बचपन बीत रहा कूड़े में, रोटी,कपड़े और मकान के लाले
समाज सेवा का ढिंढोरा पीटने वाले संस्थाए और कथित समाजसेवी सब गायब
नौशाद मंसूरी
जौनपुर,शाहगंज! जहां आज यानी बाल दिवस पूरे देश मे मनाया जा रहा है ।स्कूलों में तरह तरह के कार्यक्रम और कान्वेंट स्कूलों के बच्चों के नए नए कपड़े पहनकर कर जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिन को सेलिब्रेट किया जा रहा है।
मगर दूसरी तरफ की कहानी कुछ और ही बयां कर रही है।जो काफी विचलित करने वाली है।नगर,जनपद, मंडल, प्रदेश और देश मे अभी भी नौनिहालों का हाल बद से बदतर है।आज भी जब नारा दिया जा रहा है की सब पढ़े सब बढ़े ये नारा खोखला साबित हो रहा है।क्योंकि अभी भी बहुत से गरीब बच्चे हर गांव नगर और शहर में दिख जाएंगे।
किसी होटल पर झूठा प्लेट धोते नज़र आएंगे तो कहीं किसी कारखाने में हाड़तोड़ मेहनत करते नज़र आयेंगे तो कहीं किसी सड़क के किनारे फेंके गए कूड़ो और कचरों में नौनिहाल अपना बचपन खोजता नज़र आएगा।या यूं कहिए की दो जून की रोटी खाने का इंतज़ाम कूड़े के ढेर में खोजता नज़र आजायेगा।
ऊपर चित्र में शाहगंज नगर के मुहल्ला अलीगंज में गुरुवार की सुबह की जब पूरा देश बाल दिवस मना है और यह बच्चा अपने गरीब और लाचार मां बाप के साथ अपने छह बहनों के रोटी के इंतज़ाम के लिए कूड़ा दर कूड़ा भटक रहा है अपना और और अपने परिवार के लिए खाने का इंतज़ाम कर सके।
ये वही बच्चे है जिन्होंने आज तक स्कूल का मुंह तक नही देखा,ये वही बच्चे है जिन्होंने कभी किताबों के पन्ने नही पलटे,ये वही बच्चे हैं जो सुबह से निकलते है और शाम तक कूड़ो की खाक छानते हैं ,ये वही बच्चे हैं जो गरीबी के कारण सब पढ़ो सब बढ़ो के नारे पर सवाल खड़ा करते है ।
उक्त बच्चे से पूछने पर उसने अपना नाम सलमान बताया जो नगर के दादर पुल के नीचे माँ बाप और छह छोटी बहनों के साथ गंदगी और ठंडी, गर्मी और बरसात को झेलते हुए तंबू में रहते हैं।उसने बताया की उसकी बहने भी कूड़ा बीनती है और पैसे के अभाव में कोई स्कूल नही जाता।
अब सवाल उठता है सरकार द्वारा चलाये जा रहे तमाम योजनाएं इन तक क्यों नही पहुंचती,जनप्रतिनिधियों ने आज तक इनकी सुधि क्यों नही ली, सम्बंधित विभाग की ऐसे बच्चो पर नज़रे क्यों नही पड़ती,प्रशासन क्या कर रहा है ऐसे नौनिहालों के लिए,समाज मे समाज सेवा का ढिंढोरा पीटने वाले संस्थाए और कथित समाजसेवी इनके बेहतरी के लिए क्या प्रयास कर रहा है।