मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 जब राजा इस प्रकार का बन जाता है, तो प्रजा में संग्रह की प्रवृत्ति मानो समाप्त हो जाती है! वितरण प्रणाली पवित्र बन जाती है! जब वितरण प्रणाली पवित्र बन जाती है तो मानो राजा के राष्ट्र में रक्त भरी क्रांति कहां से आएगी? तो भगवान राम की उपदेश मंजरी प्रारंभ रहती थी! तो देखो सुबाहु राजा ने यह वाक्य स्वीकार कर लिया और चरणों की वंदना की! प्रभु वाक्य में यथार्थ है! परंतु मैं क्या करूं? जाओ तुम सबसे पहले धर्म के नाम पर रूढ़ि समाप्त करो! राजा एकाकी धर्म वाला रहना चाहिए! परमात्मा सर्वज्ञ है, परमात्मा सर्वशक्तिमान रहता है, सबके हृदय में वास करने वाला है! उस परमपिता को स्वीकार करते हुए नाना रूढियों में समाज नहीं रहना चाहिए! विद्यालयों में तपे हुए आचार्य होनी चाहिए! रूडी का निराकरण विद्यालय में हुआ करता है! तुम्हारे विद्यालय में जब तपे हुए आचार्य होंगे तो मानो ब्रह्मचारी उसके अनुसार बरतने वाले होंगे, तो रूढिया विद्यालयों में समाप्त होती है और जब रूढि विद्यालय में नहीं रहेगी तो देखो राजा के राष्ट्र में भी नहीं रहेगी और राजा के राष्ट्र में नहीं रहेगी तो प्रजा में नहीं रहेगी! क्योंकि विद्यालयों में यज्ञ करना, प्रातः कालीन अपनी क्रियाओं से निवृत्त होकर के, यज्ञ करना उसके ऊपर वेद के मंत्रों का भावार्थ करना, मानव देखो उसके अनुकूल, हमें अपने विचारों को बनाना है और बना करके अगर धन्य बनना है, अगर नियत बनना है! मेरे पुत्रों यह कार्य करना है तो राष्ट्र की प्रतिभा ऊंची बनेगी! मुनिवर देखो, राजा ने स्वीकार कर लिया राम को धन्यवाद देकर के, उनके चरणों की वंदना करके, उन्होंने वहां से गमन किया! बेटा उच्चारण करने का हमारा अभिप्राय क्या है? देखो तुम्हें यह वाक्य प्रकट कर रहे हैं कि हमारे जीवन में एकीकरण होना चाहिए! नाना रूढ़िया नहीं होनी चाहिए! जैसे मुझे मेरे प्यारे महानंद जी ने प्रकट कराई थी कई काल में, उनके लिए आज इतना समय आज्ञा नहीं दे रहा है! क्योंकि भगवान राम के जीवन को विद्यालयों से लेकर अंत तक की झलकियां आती है! उनका वही क्रियाकलाप प्रारंभ रहता है, दृष्टिपात आता है! आज का हमारा यह वाक्य कह रहा है कि हम परमपिता परमात्मा की आराधना करते हुए यज्ञ में रत रहते हुए, अपने जीवन को ऊंचा बनाते चले जाएं! मान-अपमान वाले सागर से पार हो जाए! बेटा आज का वाक्य समय मिलेगा ये चर्चा करेंगे! आज के वाक्य देखो वह परमपिता परमात्मा है, आदरणीय है और उसको जो भी मान लेता है उसी को प्राप्त हो जाता है! देखो चाहे राष्ट्र समाज हो, योगेश्वर हो, परंतु इनकी चर्चा तो मैं कल करूंगा, आज का वाक्य समाप्त होता है! अब वेदो का पठन पाठन होगा!


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