चण्डीगढ़ ! हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा 75 पार के नारे से 40 पर आकर अटकी है!
चण्डीगढ़ ;- हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा 75 पार के नारे से 40 पर आकर अटकी है। उसका सीधा ठिकड़ा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला की कार्यप्रणाली से जोड़ा जा रहा है!मिली जानकारी के अनुसार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सुभाष बराला के कार्य से प्रसन्न नहीं है। वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि बराला की प्रदेश संगठन पर पकड़ कमजोर होती दिखाई दी थी। जिसके कारण भाजपा पूर्ण बहुमत में ना आकर अल्पमत से सरकार बनाने का प्रयास कर रही है। यदि यह कहें कि आज भाजपा सरकार जेजेपी की बैसाखियों पर खड़ी हुई है। इसमें भी कोई दो राय नहीं जब भी भाजपा पार्टी ने जेजेपी पार्टी की किसी भी बात को नजरअंदाज किया तो उसी दिन हरियाणा में भाजपा की सरकार टूट सकती है। भाजपा को मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला के नेतृत्व में इस बार पुर्ण बहुमत नहीं मिला। विधानसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक जीत न मिलने के बाद अब पार्टी के प्रदेश संगठन में बदलाव तय है। चौथी बार चुनाव लड़े सुभाष बराला खुद टोहाना विधानसभा क्षेत्र से अपना चुनाव हार गए। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष के नाते सुभाष बराला के प्रदर्शन से कतई खुश नहीं है, इसलिए दिसंबर में होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले हरियाणा के भाजपा संगठन में बदलाव तय माना जा रहा है। इस बार के चुनाव में भाजपा ने 75 से अधिक विधानसभा सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया था। तमाम प्रयासों के बावजूद भाजपा 40 सीटों पर आकर ठहर गई। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही सार्वजनिक तौर पर प्रदेश संगठन की खिंचाई नहीं कर रहे, लेकिन दोनों शीर्ष नेताओं ने इस निराशाजनक प्रदर्शन पर नाराजगी जाहिर की है। राष्ट्रीय नेतृत्व की नाराजगी के कारण अब नए प्रदेश अध्यक्ष पद की लाबिंग शुरू हो गई। सुभाष बराला नवंबर 2014 में हरियाणा भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बने थे। जनवरी 2015 में उन्होंने पूरी तरह से कार्यभार संभाल लिया था। गैर जाट चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री मनोहर लाल और जाट अध्यक्ष के नाते सुभाष बराला की जोड़ी पूरे समय खूब जमी। मुख्यमंत्री हालांकि इस बार भी सुभाष बराला की प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए पैरवी कर सकते हैं, क्योंकि जजपा संयोजक के नाते दुष्यंत चौटाला जिस तरह भाजपा सरकार में साझीदार हैं। हालांकि यह देखते हुए भाजपा इस बार जाट के बजाय किसी गैर जाट खासकर पिछड़े, दलित अथवा ब्राह्मण वर्ग से नया प्रदेश अध्यक्ष दे सकती है। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता है। वह दोबारा फिर तीन साल के लिए रिपीट किया जा सकता है। सुभाष बराला का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। ऐसे में उन्हें बदला जाना तय है। जाट चेहरे के रूप में भाजपा के पास पूर्व कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ और पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु हैं। दोनों ही चुनाव हार गए हैं। भाजपा ने यदि पिछड़ा वर्ग को संगठन में अहमियत दी तो पूर्व स्पीकर एवं जगाधरी से चुनाव जीते कंवरपाल गुर्जर को अध्यक्ष पद का ताज सौंपा जा सकता है। कुरुक्षेत्र के सांसद नायब सिंह सैनी भी मुख्यमंत्री की पसंद हैं। दोनों की कार्य प्रणाली से सीएम खुश हैं। दलित चेहरे के रूप में भाजपा के पास तेज तर्रार मंत्री रह चुके कृष्ण कुमार बेदी हैं। जाट दलित गठजोड़ में बेदी भाजपा का बड़ा चेहरा बन सकते हैं।
दक्षिण हरियाणा में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश
दक्षिण हरियाणा में इस बार भाजपा 11 सीटें में से तीन हार गई है। यहां भाजपा के मजबूत चेहरे मनीष यादव भी चुनाव हार गए। इसलिए यदि भाजपा ने यादवों को महत्व दिया तो मौजूदा प्रदेश उपाध्यक्ष अरविंद यादव और प्रांतीय प्रवक्ता वीर कुमार यादव में से किसी को जिम्मेदारी मिल सकती है। भाजपा में एक वर्ग प्रदेश अध्यक्ष के पद पर ब्राह्मणों को प्रतिनिधित्व देने की मांग कर रहा है। यदि ऐसा होता है तो पूर्व शिक्षा मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा का नाम सबसे ऊपर आ सकता है। इतना तय है कि नए अध्यक्ष के चयन में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की पसंद का पूरी तरह से ख्याल रखा जाएगा।
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उसका सीधा ठिकड़ा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला की कार्यप्रणाली से जोड़ा जा रहा है!मिली जानकारी के अनुसार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सुभाष बराला के कार्य से प्रसन्न नहीं है। वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि बराला की प्रदेश संगठन पर पकड़ कमजोर होती दिखाई दी थी। जिसके कारण भाजपा पूर्ण बहुमत में ना आकर अल्पमत से सरकार बनाने का प्रयास कर रही है। यदि यह कहें कि आज भाजपा सरकार जेजेपी की बैसाखियों पर खड़ी हुई है। इसमें भी कोई दो राय नहीं जब भी भाजपा पार्टी ने जेजेपी पार्टी की किसी भी बात को नजरअंदाज किया तो उसी दिन हरियाणा में भाजपा की सरकार टूट सकती है! भाजपा को मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला के नेतृत्व में इस बार पुर्ण बहुमत नहीं मिला। विधानसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक जीत न मिलने के बाद अब पार्टी के प्रदेश संगठन में बदलाव तय है। चौथी बार चुनाव लड़े सुभाष बराला खुद टोहाना विधानसभा क्षेत्र से अपना चुनाव हार गए। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष के नाते सुभाष बराला के प्रदर्शन से कतई खुश नहीं है, इसलिए दिसंबर में होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले हरियाणा के भाजपा संगठन में बदलाव तय माना जा रहा है! इस बार के चुनाव में भाजपा ने 75 से अधिक विधानसभा सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया था। तमाम प्रयासों के बावजूद भाजपा 40 सीटों पर आकर ठहर गई। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही सार्वजनिक तौर पर प्रदेश संगठन की खिंचाई नहीं कर रहे, लेकिन दोनों शीर्ष नेताओं ने इस निराशाजनक प्रदर्शन पर नाराजगी जाहिर की है। राष्ट्रीय नेतृत्व की नाराजगी के कारण अब नए प्रदेश अध्यक्ष पद की लाबिंग शुरू हो गई! सुभाष बराला नवंबर 2014 में हरियाणा भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बने थे। जनवरी 2015 में उन्होंने पूरी तरह से कार्यभार संभाल लिया था। गैर जाट चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री मनोहर लाल और जाट अध्यक्ष के नाते सुभाष बराला की जोड़ी पूरे समय खूब जमी। मुख्यमंत्री हालांकि इस बार भी सुभाष बराला की प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए पैरवी कर सकते हैं, क्योंकि जजपा संयोजक के नाते दुष्यंत चौटाला जिस तरह भाजपा सरकार में साझीदार हैं! हालांकि यह देखते हुए भाजपा इस बार जाट के बजाय किसी गैर जाट खासकर पिछड़े, दलित अथवा ब्राह्मण वर्ग से नया प्रदेश अध्यक्ष दे सकती है! भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता है। वह दोबारा फिर तीन साल के लिए रिपीट किया जा सकता है! सुभाष बराला का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है! ऐसे में उन्हें बदला जाना तय है। जाट चेहरे के रूप में भाजपा के पास पूर्व कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ और पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु हैं। दोनों ही चुनाव हार गए हैं। भाजपा ने यदि पिछड़ा वर्ग को संगठन में अहमियत दी तो पूर्व स्पीकर एवं जगाधरी से चुनाव जीते कंवरपाल गुर्जर को अध्यक्ष पद का ताज सौंपा जा सकता है। कुरुक्षेत्र के सांसद नायब सिंह सैनी भी मुख्यमंत्री की पसंद हैं। दोनों की कार्य प्रणाली से सीएम खुश हैं। दलित चेहरे के रूप में भाजपा के पास तेज तर्रार मंत्री रह चुके कृष्ण कुमार बेदी हैं। जाट दलित गठजोड़ में बेदी भाजपा का बड़ा चेहरा बन सकते हैं!
दक्षिण हरियाणा में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश
दक्षिण हरियाणा में इस बार भाजपा 11 सीटें में से तीन हार गई है। यहां भाजपा के मजबूत चेहरे मनीष यादव भी चुनाव हार गए। इसलिए यदि भाजपा ने यादवों को महत्व दिया तो मौजूदा प्रदेश उपाध्यक्ष अरविंद यादव और प्रांतीय प्रवक्ता वीर कुमार यादव में से किसी को जिम्मेदारी मिल सकती हैै! भाजपा में एक वर्ग प्रदेश अध्यक्ष के पद पर ब्राह्मणों को प्रतिनिधित्व देने की मांग कर रहा है। यदि ऐसा होता है तो पूर्व शिक्षा मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा का नाम सबसे ऊपर आ सकता है। इतना तय है कि नए अध्यक्ष के चयन में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की पसंद का पूरी तरह से ख्याल रखा जाएगा!