संपादकीय लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
संपादकीय लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

व्रत 'संपादकीय'

व्रत     'संपादकीय'            

आर्यवृत राष्ट्र में सनातन संस्कृति में अध्यात्म का विशेष स्थान है। जिस प्रकार पूजा-अर्चना और पर्वों ने स्थाई रूप धारण कर लिया है। विभिन्न धारणाओं के कारण सनातन संस्कृति विविधताओं से परिपूर्ण है। इसी कड़ी में जगत आधार जग-जननी दुर्गा माता की निरंतर 9 दिनों तक विभिन्न रूपों की पूजा, नवरात्रें संपूर्ण देश में हर्षोल्लास के साथ मनाए जातें है। यह सनातन सभ्यता का अद्भुत विहंगम दृश्य है। इसी के साथ कई कुप्रथा भी फलने-फूलने लगी है। उत्सव के स्वरूप का अधिकांशतः भाग हुड़दंग में रूपांतर हो रहा है। प्रश्न यह है कि अध्यात्म से अशांत वातावरण का क्या संबंध हैं ?
अध्यात्म आत्मचिंतन का घोषक है। आत्म मंथन के उत्सव में बहुतायत में लोग उपवास रखते हैं। उपवास से शारीरिक संरचना को कई लाभ होते हैं। किंतु उपवास के पर्यायवाची व्रत का भाव दोनों शब्दों में परस्पर भेदभाव करता है। व्रत का भाव संकल्प के रूप में दृष्टिपात किया जाता है।
कोई निश्चय करने का निर्धारित समय नवरात्रों को मान लेना अनुचित नहीं होगा। व्रत की धारणा और अर्थ पर विचार करने की आवश्यकता है। पवित्रतम नवरात्रें निश्चय और संकल्प को व्रत के रूप में धारण करने की प्रेरणा और सर्वश्रेष्ठ स्रोत है।कल्याण कार्यों से विमुख, कदाचार, दूर्व्यसनों  को त्यागने का निश्चय किया सकता है। प्राकृतिक समस्याओं के विरुद्ध प्रक्रियात्मक संकल्प किया जा सकता है। सदाचार-उपकार और व्यवहार से जुड़े निश्चय कियें जा सकतें हैं। उपासना का स्वरूप सर्वदा निराकार है।
किंतु इसके विपरीत व्रत पूर्ण रूप से साकार है। शक्तिमान महाकाली, गोरी आदि रूपों में देवी प्रत्येक नवरात्रें का व्रत का पातन करने वाला सजीव उदाहरण प्रस्तुत करती है। संस्कृति और सभ्यता के विरुद्ध उत्पन्न होने वाले विकारों का नाश करती हैं। तपस्या, साधना और इच्छाशक्ति का दैविक उदाहरण देती है। संयम, दृढ़ता और त्याग के लिए प्रेरित करती है। सर्वशक्तिमान होने के बाद भी दया, क्षमा और उदारता का प्रतीक बनी रहती है। निश्चय के साथ किए गए संकल्प का सुरक्षित रूप से धारण और निर्वाह ही व्रत का वास्तविक स्वरूप है। व्रत धारण किए बिना कोई व्यक्ति शक्ति प्राप्त नहीं कर सकता है। शक्ति का संचय और संचालन, दोनों स्थिति में व्रत धारण करना होता है। अध्यात्म का मुख्य द्वार व्रत है। यदि अध्यात्म से संबंध बनाना है, शक्ति का संचय करना, मानसिक, दैहिक और सभी क्षेत्र के विकास से जुड़ना है, तो व्रत को आत्मसात करना अनिवार्य है। इसके बिना आप की उपासना कोरा दिखावा है। जो स्वेच्छा पूर्ति का परिमार्जन है। वास्तविक उपासना से प्राप्त आनंद विहिन हैं।

चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'      

सोमवार, 4 अप्रैल 2022

अराजकता-लोकतंत्र 'संपादकीय'

अराजकता-लोकतंत्र      'संपादकीय' 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का दुरुपयोग के भिन्न युग का शुभारंभ हो गया है। इस युग का कोई नामकरण तो नहीं किया गया हैं‌। परंतु, यदि इस युग की प्रवाह पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो भाजपा के पतन का बीज अंकुरित होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र प्रगतिशीलता के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। लोकसभा में प्रति विधेयक पारित होने से पूर्व राष्ट्र और जनहित की कसौटी पर परखा जाता है। यह दूर दृष्टिकोण राष्ट्र प्रगति का आधार स्तंभ है। खामी इंसान का स्वाभाविक गुण है, लेकिन सुधार का नजरिया गलती शेष रहने का आभास खत्म कर देता है। भाजपा दल के दोनों शीर्ष नेता (मोदी-योगी) जनकल्याण और राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित भाव से सेवारत हैं। इसी मगन शीलता के चलते इसके विपरीत भाजपा के जनप्रतिनिधियों ने संयम का तर्पण कर दिया है। निरंकुश विचार बुद्धि पर हावी हो गए हैं। संवैधानिक और लोकतंत्र के चीर हरण करने पर आमादा हो गए हैं। इसमें नौकरशाही भी संविधान और गणराज्य की मर्यादा लांघकर सहयोग की भावना से साथ-साथ कदम ताल ठोक रहे हैं। उदासीनता का इससे बड़ा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। गाजियाबाद के जनप्रतिनिधियों के पत्रों, व पत्रों में अंकित आदेश स्पष्ट रूप से रूढ़िवादिता के पक्षकार है। शिक्षित समाज का यह भी एक घिनौना चेहरा है। 21वीं शताब्दी में भारतीयों ने किसी प्रकार छुआछूत से तो छुटकारा पा लिया है। लेकिन भेदभाव का जहर अधिक विषाक्तता बनता जा रहा है। मौलिक अधिकारों का दमन किया जा रहा है। सामाजिक सौहार्द और आपसी भाईचारे के विरुद्ध दरार और गहरी करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रभावित सहयोगी सरकारी अधिकारी अकारण ही मुंछो पर ताव दे रहे है। तलवे चाटने की कहावत सिद्ध करने से क्या लाभ ? जनता सब कुछ जानती है। समय रहते ही विभागीय सहायक आयुक्त ने नियंत्रणात्मक प्रक्रिया का उपयोग किया। 
परंतु तानाशाही का यह मंजर तो और भी खौफनाक लगता है। भ्रष्टाचार की परत खोलने पर बलिया के जिलाधिकारी ने सूचना प्रदान करने वाले पत्रकारों को कारागार भिजवा दिया। वैसे तो पत्रकार समाज को अधिकारियों से सहयोग की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यदि अपेक्षा रखोगे तो खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इसके विपरीत संबंधित अधिकारी की लापरवाही व हिस्सेदारी को जनता में उजागर करने का प्रयास करना चाहिए। न्याय की अपेक्षा भी बेईमानी होगी। दलालों के लिए सुविधाएं होती होगी, कलमकारों के लिए नहीं होती हैं। पत्रकारिता का वास्तविक स्वरूप संघर्ष हैं, जहां समाज और राष्ट्र में व्याप्त बुराईयों के खिलाफ जंग लड़नी होती हैं। 
हाल ही में घटने वाली घटनाएं गणराज्य की नींव में दीमक के समान है। उत्तर प्रदेश में प्रशासन की लापरवाही स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। लापरवाह प्रशासनिक अधिकारी और अपराधी जनता के साथ खुलेआम लूट-खसौट पर उतर आए हैं। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि अपेक्षाकृत प्रक्रिया में संलिप्त हो गए हैं। गणराज्य की गरिमा को तार-तार करने की शुरुआत, प्रतीत हो रहा है उत्तर प्रदेश से ही होगी। न्यायपालिका को उत्तर प्रदेश की संवेदनशीलता पर स्वत: संज्ञान लेने की आवश्यकता है।
राधेश्याम    'निर्भयपुत्र'

बुधवार, 30 मार्च 2022

हरा कबूतर 'संपादकीय'

हरा कबूतर     'संपादकीय' 

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जनपद का ज्यादातर उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से मिलता है। जिसके कारण यह कुल क्षेत्र घनी-सघन आबादी वाला क्षेत्र है। औद्योगिक एवं व्यापारिक गतिविधियों के ताने-बाने में पूरी तरह डल गया है। प्रति मीटर प्रति व्यक्ति की दर का संभावित अनुमान भी बेईमानी ही साबित होगी। इसी के साथ सघन आबादी में इस विशेषता को यथावत बनाऐं रखने में प्रदूषण का प्रकोप देश में प्रथम स्थान की रेस में पहला स्थान प्राप्त करके इस कीर्तीमान को बनाए रखने का प्रयास जारी है।

जलवायु परिवर्तन, कार्बनिक उत्सर्जन और घने शोर-शराबे ने ज्यादातर पक्षियों को पलायन के लिए विवश कर दिया। ज्यादातर पक्षी क्षेत्र छोड़कर नये स्थान पर चले गये हैं। कुछेक जो नहीं जा सके, उन्हें मानव स्वार्थ द्वारा रचित जंजाल में घुट-घुट कर मरने को विवश कर दिया गया है। यह हाल एक विशेष क्षेत्र का नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन पर प्रत्येक वर्ष एक नई नीति और संकल्प निर्धारित किए जाते हैं। लेकिन मानव स्वार्थचित बुद्धि विकास के नाम पर प्राकृतिक बदलाव करने पर तुली रहती है। 
हमारे देश में प्रतिदिन सैकडो वृक्ष विकास के नाम पर खत्म कर दिए जाते हैं। विकास एक ऐसा राक्षस है जो सैकडो वर्षों से धरती पर जीवर रचने वाले मूल आधार के विनाश पर लगे हुए हैं। वृद्ध वृक्ष इस धरती पर जीवन रचना का आधार है। धरती पर जीवन रचना के मुख्य साक्षी हैं। इसी कारण मनुष्य विकास की आड़ में इन साक्षियों की हत्या करने पर अमादा है। 
संयुक्त राष्ट्र में गत 23 मार्च को कार्बनिक उत्सर्जन एवं जलवायु परिवर्तन को लेकर एक बैठक का आयोजन किया। जिसमें जैविक विविधता संरक्षण को लेकर एक निती निर्माण निर्णय लिया गया। निती का धरातल करण में लगभग दो वर्ष लगेंगे, अथवा उससे अधिक समय भी लग सकता है। जब तक विलुप्ती के कगार पर खड़ी कई प्रजातियां अपना अस्तित्व खो चुकी होगी। प्रमाण के आधार पर  पडुंक कुल के कोलाम्बिडाए वंश के पीले पैर वाले हरे रंग के कबूतर धरती पर इंडोमलयान एवं ऑस्ट्रेलियन जैव भू-क्षेत्र में पाए जाते हैं। कोलंबिड़ाए वंश की 13 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। पीले पैरों वाले हरे कबूतर की प्रजाति के साथ कई प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर है। यह प्रजाति शत-प्रतिशत शाकाहारी होती है। 
हालात इतने बदतर है, यह प्रजाति अपनी नस्ल के संरक्षण के लिए जद्दोजहद कर रही है। भारत के एकमात्र तमिलनाडु राज्य में इसका पाया जाना इस बात की पुष्टि करता है कि इसका गृह राज्य तमिलनाडु है। यह कहना अनुचित नहीं होगा। परंतु, वहां जलवायु परिवर्तन की तेज गति ने इन कबूतरों को प्रवासी बना दिया है। जिसके कारण सामूहिक रूप से यह प्रवासी कबूतर उत्तर-भारत में ठिकाने तलाश रहे हैं। लेकिन उत्तर भारत में वृद्ध वृक्षों के कटान के लिए सरकार दृढ़ निश्चय के साथ संकल्पबद्ध हो चुकी है। राष्ट्र के विकास को ध्यान में रखकर निर्माण और विकास के कार्य किए जा रहे हैं। जिनमें हजारों-लाखों की संख्या में वृद्ध वृक्षों को नष्ट किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि इसके अलावा अन्य विकल्प नहीं है। किंतु यह किसको समझना है...?
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

रविवार, 6 मार्च 2022

कायर रूस 'संपादकीय'

कायर रूस    'संपादकीय'        

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने दुनिया के एक छोटे स्तर के देश यूक्रेन पर हमला जारी कर रखा हैं एवं यूक्रेन पर कब्जा कर रखा हैं। जिस हमले में लगभग 10 हजार लोगों की मृत्यु हुईं। रूस एक कायर प्रणाली का देश हैं। जो दुनिया को खत्म करना चाहता हैं। लेकिन, अगर दुनिया ही नहीं होगीं, तो रूस कब्जा किस पर करेगा। 'राजनीति की भूख' के लिए गरीब लोगों एवं गरीब बच्चों की हत्या मत करों। यूक्रेन में रूस के आक्रमण से कम से कम 3,000 छोटे बच्चों की भी मृत्यु हुईं हैं। दुनिया एक बहुत बड़े संकट में हैं।
जहां लगभग, 600 यूक्रेनी सैनिक भी मारें गए हैं। क्या रूस अपने-आप को एक बड़ा एवं शक्तिशाली देश समझता हैं ? तो ये उसकी सबसे बड़़ी भूल हैं। रूस एक निचली प्रणाली का भी देश हैं। क्योंकि, दुनिया पर कब्जा करना, और उस पर हत्याचार करना, एक शक्तिशाली एवं विशाल देश की सबसे बड़ी मूर्खता हैं। क्या रूस कायर हो गया हैं ? वह दुनिया पर खतरनाक परमाणु हथियारों से लगातार हमलें कर रहा हैं। दुनिया में लोगों की संख्या कम हो रहीं हैं। ऐसे में रूस किस पर राज करेगा ? 'विस्तारवादी' नीति के अनुसार, रूस एक घटिया राजनीति चल रहा हैं। रूस एक विशाल देश जरूर हैं। लेकिन, वह यूक्रेन पर कब्जा कर एक कायर एवं शक्तिहीन देश के रूप में बदल गया है।
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

शांत लहर 'संपादकीय'

शांत लहर    'संपादकीय' 
राजनीति के भेद ना समझेंं, और जो कुछ रहा अभेद। 
धन-मान गया, चली गई प्रतिष्ठा, स्वास में हो गये छेद।। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर आज भी बरकरार है, वर्तमान में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो गया है। आज उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रथम चरण का मतदान किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को सबसे अहम माना जाता है। विधान सभा चुनाव 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर के कारण कई ऐसे चेहरे विधानसभा पहुंच गए। जो अपनी छवि, समाज के प्रति की गई सेवा और स्वयं की विशेषता से कभी भी इस प्रकार लोकप्रियता प्राप्त नहीं कर सकते हैं। 
भाजपा के लिए बौखलाहट में लिया गया निर्णय दुष्परिणाम का करण बना। अकर्मण्य, कर्तव्य विमुख और झगड़ा करने वाला व्यक्ति लोकप्रियता कैसे प्राप्त कर सकता है ? वह स्वयं समस्याएं उत्पन्न करता रहता है और उन विपत्तियों के भय से भयभीत रहता है। दलगत विचारों के विरुद्ध अन्य विषय में संलिप्त रहता है। और अंत में अपने भविष्य को स्वयं गर्त में रख देता है। ऐसी स्थिति में तो यही कहा जाएगा लहर शांत हो गई है। प्रथम चरण के मतदान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 सीटों पर 2.27 करोड़ मतदाता, मतदान कर प्रत्याशियों के भाग्य बदलेगें। 
पश्चिम में मतदाताओं की प्रतिक्रिया भाजपा के प्रति अनुकूल नहीं है। भाजपा के कई प्रत्याशियों की हार सुनिश्चित हो चुकी है। इसमें आप लोग ध्रुवीकरण, एकीकरण या इसके अलावा भाजपा अथवा प्रत्याशी के प्रति जनता में रोष समझे। किंतु यह बात सत्य है, सहयोग से लहर में बने विधायक को क्षेत्र में छवि सुधारने और स्वयं को स्थापित करने का बढ़िया मौका तो मिला। लेकिन उसका सही उपयोग नहीं किया गया। परिणाम स्वरूप बागपत स्थित छपरौली विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी के साथ भीड़ के द्वारा अशोभनीय व्यवहार किया गया। लोनी से भाजपा प्रत्याशी के पुत्रों पर नारी शक्ति से अभद्र व्यवहार का आरोप निर्दलीय प्रत्याशी व पुत्रियों के द्वारा लगाया जाना। यह सब भाजपा से इतना ताल्लुक नहीं रखता है। जितना स्वयं की छवि और व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। यह सब तो ऐसा लग रहा है जैसे अध्ययन पूर्व ही परीक्षा पत्र हल करना। इसमें पार्टी का क्या दोष है ? यह तो स्वयं पर ही निर्भर करता है। जितनी अधिक निराई-गुड़ाई होती है। फसल उतनी ही सुंदर लहराती है। 
राधेश्याम  'निर्भयपुत्र'

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

भिक्षुक कौन 'संपादकीय'

भिक्षुक कौन   'संपादकीय' 
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव देश के सभी राज्यों में सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है। इस चुनाव के परिणाम केंद्रीय राजनीति को निर्धारित और प्रभावी करते हैं। यही कारण है भाजपा सरकार के केंद्रीय मंत्री यूपी चुनाव में जान झोंक रहे हैं। यदि यूपी चुनाव में परिणाम अपेक्षा के विरुद्ध रहा तो भाजपा का केंद्र से निष्कासित होना तय है। 
हालांकि भाजपा उत्तर प्रदेश में पुनः सरकार गठन करने के कगार पर है। जनता के मन में भाजपा के प्रति अभी लगाव बाकी है। या यूं भी कह सकते हैं कि सांप्रदायिक तनाव को स्थिर रखने में सफल हुए हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा मुफ्त राशन वितरण योजना लागू करके गरीबों को भिखारी बना दिया है। यह अलग बात है कि सीएम योगी स्वयं भगवा वस्त्र धारण करते हैं और भिक्षुक के रूप में स्वयं को प्रदर्शित भी करते हैं। किंतु वास्तविकता इससे बिल्कुल हटकर है। भिक्षुक हाथ में कटोरा लेकर भिक्षाटन करते हैं। यहां जनता बड़े-बड़े थैले लेकर भिक्षुक की भांति राशन वितरण केंद्रों पर लाइन लगाकर खड़ी रहती है। यदि प्रदेश का युवा वर्ग बेरोजगारी के चरम पर नहीं पहुंचता, मजदूरों और मध्यम वर्ग के व्यापारी का संवर्धन किया जाता। तो यह नौबत नहीं आती। जनता भी इस बात से वाकिफ है। 
परिणाम स्वरूप प्रदेश में एक बड़ा वर्ग भाजपा के विरुद्ध खड़ा हो चुका है। एक तरफ किसान जाट मतदाता, दूसरी तरफ मुस्लिम मतदाता। पश्चिम में भाजपा के लिए परिणाम सुखद नहीं रहेंगे। यदि यही स्थिति पूर्वांचल में रही तब भाजपा का सरकार गठन करना टेढ़ी खीर हो जाएगा। विरोधियों का अनुमानित गठजोड़ हो जाता है तो हो सकता है, भाजपा का प्रदेश से सफाया हो जाएं।
इसी डर के चलते भाजपा के केंद्रीय मंत्री दर-दर जाकर अपने पक्ष में मतदान की भिक्षा मांग रहे हैं। जनता कितनी कातर हो गई है या फिर जनता इस असमंजस में है कि मांगने वाले कई हैं। यदि कई विकल्प है तो उनमें से एक विकल्प का चयन किया जा सकता है। जनता के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। जनता को भिक्षुओं की तरह लाइन में लगाने वाले आज स्वयं भिक्षुक की भांति जनता से मतदान चाहते हैं। जनता के पास मतदान का जनतांत्रिक सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। अपने पक्ष में मतदान के लिए सभी दल हर संभव प्रयास करने में जुटा है। ऐसी स्थिति में जनता सभी भिक्षुओं को मतदान कैसे कर सकती है ?
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

शनिवार, 15 जनवरी 2022

पलायन 'संपादकीय'

पलायन     'संपादकीय'  
यह तो मेरा ही है बाबा, गेहूं-चावल सब राशन, 
जिब्हा पर गांठ बांध लो, इस पर ना हो भाषण। 

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। चुनाव की सरगर्मियां अपने चरम पर पहुंच चुकी है। चुनाव समर क्षेत्र में सभी महारथी विजय प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के दांव-पेंच और हथकंडे आजमा रहे हैं। द्वंद में प्रतिद्वंदी को पटखनी देने के लिए तत्पर है। इसी कड़ी में लगभग सभी दलों के द्वारा प्रथम चरण के मतदान वाले प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी गई है। 
सत्तारूढ़ भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ गिरता जा रहा है। जिसके पीछे महामारी, महंगाई और बेरोजगारी को बड़ा कारण माना जा रहा है। इसी कारण भाजपा से जनता का मोह भंग हो रहा है। उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से भाजपा ने सरकार का गठन कर लिया और बिना किसी रूकावट के पंचवर्षीय योजना का निर्वहन भी कर लिया। परंतु आचार संहिता लागू होते ही स्वेच्छाचारी या असंतुष्ट मंत्री और विधायको ने पार्टी से पलायन शुरु कर दिया। पार्टी प्रवक्ताओं के द्वारा तरह-तरह के जवाब दिए गए। जिनके आधार पर असंतोष की भावना प्रकट हुई है। मंत्री और विधायकों के पलायन से जनता में एक सीधा और स्पष्ट संदेश भी गया है। साधारण भाषा में भाजपा की नीतियों से जनता में आक्रोश व्याप्त है। आक्रोश की परिधि का दायरा बढ़ता देखकर समझदार राजनेताओं ने अपना मार्ग बदल लिया है। बल्कि, यूं कहिए अपना राजनीतिक कैरियर बचाने के लिए अन्य दलों का सहारा लिया जा रहा है। इसमें कहीं ना कहीं निराशा और असंतोष के कारण भाजपा परिवार बिखर रहा है। बिखरते संगठन को नियंत्रित करने की अभिलाषा में शीर्ष नेतृत्व ने स्वयं को असमंजस में फंसा हुआ महसूस किया। इसी कारण 'टिकट काटो' अभियान बंद कर दिया गया और पुराने चेहरों पर फिर से दांव लगा दिया गया। इसमें नेतृत्व का अभाव प्रतीत किया जा रहा है। क्योंकि जहां पर प्रत्याशी का बदलना जरूरी था, वहां पर उसे पुनः प्रत्याशी घोषित करना, दबाव में लिया गया एक फैसला है। जिसके परिणाम पूर्व से निर्धारित है, जिसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ेगा। 
वर्तमान विधायकों में कईयों के टिकट निश्चित रूप से कटने थे, लेकिन संगठन को विकृत होने के भय से बचाने के प्रयास में कई सीटों पर स्वयं पराजय स्वीकार कर ली गई है। वर्तमान सरकार में धर्मवाद-जातिवाद आधारित राजनीति "स्वच्छ राजनीति" पर हावी रही है। जिससे जनता का विभाजन कर पाना आसान रहा। किंतु नीतिगत रूप से एक वर्ग का शोषण भी हुआ है। वर्तमान चुनाव में मतदान का आधार जनता की मूल समस्या, चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार एवं आर्थिक सुधार को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। संप्रदायिकता, धार्मिक भावना आधारित भाषण से जनता को बरगलाने की कोशिश इस बार नाकाम रहेगी। लंबे समय से समस्या से जूझता मध्यमवर्गीय, निम्न वर्गीय व्यापारी और मजदूर वर्ग का भाजपा से मन भर चुका है। विकल्प चाहे कोई भी रहे, परंतु भाजपा स्वीकार नहीं है। केवल अपराध नियंत्रण के अलावा सरकार कुछ भी साबित कर पाने में असफल है। 
मुफ्त में राशन वितरण योजना मात्र एक दिखावा है। इससे जनता का क्या भला हो सकता है? युवा वर्ग बेरोजगारी की पीड़ा से आहत है। जिसका मुख्य कारण है भाजपा से अलगाव। यदि भाजपा युवा वर्ग को संतुष्ट कर पाने में सफल हो पाती तो आज इस मुकाम पर नहीं पहुंचती। परिणाम स्वरूप भाजपा के घर में ही 'पलायन' का हंगामा शुरू हो गया है। तमाशा देख कर जनता खिलखिला कर हंस रही है। जनता इस बात का भी एहसास कर रही है कि बहुत दिनों के बाद "अच्छे दिन" आए हैं और मौका जो मिला है...
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

बुधवार, 5 जनवरी 2022

शैलाब की बूंद 'संपादकीय'

शैलाब की बूंद   'संपादकीय'
ससवार गिरा करते है जंग-ए-मैदान में,
वो क्या गिरेंगे जो पहले ही घुटनों के बल हैं।
एक बूंद शैलाब लाने के लिए प्रयाप्त होती हैं। यह एक फिर प्रमाणित हुआ, आपने यह सब प्रतीत किया, आप सभी इसके साक्षी भी हैं। भारत सरकार की किसान विरोधी नीति के विरुद्ध पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का किसान समुदाय लामबंद हो गया। 
दमनकारी नीतियों के कारण किसान नेता और पश्चिम उत्तर प्रदेश के धरनारत किसानों का नेतृत्व करने वाले राकेश टिकैत पर ज्यादती के बाद पीडा की बूंद आंखों से बह गई। किसान आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस और कानून प्रवर्तन के द्वारा वाटर कैनन व आसुगैस का उपयोग किया गया। जिसके कारण जन आक्रोश बढ गया और आंदोलन देखते ही देखते क्रांति का रुप धारण करने लगा। 26 नवंबर 2021 को राष्ट्रव्यापी आंदोलन में मिडिया रिपोर्ट के अनुसार 25 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया। कई लाख लोग राष्ट्रीय राजधानी की सीमा पर एकत्रित हुए। पांच सौ से अधिक संगठन इस आंदोलन मे शरीक थे।
भारत सरकार दमनकारी नीतियों का पर्दापण स्पष्ट तो हुआ, साथ में धरनारत किसानों का शैलाब आ गया। शैलाब के बढते वेग की गति से उदगम भावी परिणाम के मात्र अनुमान से केंद्र सरकार की नींव हिल गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की देखरेख करनेवाले प्रधानमंत्री ने अपने बनाए गये कानून को वाफिस करने की घोषणा यदि मात्र औपचारिकता ही है, तो भी सरकार घुटनों के बल आ गई।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव निकट है, किसान एवं पिछड़ा वर्ग भाजपा से अलगाव की तरफ बढ़ रहा हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
राधेश्याम  'निर्भयपुत्र'

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

जिंदगी से बेहतर हैं कफन 'संपादकीय'

जिंदगी से बेहतर हैं कफ़न     'संपादकीय'

बेहतर है मौंत फिर भी कि देती तो है कफ़न,
अगर ज़िन्दगी का बस चले, कपड़े उतार लेंं।

देश के बदलते सियासी परिवेश में जिस विशेष ब्यवस्था का संचालन हुआ। जो भी कुछ देश को मिला, वह आजकल हास्यस्पद बनकर दुनिया के फलक पर चर्चित हो गया है। एक साल तक चलता रहा किसान आन्दोलन। जगह-जगह होता रहा धरना-प्रदर्शन। मगर, सरकार झुकने को, किसानों की बात सुनने को तैयार नहीं थी। तुगलकी फरमान जारी करने वाली सरकार आखिर चारों खाने चित्त हो गयी ? अपने ही जाल में फंस कर बुरी तरह फंस गयी ? हुआ वहीं, जो अन्नदाता चाह‌ रहे थे, सरकार को अपनी जीद्द छोड़नी पडी। इस मुद्दे पर सरकार की पूरे देश में किरकीरी भी हुई। कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के क़रीब ढाई साल बाद भी कश्मीर घाटी मे बाहरी लोगों ने एक भी घर नहीं खरीदा और न बनाया। एक भी प्लाट नहीं खरीदा, कश्मीरी पंडितों की भी नहीं हुयी घर वापसी फिर भी बटोर रहे हैं वाहवाही। 
56 इंच सीना वाले साहब शाबाश। नोटबंदी से सरकार आतंकवादियों की कमर तोड़ देने के दावे कर रही थी। लेकिन आतंकवाद नहीं रूका, इतना जरुर हुआ कि पत्थरबाजों का खात्मा हो गया। जीएसटी से देश और व्यापारियों की स्थिति सुदृढ़ होने के दावे बालू की दीवार सरीखे धाराशाही हो गये। 
तबाही में देश के व्यापारी और ब्यवसाई हो गये। आस्था के प्रवाह में मोदी की चाह मेअर्थव्यवथा चौपट हो गयी। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री तथा वित्तमंत्री आपके दावों का क्या हुआ, न खातों में पैसा आया, न काला धन वापस आया, न देश की तकदीर बदली, न सीमा पर सैनिकों की शहादत रुकी। ढपोरशंखी सरकार के संचालकों ने जिस माहौल का निर्माण किया। उसमें उसमें केवल बैमनश्यता के पौधे हर जगह लहलहाने लगे हैं। झूठ-फरेब के सहारे जनता के दुलारे बनने का सपना अब धरातल पर कदम ताल ठोकने लगा है। ऑक्सीजन और दवा के अभाव में हजरो लोग तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिए। गोमती, सरयू और गंगा के किनारे हजारों शव बगैर अंतिम क्रिया, बिना कफ़न दफन हो गये ? धारा में बहा दिए गए। दहशत के आलम मे परिजन दहाड़े मार कर रोते रहे, अपनों को आंखों के सामने खोते रहे। हजारों परिवार अपने परिजनों को तलासते रह गये, किसी का पता तक नहीं चल सका।
राष्ट्रवादी लुटेरे तब भी मौका-ए-कब्रिस्तान और श्मशान से दूरी बनाते रहे। सियासत के सिपाही घरों में दुबके पड़े थे। गरीबों के मसीहा बनने वाले लापता थे। भला हो उस स्वाभिमानी पुलिस की वर्दी का, जो आखरी समय का साथी बनी। शवों को कन्धा देने से लेकर भूखे मरते लोगों के घरों में खाना देने तक का काम जान जोखिम में डालकर बेखौफ करती रही। सियासत के शागिर्द इस दर्द की दोपहरी में बिलुप्त हो गये। 
आखिर क्यो? 
ये तमाम सवाल अब यक्ष प्रश्न बनकर लोगों के जहन में है। महंगाई, बेरोजगारी, बेकारी और महामारी ने सामाजिक संतुलन को विखन्डित कर दिया है। हर आदमी सिसक रहा है, शिक्षा-दिक्षा व परीक्षा इस सरकार में सदियों के रिकार्ड को ध्वस्त कर दिया है। झूठ की बुनियाद पर नव बिहान में तरक्की की इबारत तहरीर करने वाली मक्कार‌ सरकार। हर जगह फिजाओं में तैर रहे हैं दुख, हर आदमी मर्माहत है। आहत है, पेट्रोल से कमाए आठ लाख करोड़। बैंकों से कॉर्पोरेट के लोन राइट ऑफ कर गवाये छ: लाख करोड़। लगातार टैक्स बढ़ाकर लोगों के सर पर कर्जे चढ़ा कर भी हाथ तंग है। यह जान-सुनकर देश वासी दंग है। सब कुछ बिक रहा है, रेल बिका, भेल बिका, खेल बिका, मंहगा तेल बिका, अब जेल बिका, लाल किला बिका, कल कारखाने और मयखाने बिके। खेती किसानी के पैमाने बिके। अब सार्वजनिक बैंकों पर शनि की वक्र दृष्टी कायम है। अडानी व अम्बानी की दोस्ती का सवाल है ?
उनके सामने हर नाजायज काम जायज है। बस पूरे देश में यही बढ़ रहा बवाल है ? गजब साहब दोस्ती की मिसाल भी कमाल है। इस सदी में इतिहास रच दिया। दोस्तों का दामन इतना भर दिया है कि रस्क होने लगा है। काश कोई एक दोस्त अपना भी ऐसा होता। यह हर उद्योगपति के जहन में उठ रहा सवाल है ? देश के परिवेश में जिस तरह‌ के सियासी वातावरण का निवेश लगातार किया जा रहा है। निश्चित रुप से छांव के बाद धूप वाली बात को चरितार्थ कर रहा है। यह तो शास्वत सत्य है, बदलाव होना है। फिर जो बीज बोया है, उसे ही काटना है।
जो गड्ढा खोद रहे हो, उसे भी पाटना है।
इतिहास गवाह है, वजूद सबका मिटा है। 
चाहे तानाशाह हो या सत्यवादी शहंशाह हो। दुनिया उनके कर्मो को याद करती है। मगर हद से आगे जाकर केवल पश्चाताप ही हासिल होता है। जिसने भी सर्वे भवन्तु: सुखिन; सर्वे भवन्तु निरामय का तिरस्कार किया। उसका इतिहास भी विकृत हुआ है। बसुधैव कुटुंबकम् का सूत्र हमेशा इस समाज को प्रतिबिंबित करता रहा है। वर्तमान में हिन्दुस्तान की सियासी जमीन में दल दर-दर भटक रहा है। जिसका परिणाम आने वाले कल में काफी घातक हो सकता है। 'सबका साथ सबका विकास' तो कहीं नहीं दिखता। अब फिर नये-नये नारे बनाने का क्या फायदा ?  सर्वनाश का इतिहास इस सदी में हमेशा चटकारे लेकर पढा जायेगा।
साये की तरह बढ़ न कभी, कद से ज्यादा।
थक जायेगा अगर भागेगा, हद से ज्यादा।
जगदीश सिंह      

बुधवार, 21 जुलाई 2021

जिस देश में गंगा बहती हैं 'संपादकीय'

जिस देश में गंगा बहती हैं    'संपादकीय'   
हर एक मन्दिर में दिया भी जले, मस्जिद में अजान भी हो। 
अगर न हो कहीं ऐसा तो एहतिजाज भी हो। 
हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं।
हुकूमतें जो बदलता है, वो समाज भी हो।
बदल रहे हैं आज आदमी दरिंदों में।
मरज़ पुराना है, इस का नया इलाज भी हो।

सियासी बाजार में भाईचारे का व्यापार धड़ल्ले से हो रहा है। आज के दौर में विश्वासघात का प्रचलन आम हो गया है। अब न आस्था की प्रवाह है, न ब्यवस्था में चाह‌ है। जहां मतलब की कश्ती स्वार्थ के भावार्थ से बोझिल हो रही हो, चाहत को आहत किये बगैर सही सलामत धन लक्ष्मी का स्वागत हो रहा हो। ऐसे मौके की तलाश में हताश मन से ही सही सियासतदार मजेदार‌ कारनामो के साथ प्रतिघात का अवसर तलाश रहे हैं। भारत वर्ष में सभी धर्म-जाति के लोग‌ सहर्ष‌ रह रहे हैं। लेकिन उत्कर्ष के चरम पर पहुंच कर भी देश का परिवेष‌ कुछ सियासी जाहीलो के चलते विषाक्त हो गया। एक तरफ सनातन धर्मावलम्बी‌ अपने आराध्य की सेवा में सुबह-शाम‌ इन्सानियत को जिन्दा रखने के लिये, मानव समाज में समदर्शिता का पैगाम देते हैं। वहीं, हर सुबह‌ शाम मस्जिदों में अजान के बाद समूचे हिन्दुस्तान में खुदा की इबादत के साथ ही‌ समाज में पारदर्शिता कायम रखने के साथ ही मानवता को बचाए रखने का‌ मुसलमान एहतेराम करते हैं।
बसुधैव कुटुंबकम् के आवरण में सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा का तराना गाने वालो के बीच जहरीला स्पीच सियासत के शानिध्य में तिफरका पैदा करने वाली तकरीर के साथ ही ऊंच-नीच, जाति-पाति व धर्म-मजहब‌ की घृणित मानसिकता से‌ दुरभिसन्धि का दुष्प्रचार सामाजिक ढांचे को हिला रहा है।भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था को हिला रहा है। अब त्योहारों में भाई चारगी देखने को नहीं मिलती। बस‌ दिल मिले न मिले हाथ‌‌ मिलाते रहीये, वाली बात रह गयी है। धर्म मजहब का जहर गांव हो या शहर सबको गिरफ्त में ले रहा है। हर एक आदमी दुसरे को सन्देह की नजर से देख रहा है। ईद-बकरीद, दशहरा-दीपावली ऐसा त्योहार था कि इनका नाम आते ही समरसता, समदर्शिता, समानता ,मानवता सहृदयता के साथ ही आपसी भाईचारे का एहसास होता था। 
मगर इधर के कुछ सालों में सारे त्योहार विलोपन की तरफ बढ़ चले है। न कोई उत्साह, न एक दुसरे से मिलने की चाह। बस उन्माद भरा अथाह जहरीला जज़्बात सबके साथ चल रहा है। परिवर्तन का संकीर्तन जिस तरह शुरु‌ है यही हालात रहे तो एक अजीब‌ माहौल कायम होगा। हर दिल वैमनश्यता की जहरीली सूई से बुझा होगा। सियासत की जहरीली आंधी ने इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब को मटियामेट कर दिया। भाईचारगी का विलोंपन कर दुश्मनी को कारपोरेट कर दिया।एक देश, अनेक भाषा अनेक भेष। सबका एक साथ रहन-सहन एक साथ निवेश। लेकिन आज पूरी तरह बदल गया है परिवेश। सियासत की करामाती कुर्सी के लिये जिस फुर्ती से‌ बदलाव की ईबारत तहरीर हो रही है। वह आने वाले कल के लिये शुभ संकेत नहीं है ?
समय का तेवर रोज बदल रहा है। कहीं महामारी तो कहीं बिमारी कहीं बाढ़ और  बारिश। तो कहीं बर्फबारी से तबाही मची हुयी है। मानवता का अस्तित्व खतरे में है तब भी लोग समझदारी की चादर फेंककर, वफादारी को दरकिनार कर, खुद की झूठी तरफदारी में लगे हुये है। इन्सानियत‌ ठोकर खा रही है। कदम-कदम पर धोखे के कारोबार उफान पर है। आपसी कलह में बढ़ती गद्दारो की फौज से खतरा हिन्दुस्तान पर है।सावधान रहें सतर्क रहें। याद रखे हम उस देश के वासी‌ है जिस देश में गंगा बहती है। 
जगदीश सिंह         

शनिवार, 17 जुलाई 2021

हलक़ में अटकी जान 'संपादकीय'

हलक़ में अटकी जान   'संपादकीय'
फांकों से तंग आकर, अंगूठी भी बेंच दी।
गुरबत का सांप तेरी, निशानी निगल गया।
अवसाद और उन्माद से ग्रसित आदमी नव सृजित वर्तमान व्यवस्था को आत्मसात नहीं कर पा रहा है। मंहगाई की मार से बेहाल आम आदमी‌ फटेहाल जीवन के हर पल को बिकल भाव जी रहा हैं। जिन्दगी जीने के संसाधन के अभाव में तडपन भरे आलम में सिसक‌-सिसक कर जीवन जी रहा है। जान लेवा बीमारी ,महामारी, भ्रष्टाचार में डूबी व्यवस्था, सरकारी तंत्र, इस भयानक महंगाई में भी खुलेआम काला बाजारी जारी हैं। आम आदमी पर मुसीबत का पहाड़ टूटा है, हलक़ में जान अटकी हैं। 
गुंडा-माफिया पनाह मांग लिये तो सियासतदार ही वसूल रहे है रंगदारी। जहर होती जिन्दगी का शकून गायब‌ होता जा रहा है।पशुओं की बात छोड़ दी जाये तो कौन ऐसा नहीं जो आज के परिवेश में नहीं रोता है? आजादी के सत्तर साल बाद मिसाल बनकर सत्ता पर काबिज सरकार का कारनामा‌ जहां अयोध्या मे रामनामा‌ का परचम बुलन्द किया है। वहीं, महंगाई का रिकार्ड भी तोड़ा है। अपराध, उन्माद, सड़कों पर होता प्रदर्शन पर काबू कर नये इतिहास की इबारत तस्कीद की है। वहीं, अपराधियो ,माफियाओं, समाज विरोधियों को औकात बताकर उनको मंजिल तक पहुंचाने का काम भी किया है। दहशत की दहलीज पर सर पटकने को मजबूर उत्तर प्रदेश का आवरण योगी सरकार के आने के बाद पूरी तरह बदल गया। गुंडा-मवाली, बवाली-माफिया डॉन समाज के शैतान, इन सबकी पलक झपकते‌ ही सरकार ‌‍ने कर दिया काम तमाम।
बाहुबलियो के कुनबों मे, खलबली है उनके घरों के ईर्द-गिर्द मौत चक्कर काट रही है। मौका पाते ही झपटृटा मार रही है। विकास दूबे से शुरु होकर अतीक  तक सटीक निशाना लगाने वाली‌ योगी सरकार काल बनकर मुस्करा रही है। दहशत में हैं माफिया मुख्तार आन्सारी।बाहुबली अतीक गुजरात में गुमनाम हो रहे हैं। तो यूपी में मुख्तार का कभी‌ जमाना था कि  सिवान में शैतान की बादशाहत थी शहाबुद्दीन के नाम से मशहूर था बिहार। जेल के खेल में सब कुछ खत्म हो गया दहशत में हैं परिवार। योगी ने सरकार उत्तर प्रदेश को निरोगी बनाने का संकल्प लें रखा है। अपराधियो के द्वारा समाज में दहशत की जो खेती की जा रही थी। उस‌ पर विराम लग रहा है। फोकस अपराधियो के काकस‌ पर है। सच के धरातल पर समतल होती व्यवस्था में अब आस्था का सवाल, मलाल बन कर टीस‌ रहा है। आम आदमी‌ को रोजगार चाहीये। रोटी, कपड़ा और मकान चाहीये। जिन्दगी के हर पल को जीने के लिये मुस्कराता हिन्दुस्तान चाहीये। आज का दौर  तबाही लिये गुजर रहा है। जीवन को सुरक्षित रखने का हर संसाधन  अभाव ग्रस्त‌ है। हर आदमी हो चुका पश्त है। फिर भी सरकार मस्त है। करोना के कहर ने गांव और शहर को तबाह कर दिया। मठ-मन्दिर‌, करबला‌ हो या मस्जिद। अनाथालय हो या बिद्यालय, ईदगाह हो या शिवालय। हर जगह कोरोना का खौफ हैं। इन्सान की सोच से निर्मित ये सारे धार्मिक संसाधन किसी काम नहीं आये कोरोना ने सबको आघात पहुंचाया है। अभी खुलकर सांस भी नहीं ले पायें कि तीसरी बार ललकार बांधे कोरोना सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा का तराना गाते चला आ रहा है। विदेशी लुटेरों की नमी जनरेशन में चाइना से चलकर भारत तक आने वाला कोरोना सिकन्दर की तरह बार-बार हमला कर रहा है। आदमी दहशत में इस कदर भयभीत हैं कि जीने को ही विकास मान लिया है। किसी तरह बची रहे‌ जान, चाहे कोई बने बादशाहे हिन्दुस्तान ? उलझी-उलझी जीवन की डोर लगातार उलझती जा रही है। अब तो जीवन ज्योति की टीम-टीमाती रोशनी भी घटती जा रही है। कल क्या हो कौन जाने ? फिलहाल सावधान रहें, सतर्क रहे।
होइहे सोई जो राम रचित राखा,
का करि तर्क बढावहि शाखा ?
जगदीश सिंह

शनिवार, 19 जून 2021

मौत का भंवर 'संपादकीय'

मौत का भंवर     'संपादकीय'   
दुनिया के सभी राष्ट्रों में दूरदराज व दुर्गम स्थानों पर निवास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति कोविड-19 कोरोना वायरस से पूरी तरह परिचित हो गया है। बल्कि यूं कहिए कि कई देशों में तो वायरस ने 'मौत' का कहर ढ़हाने का काम किया है। महामारी से पूरी दुनिया विचलित भी है और पीड़ित भी है। यदि समय रहते टीकाकरण किया गया तो काफी लोगों को बचाया जा सकता है। लेकिन कई राष्ट्रों में टीकाकरण की लचर व्यवस्था के कारण परिणाम को प्राप्त करना दुर्लभ है। जिसमें भारत को विशेष स्थान पर रखा जाए तो किसी प्रकार की कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिदिन नई-नई चेतावनी, जानकारी व योजनाओं के विवरण बताता रहता है। लेकिन भारत में इस पर ध्यान कम दिया जाता है। केवल विकसित राष्ट्रों की कार्यशैली की असली नकल करने का प्रयास किया जाता है। सरकार के द्वारा जारी मौतों के प्रमाणित आंकड़े और जमीनी हकीकत में एक बड़े अनुपात का अंतर है। पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर मौतों के आंकड़ों की धांधली के आरोप भी लगा रहे हैं। इससे केवल यह सिद्ध होता है कि राजनीतिक गलियारे में चमक बनी रहे। परंतु इस प्रकार जनता को भ्रमित करने के पीछे सरकार की क्या मंशा है ? झूठ की बैसाखी के सहारे साख को नहीं बचाया जा सकता है। 
दुनिया भर के वैज्ञानिकों के कयासों के हिसाब से तीसरी लहर भी दूसरी लहर की तरह प्रभावशाली हो सकती है। यदि इन दावों पर विश्वास कर लिया जाए तो भारत की निम्न आय वाला वर्ग, जो लोग डिजिटलाइजेशन की मुख्यधारा से पीछे छूट गए हैं। ऐसे वर्ग अथवा समुदाय को तीसरी लहर सर्वाधिक प्रभावित करेगी। आएंं दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महामारी को लेकर संदेश जारी करते रहते हैं। ज्यादातर अखबार और टीवी चैनलों पर ऐसे संदेश आसानी से मिल जाएंगे। महामारी से 'स्वयं को रक्षित करें और दूसरों की सुरक्षा भी निर्धारित करें'। अत्यधिक आवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकले। परंतु यदि इसके विपरीत हम विचार करें और वैज्ञानिकों के अनुसार मान लिया जाए कि हवा में ही वायरस है। तब उन्हें घर पर कौन-कैसे बचाएगा ? प्राथमिकता के आधार पर ऐसे वर्ग को टीकाकरण में सम्मलित ना करना सरकार की बड़ी चूक है। 
सक्षम आदमी हजारों रुपए खर्च कर टीका लगवा सकता है। लेकिन अक्षम के लिए तो यह 'मौत के भंवर' के जैसा है। नागरिकों को भी किसी भी व्यवस्था पर पूर्ण रूप से निर्भर नहीं रहना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को निर्णायक स्थिति की संरचना का प्रयास करते रहना चाहिए। 
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

रविवार, 30 मई 2021

झूठा आईना 'संपादकीय'

झूठा आईना   'संपादकीय' 

हे मानव- कमर कस, कर नवयुग की तैयारी,
मद में नरेश यदि, समस्याएं आए प्रलयंकारी।
विश्व में सूचना प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी परिवर्तन के साथ-साथ पत्रकारिता में बड़े परिवर्तन और बहुआयामी उपयोग किए गए हैं। डिजिटल पत्रकारिता में पहुंच और प्रभाव का दायरा विस्तृत हुआ हैं। परंतु इसके विपरीत स्वच्छंद 'लेखन और आय' दोनों बड़े स्तर पर प्रभावित हुए हैं। गूगल एवं सहयोगी-साझेदार संस्थाओं के द्वारा इसका संपूर्ण लाभ लिया गया है। डिजिटलाइजेशन में ज्यादातर व्यवस्था और संस्थाएं स्थिरता पाने में लगभग सफल रही है। यदि सही मायने में आकलन किया जाए तो विकसित राष्ट्र ही इसका रचनात्मक उपयोग कर रहे हैं। विकासशील, मुख्यधारा से पिछड़े और अधिक पिछड़े राष्ट्रों को डिजिटलाइजेशन का भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। 

सूचनाओं का सीधा एवं सार्वभौमिक प्रसारण पराधीनता के कारण सीमित और अप्रत्यक्ष स्थिति में चला गया है। जिस ऐप पर सूचना प्रसारित की जा रही है। स्पष्ट तौर पर वह पूरी तरह नियंत्रित होता है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि सूचनाओं का प्रचार-प्रसार का क्षेत्रियकरण और वर्गीकरण अथवा निजीकरण किया जा रहा है। डिजिटलाइजेशन की पक्षकार केंद्रीय सरकार संभवतः अब इसके दुष्प्रभाव से सचेत हो गई है। प्रचार और प्रसार का प्रतिघात और अनियंत्रित प्रसारण का दुष्प्रभाव समझने की लालसा भी बढ़ गई है। सरकार की इस पहल को अपना बचाव समझना गलत नहीं होगा। किंतु सरकार पत्रकारिता को सीमित करने का लगातार प्रयास करती आ रही है। पंजीकृत समाचार-पत्रों के संरक्षण और डिजिटलाइजेशन के प्रति सहयोग का भारी अभाव देखा गया है। जिसके कारण कई समाचार-पत्रों का प्रकाशन पूरी तरह बंद हो गया है या बहुत सीमित हो गया है। इस प्रकार की कई समस्याएं पंजीकृत समाचार-पत्रों के सामने एक दीवार बनकर खड़ी हो गई है। 

इसका कारण सरकार का असमान दृष्टिकोण और अभावग्रस्त नीति है। असमानता की पक्षकार सरकार को उसी की नीति का शिकार भी बनाया गया है। सूचना एवं प्रौद्योगिक विधेयक में संशोधन की काफी गुंजाइश थी और बाकी भी रहेगी। सरकार की चाटुकारिता करने वाले कुछ लोगों ने पत्रकारिता को इंगित किया है। जो न्याय संगत पत्रकारिता के पक्षकार है। उन्हें नमक-मिर्च डालकर तड़का लगाने की खास जरूरत नहीं पड़ती है। क्योंकि आईना झूठ बोलता है। आईना कभी भी कुछ सही नहीं दिखाता है, जो हमें देखना है आईना हमेशा उसका उल्टा ही दिखाता है। 
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

बुधवार, 26 मई 2021

एक नई आफत 'संपादकीय'

एक नई आफत  'संपादकीय' 

देश में लगातार कोरोना वायरस संक्रमण फैल रहा है। जिससे प्रतिदिन लाखों लोग संक्रमित हो रहें हैं। हजारों लोगों की प्रतिदिन मौत भी हो रही है। सरकार की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। सरकार जो बात कह रही है, वह धरातल की वास्तविकता से इतर है। राज्य सरकारों के द्वारा बढ़ाई गई पाबंदियों के कारण गरीब व मजदूरो का जीवन बड़ा कठिन और दयनीय हो गया है। शायद सरकार इस बात से वाकिफ नहीं है। कई बार तो ऐसा लगता है कि सरकार को ऐसे वर्ग की चिंता ही नहीं है। 
हालांकि देश 'राम' के भरोसे ही चल रहा है। यह अलग बात है कि 'राम' के नाम पर ही देश में राजनीति हो रही है। निचले स्तर के व्यापारी और मजदूरों के जीवन में जो आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ है। उसके कारण जीवन और भी अभावग्रस्त हो गया है। ब्लैक फंगस और यास जैसी समस्याऐं प्रतिदिन नए-नए रूप में 'नई आफत' बन रहें हैं।
सरकार की उदारता में किस प्रकार से टीका-करण किया जाए? यह तो "साहित्य" के विशेषज्ञ ही समझ सकते हैं। टीकाकरण की स्थिति और गति दोनों चिंताजनक है। सबसे अधिक चिंता का विषय कोरोना वायरस की तीसरी लहर है। जिससे देश का अल्प आयु वर्ग सर्वाधिक प्रभावित होने की प्रबल संभावना जताई जा रही है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार व केंद्र सरकार बड़े-बड़े दावे कर रही है। लेकिन वास्तविकता कुछ और है, और इसका परिणाम देश की जनता को भुगतना ही होगा। क्योंकि राजनीति और व्यवस्था प्रबंधन दोनों अलग-अलग चीजें हैं। जब तक इनको अलग-अलग दृष्टिकोण से नहीं देखा जाएगा, नहीं समझा जाएगा। तब तक महामारी पर नियंत्रण कर पाना दूर की कौड़ी है। ऐसी अवस्था में प्रत्येक नागरिक को अपने और अन्य नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए कोरोनारोधी नियमों को आत्मसात कर, नियमित उपयोग करना चाहिए।

साफ-सफाई रखें, बुलंद रखें इकबाल।
बदलते रहे मास्क और अपना रूमाल।

चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

बुधवार, 19 मई 2021

पीएम कोरोना संक्रमित 'संपादकीय'

पीएम कोरोना संक्रमित 'संपादकीय'

देश में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए 'पीएम' मोदी अगर अपने आप को अब भी कोरोना संक्रमण से अछूता समझते हैं, तो ये उनकी गलतफहमी हैं। देश में रोजाना लाखों लोग कोरोना संक्रमित हो रहे हैं। कोरोना महामारी पर सरकार काबू क्यों नहीं कर रही हैं? क्या भारत के 'पीएम' नरेंद्र मोदी को देश की जनता प्रिय नहीं हैं? देश में जमाखोरी और भुखमरी दोनों ही बढ़ रही हैं। कोरोना महामारी के बीच सरकार ने लोगों के कारोबार को बंद कर दिया हैं। ऑक्सीजन और भुखमरी के द्वारा लोगों की जान जा रही हैं। श्मशान घाट में मुर्दों का अंतिम संस्कार भी नहीं हो पा रहा हैं। क्योंकि, श्मशान घाट में मुर्दों का अंतिम संस्कार करने के लिए जगह नहीं हैं, इसके अलावा भी भिन्न प्रकार की समस्या स्थिर बनीं हुईं हैं। क्या इसकी जिम्मेदार सरकार नहीं हैं? 
अगर अब भी जनता को 'पीएम' मोदी के कोरोना संक्रमित होने पर शक हैं, तो ये जनता की सबसे बड़ी भूल हैं। देश में लगातार महंगाई क्यों बढ़ रही हैं ? महंगाई बढ़ने का कारण क्या हैं ? खाने-पीने के सामानों की जमाखोरी क्यों की जा रही हैं ? इसी वजह से आज आप लोगों को एक बहुत महत्वपूर्ण बात बताता हूं कि कोई दाढ़ी बढ़ाने से सन्यासी नहीं, बूढ़ा बनता हैं।

गरीब लोगों के बंद हो गए कारोबार, 
इतनी लालची हो गई हैं सरकार, 
अब चाहे कितनी भी कोशिशें कर लो, 
सब कोशिशें हैं बेकार।

चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

मंगलवार, 11 मई 2021

संपूर्ण लॉकडाउन व संक्रमण 'संपादकीय'

संपूर्ण लॉकडाउन व संक्रमण     'संपादकीय'   
देश में शराब खुलेआम बिक रही है। देश में संपूर्ण लॉकडाउन क्यों नहीं लगाया जा रहा हैं ? क्या खुलेआम शराब सरकार बिकवा रहीं है ?
देश में कोरोना के हालातों को देखकर संपूर्ण लॉकडाउन लगाने का समय है। अस्पतालों के सामने सड़कों पर कोरोना संक्रमितों के शव पड़े हैं। श्मशान घाट में शवों को जलाने के लिए लंबी लाइन लगी हुई हैं। ऐसी स्थिति में जिंदगी चुनें या मौत ? 
पीएम मोदी ने मौत को चुना। जो भी लोग मरेंगे, तो मर जाने दो।  वैक्सीन बनने के बाद भी कोरोना क्यों बढ़़ रहा है ? क्या नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनकर जीवन से तंग आ गए हैं ? क्या देश के पीएम कोरोना से लोगों को मरवा रहे हैं ? एक राजा का कर्तव्य यें होता है, कि वह अपनी प्रजा को सुखी रख सकें। बल्कि यह नहीं, कि अपनी प्रजा की जान से खिलवाड़ करें, राजनीति, राजनीति और बस राजनीति। अगर राजा का मकसद यह है, कि भ्रष्टाचार और अत्याचार करें, तो उस राजा को अपना पद नैतिकता के आधार पर छोड़ देना चाहिए। यह भारतीय लोकतंत्र की व्यवस्था के अनुसार संविधानिक अधिनियम है। 
'फेसबुक' एकमात्र दुनिया की सबसे बड़ी चोर संस्था हैं। जिससे भारत का व्यापार अंबानी ग्रुप से जुड़ा हैं। साथ में गूगल भी एक ऐसा यंत्र है, जो सरकार के निर्देशानुसार काम करता है। अगर किसी आदमी को राजा ही बनना है, तो उसे सन्यासी बनने की इच्छा को त्याग देना चाहिए। दाढ़ी बढ़ाने से कोई तपस्वी नहीं बनता। तपस्वी बनने के लिए भक्ति-भावना और प्रेम चाहिए।

शराब बेकता हूं खुलेआम, क्योंकि नहीं कोई दीवार, 
एक बात बोलूंगा, तो नखरें हो जाएगें तार-तार, 
कोविड़-19 तो बुखार हैं, पर बोलूंगा बार-बार।

चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

बुधवार, 5 मई 2021

पतन का शंखनाद 'संपादकीय'

पतन का शंखनाद   'संपादकीय' 
सत्ता की भूख में न जाने क्या-क्या खा गये, 
इतनी बढ़ गई भूख, अपने-पराएं सब समा गए। 
भाजपा के दलान का शहतीर दीमकों ने खोखला कर दिया है। अब गिरा, तब गिरा की स्थिति में बना हुआ है। देश के ज्यादातर संपादक और कई वरिष्ठ पत्रकार भाजपा के पतन के प्रारंभ की आभा को सहज ही समझ भी रहे हैं और भाजपा के प्रति हृदय से चिंतन-मनन भी कर रहे हैं। यह स्वतंत्र विचार है या कोई विवशता ? इस संदर्भ में कुछ भी कहना गलत होगा। परंतु सभी के शब्दों में अपार निराशा और ग्लानि का भाव छुपाए नहीं छुपता है। जबकि सभी भली-भांति इस बात से परिचित है कि सच को ना छुपाया जा सकता है और ना मिटाया जा सकता है।
कोविड-19 कोरोना संक्रमण से करोड़ों लोग जिंदगी और मौत के बीच खड़े हैं। लेकिन कई वरिष्ठ पत्रकार बंगाल हिंसा में 9 लोगों की मौत पर अध्यनरत है। जबकि वहां धंतु निकलने वाला नहीं है। देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को बंगाल चुनाव की हार किसी सबक से कम नहीं है। संक्रमण को दरकिनार कर लाशों के ढेर पर राजनीति करने वालों के गाल पर बंगाल चुनाव परिणाम करारा तमाचा हैं। वहीं, यूपी के पंचायत चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त नहीं मिली है। बल्कि, भाजपा का दम भरने वाले लूट कर, हतोत्साहित होकर बैठे हैं। 
यह भाजपा के पतन का शंखनाद है। केंद्र सरकार का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है शायद इस बात से सभी लोग वाकिफ भी हैं। किंतु बहरे लोग शायद ही सुन सकेगे।
इसी कारण देश की जनता ने भाजपा की अनीतियों से तंग आकर भाजपा का पूरी तरह साथ छोड़ दिया है और अन्य विकल्प तलाश लिए हैं। कोई भी दल अथवा निर्दलीय ही सही, पर भाजपा कतई नहीं। जनता की इसी सोच से जिस बीज का अंकुरण हुआ है। उसने भाजपा के पतन का द्वार खोल दिया है। 
संक्रमण के द्वारा मौत के तांडव को देखकर न्यायपालिका ने देर से ही सही पर आंखें खोल ली है। लेकिन सरकार की लापरवाही जिन आंखों से आंसू बनकर बह रही है, शायद वे इस क़हर को ताउम्र भूल नहीं पाएंगे।
सरस 'निर्भयपुत्री'

सोमवार, 3 मई 2021

सिलेंडर में बंद ऑक्सीजन 'संपादकीय'

मधुकर कहिन 
कोरोना के दौरान ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर आपके हर सवाल का जवाब !!!
प्लांट से अस्पतालों तक सिलेंडर पहुंचने वाले लोगों का अब तक नहीं हुआ है वैक्सीनशन 
सुबह से लेकर शाम तक सैकड़ों फोन उठाता हूँ। हर फोन पर सिर्फ एक ही सवाल होता है और एक ही मुद्दा - साहब 'ऑक्सीजन' का सिलेंडर नहीं है, दिला दो , साहब 'ऑक्सीजन' गैस कहां से लाऊं ?  साहब 'ऑक्सीजन' का सिलेंडर कब तक मिलेगा ? मेरे पास न कोई जवाब होता है और न ही कोई हल।
मैंने सोचा आज यह ब्लॉग लिख कर सारे जवाब एक साथ ही दे डालूँ। सभी लोगों को बता दूँ की मैं कोई सुपर मैन नहीं हूँ। भाई ! मैं भी एक आम इंसान ही हूँ। बस पत्रकार हूँ इसलिए ज़रा ज्यादा मुखर हूँ। जितना ज्ञान इस विषय पर मैंने इन दिनों अर्जित किया है उतना आप तक पहुंचा रहा हूँ।
तो साहब ! जिस 'ऑक्सीजन' की हम बात कर रहे हैं। वह 'ऑक्सीजन' कोविड-19 के मरीजों को जिंदा रखने और उपचार के दौरान दी जाने वाली संजीवनी बूटी की तरह है। जिसे सैकड़ों लोग रोज़ 'ऑक्सीजन' प्लांट से लेकर अस्पतालों तक ले जा रहे हैं। जिनका खुद का वैक्सीनशन अब तक नहीं हुआ है। है न कमाल ?

 खैर, लोगों के अक्सर जो सवाल होते है वो कुछ ऐसे हैं ...
पहला सवाल - मैं कोरोना पॉजिटिव हूँ। मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई है। क्या मुझे 'ऑक्सीजन' की जरूरत तुरंत  पड़ेगी ?
जवाब है कि  - अगर आप की रिपोर्ट पॉजिटिव है , तो आपको तुरंत 'ऑक्सीजन' की ज़रूरत नहीं है। यदि आपकी HRTC रिपोर्ट 10 से ऊपर है तो आपको तुरंत ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी। आपकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही आपको ऑक्सीजन की जरूरत नहीं है। इसलिए पॉजिटिव आते ही दवाइयों पर और डॉक्टर की सलाह पर निर्भर रहें। जल्दबाजी न करें डॉ की सलाह पर दवाई लेते रहें। इस से क्या होगा कि आप यदि व्यवस्थाओं में माहिर है तो सिलेंडर और ऑक्सीजन अपने घर तो ले आएंगे। लेकिन वह आपके काम नहीं आएगी और उसके साथ-साथ किसी और ज्यादा जरूरतमंद के भी काम नहीं आएगी। अधिकांश मामले नियमित दवाई और चिकित्सकों की गाइडेंस से ठीक हो रहे हैं।
दूसरा सवाल - आखिर मुझे 'ऑक्सीजन' मिलेगी कहाँ से ?
जवाब है कि - आपको 'ऑक्सीजन' सिलेंडर उसी अस्पताल में भर्ती होने पर मिलेगा। जिस अस्पताल से आप का उपचार चल रहा है और वही अस्पताल आपको भर्ती तो कर देगा।, लेकिन 'ऑक्सीजन' पर तभी लेगा। जब आपकी मेडिकल HRCT 10 से ज्यादा दिखाई देगी। उससे पहले वह भी आपको आईसीयू एडमिट नहीं करेगा।
तीसरा सवाल -किस अस्पताल में जाएँ जहाँ 'ऑक्सीजन' की दिक्कत न आये ?
जवाब है - हर उस अस्पताल में आप जा सकते हैं जिसे कोविड अस्पताल घोषित कर दिया गया है। उसमें आप जा सकते हैं और इलाज ले सकतें है। बात 'ऑक्सीजन' की तो हर अस्पताल को प्रशासन की ओर से रोज़ ऑक्सिजन सिलेंडर अलॉट किये जाते हैं । ( अनुमानित संख्या )
जैसे कि
 1300 से 2200 सिलेंडर रोज जेएलएन अस्पताल 
 55 से 100 सिलेंडर चर्चित गैस एजेंसी सिविल लाइन्स 
 55 से 100 सिलेंडर फेयर डील मेडिकल आर्यनगर 
 35 से 40 सिलेंडर क्षेत्रपाल अस्पताल
 18 से 22 सिलेंडर मित्तल अस्पताल
 45 सिलेंडर सेटेलाइट अस्पताल
 12 सिलेंडर आरएस अस्पताल
और इसी तरह से जितने भी निजी और सरकारी कोविड अस्पताल हैं। सब के पास 'ऑक्सीजन' उनके कोटा अनुसार उपलब्ध है। 
परंतु ऑक्सीजन आपको तभी मिल पाएगी जब आपको उसकी जरूरत होगी। इसलिए बेवजह सिलेंडर के पीछे ना भागे। घर में रहे और अपना उपचार जारी रखें।
चौथा सवाल क्या मुझे 'ऑक्सीजन' कंसंट्रेटर पर निर्भर रहना चाहिए ? 
इसका जवाब है कि 'ऑक्सीजन' कंसंट्रेटर मात्र 5 किलो ऑक्सीजन वायुमंडल से बनाकर देता है। जो कि केवल एक हद तक मददगार है । यदि आप कोविड-19 के शिकार हो गए और आपको 'ऑक्सीजन' की जरूरत है तो यह कंसंट्रेटर आपको कुछ प्रतिशत तक ही घरेलू लाभ पहुंचा सकता है। परंतु आपके लिए उम्मीद करना कि यह कंसंट्रेटर 'ऑक्सीजन' सिलेंडर की 98% गैस की तरह राहत देता है तो आपकी सोच गलत है।  
पाँचवा सवाल - 'ऑक्सीजन' हेतु आखिर एक मरीज़ के पास क्या क्या विकल्प हैं ?
जवाब है - संक्रमण के स्तर को देखते हुए तीन तरह की मशीनें साफ तौर पर मार्केट में दिखाई दे रही है। प्रथम तरह की मशीन है 'ऑक्सीजन' कंसंट्रेटर जो, कि आपकी सांस लेने की क्षमता को 5% बढ़ाता है। कंसंट्रेटर की कीमत लगभग 66 हज़ार तक कि होती है। 
उसके बाद है, बाई पेप मशीन जो कि 50 से 55% तक आपकी क्षमता बढ़ाएगा। इसकी कीमत 90 हजार के आसपास है।
और अंततः वेंटिलेटर जिसकी कीमत लगभग 70 से 80 लाख है। जहां 'ऑक्सीजन' सिलेंडर लगने पर आपकी सांस लेने की क्षमता 98 परसेंट तक बढ़ जाती है।
 तीनों ही तरह में कंसंट्रेटर ही एक ऐसा जुगाड़ है जो आपको प्राथमिक स्तर पर लाभ पहुंचा सकता है। परंतु यदि आप यह उम्मीद करते हैं कि जिस मरीज को वेंटीलेटर की जरूरत है। उसका काम कंसंट्रेटर से चल जाएगा तो यह उम्मीद आपको भारी पड़ सकती है।
 छठा सवाल - मेरा मरीज घर पर है। मुझे डॉक्टर ने 'ऑक्सीजन' सिलेंडर लिखकर दे दिया है। परंतु फिर भी मुझे सिलेंडर प्राप्त नहीं हो रहा है। ऐसे में मैं क्या करूं ?
 इसका जवाब है कि ऐसे में आप अपने मरीज को टैब तक डिस्चार्ज न करवाये, जब तक चिकित्सक न कहे। और सरकारी चिकित्सक से पर्चा लिखवाकर जिला कलेक्टर अथवा एडीएम और सीएमएचओ के कार्यालय को संपर्क करें। उनसे निवेदन करें और इमरजेंसी का आवेदन लगाकर कुछ हद तक मदद की उम्मीद कर सकते हैं। गैस डीलर और प्लांट धारकों के यहॉं भीड़ लगाने से कुछ लाभ नहीं होगा। क्योंकि अजमेर के प्रशासन द्वारा इन लोगों को अनुमति अब तक नहीं है कि ये सीधे गैस सिलेंडर या 'ऑक्सीजन' किसी को दे सकें।
इसके अलावा भी अगर किसी के मन में कोई सवाल या मेरे बताए हुए तथ्यों में कोई शंका या त्रुटि हो तो वह मुझसे जरूर इस नंबर पर व्हाट्सएप करके पूछे ...
मैं 'ऑक्सीजन' भले ही नहीं उपलब्ध करवा पा रहा हूँ लेकिन फिर भी जहां तक हो सकेगा, आपके सवालों का जवाब तो मैं उपलब्ध करवाने की कोशिश कर ही सकता हूँ। ताकि आपकी उम्मीद बनी रहेंं।
घर पर रहिए और अपना ख्याल रखिय।
बाहर सिलेंडर मिलेंं न मिलेंं कोरोना ज़रूर मिल जाएगा।
 नरेश राघानी

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

महामारी का संकट 'संपादकीय'

आज पूरी दुनिया कोविड-19 के संक्रमण से संकट में है। ना जाने कहां से कोरोना जैसी महामारी दुनिया में आ गई हैं। हमारे देश की चिकित्सा व्यवस्था से जुड़े हुए सेवक-स्वास्थ्य कर्मी जैसे डॉक्टर्स, नर्स और पुलिसकर्मी भी इस महामारी से लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। 
हमारे देश के वैज्ञानिकों ने टीका भी बनाया। लेकिन उससे भी लोगों की जान नहीं बच पा रहीं हैं।
ऐसा क्यों ? यें हमारे देश के राजनेताओं की राजनीति है। हमारे देश में नपुसंक अधिक मात्रा में हो गए हैं। आज हम ऐसी महामारी से गुजर रहें है। जिसका कोई तोड़ नहीं है। इसिलिए, हम सबको खुद अपनी सुरक्षा करनी पड़ेगी। आज हमारे देश में नपुसंको का राज है। ऐसी सरकार होने का क्या फायदा है ? जिस सरकार में श्मशान घाट और कब्रिस्तान में भी जगह ना बचीं हो। जिसें देश के प्रति प्रेम ही ना हों। ऐसी सरकार को जिंदा जला देना चाहिए। आज हम महामारी से लड़़ रहे हैं। रोज महामारी से मृतक संख्याएं बढ़ रही है। वर्तमान सरकार देश की प्रजा का उचित ढंग से संरक्षण नहीं कर रही है। ऐसी सरकार का बहिष्कार कर देना चाहिए।
आजाब, का मंझर देखकर 'गालिब',
शब्दों का पता भूल गई,
क्या लिखूं, क्या बताऊं,
मेरे वतन के लोगों।

'सरस'

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

पीएम की लोकप्रियता 'संपादकीय'

पीएम की लोकप्रियता 'संपादकीय'
 
संपूर्ण विश्व में भारत की विशिष्ट पहचान बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व सदियों तक याद रखेगा। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का यह दूसरा कार्यकाल चल रहा है। मानवीय, सामाजिक, ढांचागत विकास और रचनात्मक प्रयासों से कई बार देश की जनता को हतप्रभ किया है। धर्मवाद की नीति के साथ-साथ सभी वर्गों के विकास का प्रयास किया है। इसी कारण निरंतर नरेंद्र मोदी की लहर जारी है। इस लहर को यदि लोकप्रियता से परिभाषित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
परंतु इस बात से भी गुरेज नहीं करना चाहिए कि जिस प्रकार देश में सोशल मीडिया के माध्यम से वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना-विवेचना के साथ, गाली-गलौज, कम्बख़त और पनौती आदि शब्दों का उपयोग किया जा रहा है। आप सभी लोग इसको कैसे देखते हैं, इसके अलैदा इसे लोकप्रियता नहीं तो क्या कहेंगे? सोमवार को पश्चिम बंगाल में एक चुनावी रैली में भारी-भरकम भीड़ भी इसका पुष्ट प्रमाण है। यही नहीं पश्चिम बंगाल में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार का गठन भी होगा। यह भीड़ इसका संकेत भी है और सूचक भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा भाजपा में कोई दूसरा इसका श्रेय लेने योग्य राजनेता भी नहीं है।
 मगर यह बात क्यों भूल गए हैं कि जिस हड्डी को कुत्ता घंटों तक चाटता रहता है। उससे कुछ नहीं निकलता है। कुत्ते के मसूड़े छीलने से हड्डी पर खून लग जाता है। कुत्ता अपने ही खून को चाटता रहता है। साधारण सी बात है परिश्रम करने की एक ठोस वजह है। लेकिन राजनीतिक प्रारब्ध, स्वार्थ और सत्ता की भूख ने आंखों पर ऐसी पट्टी चढ़ा दी है।  जिसके कारण वास्तविकता को देखने-समझने का औचित्य ही नहीं हैं। एक तरफ देश की जनता महामारी का दंश झेल रही है और देश का प्रधान सेवक लाशों के ढेर पर राजनीति कर रहा है। देश की जनता के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा? बंगाल की जनता शायद पीएम के मोह में अप्रत्यक्ष जोखिम से अनजान है। मासूम और भोली जनता का इससे आसान शिकार क्या होगा? देश की जनता किस हालत से गुजर रही है, इसकी प्रधान सेवक को जरा भी परवाह नहीं है। सत्ता की भूख के सामने एड़िया रगड़ कर दम तोड़ने वालों की परवाह नहीं है, उनकी जिंदगी का कोई मोल नहीं हैं। जो बाकी बचेंगे उन पर राज करेंगे या विपक्ष में बैठ जाएंगे। लोकतंत्र में यह सोच लोकतंत्र की जडें कुतरने वाली है। जो लोग इसके जिम्मेदार है शायद उनके पास अब आखिरी मौका है।
 राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

'संविधान' का रक्षक इंडिया समूह, भक्षक भाजपा

'संविधान' का रक्षक इंडिया समूह, भक्षक भाजपा  संदीप मिश्र  शाहजहांपुर। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा कि मौजूदा...