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शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

देश भीख-प्रदेश चोरी 'संपादकीय'

देश भीख-प्रदेश चोरी     'संपादकीय'
देश की भाजपा सरकार के विरुद्ध एक बड़ा वर्ग क्रांतिकारियों की सूची में स्थापित हो चुका है। आंदोलन के प्रभाव और प्रसार पर नियंत्रण करने में भी बड़ी चूक रही है। सरकार के विरोध को समझने के अभाव में राष्ट्र का हित संभव ही नहीं है। तकनीकी क्षेत्र और औद्योगिक गतिविधियों के विकास का ग्राफ भी ठीक नहीं है। विरोध को शांत करना सरकार की प्राथमिकता का आधार होना चाहिए। किसी भी दशा और अवस्था में आंदोलन की समस्या का मार्ग प्रशस्त किया जाएं। विरोध के चलते भाजपा संगठन को बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। भविष्य में भाजपा के द्वारा कई राज्यों के चुनावों में 'मुंह की खानी पड़ेगी'। विरोध का मूल, सदैव पतन का द्वार खोलता है। किसी भी राष्ट्र के कृषकों में व्याप्त आक्रोश सरकार की नींव कमजोर कर देता है। इसिलिए, सनातन शास्त्रों में इसका सीधा-सा उदाहरण अंकित किया गया है, कि 'देश भीख-प्रदेश चोरी' समान फल देने वाले होता हैं। भौतिक विकास में मानवीय विकास की गति की दिशा से सरकार भटक गई है। जनसंस्था घनत्त्व और बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याओं पर सरकार की बोलतीं बंद है। भयावह और प्रमुख समस्याओं पर सरकारी उदारता बरकरार है। सरकार को कई विशेष पहलूओं पर मंथन करने की जरूरत है। यदि समय रहते आवश्यक बिंदुओं पर रचनात्मक उपयोग नहीं किए गए तो भाजपा को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

 चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

नरेंद्र मोदी टेक्स 'संपादकीय'

नरेंद्र मोदी टेक्स       'संपादकीय' 

आजकल देश में महंगाई का हाहाकार मचा हुआ है। खादान वस्तुओं पर मूल्यों की अनियंत्रित गति से आम जन-जीवन पूरी तरह त्रस्त है।
बढ़ती महंगाई का आधार साधारण यातायात है। जिसके लिए फास्ट टैक्स लागू कर दिया गया है। अब किसानों को जनपदों की सीमा पार करने पर भी टैक्स देना पड़ेगा। किसान आंदोलन देश के वांछित, क्षुब्ध और आक्रोशित किसानों का विरोध है। किसानों के विरोध-प्रदर्शन को संघीय गणराज्य में पूरी तरह स्वतंत्रता प्राप्त है।
लिखित संविधान के अनुसार, विरोध और आपत्ति का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र है। दिशा रवि के द्वारा स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग किया गया है। वह कोई आतंकवादी, नक्सलवादी या राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त नहीं पाई गई है। इसके बावजूद भी उसे असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसका एक साधारण उदाहरण है।
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुयायियों/मतविवेंकियों को पेट्रोल की कीमत अथवा बढ़ें हुए खादान पदार्थों के मूल्यों पर मोदी टैक्स अपनी स्वतंत्र इच्छा से प्रदान करना चाहिए। नरेंद्र मोदी टैक्स लागू करके भुगतान करना चाहिए। विवश एवं असहाय लोगों के लिए उस टैक्स को समर्पित कर देना चाहिए। ताकि, वह जरूरतमंद के काम आ सके। उससे आपका स्वाभिमान और देश की अर्थव्यवस्था दोनों सुरक्षित रहेंगे। भाजपा सरकार में अप्रत्याशित रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है और स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार की प्रक्रिया में पूरी तरह से संचालित है। 
एक भी जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है। ऐसी अवस्था में अगले आम चुनाव तक अपनी प्रतिभावों को समेटकर रखने वाले गणराज्य की स्थापना के समर्थक ना बनें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के विकास के प्रति निष्ठावान है। उनसें प्रत्येक भारतवासी को यही अपेक्षा करनीं चाहिए, कि वह राष्ट्र के निर्माण-विकास में व्यस्त है।

चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

बाकी किसान रहेगा... 'संपादकीय'

बाकी किसान रहेंगे...   'संपादकीय'
मंदिर में घंटा, मस्जिद में अजान रहेंगे।  
खून चूसने वाले खटमल-पिस्सु महान रहेंगे।
कारवां गुजर गया, अब तेरे भी दौर से।
कोई नहीं बचा 'सनकी', बाकी निशान रहेंगे। 
भारत है किसानों का, बाकी किसान रहेंगे.....
 
किसान आंदोलन से सरकार की जड़े हिल चुकी है। सरकार की छवि के साथ-साथ विश्व स्तर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी इंगित किया गया है। आंदोलन की गूंज धरती के कोने-कोने तक सुनी जा सकती है। जिसके कारण सरकार से प्रभावित हस्तियां भी खुले मंच पर उद्घोष करने से गुरेज नहीं कर रही है। इसका अर्थ यह है कि आंदोलन अपने निर्धारित लक्ष्य को भेदने के काफी करीब है। संभवतः कुनीतियों का समर्थन करने वाली सरकार आंदोलन को कुचलने या मसलने के कई आयामों पर विचार-विमर्श कर रही हो? किसी ऐसी रणनीति पर कार्य किया जा रहा हो। जो आंदोलन में स्थिरता ला सके या आंदोलन को दो फाड़ कर सके। इसमें हैरान होने की कोई बात नहीं है। ऐसा बिल्कुल किया जा सकता है। सरकार की मंशा किसी से छिपी नहीं है। ऐसा अनुमान लगाना भी व्यर्थ ही है कि सरकार कृषि कानूनों को रद्द कर देगी। इसलिए आंदोलन में रचनात्मक बदलाव का अभाव प्रतीत किया जा रहा है। यदि स्थिति के अनुसार प्रयोगात्मक परिवर्तन किए गए तो यह आंदोलन देखते ही देखते जन आंदोलन बन जाएगा। वर्तमान शासकीय प्रणाली में स्थाई परिवर्तन की संभावना प्रबल हो जाएगी।
आंदोलन के 72वें दिन कई उतार-चढ़ाव के बाद, किसानों के द्वारा एनसीआर में आज 3 घंटे का चक्का जाम सरकार को सीधा संदेश है। लेकिन सरकार विभिन्न योजनाओं में व्यस्त है। जो इस सीधे संदेश का रूपांतर नहीं करेगी। यह सरकार और सरकारी तंत्र के लिए कैंसर के जैसा होगा। 
अनियंत्रित गति से बढ़ती हुई महंगाई की मार झेलने वाला मध्य वर्ग, आरक्षण से प्रभावित वर्ग, कोरोना काल से प्रभावित वर्ग और समूचा विपक्ष सरकार के सामने अलग-अलग स्थिति में कार्यरत है, और अलग-अलग मोर्चा संभाले हुए हैं। सरकार की खिलाफत हवा में घुल-मिल गई है। भाजपा का झंडा उठाने वाले ज्यादातर लोग उन्हें छोड़ चुके हैं या बदल चुके हैं। सरकार को और भी ऐसे कई पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने की सख्त आवश्यकता है। लेकिन सरकार वह देखना ही नहीं चाहती है जो प्राथमिकता के आधार पर उसे देखने की जरूरत है।
 राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

"आत्मनिर्भर भारत'' 'संपादकीय'

'आत्मनिर्भर भारत'
ऑक्सफोर्ड लैंग्विजेज ने आत्मनिर्भर 'भारत' को 2020 का हिंदी भाषा का शब्द घोषित किया गया है। यह शब्द भाषा विशेषज्ञों कृतिका अग्रवाल पूनम निगम सहाय और इमोगन फॉक्सेल के एक सलाहकार पैनल द्वारा चुना गया है। ऑक्सफोर्ड हिंदी शब्द से यहां तत्पर्य ऐसे शब्द से है। जो पिछले साल के लोकाचार, मनोदशा या स्थिति को प्रतिबिंबित करे और जो सांस्कृतिक महत्व के एक शब्द के रूप में लंबे समय तक बने रहने की क्षमता रखता हो। ऑक्सफोर्ड लैंग्विज’ ने एक बयान में कहा कि प्रधानमंत्री ने जब कोविड-19 से निपटने के लिए पैकेज की घोषणा की थी। तो उन्होंने वैश्विक महामारी से निपटने के लिए देश को एक अर्थव्यवस्था के रूप में एक समाज के रूप में और व्यक्तिगत तौर पर आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया था। उसने कहा कि इसके बाद ही आत्मनिर्भर भारत शब्द का इस्तेमाल भारत के सार्वजनिक शब्दकोष में एक वाक्यांश और अवधारणा के रूप में काफी बढ़ गया। इसका एक बड़ा उदाहरण भारत का देश में कोविड-19 के टीका का निर्माण करना भी है। गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर आत्मनिर्भर भारत अभियान को रेखांकित करते हुए एक झांकी भी निकाली गई थी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया’ के प्रबंध निदेशक शिवरामकृष्णन वेंकटेश्वरन ने कहा कि आत्मनिर्भर 'भारत’ को कई क्षेत्रों के लोगों के बीच पहचान मिली क्योंकि इसे कोविड-19 से प्रभावित अर्थव्यवस्था से निपटने के एक हथियार के तौर पर भी देखा गया। गौरतलब है, कि इससे पहले 2017 में आधार 2018 में नारी शक्ति और 2019 में संविधान को ऑक्सफोर्ड ने हिंदी भाषा का शब्द चुना था। 
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'

सोमवार, 25 जनवरी 2021

...जय किसान 'संपादकीय'

...जय किसान    'संपादकीय'
विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र में 'गणतंत्र दिवस' के मौके पर लोकतांत्रिक व्यवस्था दो भागों में विभाजित हो गई। एक और राजतंत्र और दूसरी तरफ किसान परस्पर एक दूसरे के विरोधी हो गए हैं। 'कृषि' प्रधान लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसान सरकार की अनिती, हट और जबरदस्ती की अवधारणा के विरोध में इस सीमा तक जिद पर अड़ गया है कि संपूर्ण विश्व के सामने वर्तमान सरकार को दोषियों की भांति कटघरे में खड़ा कर दिया है। जनता के द्वारा चुनी गईं सरकार का एक वर्ग, किसानों का भरोसा खो चुकी है। सरकार यदि गरीब-मजदूर को ही गणतंत्र का आधार मान रही है, तो सरकार को यह बात समझ लेनी चाहिए कि किसान और गरीब-मजदूर परस्पर एक दूसरे के सहयोगी है और उनका रिश्ता आजीवन बना रहता है। दोनों सदैव एक दूसरे के पूरक बने रहते हैं। "मुट्ठी भर अरबपतियों से गणतंत्र प्रतिस्थापित नहीं होता है। वरन, अरबपति वर्ग गणतंत्र से प्रतिस्थापित होता हैं। 
किसान और मजदूर दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं। देश का किसान और मजदूर वर्ग ही वास्तविक रूप में गणतंत्र का ताना-बाना है। इस ताने-बाने के विरुद्ध खड़ी सरकार को अपने पैरों के नीचे की जमीन का ध्यान रखना चाहिए। जिस राष्ट्र में 'जय जवान-जय किसान' का उद्घोष होता है। उसी देश में जवान और किसान अलग-अलग मोर्चा संभाल रहे हैं। 'गणतंत्र दिवस' पर लोगों को विभाजित कर दिया गया है। यह  मोर्चाबंदी दुनिया के अन्य देशों के लिए एक सीख होगी। सरकार की दमनकारी नीतियों से विश्व में भारत गणराज्य की वास्तविक स्थिति का जो खाका तैयार होगा। वह किसी भी सूरत में भारत के स्वरूप को कितना मैला और कुचैला कर सकता है। इसका शायद सरकार को भान नहीं है। राष्ट्र की प्रतिष्ठा और गौरव दोनों को भारी क्षति होगी। ब्लकि, विश्व पटल पर राष्ट्र को एक बदसूरत तस्वीर के रूप में पेश किया जाएगा। यह 'गणतंत्र दिवस' संवैधानिक ढांचे और संसद के बीच गणतंत्र की पैरवी नहीं कर रहा है। देश की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा संविधान और उससे प्राप्त अधिकार से संसद को गणतंत्र की आभा से साक्षात करने का कार्य कर रहा है। दोनों पक्षों के परस्पर विरोध से राष्ट्र को आवश्यक रूप से क्षति पहुंचेगी। हालांकि, अंत में किसी एक पक्ष को तो झुकना ही होगा। विश्वास कीजिए, वह केवल 'सरकार' ही होगी। आंदोलनकारियों का 'धर्म' आंदोलन है। जिसे लोकतंत्र में किसी प्रकार से रोका नहीं जा सकेगा।
 राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

मंगलवार, 5 जनवरी 2021

किसान हित 'संपादकीय'

किसान हित   'संपादकीय' 
गाजियाबाद के शमशान घाट हादसे से प्रत्येक विवेकी मनुष्य का मन पीड़ा से कराह उठा हैं। यह हादसा सरकार के दावे और वायदों की असलियत से रूबरू कराता है। अन्य सरकारों की भांती यह सरकार भी कटघरे में खड़ी है। कुछ मोहरों पर कार्रवाई की खानापूर्ति की गई है और असली गुनाहगार मसीहा बनकर घूम रहे हैं।
यह एक ऐसा उदाहरण है जो किसानों के हितों में लागू किए गए तीनों कृषि विधायकों को इंगित करता है। इस हादसे से सैकड़ों लोगों के जीवन में घना अंधेरा छा गया है। वहीं, दूसरी तरफ लाखों किसान आंदोलन की धार को तेज करने में संघर्षरत है। क्योंकि किसानों के हित में सरकार कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहती है। किसान उस हित को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कई बार सरकार और किसान नेताओं के बीच बेनतीजा वार्तालाप भी हो चुकी है। आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली सरकार किसानों के हित में जिद पर क्यों अड़ी हुई है ? इस हित की जंजीर किसानों के पैरों में क्यों डालना चाहती है सरकार ? आंदोलनकारी किसान और सहायता करने वाले समर्थित लोगों को गहरी यातनाएं झेलनी पड़ रही है। बीमार, लाचार, बालक, बूढ़े और तीमारदार आदि सभी वर्ग और समूह के किसान कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे दुख और दर्द में सरकार का विरोध कर रहे हैं। 
सरकार कृषि कानून वापस नहीं करेगी। क्योंकि सरकार की खूब किरकिरी तो हो चुकी है। कानून वापस लेते ही सरकार की प्रतिष्ठा खंडित हो जाएगी। पूर्ण बहुमत की सरकार गठित करने का मान भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा। किसान को कमजोर करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। जर-जर और निरीह किसान को उस स्तर तक ले जाया जाएगा। जहां उसमें विरोध करने का दम ही ना बचें।
ऐ, दोस्त तू तो बड़ा मशहूर हो गया। 
इतना लाड-प्यार और तू दूर हो गया। 
गंद भाती नहीं मेरे जिस्म की, हुजूर हो गया। 
ऐसा तो कुछ भी नहीं तेरे पास कि गुरूर हो गया। 
तू मान ना मान, तुझे कुछ तो जरूर हो गया।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

शनिवार, 2 जनवरी 2021

ना कोई चोर-ना मुंह जोर, कोई और 'संपादकीय'

ना कोई चोर-ना मुंह जोर, कोई और   'संपादकीय'
अक्सर जब दो पहलवान अखाड़े में जोर आजमाइश करते हैं तो निश्चित रूप से एक को हार दूसरे को विजय अवश्य मिलती है। लेकिन राजनीति का दंगल जरा हटकर है। यहां शाख कोई बनाता है, भीड़ कोई जमाता है और उसका आनंद कोई और ही लेता है।
अगर हम उत्तर-प्रदेश की बात करें तो ज्यादातर विधानसभाओं का यही हाल है। लेकिन इसका एक प्रमाणिक सिद्धांत लोनी विधानसभा क्षेत्र हैं। जिसमें उत्तर-प्रदेश की सबसे बड़ी नगर पालिका भी सम्मिलित है। नगरीय क्षेत्र की दयनीय हालत किसी से छुपी नहीं है। इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ कोरी राजनीति है। इसे आप घटिया राजनीति भी कह सकते हैं। जिसके चलते क्षेत्र मुख्य विकास धारा से पिछड़ गया है। जनता के हितों को लेकर चिंतन और मनन का अभाव प्रतीत होता है। जनता शायद इसका जवाब आगामी विधानसभा चुनाव में देने की फिराक में है। जनप्रतिनिधित्तव का खोकलापन और आडंबर के स्वांग को जनता भी खूब समझने लगी है। कई सालों से विकास की उम्मीद लगाए बैठी जनता को ढेर सारी निराशा के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ होता रहा है। 
अबकी बार जनता को भी खेलने का मौका मिलेगा। इसके लिए स्लोगन भी तैयार किया गया है। आपको यह पसंद आएगा, लेकिन केवल पसंद करने से ही काम नहीं चलने वाला है। आपको इस पर कम से कम थोड़ा अमल भी करना होगा। "अबकी बार ना कोई चोर, ना कोई मुंहजोर, कोई और" को आधार बनाने की जरूरत है। किस पार्टी का कैडर क्या है, किस पार्टी से किसको टिकट मिला है? इससे ज्यादा जरूरी है की किसमें क्षमता, जनहित को समर्पित भावना, जन-जन को मुख्यधारा से जोड़ने का जुनून व बुनियादी ढांचे को बदलने की विचार-शक्ति हैं। ऐसे व्यक्ति का चुनाव करने के लिए आपको संकल्प ले लेना चाहिए। आपने किसी के साथ बंधुआ करार तो किया नहीं है। इसलिए उसी के साथ सहयोग की भावना रखनी चाहिए जो आपकी समस्याओं पर संजीदगी से काम करने को तत्पर है। यदि आप स्वयं बदलाव के लिए पहल नहीं करेंगे तो फिर आप पश्चाताप के अलावा कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं। विधानसभा चुनाव 2022 अभी काफी दूर है। लेकिन इसके लिए जद्दोजहद शुरू हो चुकी है।
 राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

25 मई को खुलेंगे 'हेमकुंड साहिब' के कपाट

25 मई को खुलेंगे 'हेमकुंड साहिब' के कपाट पंकज कपूर  देहरादून। हेमकुंड साहिब के कपाट आगामी 25 मई को खोले जाएंगे। इसके चलते राज्य सरका...