सोमवार, 4 अप्रैल 2022

अराजकता-लोकतंत्र 'संपादकीय'

अराजकता-लोकतंत्र      'संपादकीय' 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का दुरुपयोग के भिन्न युग का शुभारंभ हो गया है। इस युग का कोई नामकरण तो नहीं किया गया हैं‌। परंतु, यदि इस युग की प्रवाह पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो भाजपा के पतन का बीज अंकुरित होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र प्रगतिशीलता के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। लोकसभा में प्रति विधेयक पारित होने से पूर्व राष्ट्र और जनहित की कसौटी पर परखा जाता है। यह दूर दृष्टिकोण राष्ट्र प्रगति का आधार स्तंभ है। खामी इंसान का स्वाभाविक गुण है, लेकिन सुधार का नजरिया गलती शेष रहने का आभास खत्म कर देता है। भाजपा दल के दोनों शीर्ष नेता (मोदी-योगी) जनकल्याण और राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित भाव से सेवारत हैं। इसी मगन शीलता के चलते इसके विपरीत भाजपा के जनप्रतिनिधियों ने संयम का तर्पण कर दिया है। निरंकुश विचार बुद्धि पर हावी हो गए हैं। संवैधानिक और लोकतंत्र के चीर हरण करने पर आमादा हो गए हैं। इसमें नौकरशाही भी संविधान और गणराज्य की मर्यादा लांघकर सहयोग की भावना से साथ-साथ कदम ताल ठोक रहे हैं। उदासीनता का इससे बड़ा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। गाजियाबाद के जनप्रतिनिधियों के पत्रों, व पत्रों में अंकित आदेश स्पष्ट रूप से रूढ़िवादिता के पक्षकार है। शिक्षित समाज का यह भी एक घिनौना चेहरा है। 21वीं शताब्दी में भारतीयों ने किसी प्रकार छुआछूत से तो छुटकारा पा लिया है। लेकिन भेदभाव का जहर अधिक विषाक्तता बनता जा रहा है। मौलिक अधिकारों का दमन किया जा रहा है। सामाजिक सौहार्द और आपसी भाईचारे के विरुद्ध दरार और गहरी करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रभावित सहयोगी सरकारी अधिकारी अकारण ही मुंछो पर ताव दे रहे है। तलवे चाटने की कहावत सिद्ध करने से क्या लाभ ? जनता सब कुछ जानती है। समय रहते ही विभागीय सहायक आयुक्त ने नियंत्रणात्मक प्रक्रिया का उपयोग किया। 
परंतु तानाशाही का यह मंजर तो और भी खौफनाक लगता है। भ्रष्टाचार की परत खोलने पर बलिया के जिलाधिकारी ने सूचना प्रदान करने वाले पत्रकारों को कारागार भिजवा दिया। वैसे तो पत्रकार समाज को अधिकारियों से सहयोग की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यदि अपेक्षा रखोगे तो खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इसके विपरीत संबंधित अधिकारी की लापरवाही व हिस्सेदारी को जनता में उजागर करने का प्रयास करना चाहिए। न्याय की अपेक्षा भी बेईमानी होगी। दलालों के लिए सुविधाएं होती होगी, कलमकारों के लिए नहीं होती हैं। पत्रकारिता का वास्तविक स्वरूप संघर्ष हैं, जहां समाज और राष्ट्र में व्याप्त बुराईयों के खिलाफ जंग लड़नी होती हैं। 
हाल ही में घटने वाली घटनाएं गणराज्य की नींव में दीमक के समान है। उत्तर प्रदेश में प्रशासन की लापरवाही स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। लापरवाह प्रशासनिक अधिकारी और अपराधी जनता के साथ खुलेआम लूट-खसौट पर उतर आए हैं। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि अपेक्षाकृत प्रक्रिया में संलिप्त हो गए हैं। गणराज्य की गरिमा को तार-तार करने की शुरुआत, प्रतीत हो रहा है उत्तर प्रदेश से ही होगी। न्यायपालिका को उत्तर प्रदेश की संवेदनशीलता पर स्वत: संज्ञान लेने की आवश्यकता है।
राधेश्याम    'निर्भयपुत्र'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thank you, for a message universal express.

कुएं में मिला नवजात शिशु का शव, मचा हड़कंप

कुएं में मिला नवजात शिशु का शव, मचा हड़कंप  दुष्यंत टीकम  जशपुर/पत्थलगांव। जशपुर जिले के एक गांव में कुएं में नवजात शिशु का शव मिला है। इससे...