शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

सिपाही ने तिहरे हत्याकांड को दिया अंजाम

रांची। राजधानी रांची से जुर्म की बड़ी खबर आ रही है। रांची में ट्रिपल मर्डर की वारदात को अंजाम दिया है ।खबर के मुताबिक रांची के बरगाई में स्पेशल ब्रांच के सिपाही ने ट्रिपल मर्डर की वारदात को अंजाम दिया है। खबर के मुताबिक स्पेशल ब्रांच के सिपाही ब्रजेश ने पत्नी, बेटा और बेटी की हत्या की दी है। बताया जाता है कि ट्रिपल मर्डर की वारदात को अंजाम देने के बाद सिपाही ब्रजेश ने भी जहर खाकर खुदकुशी की कोशिश की है। सिपाही का फिलहाल इलाज चल रहा है। ट्रिपल मर्डर के पीछे का मोटिव क्या है इसको लेकर पुलिस छानबीन कर रही है।


रांची से कुंदन की रिपोर्ट


आरजेडी का मामला सुलझना आसान नहीं

पटना। RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की पहल के बाद भी पार्टी के दो बड़े नेताओं के बीच का विवाद नहीं सुलझ पाया। रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह के बीच शुक्रवार को करीब 1 घंटे तक पार्टी कार्यालय में बंद कमरे में बातचीत तो हुई लेकिन बैठक के बाद दोनों के तेवर ने बता दिया कि मामला सुलझना आसान नहीं है। इन सब के बीच रघुवंश प्रसाद सिंह आज लालू यादव से मुलाकात करेंगे।


रांची के रिम्स में भर्ती लालू प्रसाद यादव से आज रघुवंश प्रसाद सिंह की मुलाकात होगी। लालू यादव से मिलने के लिए रघुवंश प्रसाद 11.30 बजे रिम्स जाएंगे। ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि दोनों के बीच जगदानंद से चल रहे विवाद और रघुवंश प्रसाद की लिखी चिट्ठी पर चर्चा होगी।


दरअसल जगदानंद के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद रघुवंश प्रसाद कई बार खुलेआम उनका विरोध कर चुके हैं। जगदानंद पार्टी को अनुशासन के साथ चलाने पर जोर दे रहे हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं के बेवजह पार्टी ऑफिस में बैठने पर रोक लगा दी। जिसके बाद रघुवंश ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि कार्यकर्ता पार्टी ऑफिस में नहीं बैठेंगे तो कहां जाएंगे, पार्टी अनुशासन के चाबुक से नहीं चलती। इस मामले को लेकर रघुवंश प्रसाद ने लालू यादव को पत्र लिखकर अपना गुस्सा भी जाहिर किया था।


खुशबू गुप्ता


विशेष विमान से 324 लोगों को लाए वापस

नई दिल्ली। भारतीय विशेष विमान चीन के वुहान एयरपोर्ट से 324 भारतीयों को लेकर शनिवार सुबह दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पहुंच गया है। कोरोना वायरस के खतरे को ध्यान में रखते हुए भारत से यह विमान 324 भारतीयों को वापस लाया गया है। वुहान, हुबेई की प्रांतीय राजधानी है। यहां कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा संक्रमण देखा गया है। चीन में अब तक कोरोना वायरस ने 259 लोगों की जान ले ली है और 10,000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।


इस बीच चीन के वुहान से देश लौटने वाले भारतीयों की जांच के लिए सेना ने बड़ी तैयारी की है। भारतीयों को लाने चीन के लिए उड़ा एयर इंडिया का प्लेन वुहान में शुक्रवार शाम करीब 7 बजे लैंड किया।


आपको बताते जाए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना को ग्लोबल इमर्जेंसी घोषित किया है। यहां वायरस संक्रमण के 11,791 मामले सामने आ चुके हैं। दूसरी ओर अस्पतालों में भर्ती 243 लोगों को इलाज के बाद छुट्टी दी जा चुकी है।
आईटीबीपी ने भी दिल्ली में ऐसी व्यवस्था की है, जहां 600 लोगों के इलाज, देखभाल के लिए अलग से बिस्तर की व्यवस्था कर दी है। सेना ने हरियाणा के मानेसर में एक केंद्र बनाया है, जहां चीन से आए लोगों पर निगरानी रखी जाएगी। पहले यात्रियों की हवाईअड्डे पर जांच की जाएगी और उसके बाद उन्हें मानेसर स्थित केंद्र में ले जाया जाएगा। अगर किसी के कोरोना वायरस से ग्रसित होने की आशंका होगी तो उसे दिल्ली कैंट स्थित अस्पताल में बने एक अलग वॉर्ड में शिफ्ट किया जाएगा।


शिकायतः डाटा ऑपरेटर के खिलाफ कार्रवाई

बुलन्दशहर। किसानों ने करीब एक सप्ताह पूर्व प्रभारी मंत्री अशोक कटारिया और सांसद डॉ. भोला सिंह की अध्यक्षता में आयोजित जिला निगरानी समिति की बैठक में अनूपशहर में तैनात डाटा आपरेटर की शिकायत की थी जिसके चलते जिला कृषि उपनिदेशक ने डाटा आपरेटर की सेवा समाप्त करते हुए संबंधित कंपनी को पत्र भेजा है। बता दें कि जिला निगरानी समिति की बैठक में अनूपशहर विधायक संजय शर्मा ने अनूपशहर में तैनात कृषि विभाग के संविदाकर्मी प्रशांत चौधरी पर किसानों से अभद्रता करने और सम्मान निधि के लिए डाटा दुरुस्त कराने के एवज में रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था। इसे देखते हुए प्रभारी मंत्री अशोक कटारिया और डीएम रविंद्र कुमार ने मामले की जांच कर तुरंत हटाने के आदेश जारी किया था। कृषि उपनिदेशक आरपी चौधरी ने सक्षम अधिकारी से मामले की जांच कर डाटा आपरेटर प्रशांत चौधरी की सेवा समाप्त कर दी। इसके साथ ही संबंधित कंपनी के चार्टर्ड एकाउंटेंट को पत्र भी लिखा है। इसके बाद किसानों की समस्याओं को देखते हुए दूसरे आपरेटर की भी मांग की गई है।


गर्भवती के लिए खतरनाक खराश

सर्दी के मौसम में गले में खराश, जलन और दर्द होना आम समस्या है। लेकिन इस दौरान खाने-पीने में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासतौर पर अगर यह समस्या किसी गर्भवती महिला को हो जाती है तो उसके लिए तकलीफ कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। यहां जानिए, सामान्य दिनों के साथ गर्भावस्था में गले के दर्द से मुक्ति दिलाने वाले आसान घरेलू उपाय… 
क्यों होती है सोर थ्रोट की दिक्कत?


गले में दर्द या सूजन अधिकतर वाइरल के दौरान या बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण होती है। इस दौरान गले में दर्द और जलन की समस्या होती है। गर्भावस्था में महिलाओं को जी मितली की समस्या भी होती है, इस कारण भी उन्हें कई बार गले से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 
गुनगुना पानी पिएं 
खाने के बाद या जब भी प्यास लगे उस समय आपको गुनगुना पानी पीना चाहिए। सर्दी के मौसम में यह पानी आपके गले की तकलीप को दूर करने में तो मददगार होगा ही साथ ही आपके पाचन को भी ठीक रखेगा। यानी एक इलाज से दो बीमारियां दूर करने का तरीका।
अदरक की चाय 
अगर आपको चाय पीना पसंद है तो आप अदरक की चाय बनाकर पी सकती हैं। गर्म चाय को धीरे-धीरे घूंट-घूंट कर पीने से आपके गले की सिकाई होगी और इंफेक्शन दूर होगा। यह चाए आप दिन में तीन बार से ज्यादा ना लें। दिक्कत बहुत अधिक हो तो गले पर विक्स लगाएं औ गर्म पानी का सेवन करें।
लेमन और हनी टी 
दूध की चाय पीना पसंद ना हो तो आप लेमन और हनी टी का सेवन कर सकती हैं। लेमन ऐंटीबैक्टीरियल होता है तो और शहद जलन को शांत करने का काम करता है। यानी लेमन ऐंड हनी टी आपके गले की परेशानी को ठीक करेगी, स्वाद भी देगी और जलन भी शांत होगी।
हल्दीवाला दूध 
जी हां, हल्दी ऐंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टीज से भरपूर होती है। गर्म दूध में हल्दी और शहद मिलाकर आप इस दूध का सेवन कर सकती हैं। इसे पीने से आपका गला तो जल्द ठीक होगा ही साथ ही आपका मूड अच्छा रहेगा और नींद अच्छी आएगी।


गुणसूत्रों की संख्या भिन्न

खच्चर एक गधे और घोड़ी के मिलन से उत्पन्न एक संकर संतान है। यह बेसर के समान है जिसका जन्म एक घोड़े और गधी के मिलन के परिणामस्वरूप होता है। घोड़ा और गधा विभिन्न प्रजाति हैं और इनमें गुणसूत्रों की संख्या भी भिन्न होती है। जहाँ गधे में 62 गुणसूत्र होते हैं वहीं घोड़ों में इनकी संख्या 64 होती है। खच्चर को आमतौर पर बोझा ढोने के काम में लाया जाता है। औद्योगीकरण से पहले खच्चर सामान को लाने ले जाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया करते थे। सभी नर खच्चर बंध्य होते हैं, जबकि मादा खच्चर कुछ दुर्लभ मौकों पर गर्भधारण कर सकती हैं। खच्चर का आकार इसको जन्म देने वाली घोड़ी के आकार पर निर्भर करता है। खच्चर एक मेहनती जीव है। वह काफी बोझा ढो सकता है। खास तौर से पहाड़ी इलाकों में खच्चर सवारी के काम भी आता है। मुझे यह जानकर बहुत आश्चर्य और दुख हुआ कि जीव विज्ञान में इस उपयोगी चौपाए को एक प्रजाति की हैसियत भी नहीं दी गई है। दरअसल, पहले जब मैंने प्रजातियों के बारे में पढ़ा था तो मुझे ऐसा लगा था कि खच्चर एक स्वतंत्र प्रजाति है मगर धीरे-धीरे यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य साफ हुआ कि खच्चर कोई प्रजाति नहीं है। इसका सम्बन्ध जीव विज्ञान में प्रजातियों व अन्य जैविक समूहों की परिभाषा से है। तो मैंने इन परिभाषाओं का अध्ययन शुरु किया। और मैंने पाया कि मामला न सिर्फ पेचीदा है, बल्कि दिलचस्प भी है। क्या है प्रजाति के मायने? प्रजातियों की परिभाषा के पचड़े में पड़ने से पहले एक बुनियादी बात कह देना ठीक रहेगा। जैसा कि हमेशा होता है, हर बात अरस्तू तक पहुँचे बिना मज़ा नहीं आता। दरअसल, 18वीं सदी से पहले और उसके बाद प्रजातियों की समझ में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। अरस्तू से लेकर कार्ल लीनियस तक प्रजाति एक अपरिवर्तनीय श्रेणी थी। यह सजीवों के एक ऐसे समूह को परिभाषित करती थी जो चिर-स्थायी माना जाता था। अरस्तू मानते थे कि हर प्रजाति का एक मूल तत्व होता है। सन्तानोत्पत्ति वह क्रिया है जिसके ज़रिए यह मूल तत्व अगली पीढ़ी को सौंपा जाता है। इस तरह से देखें तो खच्चर उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी। उसमें न तो घोड़े का मूल तत्व है, न गधे का, तो फिर खच्चर का मूल तत्व क्या है? कार्ल लीनियस, जिन्होंने सारे सजीवों को समानता के आधार पर समूहों में बाँटने का प्रयास किया था और हमें आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली दी थी, भी मानते थे कि प्रजाति एक स्थायी समूह है। दरअसल, वे तो यह भी मानते थे कि हर प्रजाति का एक आदर्श उदाहरण होता है, बाकी सारी विविधता त्रुटि है, विचलन है। जब जैव विकासवाद ज़ोर पकड़ने लगा तो सबसे पहली चोट प्रजाति की जड़ता पर हुई। लैमार्क ने विकास की प्रक्रिया के बारे में जो विचार दिए थे वे आज मान्य नहीं हैं मगर लैमार्क का बुनियादी योगदान यह माना जाना चाहिए कि उन्होंने प्रजातियों को सतत परिवर्तनशील समूह माना था। इसके बाद डार्विन ने तो चिर-स्थायित्व की चूलें ही हिला दीं। डार्विन ने प्रजातियों के बारे में दो बुनियादी विचार सामने रखे। डार्विन का पहला महत्वपूर्ण विचार यह था कि एक ही प्रजाति में विविधता उसका स्वाभाविक गुण है। अर्थात् प्रजाति के सदस्यों में विविधता का पाया जाना कोई त्रुटि अथवा विचलन नहीं बल्कि प्रकृति का नियम है। यह लीनियस की समझ से एकदम विपरीत है। डार्विन ने दूसरी बात यह रखी कि प्रजातियाँ सतत परिवर्तनशील हैं और उपरोक्त विविधता ही परिवर्तन का कच्चा माल है। यानी विविधता में ही विकास के बीज हैं। डार्विन के साथ हम जीव विज्ञान में कई कदम आगे बढ़े। आमतौर पर प्रजाति को इस तरह परिभाषित करते हैं: प्रजाति ऐसे सजीवों का समूह है जो प्राकृतिक रूप से परस्पर प्रजनन कार्य करते हैं और प्रजनन-क्षम सन्तानें उत्पन्न करते हैं। इसके साथ यह शर्त भी जुड़ी है कि वे किसी अन्य समूह के साथ संतानोत्पत्ति न करते हों। यह परिभाषा हमें अन्र्स्ट मेयर से मिली है। इसी का अपेक्षाकृत आधुनिक संस्करण यह है कि प्रजाति ऐसे सजीवों का समूह है जिनमें जिनेटिक सामग्री का प्रवाह सहजता से होता है। कौन किस प्रजाति का सदस्य
आमतौर पर यह बताना आसान होता है कि कौन-से जीव एक ही प्रजाति के सदस्य हैं। जैसे मनुष्य एक प्रजाति है – होमो सेपिएन्स। इसी प्रकार से अमरूद, सेब, बाघ, बकरी वगैरह भी एक-एक प्रजातियाँ हैं। मगर सिर्फ देखकर इस बात का पता लगाने में धोखा हो सकता है। कई बार दो जीव एकदम एक जैसे दिखते हैं, एक ही स्थान पर रहते हैं मगर प्रजनन क्रिया की दृष्टि से अलग-अलग होते हैं। इसके विपरीत कई बार जीव बहुत अलग-अलग दिखते हैं मगर आपस में सन्तानोत्पत्ति करते हैं। मगर ये तो व्यावहारिक समस्याएँ हैं। वैसे तो प्रजाति की इस परिभाषा को लागू करने में व्यावहारिक समस्याएँ भी काफी कठिन हैं। जैसे यह तो कदापि सम्भव नहीं होगा कि दुनिया के सारे जीवों के बारे में प्रमाण जुटाया जा सके कि वे किस-किसके साथ सन्तानोत्पत्ति कर सकेंगे। यह सही है कि आप प्राणियों की सन्दिग्ध जोड़ियों को ज़बर्दस्ती एक साथ रखकर देख सकते हैं कि वे परस्पर प्रजनन क्रिया करते हैं या नहीं। मगर इसके आधार पर कोई निष्कर्ष निकालना सम्भव नहीं होगा। कारण यह है कि प्रयोग के दौरान उनके व्यवहार से यह नहीं कहा जा सकता कि प्राकृतिक रूप से मुलाकात होने पर वे क्या करेंगे। इस तरह के कुछ प्रयोग किए भी गए हैं।वैसे प्रजातियों के बारे में निर्णय करने का एक आधार यह भी है कि क्या उनमें निषेचन प्रणाली अलग-अलग है। निषेचन प्रणाली अलग होने से आशय है कि हो सकता है कि दो समूह वर्ष में अलग-अलग समय पर प्रजनन करते हों, या अलग जगह प्रजनन करते हों, या फिर उनके प्रजननांग में तालमेल न हो आदि, आदि। यह परिभाषा खासतौर से उन प्राणियों पर लागू की जा सकती है जो एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहते हों या अलग-अलग क्षेत्र में रहते हों मगर शक्ल सूरत में एक जैसे हों। प्रजनन आधार बनाम शरीर रचना
बहरहाल, व्यावहारिक दिक्कतों को छोड़ दें, तो इस परिभाषा में कुछ ज़्यादा बुनियादी दिक्कतें भी हैं।
जैसे यह परिभाषा शुद्धत दो जीवों में लैंगिक सन्तानोत्पत्ति पर टिकी है। यानी पूरी बात यह है कि जीवों का समूह-विशेष प्रजनन की दृष्टि से अन्य समूहों से अलग-थलग है। कुछ बैक्टीरिया ऐसे होते हैं जो लैंगिक प्रजनन नहीं करते। इन पर यह परिभाषा लागू करना बहुत मुश्किल है क्योंकि ऐसा हरेक बैक्टीरिया हर अन्य बैक्टीरिया से प्रजनन की दृष्टि से अलग-थलग है। तो क्या ऐसे हरेक बैक्टीरिया को एक-एक प्रजाति माना जाएगा? वैसे बैक्टीरिया इस सन्दर्भ में एक और समस्या पेश करते हैं। यह देखा गया है कि बैक्टीरिया में (लैंगिक प्रजनन की प्रक्रिया बगैर) जैनेटिक सामग्री का लेन-देन काफी आसानी से होता है। तो सवाल यह है कि क्या हर एक-एक बैक्टीरिया एक-एक प्रजाति है या सारे बैक्टीरिया (जिनमें जैनेटिक सामग्री का लेन-देन होता है) एक ही प्रजाति के सदस्य हैं?ऐसे प्राणियों के मामले में प्रजनन कार्य की बजाय उनकी शरीर रचना और उनकी शरीर क्रिया को ध्यान में रखना होता है। यानी आपको उनके जैव रासायनिक लक्षणों को देखना होगा। आमतौर पर इनके बारे में यह देखा जाता है कि उनका मेेज़बान यानी होस्ट कौन है या वे किन पोषक पदार्थों का उपभोग करते हैं और उनके द्वारा बनाए गए पदार्थ यानी मेटाबोलिक प्रॉडक्ट्स कौन-से हैं। प्रजनन-आधारित परिभाषा की एक समस्या का सम्बन्ध जीवाश्मों से है। बात ऐसे प्राणियों के जीवाश्म की है जो अब धरती पर नहीं पाए जाते। जैसे डायनासौर। जब ऐसे जीवाश्म प्राप्त होते हैं तो यह पता लगाना असम्भव है कि प्राणियों के रूप में वे किन अन्य जीवाश्म प्राणियों के साथ इश्क लड़ाते होंगे। और यदि वे आज के प्राणियों से मिलें तो क्या करेंगे। तो जीवाश्मों की प्रजाति का निर्धारण करना इस परिभाषा के अनुसार कठिन है। इनके मामले में प्रजाति की विकास-आधारित अवधारणा को लागू करना होता है। मगर उसमें भी कई समस्याएँ हैं। वैसे जीवाश्मों की प्रजाति के बारे में अलग से एक लेख में विचार करना ही उचित होगा। और हमारा खच्चर और तीसरी समस्या हमारे बेचारे खच्चर की है। जैसा कि आप जानते ही होंगे, खच्चर नर गधे और मादा घोड़े से उत्पन्न संकर प्राणी है। यदि नर घोड़ा हो और मादा गधा हो तो खच्चर जैसा एक अन्य प्राणी (हिनी) पैदा होता है। सामान्यत:, कुदरती तौर पर, घोड़े और गधे मिलकर सन्तानोत्पत्ति नहीं करते, इसलिए वे अलग-अलग प्रजाति के सदस्य हैं। मगर इन्सान की प्रेरणा से गधे और घोड़े बच्चे पैदा करते हैं। यह प्राणी गधे और घोड़े दोनों की अपेक्षा अधिक ताकतवर होता है और ज़्यादा बोझ ढो सकता है। खच्चर में जो अतिरिक्त ताकत व सहनशीलता पाई जाती है वह संकर स्फूर्ति (हाइब्रिड विगर) का परिणाम है। जन्तुओं में ऐसे मामले कम पाए जाते हैं मगर वनस्पतियों में इस तरह के संकर काफी मिलते हैं। मगर इसकी एक विशेषता यह है कि यह सन्तान पैदा नहीं कर सकता। समस्या गुणसूत्रों के कारण पैदा होती है। घोड़े के युग्मज (प्रजनन हेतु अर्धसूत्री विभाजन द्वारा निर्मित कोशिकाएँ) में 32 गुणसूत्र हैं जबकि गधे के युग्मज में 31 होते हैं। इनके मेल से जो कोशिका बनती है उसमें 63 गुणसूत्र होते हैं। यह खच्चर की कोशिका है। इसकी कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या विषम होती है – इसलिए अर्धसूत्री विभाजन (गुणसूत्रों का आधा-आधा बँटना) सम्भव नहीं होता। लिहाज़ा खच्चर प्रजनन-क्षम नहीं होता। वैसे देखा गया है कि कभी-कभार, मानव हस्तक्षेप से, खच्चर गधे के साथ समागम करके बच्चे जनता है। मगर साधारण तौर पर खच्चर बच्चे पैदा नहीं कर सकता। अब प्रजाति की परिभाषा लागू कीजिए। आप पाएँगे कि खच्चर एक प्राणी तो है मगर एक प्रजाति नहीं है। घोड़ा एक्वस केबेलस है और गधा एक्वस एसिनस। इसलिए खच्चर का जीव वैज्ञानिक नाम एक्वस केबेलसअएसिनस है। अलबत्ता, यहाँ मैंने सिर्फ यह बताने की कोशिश की है कि प्रजाति जैसी बुनियादी अवधारणा किस तरह की दिक्कतें प्रस्तुत करती है। जीव वैज्ञानिकों के लिए यह फैसला करना सदा आसान नहीं होता कि दो जीव समूहों को एक प्रजाति माना जाए या उन्हें अलग-अलग प्राजितयों में वर्गीकृत कर दिया जाए। खासतौर से प्रजातियों के विकास (स्पीशिएशन) की प्रक्रिया को समझने में यह समस्यामूलक हो जाता है।
प्रजाति के कुछ और पहलुओं की बातें फिर कभी करेंगे। जैसे अलैंगिक जीवों में प्रजाति की समस्या, जीवाश्मों की प्रजाति की समस्या वगैरह।


योगी की शिक्षकों-शिक्षामित्रोंं को सौगात

शिक्षकों और शिक्षामित्रों को योगी सरकार की बड़ी सौगात, लंबे समय से की जा रही मांग पूरी,


लखनऊ। बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षकों, शिक्षामित्रों, अनुदेशकों और कर्मचारियों का सामूहिक स्वास्थ्य बीमा कराया जाएगा। शासन ने शुक्रवार को इसकी मंजूरी दे दी।अपर मुख्य सचिव रेणुका कुमार ने बताया कि विभाग में कार्यरत शिक्षकों, शिक्षामित्रों, अनुदेशकों और कर्मचारियों का सामूहिक स्वास्थ्य बीमा स्वैच्छिक होगा और सरकारी उपक्रम से ही कराया जाएगा। स्कूल शिक्षा महानिदेशक विजय किरन आनंद ने बताया कि सामूहिक स्वास्थ्य बीमा की राशि, प्रीमियम और बीमा कंपनी चयन के लिए उनकी अध्यक्षता में समिति गठित की जाएगी। बीमा कंपनियों से टेंडर आमंत्रित कर बीमा कराया जाएगा। परिषदीय शिक्षक लंबे समय से सामूहिक स्वास्थ्य बीमा की मांग कर रहे थे।


हरियाणा-दिल्ली में पहली रैली को संबोधित किया

हरियाणा-दिल्ली में पहली रैली को संबोधित किया  अकांशु उपाध्याय  नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को कांग्रेस पर अपना हमला तेज ...