गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

सौ तरह के गुलाब

गुलाब एक बहुवर्षीय, झाड़ीदार, कंटीला, पुष्पीय पौधा है जिसमें बहुत सुंदर सुगंधित फूल लगते हैं। इसकी १०० से अधिक जातियां हैं जिनमें से अधिकांश एशियाई मूल की हैं। जबकि कुछ जातियों के मूल प्रदेश यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका भी है। भारत सरकार ने १२ फरवरी को 'गुलाब-दिवस' घोषित किया है। गुलाब का फूल कोमलता और सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है, इसी से लोग छोटे बच्चों की उपमा गुलाब के फूल से देते हैं।गुलाब प्रायः सर्वत्र १९ से लेकर ७० अक्षांश तक भूगोल के उत्तरार्ध में होता है। भारतवर्ष में यह पौधा बहुत दिनों से लगाया जाता है और कई स्थानों में जंगली भी पाया जाता है। कश्मीर और भूटान में पीले फूल के जंगली गुलाब बहुत मिलते हैं। वन्य अवस्था में गुलाब में चार-पाँच छितराई हुई पंखड़ियों की एक हरी पंक्ति होती है पर बगीचों में सेवा और यत्नपूर्वक लगाए जाने से पंखड़ियों की संख्या में बृद्धि होती है पर केसरों की संख्या घट जाती हैं। कलम पैबंद आदि के द्बारा सैकड़ों प्रकार के फूलवाले गुलाब भिन्न-भिन्न जातियों के मेल से उत्पन्न किए जाते हैं। गुलाब की कलम ही लगाई जाती है। इसके फूल कई रंगों के होते हैं, लाल (कई मेल के हलके गहरे) पीले, सफेद इत्यादि। सफेद फूल के गुलाब को सेवती कहते हैं। कहीं कहीं हरे और काले रंग के भी फूल होते हैं। लता की तरह चढ़नेवाले गुलाब के झड़ भी होते हैं जो बगीचों में टट्टियों पर चढ़ाए जाते हैं। ऋतु के अनुसार गुलाब के दो भेद भारतबर्ष में माने जाने हैं सदागुलाब और चैती। सदागुलाब प्रत्येक ऋतु में फूलता और चैती गुलाब केवल बसंत ऋतु में। चैती गुलाब में विशेष सुगंध होती है और वही इत्र और दवा के काम का समझ जाता है।


भारतवर्ष में जो चैती गुलाब होते है वे प्रायः बसरा या दमिश्क जाति के हैं। ऐसे गुलाब की खेती गाजीपुर में इत्र और गुलाबजल के लिये बहुत होती है। एक बीघे में प्रायः हजार पौधे आते हैं जो चैत में फूलते है। बड़े तड़के उनके फूल तोड़ लिए जाते हैं और अत्तारों के पास भेज दिए जाते हैं। वे देग और भभके से उनका जल खींचते हैं। देग से एक पतली बाँस की नली एक दूसरे बर्तन में गई होती है जिसे भभका कहते हैं और जो पानी से भरी नाँद में रक्खा रहता है। अत्तार पानी के साथ फूलों को देग में रख देते है जिसमें में सुगंधित भाप उठकर भभके के बर्तन में सरदी से द्रव होकर टपकती है। यही टपकी हुई भाप गुलाबजल है।


गुलाब का इत्र बनाने की सीधी युक्ति यह है कि गुलाबजल को एक छिछले बरतन में रखकर बरतन को गोली जमीन में कुछ गाड़कर रात भर खुले मैदान में पडा़ रहने दे। सुबह सर्दी से गुलाबजल के ऊपर इत्र की बहुत पतली मलाई सी पड़ी मिलेगी जिसे हाथ से काँछ ले। ऐसा कहा जाता है कि गुलाब का इत्र नूरजहाँ ने १६१२ ईसवी में अपने विवाह के अवसर पर निकाला था।


भारतवर्ष में गुलाब जंगली रूप में उगता है पर बगीचों में दह कितने दिनों से लगाया जाता है। इसका ठीक पता नहीं लगता। कुछ लोग 'शतपत्री', 'पाटलि' आदि शब्दों को गुलाब का पर्याय मानते है। रशीउद्दीन नामक एक मुसलमान लेखक ने लिखा है कि चौदहवीं शताब्दी में गुजरात में सत्तर प्रकार के गुलाब लगाए जाते थे। बाबर ने भी गुलाब लगाने की बात लिखी है। जहाँगीर ने तो लिखा है कि हिंदुस्तान में सब प्रकार के गुलाब होते है।


'पनीर टिक्का' भारतीय व्यंजन

पनीर टिक्का एक भारतीय व्यंजन है जो पनीर के टुकडो को मसाले में लपेटकर और तंदूर (ग्रील्ड) में पकाया जाता हैं। यह चिकन टिक्का और अन्य मांसाहारी व्यंजनों का शाकाहारी विकल्प है। यह एक लोकप्रिय पकवान है जो भारत और देशों में व्यापक रूप से एक भारतीय डायस्पोरा के साथ उपलब्ध है।


तैयारी:-पनीर के टुकड़ों को मसाले में डुबोकर शिमला मिर्च, प्याज़ और टमाटरों के साथ एक डंडी में लगाकर तन्दूर में भूना जाता है। इसे गरमागरम नीम्बू के रस और पुदीने की चटनी के साथ परोसा जाता है।पनीर के टुकड़ो को (पनीर एक प्रकार का ताजा चीज होता हैं) अच्छी तरह से मसाले में लपेटा जाता है फिर शिमला मिर्च, प्याज और टमाटर के साथ एक ग्रिल करने वाली लोहे की छड पर व्यवस्थित किया जाता है। ये छड़ें तंदूर में लगी रहती हैं इसलिए ये पनीर एवं अन्य चीज भी गरम हो जाती हैं। इसके बाद इन गर्म चीजों में नींबू का रस और चाट मसाला अच्छी तरह लगाया जाता हैं। यह कभी कभी सलाद या पुदीने की चटनी के साथ परोसा जाता है। टिक्का व्यंजन पारंपरिक रूप से टकसाल चटनी के साथ अच्छी तरह से चलते हैं। पनीर के कुरकुरापन के चलते इसका स्वाद बिलकुल अलग होता हैं।


बदलाव:-जब पनीर टिक्का को ग्रेवी के साथ परोसा जाता है, इसे पनीर टिक्का मसाला कहा जाता है। पनीर टिक्का को रोल के तरह भी लपेट कर बनाया जाता है, जिसमे पनीर टिक्का को भारतीय रोटी के साथ लपेटा जाता है। पनीर टिक्का एक प्रकार कबाब के रूप में भी बनाया जाता है।


हाल के वर्षों में पनीर टिक्का को कई प्रकार से बनाया जाने लगा हैं जिसमे से एक कश्मीरी पनीर टिक्का हैं। इसमें पनीर के साथ कटा हुआ बादाम डालकर ग्रिल किया जाता हैं। कई प्रकार के चीनी व्यंजन जैसे पनीर टिक्का मसाला चाउ मीन भी आजकल उपलब्ध हैं।


भारत में अंतर्राष्ट्रीय फास्ट फूड चेन पिज्जा हट और डोमिनोज़ ने पनीर टिक्का को अपने मेन्यू में भी शामिल किया है जिसमे पनीर टिक्का को पिज्जा के टॉपिंग की तरह पेशकश करते हैं, जबकि सबवे नामक फ़ूड चेन पनीर टिक्का सैंडविच बनाता है। और मैकडॉनल्ड की अपने मेनू में एक पनीर टिक्का लपेटो। आईटीसी के बिंगो ब्रांड ने आलू के चिप्स के पनीर टिक्का स्वाद का प्रयोग किया है। इससे पहले, 2003 में, नेस्ले के मैगी ब्रांड ने पनीर टिक्का की तुरंत तैयार होने वाले तैयार करने के लिए तैयार किया। अन्य कंपनियां पनीर टिक्का के मसाला मिक्स और खाने के लिए तैयार हैं।


बबूल का हरियाली से संबंध

इसका वानस्पतिक नाम ऐकेशिया अरेबिका (Acacia arabica) है। यह मध्यम वर्ग का काँटेदार वृक्ष बलुई जमीन में नदी के किनारे अधिक उगता है। इसकी छाल से निकला गोंद बहुत अच्छा होता है। लकड़ी मजबूत होती है और बैलगाड़ी बनाने के काम आती है।


आदरणीय भारत के राष्ट्रिय नागरिक महोदय व् नागरिक बन्धुओं हमारे भरत के नागरिकों पर राज करने वाले राष्ट्रिय नागरिकों से विनम्र अपील हमारे देश का कोई भी प्रधानमंत्री अगर किसी राज्य में बीस करोड़ की मदद देने की घोषणा करते है यह तो अच्चा है परन्तु मान लो की किसी राज्य की जनता पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने का व्यापर करने में सक्षम है तो प्रधानमन्त्री जी को यह घोषणा करने की करपा करनी चाहिए की केन्द्र सर्कार दस करोड़ नगद देगे और दस करोड़ के सालाना राज्य की जनता से पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने खरीदेंगे फिर देश की जनता को भोज के लिए हर गैस सरेण्डर के साथ मुफ्त देंगे जो देश की जनता जल पानी बर्बादी से जानलेवा मलेरिया व जल पानी बर्बादी से स्टील के बर्तन व् स्टील के ठीकरे धोनें पर चमड़ी कटने की बीमारी न हो जो जितना आमिर आदमी उतना बरबाद क्यों उसका इलाज ही नहीं होता स्टील के बर्तन को धोने वाले की परेशानी दूर बर्तन धोने वाले को रोज लगभग दोनों समय 150 ठकरे धोने से निजात मिलेगी स्टील के बरतन को धोने से जो जल बहता है जल बहने से मलेरिया के मछरों का आतंक मिट सकता है मलेरिया की बिमारियों पर परिवार बरबाद होने में कमी आएगी दवाइयों में शासनात्मक कमीशन बाजी व घोटाले बाजी जो देश को बरबाद करने में तुली हुई ह उसमें कमी आ सकती है यह योजना हर परिवार के पास पहुचती है तो हर परिवार ६ सदस्य ४० हजार रूपये की बचत व सरकार को मलेरिया के लिए परेशानी में कमी आएगी मानव व जानवरों को एलरजी नमक बिमारियों से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी और किसी राज्य का मुख्यमंत्री जो अपने राज्य को मेहनतकस व महत्वाकान्सी आत्म शक्तिशाली बनाना चाहता है तो अपनी राज्य की जनता को पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने का व्यापर करवाने व पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने में खाने का प्रचार होना चाहिए सरकारें जनता नो पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने का व्यापर का अनुदान देगी तो उस राज्य में हरियाली की कमी कभी नहीं आएगी। इसका वानस्पतिक नाम बैसिआ लैटीफालिया या मधुका इंडिका (Bassia latifolia or Madhuca indica) है। यह उत्तर भारत में हर जगह उगता है। सैपोटेसिई कुल का यह पौधा ३०-४० फुट ऊँचा होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है तथा पत्तों से दोना पत्तल बनाए जाते हैं। इसका फूल गरमी के शुरू में झड़ता है, जो इकठ्‌टा कर खाया जाता है। इससे बहुत बड़े पैमाने पर शराब भी बनाई जाती है।


अति लाभकारी अदरक

अदरक (वानस्पतिक नाम: जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale), एक भूमिगत रूपान्तरित तना है। यह मिट्टी के अन्दर क्षैतिज बढ़ता है। इसमें काफी मात्रा में भोज्य पदार्थ संचित रहता है जिसके कारण यह फूलकर मोटा हो जाता है। अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अधिकतर उष्णकटिबंधीय (ट्रापिकल्स) और शीतोष्ण कटिबंध (सबट्रापिकल) भागों में पाया जाता है। अदरक दक्षिण एशिया का देशज है किन्तु अब यह पूर्वी अफ्रीका और कैरेबियन में भी पैदा होता है। अदरक का पौधा चीन, जापान, मसकराइन और प्रशांत महासागर के द्वीपों में भी मिलता है। इसके पौधे में सिमपोडियल राइजोम पाया जाता है।


सूखे हुए अदरक को सौंठ (शुष्ठी) कहते हैं। भारत में यह बंगाल, बिहार, चेन्नई,मध्य प्रदेश कोचीन, पंजाब और उत्तर प्रदेश में अधिक उत्पन्न होती है। अदरक का कोई बीज नहीं होता, इसके कंद के ही छोटे-छोटे टुकड़े जमीन में गाड़ दिए जाते हैं। यह एक पौधे की जड़ है। यह भारत में एक मसाले के रूप में प्रमुख है।


अदरक का अन्य उपयोग:-अदरक का इस्तेमाल अधिकतर भोजन के बनाने के दौरान किया जाता है। अक्सर सर्दियों में लोगों को खांसी-जुकाम की परेशानी हो जाती है जिसमें अदरक प्रयोग बेहद ही कारगर माना जाता है। यह अरूची और हृदय रोगों में भी फायदेमंद है। इसके अलावा भी अदरक कई और बीमारियों के लिए भी फ़ायदेमंद मानी गई है।


वातावरण अनुकूल मशरूम

कुकुरमुत्ता (मशरूम) एक प्रकार का कवक है, जो बरसात के दिनों में सड़े-गले कार्बनिक पदार्थ पर अनायास ही दिखने लगता है। इसे या खुम्ब, 'खुंबी' या मशरूम भी कहते हैं। यह एक मृतोपजीवी जीव है जो हरित लवक के अभाव के कारण अपना भोजन स्वयं संश्लेषित नहीं कर सकता है। इसका शरीर थैलसनुमा होता है जिसको जड़, तना और पत्ती में नहीं बाँटा जा सकता है। खाने योग्य कुकुरमुत्तों को खुंबी कहा जाता है।


'कुकुरमुत्ता' दो शब्दों कुकुर (कुत्ता) और मुत्ता (मूत्रत्याग) के मेल से बना है, यानि यह कुत्तों के मूत्रत्याग के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। ऐसी मान्यता भारत के कुछ इलाकों में प्रचलित है, किन्तु यह बिलकुल गलत धारणा है।उपर्युक्त सारणी में दिये गये विभिन्न प्रकार की मशरूम प्रजातियों की वानस्पतिक वृद्धि (बीज फैलाव) व फलनकाय (फलन) अवस्था के लिये अनुकूल तापमानों को देखने से यह स्पश्ट हो जाता है कि मशरूम को कृषि फसलों की भांति फेरबदल कर चक्रों में उगाया जा सकता है। जैसे मैदानी भागों व कम उँचाई पर स्थित पहाड़ी भागों में शरद ऋतु में श्वेत बटन मशरूम, ग्रीश्म ऋतु में ग्रीष्मकालीन श्वेत बटन मशरूम व ढींगरी तथा वर्शा ऋतु में पराली मशरूम व दूधिया मशरूम।


भारत के मैदानी भागों में श्वेत बटन मशरूम को शरद ऋतु में नवम्बर से फरवरी तक, ग्रीष्मकालीन श्वेत बटन मशरूम को सितम्बर से नवम्बर व फरवरी से अप्रैल तक, काले कनचपडे़ मशरूम को फरवरी से अप्रैल तक, ढींगरी मशरूम को सितम्बर से मई तक, पराली मशरूम को जुलाई से सितम्बर तक तथा दूधिया मशरूम को फरवरी से अप्रैल व से सितम्बर तक उगाया जा सकता है।


मध्यम उंचाई पर स्थित पहाड़ी स्थानों में श्वेत बटन मशरूम को सितम्बर से मार्च तक, ग्रीष्मकालीन श्वेत बटन मशरूम को जुलाई से अगस्त तक व मार्च से मई तक, षिटाके मशरूम को अक्टूबर से फरवरी तक, ढिंगरी मशरूम को पूरे वर्ष भर, काले कनचपड़े मशरूम को मार्च से मई तक तथा दूधिया मशरूम को अप्रैल से जून तक उगाया जा सकता है।


अधिक उंचाई पर स्थित पहाड़ी क्षेत्रों में श्वेत बटन मशरूम को मार्च से नवम्बर तक, ढिंगरी मशरूम को मई से अगस्त तक तथा षिटाके मशरूम को दिसम्बर से अप्रैल तक उगाया जा सकता है।


यज्ञ कैसे करें ‌?

यज्ञ कैसे करें
 मुनिवरो, हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे थे। यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा, आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया। हमारे यहां परंपरागतो से ही उस मनोहर वेदवानी का प्रसार होता रहा है। जिस पवित्र वेद वाणी में उस परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान किया जाता है। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा अनंतमयी है और वह सब रूप माने गए हैं। वह परमपिता परमात्मा में परिणत रहते हैं। क्योंकि सब उसका आयतन है उसका सदन है। उसका ग्रह है और वह उसी में वास कर रहे हैं। इसलिए हम परमपिता परमात्मा का यह यज्ञोमयी स्वरूप वर्णन करते रहते हैं और वह वास्तव में इस ब्रहम् और आंतरिक दोनों जगत में रहने वाला है। उस परमपिता परमात्मा की जो अनंतता है। वह एक प्रकार की यज्ञशाला के रूप में प्राय: हमें दृष्टिपात आ रही है। यह अपने में बड़ा अनूठा रहा है अनुपम है। मुनिवर देखो हमारा वेद का मंत्र यह कह रहा है कि यज्ञ अग्नि स्वरूप है। अग्नि प्रत्येक पदार्थ का विभाजन कर देती है और उसमें भेदन करने की सत्ता विद्वान रहती है। इसलिए अग्नाम् ब्रह्मा: यह अग्नि ब्रह्मा ‌बन करके रहती है। वही अग्नि जो वेदों का गीत गाने वाला पंडित्व होता है। उसकी वाणी भी सजातीय हो करके अग्नि स्वरूप बन जाती है।अग्नि नाना प्रकार की बनती है। जैसे हमारे यहां ब्राह्म अग्नि भी मानी गई है। जब पंडित्व ब्रह्मा का बखान करता है अथवा ब्रह्म की प्रतिभा में रत हो जाता है। तो ब्राह्मण मानो वेद के मंथन करने वाला पंडित अपने में महान बनता हुआ। उस महान अग्नि के रूप में परिणत हो जाता है।वह  अग्नि माना गया है इसलिए यह सर्वत्र ब्रह्मांड अग्नि में ही सजातीय हो रहा है। जिसके ऊपर परंपरागतो से ही आचार्य विचार-विनिमय करते रहे हैं। आज मैं इस संबंध में तुम्हें विशेषता में नहीं ले जाना चाहता हूं। विचार केवल यह है कि हम उस अग्निमयी स्वरूप को अग्नि में धारण करते चले जाए और जब भी मानव बुद्धिमता पंडित और विवेक में परिणत हो जाता है। तो वह अग्निमयी स्वरूप बन जाता है। आओ मेरे प्यारे देखो विचार यह चल रहा है यज्ञम् भूतम ब्रह्मा: कहीं से मुझे प्रेरणा आ रही है कि यज्ञ के ऊपर कुछ विचार-विनिमय किया जाए। हमारे यहां संसार एक यज्ञ रूप माना गया है। यह एक प्रकार की यज्ञशाला है। यह जो मानवीय शरीर है वह भी एक प्रकार की यज्ञशाला है और इस यज्ञशाला और ब्रह्मांड में दोनों का समन्वय कर दिया जाता है। तो वह भव्य यज्ञ में परिणत हो जाता है। विचार-विनिमय यह है कि हम परमपिता परमात्मा के अनतंमयी यज्ञ को जानने वाले बने। स्वयं वह परमपिता परमात्मा ब्रह्म तत्व को अपने संरक्षण में लिए हुए। इस ब्रह्मांड को गतिमान बना रहा है। आज का हमारा वेद मंत्र यह कहता है कि 'यज्ञम ब्रह्मा:'।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस    (हिंदी-दैनिक)


नवंबर 01, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-88 (साल-01)
2. शुक्रवार, नवंबर 01, 2019
3. शक-1941, कार्तिक-शुक्ल पक्ष, तिथि- पंचमी, संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:28,सूर्यास्त 05:48
5. न्‍यूनतम तापमान -18 डी.सै.,अधिकतम-24+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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यूपी: गर्मी के चलते स्कूलों का समय बदला

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