भारत में मूंग ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौसम में उगाया जाता है। यह कम समय में पकने वाली मुख्य दलहनी फसल है। इसका उपयोग प्रमुख रूप से आहार में किया जाता है। यह प्रोटीन का बहुत अच्छा श्रोत माना जाता है। मूंग में 24 से 26 प्रतिशत प्रोटीन, 55 से 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 1.3 प्रतिशत वसा पाई जाती है। इसके तने में नाइट्रोजन की गाठें पाई जाती है, जिनके कारण यह मृदा को भी नाइट्रोजन प्रदान करने में सक्षम है। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि ग्रीष्म मूंग उत्पादन में प्रमुख राज्य हैं। धान, गेहूँ फसलचक्र वाले खेतों में भूमि की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए भी इसकी खेती की जाती है।
जलवायु:- मूंग की फसल हर मौषम में उगाई जाती है। उत्तर भारत में इसे ग्रीष्म काल में उगाया जाता है। वहीं दक्षिण भारत में इसे रविफसल के साथ उगाते हैं। ऐसे क्षेत्र जहाँ 60-70 सेमी वर्षा होती है, इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। फली बनते समय और पकते समय वर्षा हो तो दाने सड़ जाते हैं जिससे काफी हानि हो सकती है। उत्तरी भारत में इसे वसंत ऋतु में भी उगाया जाता है। अच्छी पैदावार हेतु अंकुरण के समय 25 डिग्री तथा वृद्धि के समय 20-40 डिग्री तापमान उचित होता है।
भूमि:- इसके लिए दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होता है। इसकी खेती मटियार और बलुई मिट्टी में भी की जाती है। जिनका Ph 7 से 7.5 होना चाहिए। जल निकास की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
उन्नत किस्में:- टाइप -44, मूंग एस- 8, पूसा विशाल, पूसा रतन, पूसा 0672, पूसा-9531, मूंग जवाहर 45, पी एस 16 ,पी एस 10, मूंग पूसा बैसाखी, पंत मूंग 1, पंत मूंग 2 आदि।
मूंग की बुआई का समय एवं खेत की तैयारी।
बुआई का समय:- खरीफ मूंग को जून 15 से जुलाई 15 तक बोना उपयुक्त माना जाता है। ग्रीष्कालीन को मार्च 15 से अप्रैल 15 तक बुआई कर देनी चाहिए। देरी से बुआई पर कम फलियों की आशंका बनी रहती है।
खेत की तैयारी:- खरीफ की फसल के लिए एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए और वर्षा प्रारंभ होते हीं 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल कर दें। दीमक से बचने हेतु ‘कार्बेंडाजिम‘ का उपयोग करें। मिट्टी से जनित अन्य रोगों के लिए ‘थायरम‘ का भी उपयोग कर सकते हैं।
जैविक बीजोपचार:- बीज शोधन के 2 से 3 दिन बाद बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।
बीज की मात्रा:- सीड ड्रील या देशी हल के पीछे चोंगा बांधकर पंक्तियों में हीं बुआई करें। खरीफ के लिए कतार 45 cm तथा बीज 15 kg प्रति हेक्टेयर और ग्रीष्म के लिए 20-25 kg प्रति हेक्टेयर रखते हैं।
अंतरवर्तीय खेती:- बसंतकालीन गन्ने के साथ अंतरवर्तीय खेती करना अत्यंत लाभदायक रहता है। बसंतकालीन गन्ने को 90 cm की दूरी पर बोते हैं तथा बीच में इसकी बुआई करते हैं। इसमें बीज की मात्रा 8 से 10 kg प्रति हेक्टेयर रखते हैं।
खाद:- मूंग के लिए, नाइट्रोजन, फास्फोरस, जिंक की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की पूर्ति के लिए डी ए पी भी दिया जा सकता है।
पैदावार:- यदी पैदावार अच्छी हो तो आप प्रति एकड़ 3-4 कुंतल मूंग प्राप्त कर सकते हैं।
इसकी खेती से औसतन 40-50 हज़ार रूपर प्रति एकड़ की कमाई की जा सकती है।
सरकारी नीति:- मौजूदा सरकार ने स्वामीनाथन कमीशन की एक रिपोर्ट को लागू करते हुए यह घोषणा की है, मूंग तथा कुछ अन्य फसलों के लागत मूल्य से डेढ़ गुणा कीमत पर खरीदेगी।