जगुआर बिल्ली परिवार का तीसरा सबसे बड़ा सदस्य है। केवल सिंह और बाघ उससे बड़े होते हैं। लेकिन इस छोटे पैरोंवाले गठीले जानवार में सिंह या बाघ से भी अधिक ताकत होती है। वह अपने बड़े-बड़े रदनक दंतों और मजबूत जबड़ों से कठोर-से-कठोर हड्डी को भी काट सकता है और कछुओं की मोटी-से-मोटी खोल को भी भेद सकता है।
जगुआर मध्य एवं दक्षिण अमरीका के वर्षावनों और दलदली मैदानों में रहता है। पहले वह पूरे उत्तरी अमरीका के गरम इलाकों में भी पाया जाता था, लेकिन अब वह उत्तरी अमरीका में केवल मेक्सिको के कुछ भागों में मिलता है।
एक वयस्क जगुआर 2 मीटर (7 फुट से अधिक) लंबा, 60 सेंटीमीटर (2 फुट) ऊंचा और 100 किलो भारी होता है। उसकी खाल चमकीली पीली होती है, जिस पर चिकत्तियों के बड़े-बड़े गोल निशान बने होते हैं। पूर्णतः काला जगुआर भी कभी-कभी देखने में आता है। जगुआर का सिर और शरीर बड़ा और कसा हुआ होता है। पैर छोटे पर खूब मोटे और मजबूत होते हैं। यद्यपि वह काफी खूंखार जीव है, मनुष्यों पर वह बहुत कम हमला करता है।
जगुआर और तेंदुए के शरीर पर लगभग समान निशान बने होते हैं, पर जगुआर के शरीर के निशान अधिक बड़े और कम संख्या में होते हैं। जगुआर के निशानों के बीच में भी चिकत्तियां होती हैं। तेंदुए में ऐसा नहीं होता है। इन दोनों बिडालों की शारीरिक गठन भी अलग प्रकार की होती है। जगुआर अधिक गठीला और बड़ा होता है। उसके पैर छोटे होते हैं। जगुआर का चेहरा चौकोर होता है, जबकि तेंदुए का गोल।
दिन हो या रात, जमीन हो या जल, जगुआर हर समय और हर जगह शिकार कर सकता है। वह दौड़ने, कूदने, तैरने और पेड़ चढ़ने में उस्ताद है। जगुआर के पसंदीदा शिकारों में पेक्कारी (सूअर के समान दिखनेवाले जानवर) और कैपीबेरा (चूहे के वर्ग का पर 50 किलो वजन का जानवर) शामिल हैं। वह हिरण, बंदर, कैमन (मगरमच्छ जैसा जीव), चींटीखोर, पक्षी, छिपकली, सांप और कछुओं को भी खाता है। अन्य बिल्लियों के विपरीत जगुआर सरीसृप वर्ग के प्राणियों को बड़े चाव से खाता है। लगभग 500 साल पहले मनुष्यों द्वारा दक्षिण अमरीका लाई गई गाय-भैंस भी अब इस खूंखार जानवर की आहार सूची में शामिल हो गई हैं।
जगुआर पानी में जाकर भी खूब शिकार करता है। दरअसल वह नदियों, झीलों और दलदलों से कभी दूर नहीं रहता। वह लंबी दूरी तक तैर सकता है और चौड़ी-से-चौड़ी नदियों को भी तैरकर पार करता है। कई बार पानी में बैठे हुए कैपिबेरा और कैमनों को पकड़ने के लिए वह पानी में सीधे छलांग लगा देता है।
ज्यादातर वह रात को ही शिकार करता है। हालांकि वह बड़े जानवरों को आसानी से मार सकता है, लेकिन आमतौर पर वह छिपकली, सांप, कछुए, पक्षी आदि छोटे जीवों का ही शिकार करता है। सिंह, बाघ, तेंदुआ आदि शिकार को मारने के लिए उसकी गर्दन को काटते हैं, लेकिन जगुआर उसके सिर को काटता है। छोटे जीवों को वह आगे के पंजों से थप्पड़ मारकर वश में करता है। कई बार वह जमीन से छलांग लगाकर पेडों की डालियों पर बैठे बंदरों को पकड़ लेता है।
जगुआर साल भर प्रजनन करता है। वह एकांतवासी जीव है। केवल मैथुन के लिए नर और मादा मिलते हैं। उसके बाद मादा नर से दूर चली जाती है। लगभग तीन महीने बाद वह किसी गुफा या मांद में दो या चार शावकों को जन्म देती है। ये शावक जन्म के वक्त अंधे और लगभग एक किलो भारी होते हैं। लगभग तीन महीने का होने पर वे मां के साथ शिकार पर निकलने लगते हैं। वे दो साल तक मां के साथ ही रहते हैं और उसके बाद अपना अलग क्षेत्र बना लेते हैं। वन्य अवस्था में जगुआर की आयु लगभग 20 वर्ष होती है।
आजकल जगुआर बहुत कम दिखाई देते हैं। उनकी घटती संख्या का मुख्य कारण है पशुपालन, खनन और इमारती लकड़ी के लिए दक्षिण अमरीका के वर्षावनों का काटा जाना। जगुआर इन्हीं वनों में रहता है और उनके नष्ट हो जाने से वह भी विलुप्ति की ओर बढ़ता जा रहा है।![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgu1JfgTQUFKiXhZPWliIxeek2N6Jn79x1-rr0S37Tow-G5x1l5pYiw_9Nex7hRO-JyqMFcIeuCR9PfB8xNypCJwvffkYTPFyxUqR1YjcniJp7rNwYlULGggZcgDt4obTK9SZXNbUONHhc/)