज प्रदान करती है, ताकि कोविड-19 महामारी की मार झेलने वाले लोगों की कठिनाईयां कम हो सकें; हालांकि जून माह की शुरूआत तक लाभार्थियों को यह अनाज वितरित नहीं किया गया था। इसके अलावा, राज्य सरकार ने एथेनॉल बनाने के लिये राज्य में डिस्टलरियां स्थापित करने के लिये दिये गये आवेदनों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की है।
उपरोक्त मुद्दों पर राज्य सरकार की निष्क्रियता के कारण यह तय किया गया कि केंद्रीय हिस्से में चावल की आपूर्ति बंद कर दी जाएं। यह निर्णय तेलंगाना में सात जून से प्रभावी हो गया है। यह तब तक लागू रहेगा, जब तक राज्य सरकार कोई ठोस कार्रवाई शुरू नहीं कर देती।तेलंगाना सरकार ने अब सूचित किया है कि उसने चूक-कर्ता चावल मिल मालिकों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है और इसे हर चूक-कर्ता के खिलाफ चलाया जायेगा। इसके अलावा, तेलंगाना के मुख्य सचिव ने सूचित किया है कि पीएमजीकेएवाई छठवें चरण योजना के तहत भूसी वाले चावल का वितरण शुरू कर दिया गया है। उन्होंने आश्वस्त किया कि एनएफएसए के साथ पूरी आबंटित मात्रा वितरित कर दी जायेगी। राज्य सरकार ने एथेनॉल बनाने के लिये डिस्टिलरियों की स्थापना सम्बंधी आवेदनों पर जल्द कार्रवाई शुरू करने के निर्देश जारी कर दिये हैं। राज्य सरकार द्वारा दिये गये आश्वासन और तदुपरान्त की जाने वाली कार्रवाई के मद्देनजर तथा किसानों और पिसाई उद्योग के हितों को सुरक्षित करने के लिये केंद्र सरकार ने केंद्रीय हिस्से में चावल की आपूर्ति बहाल कर दी है। केंद्र सरकार हमेशा किसानों के हितों की रक्षा के लिये समर्पित है और उनके कल्याण के लिये प्रतिबद्ध है। राज्य सरकार को सलाह दी गई है कि वह उपरोक्त मुद्दों पर सच्ची भावना से अपने आश्वासनों को पूरा करे। क्योंकि, ये विषय किसानों तथा मिलों के हित में है।
सिंगर मूसेवाला के पिता को जान से मारने की धमकी
सिंगर मूसेवाला के पिता को जान से मारने की धमकी
अकांशु उपाध्याय/अमित शर्मा/सुनील श्रीवास्तव
नई दिल्ली/चंडीगढ़/इस्लामाबाद। सिंगर सिद्धू मूसेवाला के पिता को जान से मारने की धमकी मिली है। ये धमकी पाकिस्तान से सिंगर सिद्धू मूसेवाला के पिता को मिली है। पुलिस को इस धमकी की जानकारी दे दी गई है। सिद्धू मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह को इंस्टाग्राम पर जान से मारने की धमकी मिली है। पोस्ट में लिखा है- ‘अगला नंबर बापू का’। हालांकि इस मामले में पंजाब पुलिस की तरफ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सिद्धू मूसेवाला के पिता को पाकिस्तान के नंबरों से धमकी भरे कॉल और मैसेज भी आ रहे हैं। परिवार के सदस्य ने बताया कि पाकिस्तानी नंबर और और इंस्टा ग्राम पर लगातार धमकाया जा रहा है कि अब अगला नंबर आपका होगा। लेकिन, सिद्धू के पिता का कहना है कि वह अपने बेटे के कातिलों को सजा दिला कर ही रहेंगे। जब तक मेरे बेटे के कातिल सलाखों के पीछे नहीं चले जाते, उन्हें राहत की सांस नहीं मिलेगी।
भारत: पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं
तहसीलदार को मध्यावधि प्रतिकूल प्रविष्टि देने का निर्देश
सरकार की नीतियों को जन व संविधान विरोधी करार
गाजियाबाद: वरिष्ठ पत्रकार नगरकोटी का निधन हुआ
नगरकोटी लंबे समय तक उत्तराखंड लोकवाहिनी से जुड़े रहे साथ ही सहारा हिंदुस्तान जैसे समाचार पत्रों में बतौर पत्रकार रहे। उन्होंने बाद में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में अपनी सेवाएं दी। नगरकोटी के निधन पर अलमोड़ा सहित प्रदेश भर के पत्रकारों ने दुख व्यक्त किया है।
मृत छात्रा के पिता की याचिका पर विचार से इनकार
मृत छात्रा के पिता की याचिका पर विचार से इनकार
अकांशु उपाध्याय/इकबाल अंसारी
नई दिल्ली/चेन्नई। उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के एक निजी आवासीय विद्यालय में मृत मिली 17 वर्षीया छात्रा के पिता की उस याचिका पर विचार करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया। जिसमें उसने शव का दोबारा पोस्टमॉर्टम करने वाली विशेषज्ञों की टीम में अपनी पसंद के डॉक्टर को शामिल करने का अनुरोध किया था। तमिलनाडु के कल्लाकुरिची जिले में 13 जुलाई को आवासीय विद्यालय के परिसर में 12वीं कक्षा की छात्रा की मौत के बाद विभिन्न इलाकों में हिंसा भड़क गई थी।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने छात्रा के पिता को उच्च न्यायालय का रुख करने और उन्हें सारी जानकारी प्रदान करने की अनुमति दे दी। पीठ ने कहा, ”हमें (पोस्टमॉर्टम करने वाले) स्वतंत्र विशेषज्ञों पर संदेह क्यों करना चाहिए?” शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को या तो याचिका वापस लेने या फिर मामला खारिज करने की बात कही। इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली। गत 19 जुलाई को प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण ने इस मामले पर विचार करने से इनकार कर दिया था।
प्राधिकृत प्रकाशन विवरण
नवरात्रि का पांचवां दिन मां 'स्कंदमाता' को समर्पित
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