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शनिवार, 1 जुलाई 2023

काले रंग के कपड़े पहनने से नाराज हो जाते हैं 'शिव'

काले रंग के कपड़े पहनने से नाराज हो जाते हैं 'शिव'

सरस्वती उपाध्याय 

सावन का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। 4 जुलाई 2023 को सावन शुरू होगा। सावन में सोमवार का व्रत करना और शिवलिंग पर जल चढ़ाना भोलेनाथ को खुश करता है। आप भगवान शिव को प्रसन्न कर सकते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। सावन में भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। लेकिन शिव सावन में एक छोटी-सी गलती से नाराज़ हो जाते हैं। शिवजी सावन में इस रंग के कपड़े पहनने से नाराज होते हैं, इसलिए आपको सावन में किस रंग का कपड़ा नहीं पहनना चाहिए।

इस रंग के कपड़े सावन में नहीं पहनें...

भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो रंगों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सावन में काले कपड़े नहीं पहनना चाहिए।

शनिदेव को छोड़कर सभी देवताओं को काला रंग अशुभ लगता है। ऐसे में भगवान शिव को काले कपड़े पहनना परेशान करता है।

सावन में काले कपड़े पहनकर पूजा नहीं करनी चाहिए। जब भगवान शिव नाराज़ हो जाते हैं, तो मनाना मुश्किल हो जाता है।

इस रंग के कपड़े पहनने से भोलेनाथ होंगे खुश...

सफेद और आसमानी रंग के कपड़े पहनना सावन में महादेव को खुश करेगा। इससे भगवान भोलेनाथ खुश होते हैं। पीले और केसरी रंग के कपड़े भी शुभ हैं। इस रंगों के कपड़े पहनकर पूजा करना अच्छा होता है। सावन में लाल कपड़े पहनना भी अच्छा है। भगवान शिव को हरा बहुत अच्छा लगता है। हरे कपड़े पहनकर शिव की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं।

गुरुवार, 29 जून 2023

5 महीनों तक शुभ कार्यों पर पूर्णता विराम

5 महीनों तक शुभ कार्यों पर पूर्णता विराम

सरस्वती उपाध्याय 

देवउठनी एकादशी से लगभग 5 महीने पहले हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल-पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है, जो इस साल आज यानी 29 जून मनाई जा रही है। साल की सभी एकादशीयों में देवशयनी एकादशी अपना एक विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु 5 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु सीधे 5 महीनों के बाद ही जागते हैं। यही वजह है कि देवशयनी एकादशी से हिंदू धर्म में पूर्णता 5 महीनों तक शुभ व मांगलिक कार्यों पर पूर्णता विराम लग जाता है।

कर्मकांड ज्योतिषी व भागवताचार्य मनीष उपाध्याय का कहना है कि सभी एकादशी में निर्जला, देवउठनी और देवशयनी एकादशी का अधिक महत्व है। देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। जिसके बाद नारायण सीधे देवउठनी एकादशी के दिन भी जागते हैं। उन्होंने बताया कि इस साल चातुर्मास 29 जून यानी देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होने जा रहा है। जिसके चलते आज से हिंदू धर्म में सभी मांगलिक कार्य होने बंद हो जाएंगे।

5 माह तक रहेगा चातुर्मास

ज्योतिषी के मुताबिक 29 जून से शुरू होने वाला चातुर्मास इस साल 5 महीने तक रहने वाला है। उन्होंने बताया कि हर साल चातुर्मास 4 महीने का होता है। लेकिन इस साल दो बार सावन होने की वजह से भगवान का विश्राम काल बढ़ गया है।

श्रीहरि की पूजा रहेगी फलदाई

पंडित मनीष उपाध्याय बताते हैं कि देवशयनी एकादशी से श्री हरि विश्राम के लिए क्षीर सागर में चले जाते हैं। ऐसे में जो भी इस दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से आराधना करता हैं, तो उसे कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है।

सोमवार, 26 जून 2023

आधार कार्ड के बिना नहीं होंगे महाकाल के दर्शन  

आधार कार्ड के बिना नहीं होंगे महाकाल के दर्शन   

दुष्यंत टीकम   

उज्जैन। मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में दिनों दिन बढ़ती दर्शनार्थियों की संख्या के कारण स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए अब आगामी 11 जुलाई से आधार कार्ड से दर्शन की व्यवस्था की जाएगी। अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भगवान महाकालेश्वर मंदिर में देश के विभिन्न क्षेत्रों से हजारों की संख्या में लोग आते हैं।

विशेषकर श्रावण माह में इनकी संख्या अत्यधिक होती है। इसे दृष्टिगत रखते हुए मंदिर प्रबंध समिति ने उज्जैन वासियों के लिए श्रावण मास में 11 जुलाई से बाबा महाकाल के दर्शन हेतु आधार कार्ड दिखाकर दर्शन सुगमता पूर्वक करने की व्यवस्था की है।

साथ ही एक बार अपना आधार कार्ड दर्शन हेतु पंजीयन कराने पर बार-बार आधार कार्ड ले जाने की भी आवश्यकता नहीं होगी। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध कराई जायेगी। उज्जैन रहवासियों को बाबा महाकालेश्वर के दर्शन सुगमता पूर्वक हो सकें, इसके लिए मंदिर समिति को महापौर मुकेश टटवाल ने इस संबंध में प्रस्ताव दिया था।

बुधवार, 29 मार्च 2023

नवरात्रि का नौवां दिन मां 'सिद्धिदात्री' को समर्पित 

नवरात्रि का नौवां दिन मां 'सिद्धिदात्री' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

30 मार्च को चैत्र नवरात्रि का नौवां दिन है‌। इसी के साथ नवरात्रि का समापन हो जाता है। इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा  की जाती है। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं और सिंह पर सवार होती हैं। उनके दाहिने नीचे वाले हाथ में चक्र,ऊपर वाले हाथ में गदा और बाई तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। माता की पूजा से सारे मनोरथ सिद्ध होते हैं। साथ ही यश, बल,कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। जानिए, नवरात्रि के नौवें दिन का शुभ मुहूर्त, मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, भोग आदि की जानकारी...

महानवमी पूजन और हवन का शुभ मुहूर्त...

ज्‍योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र के मुताबिक चैत्र नवमी तिथि 29 मार्च को रात 09 बजकर 07 बजे से शुरू होगी और 30 मार्च को रात 11 बजकर 30 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के हिसाब से महानवमी का पर्व 30 मार्च को मनाया जाएगा। इस‍ दिन राम नवमी भी मनाई जाती है। इसलिए, मां सिद्धिदात्री के साथ श्रीराम का भी पूजन किया जाएगा। मां सिद्धिदात्री और प्रभु श्रीराम के पूजन और हवन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 25 मिनट से 6 बजकर 54 मिनट तक, इसके बाद 8 बजकर 37 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा  3 बजकर 6 मिनट से शाम 5 बजकर 22 मिनट तक रहेगा।

महानवमी पर 4 विशेष योग बनेंगे...

इस बार 4 विशेष योग बनने से महानवमी और भी खास हो गई है। इस बार चैत्र महानवमी पर गुरु पुष्य योग, अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का निर्माण हो रहा है। ये सभी योग अत्‍यंत मंगलकारी माने गए हैं। इसमें सर्वार्थ सिद्धि योग तो पूरे दिन रहेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया कोई भी काम सफल होता है। अगर आप किसी विशेष काम के लिए नई शुरुआत करना चाहते हैं, तो इस दिन से कर सकते हैं।

मां सिद्धिदात्री पूजा और कन्‍या पूजन विधि...

महानवमी के मौके पर मां सिद्धिदात्री की पूजा के लिए रोजान की तरह सबसे पहले कलश की पूजा करें। इसके बाद मातारानी को रोली, कुमकुम,पुष्प, चुनरी, अक्षत, भोग, धूप-दीप आदि अर्पित करें। इसके बाद घर में मा‍ता के मंत्रों का जाप करते हुए हवन करें, मां को भोग लगाएं। पूजन के बाद कन्‍या पूजन करें। कन्‍या पूजन में 2 वर्ष से 9 वर्ष तक की 9 कन्‍याओं को बैठाएं और साथ में एक बालक को बैठाएं। उनके चरण धुलवाएं, विधिवत उन्‍हें भोजन कराएं, तिलक लगाएं, आरती उतारें, दक्षिणा दें और चरण छूकर आशीष लें। इसके बाद व्रत का पारण करें।

माता को लगाएं ये भोग...

माता की पूजा के दौरान उन्‍हें उनका प्रिय भोग हलवा, पूड़ी, चने और नारियल जरूर चढ़ाएं। कन्‍याओं को भोजन कराते समय भी उनकी थाली में माता के प्रिय भोग को जरूर रखें। इस तरह मां सिद्धिदात्री की विधिवत पूजा करने से माता अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं। भक्‍तों की मुराद को पूरा करती हैं।

मंगलवार, 28 मार्च 2023

नवरात्रि का आठवां दिन मां 'महागौरी' को समर्पित 

नवरात्रि का आठवां दिन मां 'महागौरी' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन 29 मार्च 2023 दिन बुधवार को मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा होगी। महाअष्टमी तिथि का विशेष महत्व होता है। इस दिन कन्या पूजन भी होती है। मां महागौरी की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और अखंड सुहाग के साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

ऐसे पड़ा मां गौरी का नाम महागौरी...

अष्टमी के दिन माता के महागौरी रूप की पूजा करते हैं। इस दिन महागौरी की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भोलेनाथ को पाने के लिए मां गौरी ने सालों तक कड़ी तपस्या की थी। इस घोर तप में मां गौरी धुल-मिट्टी से ढंक गई थीं। इसके बाद शिव जी ने स्वयं अपनी जटाओं से बहती गंगा से मां के इस रूप को साफ किया था। माता के रूप की इस कांति को शिवजी ने पुनर्स्थापित किया, इसी कारण उनका नाम महागौरी पड़ा।

जानें, माता के रूप का मतलब...

चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि 29 मार्च को मनाई जाएगी। अष्टमी के दिन माता के महागौरी रूप की पूजा की जाती है। माता का रूप पूर्णतः गौर वर्ण का है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। माता महागौरी के भी आभूषण और वस्त्र सफेद रंग के हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। इनकी 4 भुजाएं हैं। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है, जबकि नीचे वाले हाथ में मां ने त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांये हाथ में डमरू और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। इनका वाहन वृषभ है, इसीलिए माता के इस रूप को वृषारूढ़ा भी कहा गया है।

मां महागौरी पूजन के शुभ मुहूर्त...

ब्रह्म मुहूर्त - 04:42 am से 05:29 am

विजय मुहूर्त - 02:30 pm से 03:19 pm

गोधूलि मुहूर्त - 06:36 pm से 06:59 pm


अमृत काल- 09:02 am से 10:49 am


माता महागौरी का स्पेशल भोग...

हिंदू धर्म के मुताबिक, नवरात्रि के आठवे दिन मां महागौरी को भोग में नारियल और चीनी की मिठाई बनाकर चढाने से माता प्रसन्न होती हैं और हर तरह की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। घर धन-संपदा से भर देती हैं।

माता महागौरी का पसंदीदा रंग...

माता को सफेद रंग काफी पसंद है।


मां महागौरी की पूजा विधि...

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को सफेद रंग पसंद है। मां को स्नान कराने के बाद सफेद पुष्प अर्पित करें। रोली-कुमकुम लगाएं। इसके बाद नारियल और काले चने का भोग लगाएं। आरती भी करें और फिर कन्या पूजन कर, पारण करें।

चैत्र शुक्ल अष्टमी तिथि समाप्त - 29 मार्च 2023, रात 09.07

लाभ (उन्नति) - सुबह 06.15 - सुबह 07.48

अमृत (सर्वोत्तम) - सुबह 07.48 - सुबह 09.21

शुभ (उत्तम) - सुबह 10.53 - दोपहर 12.26

शोभन योग - 28 मार्च 2023, रात 11.36 - 30 मार्च 2023, प्रात: 12.13

रवि योग - 29 मार्च 2023, रात 08.07 - 30 मार्च 2023, सुबह 06.14

इस मंत्र का करें जाप...

नवरात्रि के महाअष्टमी के दिन आप महागौरी के इस मंत्र का जाप जरूर करें। मंत्र इस प्रकार है- 'सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।' इस मंत्र का 21 बार जाप करें, इससे आपको कई गुना लाभ मिलेगा।

मां महागौरी के मंत्र...

श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:

ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो। कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥

या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

दुर्गाष्टमी कन्या पूजन विधि...

चैत्र नवरात्रि के अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन किया जाता है। इस दिन घर पर नौ कन्याओं को आदरपूर्वक आमंत्रित करें और उनकी पूजा करें। फिर सभी को हलवा, खीर और पूड़ी का भोग और समर्थ्य अनुसार दक्षिणा देकर आदरपूर्वक घर से विदा करें। मान्यता है कि नवरात्रि की अष्टमी के दिन कन्या पूजन करने से मां भगवती प्रसन्न होती हैं और भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं।

अष्टमी के दिन क्यों होती है महागौरी की पूजा ?

पुराणों के अनुसार, माता दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिन तक युद्ध कर उसे हराया था। इसलिए, नवरात्रि के नौ दिनों तक उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अष्टमी के दिन ही माता ने चंड-मुंड राक्षसों का संहार किया था। इसलिए इस दिन की पूजा का खास महत्त्व माना जाता है। अष्टमी के दिन को कुल देवी और माता अन्नपूर्णा का दिन भी माना जाता है। इसी कारण से माना जाता है कि इस दिन देवी की पूजा करने से आपके कुल में चली आ रही मुसीबतें और परेशानियां कम होती हैं और आने वाले कुल की रक्षा होती है। अष्टमी के दिन कन्याओं को भोजन कराने से घर में धन-धान्य और सौभाग्य बना रहता है।

सोमवार, 27 मार्च 2023

नवरात्रि का सातवां दिन मां 'कालरात्रि' को समर्पित 

नवरात्रि का सातवां दिन मां 'कालरात्रि' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

चैत्र मास में पड़ने वाली नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप, यानि मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि के दौरान मां कालरात्रि की पूजा से भक्तों के सभी प्रकार के भय दूर होते हैं। मां कालरात्रि के आशीर्वाद से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है। उसे अग्नि, जल, शत्रु, रात्रि आदि किसी प्रकार का भय कभी नहीं होता। भगवती के इस भव्य स्वरूप के शुभ प्रभाव से साधक के पास भूल से भी नकारात्मक शक्तियां या बलाएं नहीं फटकती हैं। आईए, जानते हैं देवी कालरात्रि की पूजा का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन से जुड़े नियम...

पूजा का महत्व...

मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है। मां कालरात्रि की पूजा करने से भय दूर होता है, संकटों से रक्षा होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। शुभफल प्रदान करने के कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है। इस देवी की आराधना से अकाल मृत्यु का डर भी भाग जाता है, रोग और दोष भी दूर होते हैं। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। इसलिए इस देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव भी कम होते हैं।

माता कालरात्रि का स्वरूप...

देवी कालरात्रि कृष्ण वर्ण की हैं। गले में विद्युत की माला और बाल बिखरे हुए हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबकि बाएँ तरफ दोनों हाथ में क्रमशः खडग और वज्र हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी के इस रूप की पूजा करने से दुष्टों का विनाश होता है।

नवरात्र का सातवां दिन है। इस दिन आदिशक्ति देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। भक्तों के लिए मां कालरात्रि सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इस कारण मां का नाम ‘शुभंकारी’ भी है। 

माता का मंत्र...

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

स्तुति...

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

पूजा का शुभ मुहूर्त...

चैत्र शुक्ल सप्तमी तिथि - 27 मार्च, शाम 05.27 बजे से 28 मार्च, रात 07.02 बजे तक

द्विपुष्कर योग -28 मार्च, सुबह 06.16 बजे से शाम 05.32 बजे तक

सौभाग्य योग - 27 मार्च, रात 11.20 बजे से 28 मार्च, रात 11.36 बजे तक

निशिता काल मुहूर्त - 28 मार्च, मध्यरात्रि 12.03 बजे से प्रात: 12.49 बजे तक

मां कालरात्रि की पूजा विधि...

काल का नाश करने वाली मां कालरात्रि की पूजा मध्यरात्रि (निशिता काल मुहूर्त) में शुभ फलदायी मानी गई है। अगर रात्रि में ना हो सके, तो सुबह के समय भी पूजा को शुभ माना जाता है। सप्तमी तिथि दिन वाले सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान ध्यान करने के बाद मां कालरात्रि की पूजा एवं व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लें। इसके बाद मां कालरात्रि फोटो या प्रतिमा पर गंगाजल अर्पित करें और फिर उसके बाद देवी का आह्वान करें। फिरमां कालरात्रि की रोली, अक्षत, फल, फूल, मिष्ठान, वस्त्र, सिंदूर, धूप, दीप, आदि को अर्पित करके उनकी पूजा करें।

मां कालरात्रि को प्रिय...

इस देवी को लाल रंग प्रिय है, इसलिए इनकी पूजा में लाल गुलाब या लाल गुड़हल का फूल अर्पित करना चाहिए। हालांकि इनको रातरानी का फूल भी चढ़ाना शुभ होता है। देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए साधक को उनकी पूजा में गुड़ और हलवे का भोग जरूर लगाना चाहिए। इससे देवी कालरात्रि प्रसन्न होती हैं। देवी को भोग लगाने के बाद माता को विशेष रूप से पान और सुपारी भी चढ़ाएं।

नवरात्रि का छठा दिन मां 'कात्यायनी' को समर्पित 

नवरात्रि का छठा दिन मां 'कात्यायनी' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

दुर्गा पूजा के छठवें दिन देवी के कात्यायनी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्त को सहज भाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।

मां का स्वरूप...

मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं,इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बायें हाथ में कमल और तलवार व दाहिनें हाथों में स्वास्तिक व आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। भगवान कृष्ण को पाने के लिए व्रज की गोपियों ने इन्ही की पूजा कालिंदी नदी के तट पर की थी।ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

कौन हैं मां कात्यायनी ?

कत नामक एक प्रसिद्द महर्षि थे,उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्द महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत अधिक बढ़ गया था तब भगवान ब्रह्मा,विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज़ का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को प्रकट किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की और देवी इनकी पुत्री कात्यायनी कहलाईं।

पूजा विधि...

दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश व देवी के स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा कि जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में सुगन्धित पुष्प लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान करना चाहिए। मां को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें। मां कात्यायनी को शहद बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन मां को भोग में शहद अर्पित करें। देवी की पूजा के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए।

पूजा फल...

देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है। मां कात्यायिनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम,मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। उसके रोग,शोक, संताप और भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं।

किनको होगा लाभ ?

जिनके विवाह में विलम्ब हो रहा हो या जिनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है वे जातक विशेष रूप से मां कात्यायिनी की उपासना करें,लाभ होगा।

स्तुति मंत्र...

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना।

कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि।।

शनिवार, 25 मार्च 2023

नवरात्रि का पांचवां दिन मां 'स्कंदमाता' को समर्पित 

नवरात्रि का पांचवां दिन मां 'स्कंदमाता' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

नवरात्रि के पांचवें दिन भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाली मां दुर्गा के पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा करने का विधान है। ये देवी पार्वती का ही स्वरूप है।

कौन हैं स्कंदमाता ?

भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय'नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है, इनका वाहन मयूर है। स्कंदमाता के विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे हुए हैं।

दिव्य है इनका स्वरूप...

शास्त्रानुसार सिंह पर सवार स्कन्दमातृस्वरूपणी देवी की चार भुजाएं हैं,जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं और नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्णन पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। नवरात्र पूजन के पांचवे दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है।

पूजा विधि...

मां के श्रृंगार के लिए खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा भक्ति-भाव और विनम्रता के साथ करनी चाहिए। पूजा में कुमकुम,अक्षत,पुष्प,फल आदि से पूजा करें। चंदन लगाएं, माता के सामने घी का दीपक जलाएं। आज के दिन भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

बच्चों को होगा फायदा...

स्कंदमाता की पूजा में पीले फूल अर्पित करें और पीली चीजों का भोग लगाएं। संतान संबंधी कष्टों को दूर करने के लिए इस दिन बच्चों को फल-मिठाई बांटना भी बहुत अच्छा माना गया है।

उपासना का फल...

पौराणिक मान्यता है कि इनकी पूजा से भगवान कार्तिकेय की पूजा स्वयं ही हो जाती है एवं स्कंदमाता की आराधना से सूनी गोद भर जाती है। इनकी साधना से साधकों को आरोग्य,बुद्धिमता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं व भक्तों को परम शांति एवं सुख का अनुभव होने लगता है। सूर्यमण्डल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक आलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। संतान सुख एवं रोगमुक्ति के लिए स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए।


इस मंत्र से करें आराधना...


1. सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥


2. या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

शुक्रवार, 24 मार्च 2023

नवरात्रि का चौथा दिन मां 'कूष्मांडा' को समर्पित 

नवरात्रि का चौथा दिन मां 'कूष्मांडा' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 

इन दिनों शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा-आराधना की जाती है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्मांडा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी मां कूष्माण्डा (कूष्मांडा) कहलाती हैं। 

मां कूष्मांडा की पूजन विधि, मंत्र एवं भोग...

देवी कूष्मांडा की पूजन विधि...

नवरात्रि में इस दिन भी रोज की भांति सबसे पहले कलश की पूजा कर माता कूष्मांडा को नमन करें। 

इस दिन पूजा में बैठने के लिए हरे रंग के आसन का प्रयोग करना बेहतर होता है। 

देवी को लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चूड़ी भी अर्पित करना चाहिए। 

मां कूष्मांडा को इस निवेदन के साथ जल पुष्प अर्पित करें कि, उनके आशीर्वाद से आपका और आपके स्वजनों का स्वास्थ्य अच्छा रहे।

अगर आपके घर में कोई लंबे समय से बीमार है तो इस दिन मां से खास निवेदन कर उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करनी चाहिए। 


देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं। 


मां कूष्मांडा को विविध प्रकार के फलों का भोग अपनी क्षमतानुसार लगाएं। 

पूजा के बाद अपने से बड़ों को प्रणाम कर प्रसाद वितरित करें।

देवी कूष्मांडा योग-ध्यान की देवी भी हैं। देवी का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का भी है। उदराग्नि को शांत करती हैं। इसलिए, देवी का मानसिक जाप करें। देवी कवच को पांच बार पढ़ना चाहिए।

देवी को प्रसन्न करने के मंत्र...

श्लोक...

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥


सरल मंत्र- 'ॐ कूष्माण्डायै नम:।।'


मां कूष्मांडा की उपासना का मंत्र...

देवी कूष्मांडा की उपासना इस मंत्र के उच्चारण से की जाती है- कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥

मंत्र: या देवि सर्वभूतेषू सृष्टि रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:


अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

प्रसाद- माता कूष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुए का भोग लगाकर किसी भी दुर्गा मंदिर में ब्राह्मणों को इसका प्रसाद देना चाहिए। इससे माता की कृपा स्वरूप उनके भक्तों को ज्ञान की प्राप्ति होती है, बुद्धि और कौशल का विकास होता है और इस अपूर्व दान से हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाता है।

गुरुवार, 23 मार्च 2023

नवरात्रि का तीसरा दिन मां 'चंद्रघंटा' को समर्पित

नवरात्रि का तीसरा दिन मां 'चंद्रघंटा' को समर्पित

सरस्वती उपाध्याय 

देवी दुर्गा के हर रुप को विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है। मां चंद्रघंटा को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं और फिर देवी की आरती करें। इस तरह मां चंद्रघंटा की पूजा करने से साहस के साथ सौम्यता और विनम्रता में वृद्धि होती है।


मां चंद्रघंटा का मंत्र...


  • ऐं श्रीं शक्तयै नम:

  • या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।

  • पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥


मां चंद्रघंटा के उपाय...


नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के समक्ष एक छोटे लाल वस्त्र में लौंग, पान, सुपारी रखकर मां के चरणों में चढ़ाएं और देवी के नवार्ण मंत्र का 108 बार जाप करें। मां चंद्रघंटा के बीज मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। अगले दिन ये लाल पोटली सुरक्षित स्थान पर रख दें। जब भी किसी शुभ कार्य के लिए जाएं या फिर कोर्ट कचहेरी से संबंधित मामलों से जुड़ा कोई कार्य हो तो इस पोटली को साथ रखे। कहते हैं, इससे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और शत्रु की हर चाल नाकाम होती है।

मंगलवार, 21 मार्च 2023

परंपरा: 'माह-ए-रमजान' का महीना प्रारंभ, रोजे

परंपरा: 'माह-ए-रमजान' का महीना प्रारंभ, रोजे

सरस्वती उपाध्याय 

इस्लामिक कैलेंडर का 9वां महीना रमजान का पाक महीना होता है। रमजान मुसलमानों के सबसे प्रमुख त्योहारों में शामिल है। इस पूरे महीने के दौरान दुनियाभर के सभी मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं और रोजे रखते हैं। यह त्योहार 30 दिनों का होता है, जो हर साल चांद के दीदार के साथ शुरू होता है। इस दौरान सभी मुस्लिम समुदाय के लोग सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करते हैं। फिर नमाज पढ़कर सहरी खाते हैं। सहरी के बाद वे सीधे शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन करके अपना रोजा खोलते हैं, जिसे इफ्तार कहा जाता है।

इस बार रमजान 23 मार्च से शुरू हो रहा है। इस त्योहार की खुशी के मौके पर कई लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बधाई से जुड़े संदेश भेजते हैं।

नवरात्रि का पहला दिन मां 'शैलपुत्री' को समर्पित

नवरात्रि का पहला दिन मां 'शैलपुत्री' को समर्पित

सरस्वती उपाध्याय 

नवदुर्गा सनातन धर्म में भगवती माता दुर्गा जिन्हे आदिशक्ति जगत जननी जगदम्बा भी कहा जाता है, भगवती के नौ मुख्य रूप है, जिनकी विशेष पूजा व साधना नवरात्रि के दौरान और वैसे भी विशेष रूप से करी जाती है। इन नवों/नौ दुर्गा देवियों को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं और सभी परम भगवती दुर्गा जी से ही प्रकट होती है।

दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नाङ्कित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं–

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।। 


नौ रूप...

देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है।


शैलपुत्री...

दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएँ हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।


मंत्र...

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्‌।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥


कहानी...

एक बार जब सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमन्त्रित किया, पर अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं। सती अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमन्त्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहाँ जाना उचित नहीं है। परन्तु सती सन्तुष्ट नहीं हुईं।

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुँचीं तो सिर्फ माँ ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुँचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने-आप को जलाकर भस्म कर लिया।

इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने ताण्डव करते हुये उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी फिर से भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिव की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनन्त है।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

'मार्च' माह में पड़ने वाले व्रत और त्यौहार, जानिए 

'मार्च' माह में पड़ने वाले व्रत और त्यौहार, जानिए 

सरस्वती उपाध्याय 

मार्च का महीना शुरू होने में अब बस कुछ ही दिन बाकी हैं। ये महीना बेहद ही खास होने वाला है। क्योंकि इस महीने में कई खास त्योहार और अहम व्रत पड़ने वाले हैं। अगर देखा जाए तो ये पूरा महीना पूजा-पाठ और त्योहार में ही गुजरने वाला है। दरअसल, मार्च माह में होली, संकष्टी चतुर्थी, प्रदोष व्रत, चैत्र नवरात्रि सहित कई व्रत त्यौहार पड़ रहे हैं। 


मार्च 2023 में पड़ने वाले व्रत और त्यौहारों की डेट...

3 मार्च 2023 - आमलकी एकादशी

4 मार्च 2023 - प्रदोष व्रत (शुक्ल)

7 मार्च 2023 - होलिका दहन, फाल्गुन पूर्णिमा व्रत

8 मार्च 2023 - होली, धुलेंडी

11 मार्च 2023 - संकष्टी चतुर्थी

15 मार्च 2023 - मीन संक्रांति, खरमास शुरू

18 मार्च 2023 - पापमोचिनी एकादशी

19 मार्च 2023 - प्रदोष व्रत (कृष्ण)

21 मार्च 2023 - चैत्र अमावस्या

22 मार्च 2023 - चैत्र नवरात्रि, हिंदू नववर्ष शुरू, गुड़ी पड़वा

23 मार्च 2023 - चेटी चंड

24 मार्च 2023 - गौरी पूजा, मत्स्य जयंती, गणगौर

26 मार्च 2023 - स्कंद षष्ठी

27 मार्च 2023 - रोहिणी व्रत

29 मार्च 2023 - नवरात्रि दुर्गा अष्टमी

30 मार्च 2023 - राम नवमी

31 मार्च 2023 - चैत्र नवरात्रि समाप्त


मार्च 2023 में विवाह मुहूर्त...

1 मार्च   2023 -  बुधवार

6 मार्च   2023 -  सोमवार

9 मार्च   2023 -  गुरुवार

10 मार्च  2023 -  शुक्रवार

11 मार्च  2023 -  शनिवार

13 मार्च  2023 - सोमवार।

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2023

व्रत: 18 फरवरी को मनाई जाएगी 'महाशिवरात्रि'

व्रत: 18 फरवरी को मनाई जाएगी 'महाशिवरात्रि'

सरस्वती उपाध्याय 

इस साल महाशिवरात्रि 18 फरवरी, शनिवार को है। इस दिन व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, देवी सती का पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ था। मां पार्वती ने आरम्भ में अपने सौंदर्य से भगवान शिव को रिझाना चाहा, लेकिन वे सफल नहीं हो सकीं। इसके बाद त्रियुगी नारायण से पांच किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन ध्यान और साधना से उन्होंने शिवजी का मन जीत लिया। इसी दिन भगवान शिव और आदिशक्ति मां पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। भगवान शिव का तांडव और माता भगवती के लास्यनृत्य के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है। शिवजी को प्रसन्न करने और व्रत रखने कई महत्वपूर्ण नियम हैं, जिनका पालन करना जरूरी होता है। इन नियमों का पालन करने से महाशिवरात्रि व्रत का पूरा फल मिलता है और भगवान शिव की कृपा भी बनी रहती है।

व्रत की महिमा
महाशिवरात्रि व्रत परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण है ,यह व्रत चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। इस दिन जो प्राणी परमसिद्धिदायक भगवान शिव का व्रत,अभिषेक और पूजन करते हैं वह परम भाग्यशाली होता है। भगवान श्री राम ने स्वयं कहा है कि-‘ शिव द्रोही मम दास कहावा ! सो नर मोहि सपनेहुँ नहिं  भावा !!’अर्थात जो शिव का द्रोह करके मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। यही वजह है कि इस दिन शिव आराधना के साथ ही श्री रामचरितमानस के पाठ का भी बहुत महत्त्व होता है । एक अन्य कथा के अनुसार माता पार्वती ने एक बार भगवान शिव से पूछा कि कौनसा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान  कर सकता है ,तब भोलेशंकर ने स्वयं इस दिन का महत्व बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि  को जो उपवास करता है ,वह मुझे प्रसन्न कर लेता है ।में अभिषेक,वस्त्र,धूप,अर्घ्य तथा पुष्प आदि से उतना प्रसन्न नहीं होता जितना कि  व्रत-उपवास से।

व्रत और पूजन विधि
भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए श्रद्धालु  प्रातः स्नानादि करके शिवमंदिर जाएं ।पूजा में चन्दन  ,मोली ,पान, सुपारी,अक्षत, पंचामृत,बिल्वपत्र,धतूरा,फल-फूल,नारियल,इत्यादि शिवजी को अर्पित करें। भगवान शिव को अत्यंत प्रिय बेल को धोकर चिकने भाग की ओर से चंदन लगाकर चढ़ाएं । ‘ॐ नमः शिवाय’ मन्त्र का उच्चारण जितनी बार हो सके करें एवं शिवमूर्ति और भगवान शिव की लीलाओं का चिंतन करें। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की  पूजा अर्चना करनी चाहिए ।अभिषेक के जल में पहले प्रहर में दूध, दूसरे में दही ,तीसरे में घी, और चौथे में शहद को शामिल करना चाहिए। दिन में केवल फलाहार करें, रात्रि में उपवास करें। हांलाकि रोगी, अशक्त और वृद्धजन रात्रि में भी फलहार कर सकते है । इस दिन शिव की पूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति अवश्य होती है।

महाशिवरात्रि पर प्रदोष व्रत का संयोग
हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार महाशिवरात्रि पर बहुत ही शुभ संयोग बनने जा रहा है। 18 फरवरी,शनिवार को त्रयोदशी तिथि है और इस तिथि पर प्रदोष का व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा-उपासना के लिए खास होता है। इस दिन त्रयोदशी तिथि की समाप्ति के बाद चतुर्दशी तिथि प्रारंभ हो जाएगी।

रविवार, 20 नवंबर 2022

मिथिला में मैथिली विवाह के गीतों की गूंज प्रारंभ 

मिथिला में मैथिली विवाह के गीतों की गूंज प्रारंभ   

अविनाश श्रीवास्तव   

बेगूसराय। सांस्कृतिक विरासत, लोक कला और सनातन धर्म के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की अर्धांगिनी सीता के मायके मिथिला में एक बार फिर हर घर में मैथिली विवाह गीत गूंजने लगे हैं। यह तैयारी की जा रही है अगहन शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन होने वाले जानकी विवाह महोत्सव के लिए। इस वर्ष 28 नवम्बर को राम जानकी विवाह महोत्सव होगा। यह दिन भले ही सीता और राम के विवाह का हो, लेकिन मिथिला में लोग राम विवाह नहीं, जानकी विवाह महोत्सव मनाते हैं तथा पूरे देश में मिथिलांचल का ही दो जगह एक जनकपुर और दूसरा मिथिला का प्रवेश द्वार बेगूसराय का बीहट है, जहां की धूमधाम से विवाह महोत्सव मनाया जाता है।

दोनों जगह पर इस महोत्सव में शामिल होने के लिए ना केवल दूर-दूर से लोग आते हैं, बल्कि मिथिला के पाहुन श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण के स्वरूप भी अयोध्या से आते हैं।विवाह पंचमी को लेकर मिथिला के प्रवेश द्वार बीहट में स्थित विश्वनाथ मंदिर में तैयारी काफी काफी तेज हो गई है। 27 नवम्बर को देव आमंत्रण, मंडपाच्छादन, मटकोर प्रोशेसन, चुमावन एवं जागरण होगा। 28 नवम्बर की रात विवाह से पूर्व बारात झांकी निकाली जाएगी। 29 नवम्बर को पूरे विधि विधान के साथ रामकलेवा (ज्योनार) तथा 30 नवम्बर को चौठ-चौठारी के साथ चार दिवसीय महोत्सव का समापन होगा।

सबसे बड़ी बात है कि यहां ना सिर्फ विवाह का महोत्सव मनाया जाता है। बल्कि वैष्णव माधुर्य भक्ति के परिचायक विश्वनाथ मंदिर बीहट में बेटी की शादी की तरह मिथिला परंपरा के अनुसार सभी रस्म निभाए जाते हैं। अवध (अयोध्या) से आए श्री राम के स्वरूप दूल्हा से मिथिलांचल की बेटियां हास-परिहास करती है और विवाह की रस्म पूरा होने के बाद सम्मान के साथ उन्हें विदा किया जाता है। विवाह महोत्सव में राजा जनक की भूमिका निभाने वाले विश्वनाथ मंदिर के पीठासीन आचार्य राजकिशोर जी उपाध्याय ने बताया कि लोक उत्सव और लोक पर्व की जागृत परंपरा के वाहक मिथिला के हर घर में श्रीराम जानकी की पूजा होती है। विश्वनाथ मंदिर में प्रत्येक दिन रामार्चन के माध्यम रस्में निभाई जाती है।

सभी माह के शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की पंचमी को विवाह रस्म होता है। लेकिन प्रत्येक वर्ष अगहन शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीजानकी विवाह महोत्सव का आयोजन होता रहा है। श्रीसिय रनिवास में महोत्सव की तैयारी तेज हो गई है। अयोध्या से 14 वर्ष से कम उम्र के रामस्वरूप दूल्हा आएंगे तथा जिस तरह से पौराणिक काल में गुरु संग स्वयंवर में आए श्रीराम का सभी रस्म मिथिला में किया गया था, उसी प्रकार से यहां भी रामस्वरूप आए बालक का सभी रस्में पूरे विधि विधान से की जाएगी। विश्वनाथ मंदिर का श्रीजानकी विवाह महोत्सव सनातन संस्कृति तथा धार्मिक महत्ता को बढ़ाने के साथ ही वैष्णव माधुर्य भक्ति का परिचायक भी है, लोग यहां परब्रह्म की अराधना दासभक्ति से करते हैं।

मंगलवार, 15 नवंबर 2022

कृष्ण-पक्ष की अष्टमी को मनाई जाएगी 'कालाष्टमी'

कृष्ण-पक्ष की अष्टमी को मनाई जाएगी 'कालाष्टमी'

सरस्वती उपाध्याय

कालाष्टमी या काल भैरव जयंती का दिन भगवान शिव के भक्तों के लिए खास माना गया है। कालभैरव भगवान शिव के रुद्र अवतार से प्रकट हुए थे। हर महीने कृष्ण-पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी या काल भैरव अष्टमी मनाई जाती है। इस बार काल भैरव अष्टमी 16 नवंबर, बुधवार को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से भय से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भैरव बाबा की पूजा-अर्चना करने से शत्रुओं से छुटकारा मिलता है।

काल भैरव अष्टमी के दिन बन रहे ये चौघड़िया मुहूर्त
लाभ-उन्नति- 06:44 एएम से 08:05 एएम
अमृत-सर्वोत्तम- 08:05 एएम से 09:25 एएम
शुभ-उत्तम- 10:45 एएम से 12:06 पीएम
लाभ-उन्नति- 04:07 पीएम से 05:27 पीएम

शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि 16 नवंबर 2022 को सुबह 05 बजकर 49 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 17 नवंबर को शाम 07 बजकर 57 मिनट तक रहेगी।

काल भैरव अष्टमी पूजा-विधि
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत रखें। घर के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें। इस दिन भगवान शंकर की भी विधि- विधान से पूजा- अर्चना करें। भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और गणेश भगवान की पूजा-अर्चना भी करें। आरती करें और भगवान को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।

शनिवार, 12 नवंबर 2022

कृष्ण-पक्ष की एकादशी को मनेगी 'विजया' एकादशी 

कृष्ण-पक्ष की एकादशी को मनेगी 'विजया' एकादशी 

सरस्वती उपाध्याय 

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण-पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी मनाई जाती है। साल 2023 में विजया एकादशी व्रत 16 फरवरी दिन गुरुवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है।

विजया एकादशी व्रत कब है?

पंचांग के अनुसार 16 फरवरी 2023, बृहस्पतिवार को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है। इस एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। विजया एकादशी व्रत 16 फरवरी 2023 को रखा जाएगा। इस दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। हर कामना पूरी होती है। 

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार एकादशी की तिथि का प्रारंभ 16 फरवरी 2023 दिन बृहस्पतिवार को सुबह 05 : 32 बजे से होगा, जो अगले दिन यानी 17 फरवरी 2023, शुक्रवार को 2 बजकर 49  मिनट तक रहेगी।

विजया एकादशी व्रत: 16 फरवरी 2023 बृहस्पतिवार को

एकादशी तिथि प्रारम्भ : फरवरी 16, 2023 को 05:32 AM बजे

एकादशी तिथि समाप्त : फरवरी 17, 2023 को 02:49 AM बजे

विजया एकादशी व्रत पारण (व्रत तोड़ने का) समय : 17 फरवरी को 08 : 01  AM से 09:13 AM

एकादशी व्रत पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय : 17 फरवरी को 08:01 AM

पारण समय एवं मुहूर्त

साल 2023 का विजया एकादशी व्रत 16 फरवरी को रखा जाएगा और इस व्रत का पारण अगले दिन 17 फरवरी को 08 : 01  AM से 09:13 AM के बीच किया जा सकता है। वहीं वैष्णव विजया एकादशी व्रत 17 फरवरी 2023 शुक्रवार को रखा जाएगा। वैष्णव एकादशी के लिए विजया एकादशी व्रत पारण (व्रत तोड़ने का) का समय 18 फरवरी को सुबह 06:57 AM से 09:12 AM तक है। पारण के दिन द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी।

सोमवार, 7 नवंबर 2022

चंद्र ग्रहण: आज मनाया जाएगा 'गंगा स्नान' का पर्व

चंद्र ग्रहण: आज मनाया जाएगा 'गंगा स्नान' का पर्व

सरस्वती उपाध्याय 

कार्तिक पूर्णिमा इस वर्ष आठ नवंबर को है। इसे गंगा स्नान भी कहा जाता है। लोग व्रत रखते हैं। भोर में गंगा स्नान कर पूजन, दान करते हैं। इस बार आठ नवंबर को ही साल का आखरी चंद्र ग्रहण भी पड़ रहा है। चंद्रग्रहण के चलते कई कार्यों पर प्रभाव पड़ रहा है। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पंडित राजीव शर्मा का कहना है कि ग्रस्तोदय चंद्र ग्रहण लग रहा है। ऐसे में अरुणोदय काल में गंगा स्नान करना पुण्यकारी होगा।

धार्मिक मान्यता, परंपरा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान भी कहा जाता है। इस वर्ष 8 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है, पर उसी दिन साल का आखिरी चंद्र ग्रहण भी लगने जा रहा है। यह ग्रहण देश के पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भागों में खग्रास के रूप में भी दिखाई देगा। वहीं शेष हिस्सों में खण्डग्रास होगा। जिन स्थानों पर चंन्द्रोदय सांय 5:12 बजे से पूर्व होगा, उन स्थानों पर यह खग्रास भी दिखाई देगा, शेष में यह चंद्रग्रहण खण्डग्रास के रूप में दिखाई देगा। यह ग्रहण आठ नवंबर को भारतीय मानक समय अनुसार अपराह्न 2:39 बजे से सांय 6:19 बजे तक रहेगा जिसमें खग्रास की स्थिति अपराह्न 3:46 बजे से सांय 5:12 बजे तक रहेगी। भारत के विभिन्न छेत्रो में ग्रेस्तोदय के रूप में दिखाई देगा

ग्रहण का सूतक

ग्रहण ग्रस्तोदय होने की वजह से इसका सूतक सूर्योदय से ही माना जायेगा। सामान्य रूप से चंद्र ग्रहण का सूतक नौ घंटे पहले से मानते हैं। चंद्र ग्रहण मेष राशि एवं भरणी नक्षत्र में हो रहा है इसलिए यह इस राशि एवं नक्षत्र वाले व्यक्तिओं के लिए विशेष रूप से अशुभफलदायक है। इसके अतिरिक्त वृष, सिंह, कन्या, तुला, धनु, मकर एवं मीन राशि वालों के लिए अशुभ फलप्रद रहेगा।

सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

शुक्ल-पक्ष की अष्टमी तिथि को मनेगा 'गोपाष्टमी' पर्व

शुक्ल-पक्ष की अष्टमी तिथि को मनेगा 'गोपाष्टमी' पर्व


कार्तिक मास के शुक्ल-पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्टमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन गौ माता की विशेष पूजा का विधान शास्त्रों में वर्णित है। मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन गाय माता में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करने से व्यक्ति को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं। इस साल यह पर्व 1 नवम्बर के दिन मनाया जाएगा। बता दें कि यह पर्व विशेष रूप से वृन्दावन, मथुरा में धूम-धाम से मनाया जाता है। आइए जानते हैं तिथि और शुभ मुहूर्त।


गोपाष्टमी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त 

कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि प्रारम्भ: 31 अक्टूबर 2022, सोमवार से

अष्टमी तिथि समाप्त: 1 नवंबर 2022, मंगलवार रात 11:03 तक

गोपाष्टमी व्रत तिथि: 1 नवंबर 2022, मंगलवार


गोपाष्टमी पर बन रहा है अभिजीत मुहूर्त

हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष गोपाष्टमी पर्व के दिन अभिजित मुहूर्त का निर्माण हो रहा है। मान्यता है कि अभिजीत मुहूर्त में पूजा-पाठ करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष पर अष्टमी तिथि सुबह 11:47 से दोपहर 12:31 तक रहेगा। यह समय पूजा के लिए सर्वोत्तम है।


गोपाष्टमी पूजा विधि 

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान के बाद साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद गाय और उसके बछड़े को माला पहनाएं व तिलक लगाएं। इसके बाद गाय की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करें। इस दिन उन्हें अपने हाथों से भोजन कराना न भूलें। अंत में उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें और उनकी आरती करें। शास्त्रों में एक उपाय यह भी बताया है कि इस दिन गाय को गुड़ का भोग लगाने से सूर्य दोष से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही घर के नजदीक बनें गौशाला में दान जरूर करें।


गोपाष्टमी पर करें इस मंत्र का जाप 

सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता ।

सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ।।

तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते ।

मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी ।।

श्रीराम 'निर्भयपुत्र'

शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

देवोत्थानी एकादशी: शादियों का मुहूर्त 24 से शुरू होगा

देवोत्थानी एकादशी: शादियों का मुहूर्त 24 से शुरू होगा

सरस्वती उपाध्याय 

10 जुलाई को हरि शयनी एकादशी से बंद चल रही शादियां एक बार फिर शुरू होंगी। 4 नवंबर को देवोत्थानी एकादशी के साथ ही सहालग शुरू हो जाएगी, लेकिन शादियों का मुहूर्त 24 नवंबर से शुरू होगा। इसे लेकर बाजार में भी तैयारियां शुरू हो गई हैं। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि देवताओं के जागने के बाद ही शादियां होंगी। 20 तक शुक्रास्त के चलते शादियां नहीं होंगी। 24 से शुरुआत होगी। ऐसा शायद ही कोई इलाका बचेगा जहां बैंड बाजे की धुन पर बराती थिरकते नजर न आएं।

शहर के होटल व रेस्टोरेंट, शादी घरों की बुकिंग फुल हो चुकी है। सहालग के लिए शहर के छोटे बैंड वालों के पास दो से पांच और बड़े बैंड वालों के पास छह से आठ बुकिंग है। अशोक मार्ग के बैंड मास्टर गौरव ने बताया कि लखनऊ में करीब 300 से 400 छोटे बड़े बैंड वाले हैं। सभी के पास बुकिंग है। दो साल के कोरोना काल के बाद बुकिंग में तेजी आएगी।

होटल रेस्टोरेंट की बुकिंग फुलः शहर के करीब 150 बड़े होटल व रेस्टोरेंट में बुकिंग हुई है। इलाकाई शादी घर भी बुक हो चुके हैं। लखनऊ होटल एवं रेस्टोरेंट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष श्याम कृष्नानी ने बताया कि सहालग में इसबार अच्छा कारोबार होने की उम्मीद है।

एक टेंट वाले के पास चार से पांच बुकिंगः ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को मिलाकर शादियों की धूम होगी। आदर्श कैटर्स लाइल डेकाेरोरेटर एसाेसिएशन के अध्यक्ष विजय कुमार ने बताया कि सहालग में सभी टेंट हाउस के पास कई बुकिंग है। हनुमान सेतु के फूल के कारोबारी कल्लू ने बताया कि सजावट के लिए बुकिंग मिल गईं हैं। शादी के वाहन के साथ ही मंडप सजाने वालों के चेहरे भी खिल उठे हैं। इस बार पूरे शहर में शादियों की धूम है।

खास मुहूर्त पर शादी करने का चलनः आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि शुक्रास्त की मान्यता के चलते लोगों ने शादियां नहीं कीं। शुभ कार्य भी नहीं हुए। सात जन्मों तक रिश्तों को जोड़ने की शादी की मान्यता होने और सुख वैवाहिक जीवन के लिए लोग अच्छे दिनों में ही शादियों का प्लान बनाते हैं। आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि शादियों का शुभ मुहूर्त है। शुभ लग्न होने के कारण शादियों की धूम होगी।

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