मंगलवार, 5 जनवरी 2021

किसान हित 'संपादकीय'

किसान हित   'संपादकीय' 
गाजियाबाद के शमशान घाट हादसे से प्रत्येक विवेकी मनुष्य का मन पीड़ा से कराह उठा हैं। यह हादसा सरकार के दावे और वायदों की असलियत से रूबरू कराता है। अन्य सरकारों की भांती यह सरकार भी कटघरे में खड़ी है। कुछ मोहरों पर कार्रवाई की खानापूर्ति की गई है और असली गुनाहगार मसीहा बनकर घूम रहे हैं।
यह एक ऐसा उदाहरण है जो किसानों के हितों में लागू किए गए तीनों कृषि विधायकों को इंगित करता है। इस हादसे से सैकड़ों लोगों के जीवन में घना अंधेरा छा गया है। वहीं, दूसरी तरफ लाखों किसान आंदोलन की धार को तेज करने में संघर्षरत है। क्योंकि किसानों के हित में सरकार कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहती है। किसान उस हित को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कई बार सरकार और किसान नेताओं के बीच बेनतीजा वार्तालाप भी हो चुकी है। आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली सरकार किसानों के हित में जिद पर क्यों अड़ी हुई है ? इस हित की जंजीर किसानों के पैरों में क्यों डालना चाहती है सरकार ? आंदोलनकारी किसान और सहायता करने वाले समर्थित लोगों को गहरी यातनाएं झेलनी पड़ रही है। बीमार, लाचार, बालक, बूढ़े और तीमारदार आदि सभी वर्ग और समूह के किसान कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे दुख और दर्द में सरकार का विरोध कर रहे हैं। 
सरकार कृषि कानून वापस नहीं करेगी। क्योंकि सरकार की खूब किरकिरी तो हो चुकी है। कानून वापस लेते ही सरकार की प्रतिष्ठा खंडित हो जाएगी। पूर्ण बहुमत की सरकार गठित करने का मान भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा। किसान को कमजोर करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। जर-जर और निरीह किसान को उस स्तर तक ले जाया जाएगा। जहां उसमें विरोध करने का दम ही ना बचें।
ऐ, दोस्त तू तो बड़ा मशहूर हो गया। 
इतना लाड-प्यार और तू दूर हो गया। 
गंद भाती नहीं मेरे जिस्म की, हुजूर हो गया। 
ऐसा तो कुछ भी नहीं तेरे पास कि गुरूर हो गया। 
तू मान ना मान, तुझे कुछ तो जरूर हो गया।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'

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