शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

‘प्रतिशोध की राजनीति' निचले स्तर पर पहुंची: सिब्बल

‘प्रतिशोध की राजनीति' निचले स्तर पर पहुंची: सिब्बल

अकांशु उपाध्याय

नई दिल्ली। राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को कहा कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कांग्रेस नेता सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए बुलाए जाने के साथ ही ‘प्रतिशोध की राजनीति' निचले स्तर पर पहुंच गई है। उन्होंने यह भी कहा कि सभी जांच एजेंसी को नेताओं को प्रताड़ित करने और उनकी छवि बिगाड़ने के लिए सरकार का प्रभावी अस्त्र माना जा रहा है।

पूर्व कांग्रेस नेता सिब्बल ने कहा, ‘‘ईडी द्वारा सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए बुलाए जाने के साथ ही प्रतिशोध की राजनीति निचले स्तर पर पहुंच गयी है।’’ सिब्बल ने हाल में कांग्रेस छोड़ दी थी और वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। गौरतलब है कि ईडी ने नेशनल हेराल्ड अखबार से संबंधित धन शोधन के एक मामले में बृहस्पतिवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से दो घंटे तक पूछताछ की थी।

मुंबई में दी गई सुरक्षा को जारी रखने की अनुमति: एससी

मुंबई में दी गई सुरक्षा को जारी रखने की अनुमति: एससी 

अकांशु उपाध्याय     

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने देश के जाने-माने उद्योगपति मुकेश अंबानी और उनके परिवार के सदस्यों को मुंबई में दी गई सुरक्षा को जारी रखने की केंद्र सरकार को शुक्रवार को अनुमति दे दी। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने एक जनहित याचिका पर त्रिपुरा उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की अपील स्वीकार कर ली।

शीर्ष अदालत की एक अवकाशकालीन पीठ ने 29 जून को मुंबई में उद्योगपति मुकेश अंबानी और उनके परिवार के सदस्यों को सुरक्षा दिये जाने को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर त्रिपुरा उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि त्रिपुरा में जनहित याचिकाकर्ता (विकास साहा) का मुंबई में मुहैया कराए गए लोगों की सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है।

मूक-बधिर कलाकार की पीएम को उनकी तस्वीर भेंट

मूक-बधिर कलाकार की पीएम को उनकी तस्वीर भेंट

अकांशु उपाध्याय/इकबाल अंसारी

नई दिल्ली/दिसपुर। असम के एक मूक-बधिर कलाकार ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तस्वीर भेंट की और कहा कि यह उसके लिए एक सपने के सच होने जैसा है। इस तस्वीर में कई चित्रों को एक साथ जोड़ते हुए मोदी के जीवन के विभिन्न चरणों को प्रदर्शित किया गया है। इनमें एक चित्र मोदी की किशोरावस्था का है। जबकि, एक अन्य में वह अपनी मां से आशीर्वाद प्राप्त ले रहे हैं। तस्वीर भेंट करने के बाद, असम के युवा कलाकार अभिजीत गोटानी ने कहा कि उन्हें टीवी पर अक्सर प्रधानमंत्री को देखने के बाद व्यक्तिगत रूप से उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। एक अनुवादक के अनुसार, मोदी ने कलाकृति के काम को ‘‘बहुत सुंदर’’ बताया।

अभिजीत ने सांकेतिक भाषा में कहा, ‘‘मैं भावुक हो रहा हूं। मेरा एक सपना सच हो गया है।’’ उन्होंने मोदी को ‘‘सरल और नरम दिल’’का व्यक्ति बताया। उन्होंने कहा कि उनके जैसे दिव्यांग लोगों को हार नहीं माननी चाहिए। बल्कि, अपने काम से जवाब देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई आपका अपमान करता है, तो आपको अपने काम से जवाब देना होगा।’’

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प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

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1. अंक-287, (वर्ष-05)
2. शनिवार, जुलाई 23, 2022
3. शक-1944, श्रावण, कृष्ण-पक्ष, तिथि-दसमीं, विक्रमी सवंत-2079। 
4. सूर्योदय प्रातः 05:22, सूर्यास्त: 07:15।
5. न्‍यूनतम तापमान- 25 डी.सै., अधिकतम-33+ डी.सै.। उत्तर भारत में बरसात की संभावना।
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गुरुवार, 21 जुलाई 2022

देश की पहली आदिवासी राष्‍ट्रपति बनीं, मुर्मू

देश की पहली आदिवासी राष्‍ट्रपति बनीं, मुर्मू 

अकांशु उपाध्याय 
नई दिल्ली। द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्‍ट्रपति बन गई हैं। तीसरे राउंड के बाद द्रौपदी मुर्मू ने 50 फीसदी के आंकड़े को पार कर लिया है। हालांकि, अभी एक और राउंड की वोटों की गिनती होनी बाकी है। राष्‍ट्रपति पद के चुनाव में द्रौपदी ने विपक्ष के उम्‍मीदवार यशवंत सिन्‍हा को अच्‍छे खासे अंतर से पराजित किया। द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति हैं। भारत का राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होने के साथ-साथ भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सुप्रीम कमांडर तथा देश का पहला नागरिक भी होता है। द्रौपदी देश की दूसरी महिला राष्‍ट्रपति हैं, उनसे पहले प्रतिभा पाटिल देश का राष्‍ट्रपति पद संभाल चुकी हैं। राज्‍यसभा के सेक्रेटरी जनरल पीसी मोदी के अनुसार, तीसरे राउंड में कर्नाटक, केरल, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा और पंजाब के वोटों की गिनती हुई। इस राउंड में कुल वैध वोट 1333 रहे जिनकी वैल्‍यू  1,65,664 है। द्रौपदी मुर्मू को 812 वोट मिले जबकि यशवंत सिन्‍हा को 521 वोट मिले.दूसरे राउंड की बात करें तो इसमें वर्णानुक्रम में आने वाले पहले 10 राज्‍यों के बैलेट पेपर की गणना की गई, इसमें कुल 1138 वोट पड़े जिनकी कुल वैल्‍यू 1,49,575 है। इन वोटों में से द्रौपदी मुर्मू को 809 वोट (वैल्‍यू 1,05,299) मिले हैं। जबकि, यशवंत सिन्‍हा को 3329 वोट मिले हैं जिनकी वैल्‍यू  44,276 है। पहले राउंड के बाद जानकारी दी गई थी कि सांसदों के कुल वैध मतों की संख्या 748 थी, जिनमें से 540 वोट द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में रहे जबकि 204 वोट विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हासिल हुए हैं। राष्‍ट्रपति चुनाव में 17 सांसदों ने एनडीए की प्रत्‍याशी द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की। सूत्रों ने यह जानकारी दी।

राष्‍ट्रपति चुनाव परिणाम...

कुल वोट: 3219 ( वैल्‍यू 838839)

द्रौपदी मुर्मू  : 2161 ( वैल्‍यू 577777)

यशवंत सिन्‍हा :1058 ( वैल्‍यू261062)

द्रौपदी मुर्मू के गृह राज्‍य ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने दी बधाई। ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने भी द्रौपदी मुर्मू को बधाई दी है। ओडिशा द्रौपदी का गृहराज्‍य है। उन्‍होंने लिखा, ओडिशा की बेटी द्रौपदी मुर्मू को देश का 15वां राष्‍ट्रपति चुने जाने पर बधाई। ओडिशा के लिए यह गौरव भरा क्षण है।

यशवंत सिन्‍हा ने द्रौपदी मुर्मू को दीं शुभकामनाएं।
राष्‍ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्‍मीदवार यशवंत सिन्‍हा ने द्रौपदी मुर्मू को जीत पर बधाई दी है। द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हुए सिन्‍हा ने कहा, "उम्‍मीद करता हूं कि वे बिना किसी भय या पक्षपात के काम करेंगी।''

मुसीबत आती है, भगवान और पुलिस याद आती है: सिंह

मुसीबत आती है, भगवान और पुलिस याद आती है: सिंह 

अकांशु उपाध्याय      

नई दिल्ली। समाज में पुलिस को लेकर नकारात्मक दृष्टिकोण पर चिंता व्यक्त करते हुए मुंबई के पुलिस आयुक्त रह चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद सत्यपाल सिंह ने कहा है कि समाज में पुलिस को लेकर जो दृष्टिकोण है, वो ठीक नहीं है। मुसीबत आती है, तो भगवान और पुलिस याद आती है और मुसीबत जाते ही लोग भगवान को भूल जाते हैं और पुलिस को नजर अंदाज कर देते हैं। डॉ. सत्यपाल सिंह ने यह बात “विभाजित समाज में पुलिस और न्याय”विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही, जिसमें श्री सिंह के अलावा वरिष्ठ पत्रकार मनीष छिब्बर, महाराष्ट्र की पहली महिला आईपीएस रही डॉ. मीरान बोरवकंर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ शीतल शर्मा मौजूद थी। संगोष्ठी का आयोजन राजेन्द्र पुनेठा स्मृति न्यास और यूरोपियन यूनियन के ज़ा मौनिए कार्यक्रम ने मिलकर किया।

उन्होंने कहा कि पुलिस ही देश और लोकतंत्र की सुरक्षा का मुख्य औजार है। अगर जजों के पास पुलिस ना हो तो वे फैसले नहीं सुना सकते हैं। देश में कहीं भी त्योहार हो, मेला हो, या परीक्षा, यात्रा, जनसभा हो, पहली जरूरत पुलिस की होती है। लेकिन पुलिस में संख्या बल कम है, काम का बोझ अत्यधिक है और एक पुलिसकर्मी को औसतन 12 से 15 घंटे तक काम करना पड़ता है।
डॉ. सिंह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार प्रति एक लाख आबादी पर पुलिस बल 222 की संख्या में होना चाहिए। भारत में यह 171 मान्य है लेकिन मौजूदा स्थिति में ये संख्या 137 ही है। उन्होंने हर बार पुलिस को दागदार साबित करने की प्रवृत्ति की भी कड़ी आलोचना की और कहा कि सरकार के अनेक विभाग पुलिस की तुलना में बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। लेकिन, समाज हो या अदालत, सबको पुलिस को लेकर पूर्वाग्रह रहता है और वे पुलिस को लेकर शिकायत समाधान का तंत्र बनाने की वकालत कर रहे हैं। उनके लिए पुलिस को बुरा भला कहना फैशन बन गया है। डॉ. सिंह ने कहा कि पुलिस सुधार की बात बहुत समय से चली आ रही है लेकिन कहीं भी पुलिस स्थापना बोर्ड तक नहीं है। पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के तबादले और तैनाती राजनीतिक नेताओं द्वारा की जाती है। पुलिस चूंकि राज्य का विषय है इसलिए राजनीति पुलिस सुधार होने नहीं देती। इसी कारण पुलिस सबसे ज्यादा विभाजन करती है। अलग अलग पार्टी, जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर विभाजन होता है। राजनीतिक आका जैसा चाहते हैं, वैसा होता है।

उन्होंने कहा कि यदि पुलिस कर्मी अपनी नौकरी के वक्त ली गई शपथ का पालन करें और बिना किसी भेदभाव के कानून व्यवस्था कायम रखें तो बहुत फर्क पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पुलिस कमजोर होगी तो आंतरिक सुरक्षा कमजोर होगी। अच्छी पुलिसिंग के लिए हमारे व्यवहार में परिवर्तन लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सौभाग्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पुलिस सुधारों के लिए इस साल 18500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार मनीष छिब्बर ने कहा कि भारत में यह सामान्य रूप में लोग मानते हैं कि देश की पुलिस भ्रष्ट है। रोज़ाना पुलिसकर्मियों और अधिकारियों का सामना आलोचना से होता है। पुलिस से अपेक्षा बहुत ज्यादा है और आउटपुट बहुत कम है। गोष्ठी की विषय वस्तु पर चर्चा करते हुए श्री छिब्बर ने कहा कि दरअसल 'रूल ऑफ लॉ' के गायब होने के कारण ही समाज में विभाजन या ध्रुवीकरण हो रहा है। ऐसा पहली बार दिखाई दे रहा है कि न्यायाधीशों की आलोचना इस स्तर पर पहुंच गई है कि लोग सवाल पूछने की जगह पत्थर फेंक रहे हैं। उन्होंने पुलिस व्यवस्था में अत्यधिक राजनीतिक दखलंदाजी का मुद्दा उठाया और कहा कि पंजाब में एक साल में 5 महानिदेशक आ गए। जबकि केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट की व्यवस्था है कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और पुलिस महानिदेशक को दो साल से पहले नहीं बदलना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार से विधायकों को थानेदारों और हवलदारों के तबादले और तैनाती से दूर रखने की जरूरत है।

छिब्बर ने कहा कि एक और महत्वपूर्ण बात कैदियों को लेकर है कि भारत की जेलों में 70 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं और 30 फीसदी से कम सजायाफ्ता हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार एक जमानत नीति बनाने की जरूरत है। इससे भी पुलिस के भेदभाव पूर्ण व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकेगा। पुणे की पुलिस आयुक्त रह चुकीं डॉ. मीरान बोरवंकर ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पुलिस में मज़हबी विभाजन के उदाहरण मुंबई में पहली बार 1993-94 के दंगों के दौरान दिखाई दिए। ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया जिनके बारे में कोई कल्पना नहीं कर सकता। इसी तरह पुलिस में लैंगिक भेदभाव भी है। पुलिस में महिलाओं को टेलिफ़ोन आपरेटर, वायरलेस आपरेटर, कंप्यूटर आपरेटर या ऐसी ही साइडलाइन वाली तैनाती दी जाती है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में उन्होंने पाया कि आदिवासी एवं दलित समाज की महिला पुलिसकर्मी मुख्य धारा की तैनाती पाना चाहती हैं।

डॉ. बोरवंकर ने कहा कि पुलिस प्रशिक्षण में शारीरिक पहलुओं पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया है जबकि संविधान एवं रूल ऑफ लाॅ यानी कानून का शासन की ट्रेनिंग की कमी है। उन्होंने कहा कि संवेदनशीलता की कमी के कारण पुलिसकर्मी अक्खड़, घमंडी और ज्यादा कठोर हो गये हैं। उन्होंने कहा कि स्वैच्छिक संगठनों, शिक्षाविदों, न्यायविदों को शामिल करके पुलिस को संवेदनशील बनाने का प्रभावी प्रशिक्षण देने की जरूरत है। उन्हें धर्म, जाति, लिंग और क्षेत्र के मामले में संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। उन्होंने राजनेताओं और ऊंचे पदों पर नियुक्त अधिकारियों द्वारा पुलिसबल का प्रयोग अपने रसूख के प्रदर्शन के लिए किये जाने की आलोचना की और कहा कि यह पुलिस का दुरुपयोग है। हमें एक सतर्क, जागरूक, सहयोगी पुलिस की जरूरत है। जवाहर लाल विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. शीतल शर्मा ने कहा कि समाज में संघर्ष अपरिहार्य है और संघर्ष होगा तो पुलिस की भी जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि पुलिस की स्थिति लोकतंत्र की सेहत का सूचकांक होता है। संघर्ष को नियंत्रित करने और शांति व्यवस्था बनाए रखने की भूमिका को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि खाकी में खड़े पुलिसकर्मी भारत के निर्माण में सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने पुलिस की जरूरतों को पूरा करने पर बल देते हुए कहा कि जब पुलिस की जरूरतें पूरी नहीं होंगी तो पुलिस आपकी अपेक्षा कैसे पूरी कर सकती है। कार्यक्रम में देश के तमाम वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद, पूर्व पुलिस अधिकारी और अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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'पीएम' मोदी ने अभिनेत्री रश्मिका की तारीफ की अकांशु उपाध्याय  नई दिल्ली। नेशनल क्रश रश्मिका मंदाना सिर्फ साउथ सिनेमा का ही नहीं, अब ...