रायपुर। राज्य को फाइलेरिया मुक्त बनाने के लिए रेंडम प्रक्रिया के माध्यम से स्कूली बच्चों का सर्वे किया गया। जिसमें रायपुर जिले के 71 बच्चों में फाइलेरिया (हाथी पांव) की पुष्टि होने के बाद स्वास्थ्य विभाग अलर्ट हो गया है।
चिरायु की टीम ने जिले के चयनित 71 स्कूलों के पहली और दूसरी कक्षा में अध्ययनरत कुल दर्ज 3544 बच्चों में से 2737 बच्चों का ब्लड सेम्पल लेकर फाइलेरिया टेस्ट स्टीप कीट से जांच किया जिसमें 71 बच्चों में फाइलेरिया के लक्षण मिले हैं। जबकि 2529 बच्चों में फाइलेरिया निगेटीव पाए गए।
सर्वे रिपोर्ट के बाद फाइलेरिया पॉजेटिव बच्चों को 12 दिनों तक नियमित दवाईयां दी जा रही है। वहीं स्वास्थ्य विभाग की टीम प्रभावित बच्चों के स्कूल और निवास स्थान के आस-पास कैम्प लगाकर प्रभावित परिवार सहित मोहल्लों के अन्य परिवारों का भी लाइन लिस्टिंग कर हाथी पांव से पीडि़त मरीजों की खोज किया जाएगा।
स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव-मोहल्ले में नाइट सर्वे भी करेगी और पीड़ित बच्चों की स्लाइड बनाएगी। फाइलेरिया टांसमिशन असेसमेंट सर्वे-2019 के लिए चयनित रायपुर जिले में हाथी पांव रोग के संक्रमण की जांच के लिए 20 से 30 सितंबर 2019 तक सर्वे किया गया।
इस बीमारी का परजीवी मौजूद
जिला मलेरिया अधिकारी डॉक्टर विमल किशोर रॉय के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला कि इन बच्चों के अंदर इस बीमारी का परजीवी मौजूद है। इसी को देखते हुए राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत जल जनित रोगों को दूर करने के लिए चिरायु की 11 टीम सर्वे के बाद स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के अमले को निगरानी करने के निर्देश दिए गए हैं।
डॉ राय ने बताया जिले के चार ब्लॉक अभनपुर के 12 स्कूल में 9, आरंग के 13 स्कूल में 16 , तिल्दा के 12 स्कूल में 23, धरसींवा के 11 स्कूल में 6 और राजधानी रायपुर व बिरगांव नगर निगम क्षेत्र के 23 स्कूलों में 17 बच्चों में फाइलेरिया के लक्षण मिलने की पुष्टि की गई है।
फाइलेरिया उन्नमूलन के लिए रायपुर में 80, बलौदाबाजार में 49, गरियाबंद में 79 और महासमुंद में 73 चिंहाकिंत सरकारी और निजी स्कूलों में सर्वे किया गया। डॉक्टर राय ने बताया, फ़ाइलेरिया को हाथीपांव भी कहा जाता है।
इसे ग्रसित लोगों का जीवन बहुत कष्ट दाई होता है हालांकि यह जान लेवा नहीं होता है लेकिन इसका इलाज नहीं होता है। यह रोग मूलत गरीबी अवस्था में जीवन यापन करने वालों में पाया जाता है। इस रोग के कारण कार्यक्षमता प्रभावित होने से रोगी की आर्थिक स्थिति और खराब होते जाती है।
घबराएं नहीं, सरकारी अस्पताल जाएं
मुख्य स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी डॉ श्रीमती मीरा बघेल ने बताया, किसी को फाइलेरिया बीमार के लक्षण नजर आते हैं तो वे घबराएं नहीं। स्वास्थ्य विभाग के पास इसका पूरा उपचार उपलब्ध है। विभाग स्तर पर मरीज का पूरा उपचार निशुल्क होता है। इसलिए सीधे सरकारी अस्पताल जाएं।
उन्होंने बताया सर्वे में लिए गए रक्त के नमूने की जांच में ये पता किया जाता है कि मरीज के रक्त में परजीवी की संख्या कितनी है। इसके बाद मरीज का उपचार शुरू किया जाता है। मरीज को 12 दिन की दवा की खुराक दी जाती है इससे बीमारी के परजीवी मर जाता है। और मरीज इस रोग के दुष्प्रभाव से बच जाता है। फाइलेरिया के बीमारी से बचाव के लिए लोगों में जागरुकता जरुरी है।
कैसे फैलता है रोग
फाइलेरिया को हाथी पांव रोग भी कहा जाता है। ये रोग क्यूलेक्स मच्छर काटने की वजह से होता है। इस मच्छर के काटने से पुवेरिया नाम के परजीवी शरीर में जाने से ये रोग होता है। वयस्क मच्छर छोटे-छोटे लार्वा को जन्म देता है, जिन्हें माइक्रो फाइलेरिया कहा जाता है। ये मनुष्य के रक्त में रात के समय एक्टिव होता है। इस कारण स्वास्थ्य टीम रात में ही पीड़ित का ब्लड सैंपल लेगी।