शनिवार, 19 जून 2021

मौत का भंवर 'संपादकीय'

मौत का भंवर     'संपादकीय'   
दुनिया के सभी राष्ट्रों में दूरदराज व दुर्गम स्थानों पर निवास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति कोविड-19 कोरोना वायरस से पूरी तरह परिचित हो गया है। बल्कि यूं कहिए कि कई देशों में तो वायरस ने 'मौत' का कहर ढ़हाने का काम किया है। महामारी से पूरी दुनिया विचलित भी है और पीड़ित भी है। यदि समय रहते टीकाकरण किया गया तो काफी लोगों को बचाया जा सकता है। लेकिन कई राष्ट्रों में टीकाकरण की लचर व्यवस्था के कारण परिणाम को प्राप्त करना दुर्लभ है। जिसमें भारत को विशेष स्थान पर रखा जाए तो किसी प्रकार की कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिदिन नई-नई चेतावनी, जानकारी व योजनाओं के विवरण बताता रहता है। लेकिन भारत में इस पर ध्यान कम दिया जाता है। केवल विकसित राष्ट्रों की कार्यशैली की असली नकल करने का प्रयास किया जाता है। सरकार के द्वारा जारी मौतों के प्रमाणित आंकड़े और जमीनी हकीकत में एक बड़े अनुपात का अंतर है। पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर मौतों के आंकड़ों की धांधली के आरोप भी लगा रहे हैं। इससे केवल यह सिद्ध होता है कि राजनीतिक गलियारे में चमक बनी रहे। परंतु इस प्रकार जनता को भ्रमित करने के पीछे सरकार की क्या मंशा है ? झूठ की बैसाखी के सहारे साख को नहीं बचाया जा सकता है। 
दुनिया भर के वैज्ञानिकों के कयासों के हिसाब से तीसरी लहर भी दूसरी लहर की तरह प्रभावशाली हो सकती है। यदि इन दावों पर विश्वास कर लिया जाए तो भारत की निम्न आय वाला वर्ग, जो लोग डिजिटलाइजेशन की मुख्यधारा से पीछे छूट गए हैं। ऐसे वर्ग अथवा समुदाय को तीसरी लहर सर्वाधिक प्रभावित करेगी। आएंं दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महामारी को लेकर संदेश जारी करते रहते हैं। ज्यादातर अखबार और टीवी चैनलों पर ऐसे संदेश आसानी से मिल जाएंगे। महामारी से 'स्वयं को रक्षित करें और दूसरों की सुरक्षा भी निर्धारित करें'। अत्यधिक आवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकले। परंतु यदि इसके विपरीत हम विचार करें और वैज्ञानिकों के अनुसार मान लिया जाए कि हवा में ही वायरस है। तब उन्हें घर पर कौन-कैसे बचाएगा ? प्राथमिकता के आधार पर ऐसे वर्ग को टीकाकरण में सम्मलित ना करना सरकार की बड़ी चूक है। 
सक्षम आदमी हजारों रुपए खर्च कर टीका लगवा सकता है। लेकिन अक्षम के लिए तो यह 'मौत के भंवर' के जैसा है। नागरिकों को भी किसी भी व्यवस्था पर पूर्ण रूप से निर्भर नहीं रहना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को निर्णायक स्थिति की संरचना का प्रयास करते रहना चाहिए। 
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

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