गांधी की हत्या के षड्यंत्रकारियों की रिहाई, गलत
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। कांग्रेस ने कहा है कि प्रधानमंत्री या पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या राष्ट्रीय मुद्दा है और यह देश की संप्रभुता, अखंडता, अस्तित्व और एकता जुड़ा है। इसलिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के षड्यंत्रकारियों की रिहाई का फैसला गलत है। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में प्रदत विशेष संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल किया है। सामान्य स्थिति में न्यायालय यह निर्णय नहीं दे सकता था। इसका मतलब यह हुआ कि फैसले में तथ्यों को नजरअंदाज किया गया है इसलिए वह इस फैसले की आलोचना करते है।
उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री पर हमला भारत की संप्रभुता, एकता और भारत के अस्तित्व पर हमला है और न्यायपालिका उन लोगों को फायदा नहीं दे सकती है जिन्होंने सोच समझकर और एक योजना के तहत पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की है। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या भारत पर आघात है और ऐसे अपराधी को रिहाई का आदेश नहीं दिया जा सकता था इसलिय न्यायालय ने अनुच्छेद 142 में संविधान प्रदत पावर का इस्तेमाल किया है।
कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने यहां जारी बयान में कहा, “पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का उच्चतम न्यायालय का फैसला पूरी तरह से गलत और अस्वीकार्य है। कांग्रेस पार्टी इसकी स्पष्ट रूप से आलोचना करती है और इसे पूरी तरह से गलत मानती है।उन्होंने कहा की न्यायालय ने यह फैसला देते हुए देश की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा है। उन्होंने कहा, “सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने यह फैसला सुनाते समय इस मुद्दे पर देश की भावना के अनुरूप काम नहीं किया है।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में दोषियों-नलिनी श्रीहरन और पी. रविचंद्रन को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को 1991 के राजीव गांधी हत्याकांड मामले में सात दोषियों में शामिल एस. नलिनी और आर. पी. रविचंद्रन को उनकी सजा की निर्धारित अवधि में छूट देने की याचिका स्वीकार करते हुए जेल में बंद उनके सभी छह सह दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया।
शीर्ष अदालत का रिहाई करने का यह आदेश नलिनी और रविचंद्रन समेत जेल में बंद सभी छह दोषियों पर लागू होगा।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरथ्ना की पीठ ने दोषियों के 30 वर्षों की कैद में रहने और इस दौरान संतोषजनक आचरण के आधार पर दोषियों को निर्धारित सजा की अवधि पहले रिहा करने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि रिहाई का आदेश देते हुए तमिलनाडु सरकार की ओर से राजीव गांधी हत्याकांड के सभी दोषियों को रिहा करने की सिफारिश की गई थी।
आजीवन कारावास की सजा के बाद 30 वर्षों से अधिक समय से जेल में बंद नलिनी ने मद्रास उच्च न्यायालय में अपनी रिहाई संबंधी याचिका खारिज होने के बाद
अगस्त में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया।
इससे पहले मद्रास उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी थी कि अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियां सुप्रीम कोर्ट को दी गई हैं। तीस वर्षों से अधिक समय से आजीवन कारावास की सजा काट रहे दो दोषियों की सजा में छूट देकर उन्हें रिहा करने की मांग वाली याचिकाओं का तमिलनाडु की द्रमुक सरकार ने उच्चतम न्यायालय में समर्थन किया था।
सात दोषियों में शामिल नलिनी और रविचंद्रन ने राज्य मंत्रिमंडल के (सजा में छूट संबंधी) फैसले और सह-दोषी ए जी पेरारिवलन को 18 मई को शीर्ष अदालत द्वारा रिहा करने के आदेश का हवाला देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। इसके बाद दोनों दोषियों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
याचिका पर शीर्ष अदालत ने सरकार को अपना पक्ष रखने को कहा था। राज्य सरकार ने लिखित जवाब में कहा था कि कानून के मुताबिक राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्य मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह से बाध्य है। इस मामले में राज्य सरकार ने चार साल पहले सभी सात दोषियों को सजा में छूट को मंजूरी दे दी थी। मंत्रिमंडल का यह फैसला 11 सितंबर 2018 को राज्यपाल को भेजा गया था, जिस पर फैसला नहीं आया।
इस बीच 27 जनवरी 2021 को राज्यपाल ने राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिशों को राष्ट्रपति को दी, लेकिन अभी भी कोई फैसला नहीं हुआ है। राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा था कि दोनों याचिकाकर्ताओं ने 30 साल से अधिक की जेल की सजा काट ली है। इस बीच सह-दोषी ए जी पेरारिवलन को 18 मई को शीर्ष अदालत द्वारा रिहा करने का आदेश दिया गया था। अदालत ने राज्यपाल द्वारा मंत्रिमंडल की सिफारिश पर फैसला लेने में अत्यधिक देरी होने और 31 साल से अधिक की जेल सजा काटने को ध्यान में रखते हुए विशेष शक्ति का प्रयोग करते हुए रिहा करने का आदेश किया था।
शीर्ष अदालत ने पेरारिवलन के मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय करने के लिए अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल किया था।
पेरारिवलन नौ मार्च 2022 से पहले से ही जमानत पर था।पेरारिवलन की रिहाई के बाद नलिनी और रविचंद्रन ने शीर्ष अदालत के उस आदेश का हवाला देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय में अपनी याचिका दायर की थी, लेकिन वहां उन्हें निराशा हाथ लगी थी। उच्च न्यायालय ने 17 जून को कहा था कि वह शीर्ष अदालत द्वारा पारित समान आदेश पारित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता है।