शनिवार, 25 जनवरी 2020

रेल लाइन के दोहरीकरण का शुभारंभ

रजनीकांत अवस्थी
बछरावां/रायबरेली। कई दशकों से रेल लाइन के दोहरीकरण की मांग कर रहे लोगों की कल यानी 24 जनवरी 2020 को मुराद पूरी हो गई। लखनऊ से कुंदनगंज तक दोहरीकरण का शुभारंभ रेलवे के मुख्य सुरक्षा आयुक्त शैलेश कुमार पाठक ने किया।बछरावां रेलवे स्टेशन पर इस कार्य का शुभारंभ सीआरएस शैलेश कुमार पाठक द्वारा किया जाएगा। 
आपको बता दें कि, लखनऊ से कुंदनगंज तक रेल लाइन का दोहरीकरण का कार्य पूरा हो गया है अब लखनऊ से कुंदनगंज तक ट्रेनें फर्राटा भरती हुई नजर आएंगी। अभी तक यात्रियों को दोहरीकरण की सुविधा ना होने के कारण लखनऊ से महज 40 मिनट का सफर तय करने में घंटों लग जाते थे। परंतु अब रेल लाइन के दोहरीकरण हो जाने से चंद मिनटों में ही लखनऊ से बछरावां की दूरी तय हो जाएगी। रेल लाइन के दोहरीकरण के लिए दिन-रात चले इस कार्य में सैकड़ों मजदूरों इंजीनियरों व अधिकारियों को लगाया गया।
दोहरीकरण का उद्घाटन सीआरएस द्वारा किया जाएगा। बछरावां रेलवे स्टेशन को दुल्हन की तरह सजाया गया है। इस रेलवे स्टेशन पर नए ओवर ब्रिज पेयजल की बेहतर व्यवस्था, अत्याधुनिक शौचालय, टीन सेड तथा दूधिया व हाई मास्टलाइटो द्वारा सजाया गया है। वहीं हरियाली के लिए लगभग 1000 पेड़ों को लगाया गया है।


बैंक से जुड़े नंबरों पर रखे ध्यान

नई दिल्ली। देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ग्राहकों को सुरक्षित बैंकिंग सुविधा के लिए कई कदम उठाती है। एसबीआई ने अपने आधिकारिक ट्विटर पर ग्राहकों को चेतावनी दी है। एसबीआई ने अपने ग्राहकों को डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और एटीएम का इस्तेमाल करते समय सावधान रहने के लिए कहा है। एसबीआई बैंक ने अपने ग्राहकों को अलर्ट रहने के साथ कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी है।
SBI ने ट्वीट के जिरए एक बार फिर ग्राहकों को चेतावनी दी है। इसमें SBI ने कहा है कि बढ़ती फ्रॉड की घटनाओं के बीच ग्राहकों को सावधान रहने की जरूरत है। ATM कार्ड डिटेल्स और PIN के जरिए पैसे चुराने के फ्रॉड बढ़ रहे हैं. इसलिए SBI ने अपने ग्राहकों को अपना ATM कार्ड और PIN को सेफ रखने की सलाह दी है। आइए आपको बताते हैं SBI ने फ्रॉड से बचने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाएं हैं। लगातार बढ़ते फ्रॉड के मामलों के देखते हुए SBI सोशल मीडिया के जरिए लगातार लोगों को बैंकिंग फ्रॉड्स से बचने की जानकारी दे रहा है। SBI ने एक बार फिर से अपने 42 करोड़ खाताधारकों को अलर्ट करते हुए ट्वीट किया है। SBI ने बैंकिंग फ्रॉड के बढ़ते मामलों को देखते हुए ट्वीट के जिरए एक बार फिर ग्राहकों को चेतावनी दी है। अपने ट्वीट में एसबीआई ने कहा है कि बढ़ती फ्रॉड की घटनाओं के बीच ग्राहकों को सावधान रहने की जरूरत है। खाताधारकों को ATM कार्ड डिटेल्स और PIN के जरिए पैसे चुराने के बढ़ रहे मामलों से सावधान रहने को कहा गया है। SBI ने अपने ग्राहकों को अपना ATM कार्ड और PIN को सेफ रखने की सलाह दी है। बैंक ने खाताधारकों से अपील की है कि वो अपने बैंक अकाउंट या ऑनलाइन बैंकिंग की जानकारी को फोन में सेव न करें। बैंक अकाउंट नंबर, पासवर्ड, एटीएम कार्ड का नंबर या पिन की फोटो खींचकर किसी को फॉरवर्ड न करें। अपने एटीएम का इस्तेमाल खुद ही करें। दूसरे को अपना एटीएम या कोई भी जानकारी न दें। गलती से भी कभी किसी को अपना OTP , पिन नंबर, डेबिट या क्रेडिट कार्ड का CVV नंबर को न बताएं।


असमय बच्चों की मौते

लिमटी खरे


देश भर में अनेक स्थानों पर सरकारी अस्पतालों में अचानक ही बड़ी तादाद में बच्चों की मौतों से व्यवस्थाओं पर सवालिया निशान लग रहे हैं। सियासी दल इसके मूल में जाकर कारण खोजने के बजाए आरोप प्रत्यारोपों के जरिए अपनी रोटियां सेंकते दिख रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट को अगर सच माना जाए तो देश में उचित इलाज के अभाव, कुपोषण और दीगर कारणों से हर साल तकरीबन आठ लाख बच्चे काल के गाल मे समा जाते हैं। एक अन्य एजेंसी की रिपोर्ट यह बता रही है कि देश में तीन बच्चे हर दो मिनिट में ही दम तोड़ देते हैं। सियासतदारों को विचार करना होगा कि आखिर क्या वजह है कि बच्चों के विकास के लिए करोड़ों अरबों रूपए पानी में बहाने के बाद भी बच्चों की मौतों का सिलसिला आखिर रूक क्यों नहीं पा रहा है! मजे की बात तो यह है कि निजि अस्पतालो में बाल मृत्यु दर बहुत ही कम है।



 
देश में केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा नवजात सहित दस साल तक के बच्चों के लिए तरह तरह की योजनाओं की मद में खजाने का मुंह लंबे समय से खोले रखा गया है, इसके बाद भी अगर लगातार ही शिशु मृत्यु दर कम नहीं हो रही है तो निश्चित तौर पर कहीं न कहीं गफलत अवश्य ही है। जिस तरह की खबरें आ रही हैं, उनमें सरकारी अस्पतालों में ही बच्चों की मौतों की बातें ज्यादा सामने आ रही हैं। जाहिर है, सरकारी सिस्टम में कहीं न कहीं फफूंद लग चुकी है। देश के अनेक राज्यों में इस तरह की घटनाओं ने देश के लोगों को हिलाकर रख दिया है।


ज्ञातव्य है कि भारत गणराज्य के द्वारा 1992 में अंतर्राष्ट्रीय बाल अधिकार समझौते को मानते हुए उसे न केवल अपनाया वरन उस पर हस्ताक्षर कर बच्चों के लिए अपनी प्रतिबद्धता भी उजागर की थी। जानकारों का मानना है कि बच्चे के जन्म के बाद पहले बीस दिन उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। अगर वह बीस दिन तक जीवित रह गया तो उसके बाद पांच साल तक की आयु तक का होने तक उसकी बहुत ज्यादा देखरेख की जरूरत होती है।


इस मामले में अगर वर्ष 2019 की यूनिसेफ की रिपोर्ट को देखा जाए तो एक साल में ही देश में लगभग साढ़े आठ लाख बच्चे असमय ही काल कलवित हुए हैं। इस आधार पर यह कहा जाए कि इक्कीसवीं सदी में भी देश में संसाधनों का अभाव और जिम्मेदारियों से बचने की भेड़ चाल चल रही है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। देश में स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में ही अनेक गंभीर मानकों पर स्वास्थ्य सेवाएं फिसड्डी ही मिलती हैं।


देश में स्वास्थ्य सेवाओं में चिकित्सक और पेरामेडिकल स्टॉफ की अगर बात की जाए तो आधे से ज्यादा लोगों के पास पर्याप्त योग्यताएं ही नहीं हैं। इन्हें समय समय पर दिए जाने वाले प्रशिक्षण में भी नहीं भेजा जाता या यूं कहें कि प्रशिक्षण दिया ही नहीं जाता है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। देश के अनेक चिकित्सक तो ऐसे हैं जिन्होंने अपनी पहुंच के दम पर सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देने के स्थान पर स्वास्थ्य विभाग में ही अधीक्षण (सुपरविजन) वाले पदों पर प्रभारी बनकर अपना जीवन गुजार दिया। यदि उन्हें मरीजों के इलाज के लिए कहा जाए तो निश्चित तौर पर वे बगलें ही झांकते नजर आएंगे।


देश में 2013 में कोलकता में बीसी रॉय बच्चा अस्पताल में 122 बच्चों की जान गई तो 2017 में गोरखपुर के आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में आक्सीजन की कमी के कारण साठ से ज्यादा बच्चों ने दम तोड़ा। इस तरह की घटनाएं देश भर में घटित होती रहती हैं। ग्रामीण अंचलों में घटने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी न मिल पाने से ये चर्चाओं में नहीं आ पाती हैं। यह एक बहुत ही संवेदनशील मामला है।


जब भी इस तरह की घटना घटती है तो सियासतदार सक्रिय हो जाते हैं। आरोप प्रत्यारोपों के दौर आरंभ होते हैं। जांच बिठाई जाती है। तृतीय या चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को बली का बकरा बनाकर उन्हें निलंबित कर दिया जाता है। देखा जाए तो जिस अस्पताल में यह घटना घटती है, उस अस्पताल के अधीक्षक को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। उस जिले में स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की जाना चाहिए, पर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही होने से यह संदेश जाता रहा है कि इस तरह की लापरवाही के बाद किसी चिकित्सक, सिविल सर्जन या विभाग प्रमुख का कुछ नहीं बिगड़ना है। ज्यादा से ज्यादा उसका तबादला कर दिया जाएगा। यही कारण है कि जिम्मेदार अधिकारी बेखौफ हो चुके हैं।


देश में हर साल न जाने कितने बच्चे इस दुनिया में आने के बाद पांच साल की आयु पूरा करने के पहले ही दुनिया को अलविदा कह जाते होंगे। अनेक प्रदेशों में जिला अस्पतालों में बच्चों के लिए गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) की स्थापना की गई है। केंद्रीय शहरी और ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में अरबों खरबों रूपए की इमदाद हर साल दी जाती है। इसका कोई हिसाब किताब लेने वाला नहीं है। केंद्रीय इमदाद से अस्पतालों में अधिकारियों की जमकर मौज रहती है। महंगे वाहन किराए पर लेकर, कार्यालय और घरों में इसकी राशि से वातानुकूलित यंत्र (एयर कंडीशनर) लगाने और अन्य तरह से इस राशि को जमकर खर्च किया जाता है।


केंद्र के द्वारा दी जाने वाली इमदाद के संबंध में कभी भी जिला स्तर पर जाकर केंद्रीय दलों ने वस्तु स्थिति नहीं देखी है कि उनके द्वारा दी जाने वाली राशि का क्या उपयोग हो रहा है। साल में एकाध बार पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के हिसाब से जांच दल जब आता है तो उसकी जमकर खातिरदारी की जाती है। जांच दल को सैर सपाटा करवाकर मंहगे उपहार देकर बिदा कर दिया जाता है। जबकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को चाहिए कि इसकी जांच के लिए वह एक जांच दल गठित करे जो औचक निरीक्षण कर वस्तु स्थिति की जांच करे और इसकी वीडियो ग्राफी कर, फोटो खींचकर मंत्रालय को इससे आवगत कराए, कि केंद्रीय इमदाद का उपयोग अस्पतालों में किस तरह किया जा रहा है।


मानवाधिकारों के हिसाब से स्वस्थ्य जीवन हर बच्चे का सबसे बड़ा और पहला अनिवार्य अधिकार है। मानवाधिकारों के नाम पर झंडा बुलंद करने वाले संगठनों के द्वारा भी कभी देश भर में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर प्रदर्शन नहीं किए गए हैं। यह मामला चूंकि छोटे बच्चों से जुड़ा है और छोटे बच्चे नासमझ होते हैं, वे अपनी आवाज को कैसे बुलंद कर सकते हैं। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े मामले में न तो संसद में बहस होती है और न ही राज्यों की विधान सभाओं में ही इस बात को उठाया जाता है।


हालात देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि बच्चों के स्वास्थ्य का मसला नेताओं के भाषणों का अंग बनकर रह गया है। नेताओं के द्वारा भाषणों में तो इस बात का जिकर किया जाता है पर लोकसभा, राज्य सभा, विधान सभाओं आदि सक्षम मंच पर यह बात उठाने में चुने हुए प्रतिनिधि पीछे ही रहते दिखते हैं।


देश में हर आदमी को स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पाएं, वह भी निशुल्क यह देखना हुक्मरानों का दायित्व है। सरकारी सिस्टम का पूरा पूरा फायदा निजि चिकित्सकों और अस्पतालों के द्वारा जमकर उठाया जाता है। निजि तौर पर होने वाली चिकित्सा में मरीजों की जेब तराशी का काम चल रहा है और हुक्मरानों को मानो इससे कोई विशेष फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है। सियासतदार यह भूल जाते हैं कि बच्चे अगर स्वस्थ्य रहेंगे तो आने वाले दिनों में जब वे जवान होंगे तब देश का भविष्य बनेंगे। क्या देश का भविष्य इसी तरह से बिगड़ता हुआ ही देखना चाह रहे हैं देश के नीतिनिर्धारक।


दोषियों की फांसी तक मंत्री रखेंगे उपवास

नई दिल्ली। निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग पर एक तरफ जहां समाजसेवी अन्ना हजारे महीनों से मौत व्रत धारण किए हुए हैं वहीं अब उनसे मिलने के बाद महाराष्ट्र के केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने भी उपवास करने का ऐलान ​कर दिया है।


केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने अन्ना हजारे से मुलाकात करने के बाद ऐलान किया कि जब तक निर्भया के दोषियों को फांसी नहीं मिल जाती वह उपवास करेंगे और अन्न को हाथ नहीं लगाएंगे। अन्ना हजारे रालेगण सिद्धि में पिछले 34 दिनों से मौन व्रत पर हैं।


बता दें कि तिहाड़ जेल में बंद निर्भया के मुजरिमों को फांसी पर लटकाए जाने का डेथ वॉरंट जारी किया जा चुका है और उन्हें 1 फरवरी को फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा। चारों को फांसी पर लटकाने की नई तारीख 1 फरवरी सुबह 6 बजे तय की गई है। फांसी देने वाले जल्लाद को 30 जनवरी को बुलाया जा रहा है, ताकि इससे पहले वह इन्हें फांसी देने के ट्रायल भी कर सके। अगर इसी बीच मुकेश के अलावा अन्य तीनों (पवन, अक्षय और विनय ) में से किसी ने दया याचिका डाल दी तो यह मामला फिर कुछ दिन के लिए आगे बढ़ सकता है। ऐसे में कानूनी जानकारों का कहना है कि फिर से फांसी के लिए संभवत: एक नई तारीख दी जाएगी।


एक्ट्रेस ने की आत्महत्या, पुलिस जांच में जुटी

मुंबई। सीरियल दिल तो हैप्पी है जी की एक्ट्रेस सेजल शर्मा ने शुक्रवार सुबह खुदकुशी कर ली। सेजल को सिम्मी खोसला का किरदार निभाने के लिए जाना जाता है। सेजल के खुदकुशी करने का कारण अभी तक पता नहीं चला है। हालांकि, माना जा रहा है कि उनकी निजी जिंदगी में परेशानियां चल रही थी, जिसके चलते उन्होंने ऐसा किया है। सेजल शर्मा उदयपुर की रहने वाली थीं और सीरियल दिल तो हैप्पी है जी उनका पहला टीवी शो था। इससे पहले उन्हें कई विज्ञापनों और एक वेब सीरीज में देखा जा चुका है। उन्होंने आमिर खान के साथ Vivo फोन के एक विज्ञापन में काम किया था। उनकी वेब सीरीज का नाम आजाद परिंदे था।सेजल के को-एक्टर अरु वी वर्मा ने खबर की पुष्टि करते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘हां ये सच है। मुझे इस खबर को सुनकर झटका लगा है। ये मेरे लिए मानना बहुत मुश्किल है कि सेजल इस दुनिया में नहीं है क्योंकि मैं उससे 10 दिन पहले ही मिला था और रविवार को मेरी उससे व्हाट्सएप पर बात भी हुई थी।


अरु ने आगे बताया, ‘मैं इस खबर को मान ही नहीं पा रहा हूं। मैं उससे 10 दिन पहले मिला था और वो बिल्कुल ठीक थी। हम पिछले 3-4 महीनों से नहीं मिले थे क्योंकि मैं अपने होमटाउन गया हुआ था। इसलिए हम 10 दिन पहले मिले और वो बिल्कुल ठीक दिख रही थी। उनके परिवार को आज सुबह उनकी मौत के बारे में पता चला, लेकिन मुझे लगता है कि उन्होंने कल रात खुदकुशी की थी। उनका परिवार उनके पार्थिव शरीर को उदयपुर लेकर जा रहे हैं वहीं उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।


दो हैवनों से तंग आकर किया सुसाइड

बरनाला। पंजाब के बरनाला की रहने वाली एक लड़की ने मलेशिया में 2 युवकों से परेशान हो कर लाइव वीडियो कॉलिंग पर पंखे से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली है। जानकारी के अनुसार मृतक मनु रानी को दोनों आरोपी पिछले लंबे समय से परेशान कर रहे थे जिसकी शिकायत पहले बरनाला पुलिस को की गई थी, लेकिन आरोप है कि पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। जिस कारण एक मासूम लड़की ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।


इस मामले पर मृतका मनु के पिता कुलविंदर सिंह ने बताया कि उनकी बेटी मनु की उम्र 21 साल थी। उन्होंने पिछले साल ही मनु को मलेशिया भेजा था। उन्होंने बताया कि आरोपियों में से एक लड़का उनकी बेटी को अक्सर परेशान करता था जिससे तंग आकर उन्होंने कर्ज उठा कर अपनी बेटी को पिछले साल मलेशिया भेज दिया।  
लेकिन आरोपी उनकी बेटी को मलेशिया में भी परेशान करने लगा जिसकी शिकायत उन्होंने बरनाला पुलिस को दी थी लेकिन आरोप है कि कोई सुनवाई नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी अपनी मां को आरोपियों द्वारा परेशान करने पर बताया था। उन्होंने आरोपियों के नाम भी बताए हैं। कुलविंदर का खाना है की दोनों उसके बेटी की तस्वीर से छेड़छाड़ कर उसे वायरल करने की धमकी भी देते थे।


मामले पर बरनाला के एसपी गुरदीप सिंह ने बताया कि 2 आरोपियों के खिलाफ अलग अलग धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है और आरोपी अभी फरार हैं जिनकी गिरफ्तारी जल्द ही की जाएगी।


1000 करोड़ रुपये की हेरोइन की नष्ट

नई दिल्ली। सीमा शुल्क विभाग के अधिकारियों ने यहां एक हजार करोड़ रुपए मूल्य की हेरोइन नष्ट की। शुक्रवार को जारी एक आधिकारिक वक्तव्य में यह जानकारी दी गई। वक्तव्य में कहा गया कि एक उच्च स्तरीय समिति ने 24 जनवरी को 207.109 किलोग्राम हेरोइन नष्ट की। नष्ट की गई हेरोइन विभाग ने 15 मामलों में 2004 से 2010 के बीच जब्त की थी। सीमा शुल्क अधिकारियों ने वक्तव्य में कहा, “नष्ट किए गए मादक पदार्थ का बाजार में वर्तमान मूल्य एक हजार करोड़ रुपए है।” मादक पदार्थ को पर्यावरण को बिना नुकसान सीमा शुल्क अधिकारियों ने वक्तव्य में कहा, “नष्ट किए गए मादक पदार्थ का बाजार में वर्तमान मूल्य एक हजार करोड़ रुपए है।” मादक पदार्थ को पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए नष्ट किया गया।


दिल्ली सीमा शुल्क: सीमा शुल्क निवारक आयुक्तालय ने निर्धारित समय के अनुसार दिल्ली के निलोठी में निर्दिष्ट स्थल पर 207.109 किलोग्राम हेरोइन को नष्ट कर दिया। नष्ट की गई दवाओं का अनुमानित बाजार मूल्य लगभग 1000 करोड़ रुपये है।


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फिल्म 'जानू आई लव यू' का फर्स्ट लुक रिलीज  कविता गर्ग  मुंबई। निर्माता रत्नाकर कुमार, सुपरस्टार अक्षरा सिंह और विक्रांत सिंह राजपूत ...