सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

काला तीतर

पेंटेड फ़्रैंकोलिन (मराठी:काला तीतर) (Painted Francolin) (Francolinus pictus) फ़्रैंकोलिन जाति का एक पक्षी है जो मध्य और दक्षिणी भारत के घास के इलाकों में और दक्षिण-पूर्व श्रीलंका के निचले इलाकों में पाया जाता है। क्योंकि यह पक्षी हिन्दी भाषी प्रदेशों में नहीं पाया जाता है इसलिए इसका हिन्दी नाम भी नहीं है। लेकिन पश्चिमी तथा दक्षिणी भारतीय भाषाओं और सिंहला भाषा में इस पक्षी का नाम है। प्रजनन काल में यह पक्षी अपनी तेज़ आवाज़ के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। यह काले तीतर की मादा से थोड़ा भिन्न दिखता है क्योंकि इसके गर्दन के किनारों में लाल रंग नहीं होता है। यह एक मध्यम आकार का पक्षी है जिसकी लंबाई तक़रीबन ३० से.मी. होती है और वज़न लगभग ३१० से ३७० ग्राम होता है। कई क्षेत्रों में यह अपना इलाका काले तीतर के साथ सांझा करता है और ऐसा मानना है कि कहीं-कहीं यह आपस में प्रजनन भी करते हैं।


अनियंत्रित प्रदूषण के प्रति सकारात्मकता

अनियंत्रित प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में सकारात्मक प्रयास उपयोग में लाने की आवश्यकता है  पर्यावरण अत्याधिक प्रदूषित होता जा रहा है! जिसका जन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है!


निवारणात्मक भूमिका:-इसका अर्थ है कि व्यावसायिक इकाईयाँ ऐसा कोई भी कदम न उठाए, जिससे पर्यावरण को और अधिक हानि हो। इसके लिए आवश्यक है कि व्यवसाय सरकार द्वारा लागू किए गए प्रदूषण नियंत्रण संबंधी सभी नियमों का पालन करे। मनुष्यों द्वारा किए जा रहे पर्यावरण प्रदूषण के नियंत्रण के लिए व्यावसायिक इकाईयों को आगे आना चाहिए।


उपचारात्मक भूमिका:-इसका अर्थ है कि व्यावसायिक इकाइयाँ पर्यावरण को पहुँची हानि को संशोध्ति करने या सुधरने में सहायता करें। साथ ही यदि प्रदूषण को नियंत्रित करना संभव न हो तो उसके निवारण के लिए उपचारात्मक कदम उठा लेने चाहिए। उदाहरण के लिए वृक्षारोपण ; वनरोपण कार्यक्रमद्ध से औद्योगिक इकाईयों के आसपास के वातावरण में वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र


जागरूकता संबंधी भूमिका:-इसका अर्थ है लोगों को (कर्मचारियों तथा जनता दोनों को) पर्यावरण प्रदूषण के कारण तथा परिणामों के संबंध में जागरूक बनाएँ, ताकि वे पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने की बजाय ऐच्छिक रूप से पर्यावरण की रक्षा कर सकें। उदाहरण के लिए व्यवसाय जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करे। आजकल कुछ व्यावसायिक इकाईयां शहरों में पार्कों के विकास तथा रखरखाव की जिम्मेदारियाँ उठा रही हैं, जिससे पता चलता है कि वे पर्यावरण के प्रति जागरूक हैं।


सन्दर्भ:-प्रदुषण एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा बन गया है क्योकि यह हर आयु वर्ग के लोगों और जानवरों के लिए स्वास्थ्य का खतरा है। हाल के वर्षों में प्रदूषण की दर बहोत तेजी से बढ़ रही है क्योकि औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ सीधे मिट्टी, हवा और पानी में मिश्रित हो रहीं हैं। हालांकि हमारे देश में इसे नियंत्रित करने के लिए पूरा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसे गंभीरता से निपटने की जरूरत है अन्यथा हमारी आने वाली पीढ़ी बहोत ज्यादा भुगतेगी।


प्रदूषण प्राकृतिक संसाधनों के प्रभाव के अनुसार कई श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है जैसे की वायु प्रदूषण, भू प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि| प्रदूषण की दर इंसान के अधिक पैसे कमाने के स्वार्थ और कुछ अनावश्यक इच्छाओं को पूरा करने की वजह से बढ़ रही है। आधुनिक युग में जहाँ तकनीकी उन्नति को अधिक प्राथमिकता दी जाती है वहां हर व्यक्ति जीवन का असली अनुशासन भूल गया है।


लगातार और अनावश्यक वनो की कटौती, शहरीकरण, औद्योगीकरण के माध्यम से ज्यादा उत्पादन, प्रदूषण का बड़ा कारण बन गया है। इस तरह की गतिविधियों से उत्पन्न हुआ हानिकारक और विषैले कचरा, मिट्टी, हवा और पानी के लिए अपरिवर्तनीय परिवर्तन का कारण बनता है जोकि अंततः हमें दुःख की ओर अग्रसर करता है| यह बड़े सामाजिक मुद्दे को जड़ से खत्म करने और इससे निजात पाने के लिए सार्वजनिक स्तर पर सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम की आवश्यकता है।


कड़वापन से जो मशहूर है

करेला बेल पर लगने वाली सब्जी है। यह आम तौर पर मार्च के अंत में और अप्रैल के शुरू में उत्तर भारत के सब्जी मंडियों में दिखने लगता है। वैसे आजकल किसी भी फल या सब्जी के लिए तय कुदरती महीनों का कोई औचित्य नहीं रह गया क्योंकि अब यह पूरे साल मिलते हैं। फिर भी प्राकृतिक रूप से करेला जायद की फसल का हिस्सा है। इसका रंग हरा होता है। इसकी सतहकरेला  पर उभरे हुए दाने होते हैं। इसके अंदर बीज होते हैं। करेला पक जाये तो बीज लाल हो जाते हैं। जब तक पकता नहीं तब तक बीज सफेद रहते हैं। सब्जी और औषधि के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कच्चा करेला ही ज्यादा मुफीद होता है।


करेला अपने गुणों के लिए पहले प्रसिद्धि कम पाता रहा है बल्कि अपने कड़ुवे स्वाद के कारण काफी जाना जाता रहा है लेकिन जब तमाम लाइफस्टाइल बीमारियों ने खासकर मधुमेह और रक्तचाप ने बड़ी तादाद में लोगों को दबोचा है तब से करेले को उसके कड़ुवे स्वाद की बजाय मीठे गुणों की बदौलत उपयोग के अलावा सब्जी के रूप में इसका अच्छा खासा उपयोग होता है वहां 15-16 तरीके से करेले बनाने की विधियां मौजूद है। कहने का मतलब यह है कि ज्यादा लोकप्रिय न होने के बावजूद भी करेले में तमाम संभावनाएं लोगों ने सदियों पहले ढूंढ़ ली थीं। गर्मियों में खासकर अरहर उत्पादक क्षेत्रों में भरवां करेले और अरहर की दाल बहुत शौक से खाई जाती है। भिंडी करेले, प्याज करेले, आलू करेले, करेला अचार, आम करेला जैसी तमाम करेले के व्यंजन काफी मशहूर हैं। कानपुर, लखनऊ, बनारस, पटना के इलाकों में गर्मियों में करेले की भुजिया बहुत शौक से खाई जाती है। मगर सबसे ज्यादा करेले का जो व्यंजन मशहूर है वह भरवां करेला ही है।


लेकिन अब करेले को खान-पान से ज्यादा उसके औषधीय गुणों के चलते सम्मान मिल रहा है। यहां तक कि जो लोग करेले की सब्जी को शौक से नहीं खाते वह भी इसके अचूक औषधीय गुणों के चलते मुरीद हैं। कुछ लोग करेले में कई तरह के स्वाद विकसित करना जानते हैं। करेले के कड़ुवेपन को दूर करने के लिए इसे चीरकर इसमें नमक भरकर कुछ घंटों तक रखने का चलन है, बाद में धोकर इसकी सब्जी बनायी जाती है। तब तक करेला का कड़ुवापन या कहे कसैलापन काफी दूर हो जाता है। बुंदेलखंड इलाके में करेले को चूने के पानी से भी धोकर इसके कड़ुवेपन को दूर कर लिया जाता है।


करेला एक लोकप्रिय सब्ज़ी है। करेले का जन्म स्थान पुरानी दुनिया के उष्ण क्षेत्र अफ्रीका तथा चीन माने जाते हैं। करेले का वानस्पतिक नाम मिमोर्डिका करन्शिया है। यहाँ से इनका वितरण संसार के अन्य भागों में हुआ। भारत में इसकी जंगली जातियाँ आज भी उगती हुई देखी गयी हैं। करेले की खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती है। इसका फल तथा फलों के रस को दवाओं के लिए भी प्रयोग किया जाता है।


कड़वे स्वाद वाला करेला ऐसी सब्जी है, जिसे अक्सर नापसंद किया जाता है। लेकिन, अपने पौष्टिक और औषधीय गुणों के कारण यह दवा के रूप में भी काफी लोकप्रिय है। इस मौसम में इसका नियमित सेवन ठंडक भी प्रदान करता है।करेला विभिन्न आकार-प्रकार में पाया जाता है| इसकी चाइनीज वेरायटी 20 से 30 सेंटीमीटर लंबी होती है| वहां पैदा होने वाला करेला हरे के ऊपर हल्का पीला रंग लिए होता है जो किनारों की ओर मुड़ा हुआ नुकीला और खुरदुरा होता है| इसका रंग हरे के साथ सफेद लिए भी देखा गया है|


करेला एक लता है जिसके फलों की सब्जी बनती है। इसका स्वाद कड़वा होता है। व्यापक रूप से यह  खाद्य फल है, जो सबसे सभी फलों का कड़वा बीच में है के लिए एशिया, अफ्रीका और कैरिबियन में बढ़ा है| वहाँ कई किस्में है कि और फलों की आकृति कड़वाहट में काफी अलग हैं| इस कटिबंधों के एक संयंत्र है, लेकिन इसकी मूल देशी सीमा अज्ञात है|


चावल की एक उत्कृष्ट किस्म

बासमती (अंग्रेज़ी: Basmati, IAST: bāsmatī, उर्दू: باسمتى) भारत की लम्बे चावल की एक उत्कृष्ट किस्म है। इसका वैज्ञानिक नाम है ओराय्ज़ा सैटिवा। यह अपने खास स्वाद और मोहक खुशबू के लिये प्रसिद्ध है। इसका नाम बासमती अर्थात खुशबू वाली किस्म होता है। इसका दूसरा अर्थ कोमल या मुलायम चावल भी होता है। भारत इस किस्म का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसके बाद पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश आते हैं। पारंपरिक बासमती पौधे लम्बे और पतले होते हैं। इनका तना तेज हवाएं भी सह नहीं सकता है। इनमें अपेक्षाकृत कम, परंतु उच्च श्रेणी की पैदावार होती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय और भारतीय दोनों ही बाजारों में ऊँचे दामों पर बिकता है। बासमती के दाने अन्य दानों से काफी लम्बे होते हैं। पकने के बाद, ये आपस में लेसदार होकर चिपकते नहीं, बल्कि बिखरे हुए रहते हैं। यह चावल दो प्रकार का होता है :- श्वेत और भूरा। कनाडियाई मधुमेह संघ के अनुसार, बासमती चावल में मध्यम ग्लाइसेमिक सूचकांक ५६ से ६९ के बीच होता है, जो कि इसे मधुमेह रोगियों के लिये अन्य अनाजों और श्वेत आटे की अपेक्षा अधिक श्रेयस्कर बनाता है।


स्वाद और गंध तथा प्रजातियां
बासमती चावल का एक खास पैन्डन (पैन्डेनस एमारिफोलियस पत्ते) का स्वाद होता है। यह फ्लेवर (स्वाद+खुशबू) रसायन २-एसिटाइल-१-पायरोलाइन[4] के कारण होता है।


बासमती की अनेक किस्में होती हैं। पुरानी किस्मों में – बासमती-३७०, बासमती-३८५ और बासमती-रणबिरसिँहपुरा (आर.एस.पुरा), एवं अन्य संकर किस्मों में पूस बासमती 1, (जिसे टोडल भी कहा जाता है) आती है। खुशबूदार किस्में बासमती स्टॉक से ही व्युत्पन्न की जाती हैं, परन्तु उन्हें शुद्ध बासमती नहीं माना जाता है। उदाहरण के लिए पीबी२ (जिसे सुगन्ध-२ भी कहते हैं), पीबी-३ एवं आर.एच-१०। नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, पूसा संस्थान, ने एक परंपरागत बासमती की किस्म को शोधित कर एक संकर किस्म बनाई, जिसमें बासमती के सभी अच्छे गुण हैं और साथ ही यह पौधा बहुत छोटा भी है। इस बासमती को पूसा बासमती-१ कहा गया। पी.बी.-१ की उपज/पैदावार अन्य परंपरागत किस्मों से अपेक्षाकृत दुगुनी होती है। काला शाह काकू, में स्थित पाकिस्तान के चावल अनुसंधान संस्थान बासमती की कई किस्में विकसित करने में कार्यरत रहा है। इसकी एक उत्कृष्ट किस्म है सुपर बासमती, जो कि डॉ॰मजीद नामक एक वैज्ञानिक ने १९९६ में विकसित की थी। यहीं विकसित हुआ विश्व का सबसे लम्बा चावल दाना, जिसे पाकिस्तान कर्नैल बासमती कहा गया। इसकी औसत लम्बाई कच्चा: ९.१ मि.मि. और पका हुआ: १८.३ मि.मि. होती है।


इसके साथ अन्य अनुमोदित किस्मों में कस्तूरी (बरान, राजस्थान), बासमती १९८, बासमती २१७, बासमती ३७०, बासमती ३८५, बासमती ३८६, कर्नैल (पाकिस्तान), बिहार, देहरादून, हरियाणा, कस्तूरी, माही सुगन्ध, पंजाब, पूसा, रणबीर, तरओरी हैं। कुछ गैर-परंपरागत खुशबूदार संकर किस्में भी होती हैं, जिनमें बासमती लक्षण हैं।


यम द्वितीय --भैया दूज

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पूर्व काल में यमुना ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप-मुक्त होकर सब बंधनों से छुटकारा पा गये और सब के सब यहां अपनी इच्छा के अनुसार संतोष पूर्वक रहे। उन सब ने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इसीलिए यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई। जिस तिथि को यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था, उस तिथि के दिन जो मनुष्य अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है उसे उत्तम भोजन समेत धन की प्राप्ति भी होती रहती है।


पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करके यमुना में स्नान करने वाला मनुष्य यमलोक को नहीं देखता (अर्थात उसको मुक्ति प्राप्त हो जाती है)।


विधि एवं निर्देश:-समझदार लोगों को इस तिथि को अपने घर मुख्य भोजन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी बहन के घर जाकर उन्हीं के हाथ से बने हुए पुष्टिवर्धक भोजन को स्नेह पूर्वक ग्रहण करना चाहिए तथा जितनी बहनें हों उन सबको पूजा और सत्कार के साथ विधिपूर्वक वस्त्र, आभूषण आदि देना चाहिए। सगी बहन के हाथ का भोजन उत्तम माना गया है। उसके अभाव में किसी भी बहन के हाथ का भोजन करना चाहिए। यदि अपनी बहन न हो तो अपने चाचा या मामा की पुत्री को या माता पिता की बहन को या मौसी की पुत्री या मित्र की बहन को भी बहन मानकर ऐसा करना चाहिए। बहन को चाहिए कि वह भाई को शुभासन पर बिठाकर उसके हाथ-पैर धुलाये। गंधादि से उसका सम्मान करे और दाल-भात, फुलके, कढ़ी, सीरा, पूरी, चूरमा अथवा लड्डू, जलेबी, घेवर आदि (जो भी उपलब्ध हो) यथा सामर्थ्य उत्तम पदार्थों का भोजन कराये। भाई बहन को अन्न, वस्त्र आदि देकर उससे शुभाशीष प्राप्त करे।


राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 तो विचार विनिमय क्या है? भगवान राम का जीवन कितना विचित्र रहा है! विभिन्न राजा महाराजा उनके दर्शनार्थ विचारार्थ और उनके समीप आते रहते! एक समय सुबाहू राजा भगवान राम के दर्शनार्थ पंचवटी में आए और यह विचार-विनिमय करने लगे कि प्रजा में संग्रह की प्रवृत्ति का निराकरण कैसे हो? उन्होंने राम से कहा कि मैं कृषि उद्गम द्वारा अपने उधर की पूर्ति करता हूं, गृह स्वामिनी से भी यही कहता हूं! परंतु मैं प्रजा की उस संग्रह प्रवृत्ति को समाप्त नहीं कर सकता हूं! क्योंकि जब मेरे हृदय में संग्रह की प्रवृत्ति बनी हुई है! प्रजा की भी संग्रह की प्रवृत्ति बनी हुई है! मानो जब संग्रह की प्रवृत्ति राजा में आती जा रही है तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि रक्त भरी क्रांति का संचार हो जाएगा! भगवान मेरे राष्ट्र में संप्रदाय का एक स्त्रोत बह रहा है! प्रभु के नाम पर नाना संप्रदाय हैं! नाना प्रकार की कृतियां बन रही है! भगवान राम ने कहा राजन तुम चाहते क्या हो? उन्होंने कहा प्रभु, मैं अपने राष्ट्र को महान बनाना चाहता हूं! तो उस समय भगवान राम ने यह कहा कि तुम्हारे राष्ट्र में वैदिकता होनी चाहिए! सबसे प्रथम तो प्रजा में धर्म के नामों पर प्रभु के नामों पर नाना प्रकार के साधन की स्थलीय नहीं रहनी चाहिए! क्योंकि नाना प्रकार के स्वरों की स्थलीय बनी रहेगी तो उसके बनने का परिणाम यह होगा कि तुम्हारा राष्ट्र रक्त भरी क्रांति में संचालित हो जाएगा! तुम्हारा एक वैदिक प्रसार होना चाहिए! हमारे ऋषि-मुनियों ने एक पद्धति का निर्माण किया है! उन्होंने कहा है कि राजा के राष्ट्र में प्रजा में समाज में पांच प्रकार का पंचीकरण परमात्मा के नामों पर होना चाहिए! वह पंचीकरण कौन सा है? प्रातः कालीन देखो प्रत्येक ग्रह में ब्रह्मा का चिंतन होना चाहिए! पति-पत्नी ब्रह्मा का चिंतन करने वाले हो! उसके पश्चात प्रातः कालीन देव पूजा होनी चाहिए! सुगंधी होनी चाहिए! प्रत्येक ग्रह में वेद ध्वनि होनी चाहिए और देखो अन्याधान करके यज्ञ होना चाहिए! उन्होंने कहा बहुत प्रियतम और तृतीय यह है कि अतिथि सत्कार होना चाहिए! कोई भी अतिथि आए उस को भोजन कराना और बलि वैशया करना, भोजनालय में मेरी प्यारी माता प्रत्येक प्राणी का भोग निर्धारित कर देती है! तो मानो यह पंचीकरण कहलाता है! इस पंचीकरण में राजा के राष्ट्र में जो प्रत्येक ग्रह, पति-पत्नी है, बालक है! वह सब इस सूत्र में पिरोए हुए होने चाहिए! प्रभु का चिंतन तो प्राय: करना चाहिए! परंतु जब भी समय मिले तो सवाध्याय करें! समय मिले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, समय मिले तो देखो ब्रह्मवर्चोसी बने तो ब्राह्मण का क्रियाकलाप होना चाहिए! प्रजापति राजा को अपने संग्रह की प्रवृत्ति को त्याग देना चाहिए! चिंतन करता है प्रात: कालीन अग्नि का ध्यान करके वह अग्नि में प्रदान करता है! अपनी भावनाओं से उसके पश्चात उसी पंचीकरण में कोई अतिथि आ गया है! उसकी सेवा करना उसको अन्नादि देना, कोई पुरोहित आ जाए! उससे उपदेश लेना प्रारंभ करें! मानव सत्संग की प्रतिभा तुम्हारे हृदय में रहनी चाहिए! इसी प्रकार देखो अतिथि सेवा पंचीकरण में मानव का राष्ट्र परिवर्तित होता है! यह नाना प्रकार की आभा में नियुक्त नहीं रहना चाहिए! संग्रह की प्रवृत्ति को त्याग देता है! एक मानव है जो वृक्ष के नीचे अपना स्थान बना देता है! उसकी छाया में रहता है मानो वह राजा है! वह अपने में संग्रह करने की प्रवृत्ति में रहने का प्रयास करता है! एक स्वयं क्रियाकलाप करने वाला स्वयं का उद्गम करने वाला है! उसको पान करता है वह जो पवित्र अन्न को ग्रहण करता है! वह मानव पाप के मूल में ले जाता है! पवित्र अन्न को ग्रहण करना है!


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस    (हिंदी-दैनिक)


October 29, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-86 (साल-01)
2. मंगलवार ,29 अक्टूबर 2019
3. शक-1941, कार्तिक-शुक्ल पक्ष, तिथि- दूज  (यम द्वितीय) संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:23,सूर्यास्त 05:53
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-29+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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