अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। क्या होगा अगर हमारा सूरज मर जाए। कैसा दिखेगा वो। हमारा सौर मंडल, हमारी धरती, जीव-जंतु क्या जीवित रह पाएंगे। या सूरज को मरते हुए देख पाएंगे। वैज्ञानिकों यह पता लगा लिया है कि हमारा सूरज कब और कैसे मरेगा। इसके बाद सौर मंडल का क्या होगा। धरती का क्या होगा। लेकिन अच्छी बात ये है कि जब सूरज मरेगा। तब इंसानों की प्रजाति उसे देखने के लिए बचेगी ही नहीं।
पहले तो वैज्ञानिकों को लगा था कि सूरज के मरने पर सौर मंडल एक नेबुला में बदल जाएगा। जिसमें सारे ग्रह टूट-फूटकर गैस और पत्थरों के रूप में एकसाथ घूम रहे होंगे। या बिखर रहे होंगे। लेकिन जब बारीकी से अध्ययन किया गया तो यह इससे भी ज्यादा विशालकाय और भयावह निकला। अंतरिक्ष विज्ञानियों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने 2018 में यह थ्योरी दी थी कि सूरज के मरने पर सौर मंडल नेबुला में बदल जाएगा।
सूरज की उम्र करीब 460 करोड़ साल है। लगभग इसी समय में सौर मंडल के अन्य ग्रह भी बने हैं। सभी ग्रहों और सूरज के अध्ययन के बाद यह जानकारी जुटाई गई है कि सूरज अगले 10 बिलियन साल यानी 1000 करोड़ साल और जीवित रहेगा। इसके मरने के साथ ही कई अन्य प्रक्रियाएं भी होंगी। अगले 500 करोड़ सालों में यह प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरु हो जाएगी। अंत के समय सूरज एक रेड जायंट से कमजोर होकर व्हाइट ड्वार्फ बनकर रह जाएगा।
सूरज का केंद्र सिकुड़ कर खत्म हो जाएगा या फिर बेहद छोटा हो जाएगा, जिससे सूरज गर्मी पैदा करने क्षमता खो देगा। लेकिन इसकी बाहरी परतें ठंडी होकर टूटकर बिखर जाएंगी और यह मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंच जाएंगी। इस प्रक्रिया में हमारी धरती भी सूरज की परतों से टकराकर बिखर जाएगी। लेकिन सूरज के कमजोर पड़ते ही धरती से जीवन खत्म होने लगेगा। मैग्नेटिक फील्ड खत्म होने लगेगी। गुरुत्वाकर्षण खत्म होने लगेगा। ऐसे में जीवन की कल्पना की ही नहीं जा सकती।
एक चीज तो तय है कि उस समय तक इंसान तो क्या उसका भूत तक धरती पर नहीं बचेगा। क्योंकि इंसानों की प्रजाति अधिकतम 100 करोड़ साल में खत्म हो जाएगी। इससे बचने का एक ही तरीका है कि हम अपने लिए कोई अन्य ग्रह खोजकर वहां बस जाएं। सूरज के खत्म होने की एक वजह ये है कि वह हर 100 करोड़ साल पर अपनी गर्मी और रोशनी को 10 फीसदी बढ़ा रहा है। एक समय ऐसा आएगा जब वह ऊर्जा खत्म होगी और वह ठंडा होने लगेगा।
सूरज की लगातार बढ़ती गर्मी और रोशनी से धरती पर जीवन खत्म होने लगेगा। हमारे समुद्र भाप बनकर अंतरिक्ष में उड़ जाएंगे। जमीन इतनी गर्म हो जाएगी कि इस पर रहना मुश्किल हो जाएगा। यही वो समय होगा जब धरती से इंसान समेत सारे जीव मारे जा चुके होंगे, अगर उन्होंने अपने लिए कोई अन्य ग्रह नहीं खोजा तो।
साल 2018 में हुई स्टडी में कंप्यूटर मॉडल का उपयोग किया गया था। 90 फीसदी तारों के साथ यही होता है कि वो पहले रेड जायंट होते हैं, जो बाद में खत्म होने पर व्हाइट ड्वार्फ बन जाते हैं। यहीं पर उनकी मृत्यु हो जाती है। मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोफिजिसिस्ट अलबर्ट जिल्सट्रा ने कहा कि जब भी कोई तारा मरता है तो वह अंतरिक्ष की एक बड़ी घटना होती है।
अलबर्ट ने बताया कि तारे के मरने पर भारी मात्रा में धूल, पत्थर और गैस निकलती है। जो तेजी से अपने आसपास के इलाके में फैलती है। यह उस तारे के वजन का आधा हो सकती है। किसी भी तारे का केंद्र उसका जीवन तय करता है। अगर केंद्र कमजोर हो रहा है, इसका मतलब ये है कि तारे को अब ऊर्जा नहीं मिल रही है। उसका पावर सेंटर खत्म हो रहा है। मरने वाले तारे से निकली गैस, धूल और पत्थर अपने आसपास के ग्रहों और अन्य अंतरिक्षीय वस्तुओं से टकराते हुए अंतरिक्ष में फैल जाती है। अलबर्ट सूरज की उम्र पता करने वाली टीम में शामिल हैं।
अलबर्ट ने आगे बताया कि सूरज से निकलने वाली धूल, गैस और पत्थरों का गुबार करीब 10 हजार साल तक अंतरिक्ष में तैरता रहेगा। जो कि अंतरिक्ष की दुनिया में एक बेहद छोटा समय है। इसकी वजह से एक नेबुला का निर्माण होगा, जो हजारों सालों तक दिखाई देगा। अगर इंसान जीवित रहे और किसी अन्य ग्रह पर अपना ठिकाना बना लिया तो वो इस नजारे को देख पाएंगे, नहीं तो मानकर चलिए कि हमारी प्रजाति समेत कई जीवों की प्रजाति का सर्वनाश हो जाएगा।
अलबर्ट और उनकी टीम के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग ग्रहों की उम्र का पता लगाने के लिए एक गणितीय मॉडल बनाया है, जो कई तरह का कारकों पर निर्भर करती है. ऐसे कई नेबुला हैं जो हमें दिखाई देते हैं, यानी उनके तारे मर चुके हैं और उनके धूल, गैस और पत्थर अंतरिक्ष की गहराइयों में तैर रहे हैं. जैसे - हेलिक्स नेबुला, कैट्स आई नेबुला, रिंग नेबुला और बबल नेबुला।
इन नेबुला को 18वीं सदी के साइंटिस्ट विलियम हर्सेल ने खोजा था। ये नेबुला उस समय के टेलिस्कोप से एक ग्रह जैसे दिखते थे। बाद में तकनीक आगे बढ़ी तो पता चला कि नहीं ये तो खत्म हुए तारे से निकली गैस, धूल और पत्थर के जमावड़ा है, जो अंतरिक्ष में धीरे-धीरे फैलकर खत्म हो रहा है। करीब 30 साल पहले वैज्ञानिकों ने कुछ अजीब सा देखा था। जिसे पड़ोसी गैलेक्सी का सबसे चमकीला नेबुला कहा गया। इससे यह पता चला कि ये कब खत्म हुआ होगा, कितने समय से यह ऐसे ही तैर रहा है। इसका भविष्य क्या होगा।
अलबर्ट और उनकी टीम की स्टडी में विलियम हर्सेल और उसके बाद की गई सारी स्टडीज के आंकड़ों का विश्लेषण करके देखा गया तो पता चला कि इनके परिणाम सटीक है। लेकिन मॉडल अलग-अलग हैं। अलबर्ट कहते हैं ज्यादा बुजुर्ग और कम वजन वाले तारे धुंधले नेबुला बनाते हैं। युवा और बड़े तारे चमकीले और ताकतवर नेबुला बनाते हैं। पिछले 25 सालों से दुनियाभर के वैज्ञानिक इस बात पर विवाद कर रहे हैं।
अलबर्ट ने कहा कि यह संभव नहीं है कि सूरज जैसे कम वजन वाले तारे से आप बहुत ताकतवर और चमकीला नेबुला हासिल कर लो। अगर सूरज के वजन से दोगुना वजन का कोई तारा टूटता तो शायद हम एक चमकीले नेबुला की उम्मीद कर सकते थे। लेकिन सूरज से निकलने वाले नेबुला को सिर्फ 10 हजार सालों तक देखा जा सकेगा। वह भी टेलिस्कोप की मदद से।
सूरज के वजन का 1.1 फीसदी वजन का कोई तारा खत्म होता है तो वह फुस्सी बम की तरह होता है। उसके फूटने से बनने वाला नेबुला पता ही नहीं चलता। सूरज से तीन गुना ज्यादा वजन के तारे जब टूटकर खत्म होते हैं, तब वो बेहद चमकीले नेबुला का निर्माण करते हैं, जो दूर से भी दिखाई देते हैं। यानी सूरज के खत्म होने पर बनने वाला नेबुला बहुत चमकीला होने की उम्मीद नहीं है। बस एक चीज इसे चमकीला बना सकती है, वो सौर मंडल के अन्य ग्रहों के फट जाने की वजह से बढ़ने वाली उसकी तीव्रता।
अलबर्ट कहते हैं कि यह एक बेहतरीन परिणाम है. इस वजह से नहीं कि हमने सही गणित लगाई है। बल्कि इस वजह से भी हमने कई पुरानी थ्योरी को खारिज कर दिया है। किसी भी तारे की उम्र की गणना आसान नहीं होती। उसमें इतने सारे फैक्टर्स की जांच करनी होती है, कि वैज्ञानिक का भी दिमाग खराब हो जाता है। लेकिन अब हमें यह पता है कि सूरज कब मरेगा।