रविवार, 5 मई 2024

सत्ता परिवर्तन 'संपादकीय'

सत्ता परिवर्तन  'संपादकीय' 

जीत का मंसूबा लेकर, हम हरेक बाज़ी हार गए। 
भारत में 143 शेष है, इंडिया वाले 400 पार गए।

देश में एक बड़े परिवर्तन की हवा चल रही है, नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का स्तर तेजी से गिर रहा है, वहीं विपक्ष के नेतृत्व का स्तर बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। पत्रकारिता के बड़े-बड़े चेहरो का भाव बदल गया है, देश और दुनिया का हाल बताने वालों के बोल बदल गए हैं। जिनकी जुबां भाजपा-भाजपा बोलते थकती नहीं थी, आज आप भी देख रहे हैं कि उनके हाल-चाल ही बदल गए हैं। 
सामान्य लोकसभा चुनाव के दो चरणों के चुनाव और समीकरण भाजपा के हित में नहीं दिख रहे हैं। जनता खुले मंच से अपने आत्मीय भाव प्रकट कर रही है। देश में महंगाई, बेरोजगारी और सत्ताधारी पार्टी के द्वारा किए गए निजीकरण की सच्चाई जनता के होठों पर मुखर हो गई है। मोदी के नेतृत्व में भाजपा के पीछे चलने वाली भीड़ तीतर-भीतर हो गई है। ढेर सारा रुपया खर्च करने के बाद भी भाजपा की रैलियों का आलम ऐसा हो गया है कि जैसे बिन दूल्हा बारात होती है। 'मुफ्त का राशन और घटिया भाषण' जनता को जंच नहीं रहा है। भाजपा के हालात पर तरस करने का भी कोई फायदा नहीं है। क्योंकि प्रकृति का एक ही नियम है परिवर्तन। जनता मन बना चुकी है और परिवर्तन के आसार भी दिखाई देने लगे हैं। 
इंडिया गठबंधन और कांग्रेस के राहुल व प्रियंका को बोलना आ गया है, जो कल तक पप्पू था आज राहुल बाबा हो गया है। इतना प्रारंभिक परिवर्तन जन भावना को परिवर्तित करने का काम कर रहा है। कांग्रेस 400 पार जाएगी या नहीं ? लेकिन भाजपा किनारे लग गई है। जिस प्रकार से चुनाव प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप और घोषणाओं की खचापच हो गई है। ऐसा लगता है कि भाजपा के नेता विषय से भटक गये है। 
प्रधानमंत्री महिलाओं के मंगलसूत्र की चिंता कर रहे हैं। राहुल गांधी मनरेगा में दहाड़ी मजदूरों की दहाड़ी बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। राहुल की यात्रा उनकी मनोदशा का प्रमाण है, उनकी चिंता और लक्ष्य का कोई उदाहरण उनकी बढ़ती हुई दाढ़ी पर प्रतीत नहीं होता है। लेकिन उनका चुनावी समर रणक्षेत्र में शत्रु की रणनीति पर विशेष प्रभाव छोड़ रहा है। भाजपा की कूटनीति और राजनीति का रंग उनके सामने फीका पड़ रहा है। राहुल के पीछे जनता का स्नेह जन सैलाब बनाकर उफन रहा है। भाजपा का आत्मविश्वास और मनोबल धराशाई हो रहा है। एक पप्पू, एक दिन राहुल बाबा बन जाएगा। यह तो सत्तारुढ भाजपा ने सोचा ही नहीं था। परिणाम स्वरुप यह चुनाव भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं दे रहा है। 
राधेश्याम   'निर्भयपुत्र'

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