शनिवार, 2 नवंबर 2019

असुविधा में यज्ञ कैसे करें?

गतांक से...
मेरे प्यारे ब्रह्मचारी यज्ञदत्त ने कहा हे भगवान, यह वाक्य भी मैंने स्वीकार कर लिया है! परंतु मैं यह जानना चाहता हूं कि हे प्रभु यदि अग्नि भी ना हो और समिधा भी ना हो, तो यजमान यज्ञ कैसे करेगा? उन्होंने कहा यदि अग्नि भी नहीं है, साकलय भी नहीं है निर्माणशाला भी नहीं है! तो हे ब्राह्मणे प्राहा वर्तम, तुम यज्ञ करो तो जल से परोक्षण करो मानव जल से उसे आहूत करने वाले बने! अगने स्वाहा, प्रणाम स्वाहा अपनाय स्वाहा, वयानाय स्वाहा नाना प्रकार की आहुति हूत करता हुआ! अग्नि ब्रह्मा अग्नि रूद्र भागा:, वह अग्नि में हूत करता रहे, अग्नि ब्रह्म: अग्नि न सुताम न वृत्ति हो तो जल को परोक्षण करके जल को लेकर के वह प्राण को प्रवेश करता हुआ, वह हूत करता है! क्योंकि यह जो जल है यही तो अापोमयी कहलाता है! आपोमयी ज्योति कहलाता है, कि अग्नि में परिणित होता हुआ अपनी आभा में रत हो जाता है! विचार आता रहता है बेटा देखो जल का परोक्षण करना चाहिए! क्योंकि परमपिता परमात्मा ने जब इस सृष्टि का निर्माण किया तो उस समय पृथ्वी भी जल में मगन रहती थी! अतः वह जल को ले करके आपोमयी कह कर के अपने में पूर्ति करता रहता है! वह कहता है अग्नि स्वाहा, अग्नि ब्रह्मा: में जल से परोक्षण कर रहा है! जो जल आपोमयी ज्योति बन करके रहता है! मेरे प्यारे देखो जब यजमान अपनी यज्ञशाला में विद्यमान होता है, तो अपनी दिव्या से कहता है! हे दिव्या, तुम आओ आचमन करो, सबसे प्रथम व शरीर की कामना करता है! वह सत्य की कामना करता है! मानो श्रीमरिय: श्री सृकता की कामना कर रहा है! वे यजमान हूत करने से पूर्व आचमन करता है! उसका क्या अभिप्राय है मानव परमपिता परमात्मा ने सृष्टि में पृथ्वी के अंतर्गत जल परोक्षण रूप में परिणत किया है! यह जल्द ही माता के गर्भ स्थल में आंखों में ज्योति है! जल ही उस बालक का  औढना और जल ही उसका बिछोना बन करके और पास से बनकर के उसमें वह व्रत विद्यमान रहता है! अमृत को बनाता रहता है! देखो प्रभु कितना विचित्र विज्ञानवेता है वह अपने में हूत कर रहा है! वह कह रहा है आत्म है! यह आपोमयी हमारा औढना और विचौना  है, जिसमें आपोमयी ज्योति कि हम कल्पना करते रहे और विचार दे रहे है! देखो, प्रभा वह कीर्ति को प्राप्त करता हुआ अपने में महानता का दर्शन करता रहे! तो विचारवेता कहते हैं कि अगर ध्यान हो रहा है वही अग्नि प्रचंड होकर के जल के रूप में परिणत रहती है! वही आपोमयी ज्योति है! जिस आपोमयी में अपने को हूत कर रहा है! आहुति दे रहा है और कह रहा है! अगने स्वाहा, प्राणाया स्वाहा, अपनाय स्वाहा, वयानाय स्वाहा और उत्तम स्वाहा मेरे प्यारे पवमानाय की आहुति प्रदान करता रहता है! विचार आता रहता है मेरे पुत्रों की वह भव्य हो रहा है! यागा: रुद्रा: यागा: मया परब्रह्मा: यज्ञ:, मेरे प्यारे यग हो रहा है! ऋषि ने कहा है ब्रह्मचारी तुम जल संरक्षण कर सकते हो! जल से ही हूत कर सकते हो! क्योंकि जल प्राणों का रक्षक है यह जल ही संसार का प्राण बना हुआ है! हम उसी याग में हूत हो जाए!


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