सोमवार, 28 सितंबर 2020

डीएम-एसपी ने जाना कैदियों का हाल

जेल पहुच कर डीएम और एसपी ने जाना कैदियो का हाल


तारकेशवर मिश्रा


अमेठी। जिलाधिकारी अरुण कुमार व पुलिस अधीक्षक दिनेश सिंह ने आज जिला कारागार रायबरेली का संयुक्त रूप से निरीक्षण किया गया। जनपद अमेठी में जिला कारागार न होने के कारण तहसील तिलोई के थाना जायस, फुरसतगंज मोहनगंज व शिवरतनगंज के अपराधियों को रायबरेली जेल भेजा जाता है। आपको बता दें कि डीएम व एसपी ने जिला कारागार रायबरेली का आज निरीक्षण किया। जिला कारागार रायबरेली में जनपद अमेठी के 170 अपराधी बंद हैं। जिनमें से 15 अपराधी दोष सिद्ध हैं। व 155 अपराधी न्यायालय में विचाराधीन है। इस दौरान जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक द्वारा महिला बैरक कारागार चिकित्सालय व अन्य बन्दियों की बैरकों का निरीक्षण किया गया।  डीएम व एसपी ने चिकित्सालय में भर्ती बंदियों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली एवं उनके समुचित उपचार हेतु डॉक्टरों को निर्देश दिए। इसके बाद उन्होंने बैरकों में कैदियों के सामानों एवं बिस्तरों की सघन तलाशी ली गयी। डीएम ने बैरकों में नियमित रूप से साफ-सफाई कराने हेतु अधीक्षक को निर्देशित किया। उन्होंने कहा कि जेल के अन्दर किसी भी तरह के प्रतिबन्धित सामाग्री को अन्दर कदापि न जाने दिया जाये। 
जिला कारागार में जिलाधिकारी ने जनपद अमेठी के कैदियों से बात-चीत कर उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी ली बन्दियों द्वारा परिवार वालों से मुलाकात करने की समस्या बताई जिस पर जिलाधिकारी ने कैदियों को अवगत कराया कि शासन के निर्देश पर कोविड-19 के दृष्टिगत मुलाकात बंद है। इसके लिए उन्होंने फोन के माध्यम से बंदियों के घरवालों से बात कराने के निर्देश जेल अधीक्षक को दिए। 
जिलाधिकारी ने जिला कारागार में रसोई घर का भी निरीक्षण किया और साफ-सफाई से भोजन बनाये जाने के निर्देश दिये। निरीक्षण के दौरान जिलाधिकारी ने कहा कि प्रतिदिन समस्त बैरकों में बन्दियों की सघन तलाशी करायी जाये यदि किसी बन्दी के पास कोई आपत्तिजनक वस्तुयें बरामद हो । तो तत्काल सम्बन्धित के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही भी सुनिश्चित की जाये। उन्होंने कहा कि बन्दियों के भोजन गुणवत्ता की भी समय पर जांच कराते रहे तथा शौचालय एवं नालियों आदि की समुचित सफाई व्यवस्था सुनिश्चित करायी जाये।           


जयंतीः गांधी-भगत के बीच कैसे थे रिश्ते ?

जयंती विशेष: गांधी और भगत सिंह के बीच कैसे थे रिश्ते ? क्या गांधी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश नहीं की?


नई दिल्ली। भगत सिंह बर्थडे, ‘दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त, मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी’, आज का दिन लाल चन्द फ़लक के इस शेर को गुनगुनाते हुए आजा़दी के एक ऐसे मतवाले को याद करने का दिन है जिसके लिए आजा़दी ही उसकी दुल्हन थी। आज का दिन ज़मीन-ए-हिन्द की आज़ादी के लिए हंसते हंसते फांसी पर चढ़ जाने वाले उस परवाने को याद करने का दिन है, जिसके ज़ज्बातों से उसकी कलम इस कदर वाकिफ थी कि उसने जब इश्क़ भी लिखना चाहा तो कलम ने इंकलाब लिखा। आज का दिन शहीद-ए-आजम भगत सिंह को याद करने का दिन है। भगत सिंह भारत मां के वही सच्चे सपूत हैं जिन्होंने अपना लहू वतन के नाम किया तो आज हमें आज़ादी का ज़श्न हर साल मनाने का मौका मिलता है।
आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्मदिन है। 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) उनका जन्म हुआ था। गुलाम भारत में पैदा हुए भगत सिंह ने बचपन में ही देश को ब्रितानियां हुकूमत से आज़ाद कराने का ख़्वाब देखा। छोटी उम्र से ही उसके लिए संघर्ष किया और फिर देश में स्थापित ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाकर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया। वह शहीद हो गए लेकिन अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक युवाओं को प्रभावित करता है। आज भी भगत सिंह की बातें देश के युवाओं के लिए किसी प्रतीक की तरह बने हुए हैं।
हालांकि यह बहस भी साथ-साथ चलती रहती है कि भगत सिंह जिन्होंने महज़ 23 साल की उम्र में अपनी जान देश के लिए दे दी उनको दूसरे स्वतंत्रा सेनानियों की तरह पहली पंक्ति में जगह नहीं मिलती। शिकायत खास तौर पर महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू को लेकर रहती है। कहा जाता है कि दो स्वतंत्रता सेनानी इतिहास में ऐसे रहें जिनको जो उचित स्थान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। एक नाम भगत सिंह का होता है तो दूसरा सुभाष चंद्र बोस का। कहा यह भी जाता है कि सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह एक ही विचारधारा के थे, जबकि गांधी और नेहरू उनसे थोड़ा अलग मत रखते थे। महात्मा गांधी तो हिंसा के सख्त खिलाफ थे। आज के दौर में जब नेहरू और गांधी पर कई तरह के इल्ज़ाम लगते हैं तो उनमें से एक यह भी है कि अगर नेहरू और गांधी चाहते तो भगत सिंह राजगुरू और सुखदेव को फांसी से बचाया जा सकता था। वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू पर यह भी इल्ज़ाम लगता है कि उन्होंने अपनी चतुराई से इतिहास के पन्ने में अपने लिए वह जगह बना लिया जो भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस को मिलना चाहिए था।
ऐसे में जब आज हर बात के लिए नेहरू और गांधी को कठघरे में डाला जा रहा है तो यह जानना जरूरी है कि भगत सिंह खुद जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी के बारे में किस तरह का विचार रखते थे। साथ ही इस सवाल का जवाब भी तलाशने की कोशिश करेंगे कि क्या वाक़ई महात्मा गांधी ने भगत सिंह को फांसी से बचाने का प्रयास नहीं किया था, जैसा की कई बार इल्जाम लगाया जाता है?
क्या महात्मा गांधी ने भगत सिंह को फांसी से बचाने का प्रयास नहीं किया था?
पूर्ण स्वराज को लेकर गांधी और भगत सिंह के रास्ते बिलकुल अलग थे।गांधी अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार मानते थे और उनका कहना था कि “आंख के बदले में आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी”, जबकि भगत सिंह का साफ मानना था कि बहरों को जगाने के लिए धमाके की जरूरत होती है। एक का रास्ता केवल राजनीतिक सत्ता के हस्तांतरण पर केंद्रित था जबकि दूसरे की दृष्टि स्वतंत्र भारत को एक समाजवादी और एक समतावादी समाज में बदलने की थी।
1931 में जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी तब तक उनका कद भारत के सभी नेताओं की तुलना में अधिक हो गया था।पंजाब में तो लोग महात्मा गांधी से ज्यादा भगत सिंह को पसंद करते थे। यही वजह है कि भगत सिंह को फांसी मिलने के बाद गांधी जी को भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
भगत सिंह की फांसी के तीन दिन बाद, कांग्रेस के कराची अधिवेशन हुआ। उस वक्त देश भर में भगत सिंह की फांसी का विरोध नहीं करने के लिए गांधी के खिलाफ गुस्से का माहौल था। जब गांधी अधिवेशन में शामिल होने के लिए पहुंचे, तो नाराज युवाओं द्वारा काले झंडे दिखाकर उनके खिलाफ नारेबाजी की गई। ”डाउन विद गांधी” लिखा हुआ प्लेकार्ड उन्हें दिखाया गया। यह वह वक्त था जब भगत सिंह युवाओं के प्रतीक बन गए थे।
अब सवाल कि क्या गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया। इसका जवाब है बिल्कुल किया था। गांधी और भगत सिंह का आजादी पाने को लेकर रास्ता बेशक अलग रहा हो और इसको लेकर दोनों के बीच मतभेद भी थे, लेकिन अंतिम अवस्था तक आते-आते गांधी को भगत सिंह के प्रति बहुत अधिक सहानुभूति हो चली थी। जब भगत सिंह को तय समय से एक दिन पहले ही फांसी दिए जाने की खबर मिली तो गांधी काफी देर के लिए मौन में चले गए थे।
महात्मा गांधी ने 23 मार्च 1928 को एक निजी पत्र लिखा था और भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी पर रोक लगाने की अपील की थी। इस बात का जिक्र माय लाइफ इज माय मैसेज नाम की किताब में है। उन्होंने पत्र में वायसराय इरविन को लिखा था, ”शांति के हित में अंतिम अपील करना आवश्यक है। हालांकि आपने मुझे साफ -साफ बता दिया है कि भगत सिंह और अन्य दो लोगों की मौत की सजा में कोई भी रियायत की आशा न रखूं लेकिन डा सप्रू कल मुझे मिले और उन्होंने बताया कि आप कोई रास्ता निकालने पर विचार कर रहे हैं।”
गांधी जी ने पत्र में आगे लिखा, ” अगर फैसले पर थोड़ी भी विचार की गुंजाइश है तो आपसे प्रार्थना है कि सजा को वापस लिया जाए या विचार करने तक स्थगित कर दिया जाए. गांधी जी ने आगे लिखा, ”अगर मुझे आने की आवश्कता होगी तो आऊंगा। याद रखिए कि दया कभी निष्फल नहीं जाती।”
गांधी जी द्वारा लिखे इस खत से साफ पता चलता है कि आखिरी समय तक उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों की सजा कम करवाने और उन्हें माफी दिलाने का प्रयास किया। भगत सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए गांधी ने 29 मार्च, 1931 को गुजराती नवजीवन में लिखा था- ”वीर भगत सिंह और उनके दो साथी फांसी पर चढ़ गए। उनकी देह को बचाने के बहुतेरे प्रयत्न किए गए, कुछ आशा भी बंधी, पर वह व्यर्थ हुई। भगत सिंह अहिंसा के पुजारी नहीं थे, लेकिन वे हिंसा को भी धर्म नहीं मानते थे। इन वीरों ने मौत के भय को जीता था। इनकी वीरता के लिए इन्हें हजारों नमन हों।”
नेहरू को लेकर भगत सिंह के क्या विचार थे।
भगत सिंह जवाहर लाल नेहरू को लेकर क्या सोचते थे और क्या वह सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित थे। इस सवाल का जवाब 1928 में भगत सिंह द्वारा लिखे गए एक पत्र से मिल जाता है। किरती नामक एक पत्र में ‘नए नेताओं के अलग-अलग विचार’ शीर्षक से भगत सिंह ने एक लेख लिखा था। इस लेख में उन्होंने बोस और नेहरू के नजरिये की तुलना की है। भगत सिंह ने अपने इस लेख में जहां एक तरफ नेहरू को अंतरराष्ट्रीय दृष्टि वाला नेता माना तो वहीं सुभाष चंद्र बोस को प्राचीन संस्कृति के पक्षधर के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, ”इन दोनों सज्जनों के विचारों में जमीन-आसमान का अन्तर है।” भगत सिंह सुभाषचन्द्र बोस को एक बहुत भावुक बंगाली मानते थे जो अपनी संस्कृति पर गर्व करता था। इसको सपष्ट करने लिए भगत सिंह ने बोस के भाषण का अपनी लेख में जिक्र किया है।
भगत सिंह ने कहा है जहां एक तऱफ बोस अपने भाषण में कहते थे कि हिन्दुस्तान का दुनिया के नाम एक विशेष सन्देश है। वह दुनिया को आध्यात्मिक शिक्षा देगा। तो वहीं फिर वह लोगों से वापस वेदों की ओर ही लौट चलने का आह्वान करते हैं। आपने अपने पूणा वाले भाषण में उन्होंने ‘राष्ट्रवादिता’ के संबंध में कहा है कि अन्तर्राष्ट्रीयतावादी, राष्ट्रीयतावाद को एक संकीर्ण दायरे वाली विचारधारा बताते हैं, लेकिन यह भूल है। हिन्दुस्तानी राष्ट्रीयता का विचार ऐसा नहीं है।वह न संकीर्ण है, न निजी स्वार्थ से प्रेरित है और न उत्पीड़नकारी है, क्योंकि इसकी जड़ या मूल तो ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ है अर्थात् सच,कल्याणकारी और सुन्दर।
वहीं भगत सिंह ने जवाहर लाल नेहरू जिक्र करते हुए लिखा है, ”पण्डित जवाहरलाल आदि के विचार बोस से बिल्कुल विपरीत हैं.” भगत सिंह ने बताया कि नेहरू कहते हैं — “जिस देश में जाओ वही समझता है कि उसका दुनिया के लिए एक विशेष सन्देश है। इंग्लैंड दुनिया को संस्कृति सिखाने का ठेकेदार बनता है। मैं तो कोई विशेष बात अपने देश के पास नहीं देखता। सुभाष बाबू को उन बातों पर बहुत यकीन है.” जवाहरलाल कहते हैं, ”प्रत्येक नौजवान को विद्रोह करना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्र में भी। मुझे ऐसे व्यक्ति की कोई आवश्यकता नहीं जो आकर कहे कि फलां बात कुरान में लिखी हुई है। कोई बात जो अपनी समझदारी की परख में सही साबित न हो उसे चाहे वेद और कुरान में कितना ही अच्छा क्यों न कहा गया हो, नहीं माननी चाहिए।
भगत सिंह के लेख से साफ है कि वह एक तरफ जहां बोस को पुरातन युग पर विश्वास करने वाला बताते हैं तो वहीं जवाहर लाल नेहरू को परंपराओं से बगावत करने वाले नेता के तौर पर देखते हैं जिनकी अपनी एक अंतरराष्ट्रीय समझ भी है। भगत सिंह का मानना था कि बोस हर चीज की जड़ प्राचीन भारत में देखते हैं और मानते हैं कि भारत का अतीत महान था। दरअसल भगत सिंह यहां बोस से ज्यादा नेहरू को तवज्जो देते हैं। उन्होंने लेख में लिखा है कि पंजाब के युवाओं को बौद्धिक खुराक की शिद्दत से जरूरत है और यह उन्हें सिर्फ नेहरू से मिल सकती है।           


पंजाबी महिला महासभा की बैठक आयोजित

पंजाबी महिला महासभा की बैठक आयोजित हुई- पंजाबी महिला महासभा की नगर अध्यक्ष बहेड़ व प्रदेश अध्यक्ष अरोड़ा द्वारा कार्यक्रम आयोजित ।


किशान गुप्ता


गदरपुर। रविवार को सकैनिया मोड़ स्थिति ड्रीम कैफे में पंजाबी महिला महासभा की एक बैठक आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता पंजाबी महिला महासभा की नगर अध्यक्ष सपना बेहड़ द्वारा की गई, वहीं मुख्य अतिथि के रूप में पहुंची पंजाबी महिला महासभा की प्रदेश अध्यक्ष शिल्पी अरोड़ा के महिलाओं द्वारा पुष्प गुच्छ देकर जोरदार स्वागत किया गया।
 इस दौरान बैठक में आपसी परिचय करते हुए पंजाबी समाज में फैल रही कुरीतियों को रोकने के लिए विचार-विमर्श किया गया, इसके अलावा पंजाबी समाज की महिलाओं की सामाजिक कार्यो में भागीदारी बढ़ाने की बात कही। बैठक को संबोधित करते हुए शिल्पी अरोड़ा द्वारा कहा गया कि महिलाओं को अपने हक के लिए आगे आकर अपने हक की लड़ाई लड़ने की आवश्यकता है।हमारे समाज में अब तक महिलाओं को कमजोर समझा जाता रहा है।जिसकी बजह से उन्हें आगे बढ़ने का मौका नही मिल पाया है समाज की इसी सोच को बदलने की आवश्यकता है, इसी उद्देश्य के चलते पंजाबी महिला महासभा के गठन किया गया है। 
वहीं सपना बेहड़ द्वारा कहा गया कि जल्द ही प्रदेश अध्यक्ष शिल्पी अरोड़ा के निर्देशानुसार पंजाबी महिला महासभा की नगर कार्यकारिणी का गठन कर घोषणा की जाएगी साथ ही उनके द्वारा कहा गया कि पंजाबी महिला महासभा द्वारा पंजाबी समाज को एकजुट करने व मजबूत बनाने का हर सम्भव प्रयास किया जाएगा।
इस दौरान प्रदेश सचिव सिमरन जीत कौर, गुरमीत कौर, कृष्णा वर्मा, सुमित्रा रानी, राधा रानी, नैना बत्रा, मेघना बठला, काजल मल्होत्रा, जसमीत संधू, सोनाली गाबा, इंदु गुम्बर, बबिता छाबड़ा, बीना गुम्बर, अर्चना, संतोष, कंचन सहित दर्जनों महिलाएं उपस्थित रहीं। वहीं उत्तरांचल पंजाबी महासभा के नगर अध्यक्ष किशन लाल सुधा, महामंत्री संजीव झाम, कोषाध्यक्ष किशन लाल अनेजा, युवा अध्यक्ष पारस धवन, युवा कोषाध्यक्ष चिराग मुरादिया, संदीप चावला, कमल अरोरा आदि भी उपस्थित रहे।             


ड्राइवर ने रेड सिग्नल में दौडाई रेलगाड़ी

ट्रेन ड्राइवर ने रेड सिग्नल में दौड़ा दी मालगाड़ी जानिए फिर क्या हुआ।


लखनऊ। बरेली से लखनऊ की ओर मालगाड़ी लेकर जा रहे बरेली जंक्शन के दो लोको पायलट ने काकोरी स्टेशन पर रेड सिग्नल के बावजूद मालगाड़ी को दौड़ा दिया। लापरवाही के आरोप में दोनों लोको पायलट का लखनऊ में मेडिकल हुआ। लखनऊ से दूसरे लोको पायलट भेजकर मालगाड़ी को आगे रवाना कराया गया। वह तो अच्छा हुआ जो मालगाड़ी डिरेलमेंट होने से बच गई। मुरादाबाद डिवीजन ने दोनों लोको पायलट को बुक ऑफ कर दिया है। सोमवार को मंडल ऑफिस तलब किया गया। दोनों पर निलंबन की कार्रवाई हो सकती है।
रेल सूत्रों का कहना है। कि रविवार रात 8:00 बजे श्रमजीवी गुजारने के लिए काकोरी स्टेशन पर सिग्नल दिया गया। मालगाड़ी रोकने के लिए रेड सिग्नल था। मगर बरेली के लोको पायलट ज्ञानचंद और अमित कुमार ने अनदेखी करते हुए मालगाड़ी दौड़ाकर होम सिग्नल पार कर दिया। जबकि मालगाड़ी को रोकने के बाद पॉइंट बनाकर दूसरे ट्रैक से गुजारा जाना था। मगर दोनों लोको पायलट ने रेड सिग्नल के बाद भी अनदेखी करते हुए सिग्नल ओवरशूट कर दिया। काकोरी स्टेशन मास्टर ने सिग्नल ओवरशूट की रेल कंट्रोल को सूचना दी। माल गाड़ी को रुकवाया गया।
लोको पायलट ज्ञान चन्द्र और अमित कुमार का मेडिकल कराया। मलिहाबाद में करीब आधा घंटे तक श्रमजीवी खड़ी रही। उत्तर रेलवे मुरादाबाद रेल मंडल के सीनियर डीओएम ने लोको पायलट ज्ञान चन्द्र और अमित कुमार को बुक ऑफ कर दिया। सोमवार को दोनों को मंडल आफिस तलब किया है। इस तरह की लापरवाही में सीधे निलंबन की कार्रवाई होती है। अगर माल गाड़ी की स्पीड अधिक होती तो लोको पायलट की लापरवाही से बड़ा रेल हादसात्र तक गाड़ी लेकर जानी थी। वहां से स्टॉफ़ चेंज होता।                   


विधेयकों के खिलाफ लाया जाएगा प्रस्ताव

मुख्यमंत्री भूपेश बधेल ने कहा-कृषि विधेयकों के खिलाफ छत्तीसगढ़ विधानसभा में लाया जाएगा प्रस्ताव।


रायपुर। संसद में पारित किए गए तीन कृषि विधेयकों को असंवैधानिक  करार देते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रविवार को कहा कि इसका विरोध करते हुए राज्य विधानसभा के अगले सत्र में एक प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इन विधेयकों के क्रियान्वयन के खिलाफ जरूरत पड़ने पर कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी।
बघेल ने यह आरोप भी लगाया अनुबंध कृषि के जरिए किसानों की जमीन कॉरपोरेट घरानों को सौंपने की साजिश की जा रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र ने इन विधेयकों को पिछले दरवाजे से ऐसे वक्त में लाया जब देश कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहा है। और मीडिया बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की कवरेज (गुत्थी सुलझाने) में व्यस्त है। बघेल ने कहा हम राज्य विधानसभा के अगले सत्र में (कृषि विधेयकों का विरोध करते हुए) एक प्रस्ताव लाएंगे और यदि जरूरत पड़ी तो उन्हें लागू किये जाने के खिलाफ (हम) कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।बघेल ने कहा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार किसानों के हितों के लिये प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री ने कहा।केंद्र के पास कृषि पर विधान बनाने की शक्ति नहीं है। जो कि राज्य सूची का विषय है। लोकसभा में पारित तीनों कृषि विधेयक असंवैधानिक हैं। और (संविधान के) संघीय ढांचे का उल्लंघन करते हैं।उन्होंने कहा कि विधेयक का मसौदा शांता कुमार समिति की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया जो किसान विरोधी गरीब विरोधी है।और सिर्फ कॉरपोरेट घरानों के (हितों के) लिये है। बता दें  कई राज्यों के किसान इन विधेयकों को संसद द्वारा पारित किए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
बघेल ने शांता कुमार समिति की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए आशंका जताई कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) निकट भविष्य में अपनी प्रासंगिकता खो सकता है। और किसानों को अपनी फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिलेगा।
संसद ने हाल ही में संपन्न हुए मॉनसून सत्र में कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 तथा आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक को पारित किया है जिसे अभी राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है।


मुख्यमंत्री ने तीनों विधेयकों पर केंद्र पर झूठ बोलने और किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने श्रम सुधार विधेयकों को लेकर भी केंद्र की आलोचना करते हुए कहा कि ये श्रमिकों के हित में नहीं हैं।
सुशांत मामले में मीडिया कवरेज के बारे में पूछे जाने पर बघेल ने कहा वहां 50 ग्राम गांजा बरामद हुआ और पूरा देश इसके पीछे पड़ा हुआ है। और हमारे राज्य में पुलिस प्रतिदिन 10 क्विंटल वर्जित वस्तु जब्त कर रही है। लेकिन इसे लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही।उन्होंने कहा 50 ग्राम गांजा बरामद करना एनसीबी (स्वापक नियंत्रण ब्यूरो) का काम नहीं है। बल्कि यह थानेदार का काम है।             


कानूनः प्रदर्शन की आग पहुंची 'दिल्ली'

किसान कानून के खिलाफ प्रदर्शन की आग दिल्ली पहुंची, संसद भवन के पास टैक्टर में लगा दी आग।


नई दिल्ली। किसान कानून के खिलाफ प्रदर्शन की आग दिल्ली तक पहुंच गई है। दिल्ली के इंडिया गेट में किसानों ने ट्रैक्टर में आग लगा दी है। पंजाब और हरियाणा के बाद किसानों का प्रदर्शन देश की राजधानी में संसद के बिल्कुल पास तक पहुंच गया है। संसद के करीब इंडिया गेट पर किसानों ने टैक्टर में आग लगा दी. हालांकि प्रदर्शनकारियों को इक्कठा होने नहीं दिया गया।दिल्ली में इंडिया गेट और आस पास के वीआईपी इलाकों में धारा 144 लागू है। और कोरोना वायरस के मद्देनजर लोगों को इकट्ठा होने की इजाजत नहीं है।
पिछले दो हफ्तों से जिन किसान बिलों को लेकर संसद से सड़क तक लड़ाई छिड़ी थी। वो अब कानून बन गए हैं। लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद भी बिल को लेकर बवाल थमा नहीं है। पंजाब में किसानों और सियासी दलों का विरोध और तेज हो रहा है।किसान संगठनों ने पंजाब में रेल रोको प्रदर्शन 29 सितंबर तक बढ़ा दिया है। बिल के खिलाफ अकाली दल जगह-जगह रैली कर रहा है।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती के मौके पर आज पंजाब में किसानों का आंदोलन और तेज होगा। मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भगत सिंह के गांव जाएंगे जहां वो किसान आंदोलन के समर्थन में धरना भी देंगे। बिल को राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद भी कांग्रेस के तेवर कड़े हैं।
कृषि बिलों को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलना अति दुर्भाग्यपूर्ण
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने रविवार को कृषि बिलों को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद इसे निराशाजनक और काफी दुर्भाग्यपूर्ण बताया।इन बिलों का किसान पंजाब में विरोध कर रहे हैं। यहां जारी एक बयान में सुखबीर ने कहा कि यह सच में देश के लिए काला दिन है।क्योंकि राष्ट्रपति ने देश की भावना को दरकिनार कर दिया।             


कृषि बिलों पर देश के लिए काला दिनः सिंह

कृषि बिलों पर राष्ट्रपति ने किए नहस्ताक्षर अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कहा- देश के लिए काला दिन।


नई दिल्ली। विपक्षी दलों और देश के कई राज्यों के किसानों के भारी विरोध के बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को तीनों कृषि विधेयकों पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही ये विधेयक अब कानून बन गए हैं। शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने इसे भारत के लिए काल दिन बताया है।
सुखबीर बादल ने कहा यह वास्तव में भारत के लिए एक काला दिन है। कि राष्ट्रपति ने राष्ट्र के विवेक के रूप में कार्य करने से इनकार कर दिया है। हमें बहुत उम्मीद थी। कि वह इन बिलों को संसद में पुनर्विचार के लिए लौटा देंगे जैसा कि अकाली दल और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने मांग की थी।
गौरतलब है। कि इन कृषि विधेयकों का भारी विरोध हो रहा है। खासतौर से पंजाब और हरियाणा के किसान इस बिल के विरोध में सड़कों पर उतरे हुए हैं।वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल भी इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं। यहां तक की एनडीए में शामिल शिरोमणि अकाली दल ने इन बिलो का विरोध  करते हुए पहले सरकार और फिर एनडीए से बाहर जाने का फैसला कर लिया।  बता दें शिरोमणि अकाली दल बीजेपी का सबसे पुराने सहयोगियों में से एक रहा है।
इससे पहले महाराष्ट्र सरकार में राजस्व मंत्री और कांग्रेस नेता बाला साहेब थोराट ने कहा कि महाराष्ट्र में इन कानूनों को लागू नहीं किया जाएगा। थोराटा ने कहा संसद द्वारा पारित बिल किसान विरोधी है। इसलिए हम इसका विरोध कर रहे हैं।महाविकास अघाड़ी भी इसका विरोध करेगी और महाराष्ट्र में इसे लागू नहीं होने देगी। शिवसेना भी हमारे साथ है। हम एक साथ बैठेंगे और एक रणनीति बनाएंगे।               


'पीएम' मोदी ने अभिनेत्री रश्मिका की तारीफ की

'पीएम' मोदी ने अभिनेत्री रश्मिका की तारीफ की अकांशु उपाध्याय  नई दिल्ली। नेशनल क्रश रश्मिका मंदाना सिर्फ साउथ सिनेमा का ही नहीं, अब ...