मंगलवार, 7 सितंबर 2021

सरकार के गठन की घोषणा की तैयारियां पूरी की

काबुल। तालिबान ने कहा कि अफगानिस्तान में नयी सरकार के गठन की घोषणा की तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं। तालिबान के प्रवक्ता अहमदुल्ला मुत्ताकी ने यह जानकारी दी। उसने ट्विटर पर लिखा, “इस्लामी सरकार की घोषणा की तैयारी पूरी हो चुकी है। जल्द ही सरकार गठन की घोषणा की जायेगी।” 
इससे पहले, तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा था कि कुछ तकनीकी मुद्दों को छोड़कर अफगानिस्तान में सरकार के गठन पर निर्णय लेने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।

शेरवुड कॉलेज से कक्षा नौवीं व दसवीं की पढ़ाई की

पंकज कपूर         

नैनीताल। प्रकृति के बची बसी सरोवर नगरी नैनीताल की सुरम्य वादियां दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसकी यादें आज भी लोगों के दिलों में बसी है। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन भी कई बार अलग-अलग मंच से यहां की यादें लोगोें से साझा कर चुके हैं। अब एक बार फिर उन्होंने नैनीताल में पढ़ाई के दौरान की एक घटना लोगों के सामने रखी है। बता दें की अमिताभ बच्चन 1956 से 1958 के बीच नैनीताल के शेरवुड कॉलेज से कक्षा नौवीं व दसवीं की पढ़ाई की है। यहां पढ़ाई के दौरान ही उनके अभिनय की शुरुआत हुई। यहां वह कई नाटकों में अभिनय कर चुके है। इसी दौरान की एक घटना उन्होंने अब दुनिया के सामने रखी है।

सोनी टीवी पर प्रसारित हो रहे काैन बनेगा करोड़पति के सीजन 13 में सोमवार की रात उन्होंने बताया कि उन्हें बचपन से ही फिल्मों का शौक था। पढ़ाई के दौरान उन्होंने नाटकों में अभिनय भी किया। उनके अभिनय की पहली पाठशाला नैनीताल का शेरवुड कालेज रहा है। वह फिल्मों के इतने शौकीन थे कि रात में काॅलेज से कंबल ओढ़कर छिपते हुए फिल्म देखने जाते थे।

वह बोले, शेरवुड स्कूल नैनीताल की पहाड़ी में स्थित था। उन्हेंं फिल्मों का खासा शौक था लेकिन स्कूल का अनुशासन इसमें आड़े आता था। इस वजह से रात में वह हास्टल से जैसे-तैसे दीवार फांदकर निकलते थे। फिर बाहर आकर कंबल ओढ़कर लेते थे ताकि पहचाने न जाएं। तब नैनीताल में एकमात्र सिनेमाघर था। फिल्म देखने के बाद वह फिर से कंबल ओढ़कर ही लौट जाते थे। प्रिंसिपल को पता नहीं चलता था। 

शिक्षक भर्ती पद के लिए नोटिफिकेशन जारी किया

पंकज कपूर      
देहरादून। आप भी शिक्षक बनना चाहते तो ये खबर आपके लिए ही है। शिक्षक भर्ती पद के लिए आयोग ने नोटिफिकेशन जारी कर ऑनलाइन आवेदन मांगे है। 
इच्छुक उम्मीदवार आयोग की आधिकारिक वेबसाइट  के माध्यम से 30 सितंबर तक ऑनलाइन आवेदन कर सकते है। 
ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया 1 सितंबर से शुरू हो गई है। परीक्षा उत्तराखंड के विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर 26 नवंबर को आयोजित कराई जाएगी। 

भारत के कप्पाड तट पर केरल पहुँचा था वास्को

नई दिल्ली/ वाशिंगटन डीसी। वास्को दी गामा को भारत की खोज करने का श्रेय देते हुए इतिहासकार उसके गुणगान करते दिखेंगे। उस काल में जब यूरोप से भारत के मध्य व्यापार केवल अरब के माध्यम से होता था। उस पर अरबवासियों का प्रभुत्व था। भारतीय मसालों और रेशम आदि की यूरोप में विशेष मांग थी। पुर्तगालवासी वास्को दी गामा समुद्र के रास्ते अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगाते हुए भारत के कप्पाड तट पर 14, मई, 1498 कालीकट, केरल पहुँचा था। केरल का यह प्रदेश समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र था। स्थानीय निवासी समुद्र तट पर एकत्र होकर गामा के जहाज को देखने आये क्यूंकि गामा के जहाज की रचना अरबी जहाजों से अलग थी

केरल के उस प्रदेश में शाही जमोरियन राजपरिवार के राजा समुद्रीन का राज्य था। राजा अपने बड़े से शाही राजमहल में रहता था। गामा अपने साथियों के साथ राजा के दर्शन करने गया। रास्ते में एक हिन्दू मंदिर को चर्च समझ कर गामा और उसके साथी पूजा करने चले गए। वहां स्थित देवीमूर्ति को उन्होंने मरियम की मूर्ति समझा और पुजारियों के मुख से श्री कृष्ण के नाम को सुनकर उसे क्राइस्ट का अपभ्रंश समझा। गामा ने यह सोचा कि लम्बे समय तक यूरोप से दूर रहने के कारण यहाँ के ईसाईयों ने कुछ स्थानीय रीति रिवाज अपना लिए है। इसलिए ये लोग यूरोप के ईसाईयों से कुछ भिन्न मान्यताओं वाले है। गामा की सोच उसके ईसाईयत के प्रति पूर्वाग्रह से हमें परिचित करवाती है। राजमहल में गामा का भव्य स्वागत हुआ। उसे 3000 सशस्त्र नायर सैनिकों की टुकड़ी ने अभिवादन दिया। गामा को तब तक विदेशी राजा के राजदूत के रूप में सम्मान मिल रहा था। सलामी के पश्चात गामा को राजा के समक्ष पेश किया गया। जमोरियन राजा हरे रंग के सिंहासन पर विराजमान था। उनके गले में रतनजड़ित हीरे का हार एवं अन्य जवाहरात थे। जो उनकी प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करते थे। गामा द्वारा लाये गए उपहार अत्यंत तुच्छ थे। राजा उनसे प्रसन्न नहीं हुआ। फिर भी उसने सोने, हीरे आदि के बदले मसालों के व्यापार की अनुमति दे दी।

स्थानीय अरबी व्यापारी राजा के इस अनुमति देने के विरोध में थे। क्यूंकि उनका इससे व्यापार पर एकाधिकार समाप्त हो जाता। गामा अपने जहाज़ से वापिस लौट गया। उसकी इस यात्रा में उसके अनेक समुद्री साथी काल के ग्रास बन गए। उसका पुर्तगाल वापिस पहुंचने पर भव्य स्वागत हुआ। उसने यूरोप और भारत के मध्य समुद्री रास्ते की खोज जो कर ली थी। आधुनिक लेखक उसे भारत की खोज करने वाला लिखते है। भारत तो पहले से ही समृद्ध व्यापारी देश के रूप में संसार भर में प्रसिद्द था। इसलिए यह कथन यूरोपियन लेखक की पक्षपाती मानसिकता को प्रदर्शित करता है।

पुर्तगाल ने अगली समुद्री यात्रा की तैयारी आरम्भ कर दी। इस बार लड़ाकू तोपों से सुसज्जित 13 जहाजों और 1200 सिपाहियों का बड़ा भारत के लिए निकला। कुछ महीनों की यात्रा के पश्चात यह बेड़ा केरल पहुंचा। कालीकट आते ही पुर्तगालियों ने राजा के समक्ष एक नाजायज़ शर्त रख दी कि राजा केवल पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध रखेंगे। अरबों के साथ किसी भी प्रकार का व्यापार नहीं करेंगे। राजा ने इस शर्त को मानने से इंकार कर दिया। झुंझला कर पुर्तगालियों ने खाड़ी में खड़े एक अरबी जहाज को बंधक बना लिया।

अरबी व्यापारियों ने भी पुर्तगालियों की शहर में रुकी टुकड़ी पर हमला बोल दिया। पुर्तगालियों ने बल प्रयोग करते हुए दस अरबी जहाजों को बंधक बना कर उनमें आग लगा दी। इन जहाजों पर काम करने वाले नाविक जिन्दा जल कर मर गए। पुर्तगालियों यहाँ तक नहीं रुके। उन्होंने कालीकट पर अपनी समुद्री तोपों से बमबारी आरम्भ कर दी। यह बमबारी दो दिनों तक चलती रही। कालीकट के राजा को अपना महल छोड़ना पड़ा। यह उनके लिया अत्यंत अपमानजनक था। पुर्तगाली अपने जहाजों को मसालों से भरकर वापिस लौट गए। यह उनका हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व स्थापित करने का पहला अभियान था।

गामा को एक अत्याचारी एवं लालची समुद्री लुटेरे के रूप में अपनी पहचान स्थापित करनी थी। इसलिए वह एक बार फिर से आया। इस बार अगले तीन दिनों तक पुर्तगाली अपने जहाजों से कालीकट पर बमबारी करते रहे। खाड़ी में खड़े सभी जहाजों और उनके 800 नाविकों को पुर्तगाली सेना ने बंधक बना लिया। उन बंधकों की पहले जहाजों पर परेड करवाई गई। फिर उनके नाक-कान, बाहें काटकर उन्हें तड़पा तड़पा कर मारा गया। अंत में उनके क्षत-विक्षत शरीरों को नौकाओं में डालकर तट पर भेज दिया गया।

ज़मोरियन राजा ने एक ब्राह्मण संदेशवाहक को उसके दो बेटों और भतीजे के साथ सन्धि के लिए भेजा गया। गामा ने उस संदेशवाहक के अंग भंग कर, अपमानित कर उसे राजा के पास वापिस भेज दिया। और उसके बेटों और भतीजे को फांसी से लटका दिया। पुर्तगालियों का यह अत्याचार केवल कालीकट तक नहीं रुका। वे पश्चिमी घाट के अनेक समुद्री व्यापार केंद्रों पर अपना कहर बरपाते हुए गोवा तक चले गए। गोवा में उन्होंने अपना शासन स्थापित किया। यहाँ उनके अत्याचार की एक अलग दास्तान फ्रांसिस ज़ेवियर नामक एक ईसाई पादरी ने लिखी।

पुर्तगालियों का यह अत्याचार केवल लालच के लिए नहीं था। इसका एक कारण उनका अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करना भी था। इस मानसिकता के पीछे उनका ईसाई और भारतीयों का गैर ईसाई होना भी एक कारण था। इतिहासकार कुछ भी लिखे मगर सत्य यह है कि वास्को दी गामा एक नाविक के भेष में दुर्दांत, अत्याचारी, ईसाई लुटेरा था। खेद है वास्को डी गामा के विषय में स्पष्ट जानकारी होते हुए भी हमारे देश के साम्यवादी इतिहासकार उसका गुणगान कर उसे महान बनाने पर तुले हुए है। इतिहास का यह विकृतिकरण हमें संभवत विश्व के किसी अन्य देश में नहीं मिलेगा। 

यूके: 10 सितंबर तक बारिश का दौर रहेगा जारी

पंकज कपूर              

देहरादून। उत्तराखंड में फिलहाल बारिश से राहत मिलने वाली नहीं है। राज्य में अगले 4 दिन यानी 10 सितंबर तक बारिश का दौर जारी रहेगा। जिसको लेकर मौसम विभाग ने यलो अलर्ट जारी कर दिया है तथा साथ ही लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।मौसम विभाग ने 6 एवं 7 सितंबर को राज्य के नैनीताल पिथौरागढ़ बागेश्वर जनपदों में कहीं-कहीं तीव्र बौछार के साथ भारी बारिश की आशंका जताई है, वहीं राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में आकाशीय बिजली चमकने के साथ गर्जन होने के संभावना है।

8 सितंबर को राज्य के चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी,नैनीताल , बागेश्वर, पिथौरागढ़ जिलों में भारी बारिश व तीव्र बौछार का येलो अलर्ट रहेगा। जबकि आगामी 9 एवं 10 सितंबर को राज्य के लगभग सभी पर्वतीय एवं मैदानी जनपदों में हल्की एवं मध्यम वर्षा गरज चमक के साथ होने की संभावना जताई गई है। जबकि पर्वतीय राज्यों में कुछ स्थानों पर गरज चमक के साथ आकाशीय बिजली गिरने की आशंका भी जताई गई है। बारिश के येलो अलर्ट के बाद प्रशासन भी अलर्ट मोड में आ गया है।

भारत को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका: पीएम

अकांशु उपाध्याय        

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को सांकेतिक भाषा शब्दकोष, टॉकिंग बुक्स, निष्ठा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम और विद्यांजलि पोर्टल जैसी, शिक्षा क्षेत्र में नयी पहलों की शुरुआत की तथा कहा कि यह योजनाएं भविष्य के भारत को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। ”शिक्षक पर्व” के पहले सम्मेलन को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित कर रहे प्रधानमंत्री ने नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ”भविष्य की नीति” बताया और इसे नये स्तर तक ले जाने के लिए जनभागीदारी का आह्वान।

उन्होंने भारतीय सांकेतिक भाषा शब्दकोश (श्रवण बाधितों के लिए ऑडियो और अंतर्निहित पाठ सांकेतिक भाषा वीडियो, ज्ञान के सार्वभौमिक डिजाइन के अनुरूप), बोलने वाली किताबें (टॉकिंग बुक्स, नेत्रहीनों के लिए ऑडियो किताबें), केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की स्कूल गुणवत्ता आश्वासन और आकलन रूपरेखा, निपुण भारत के लिए ‘निष्ठा’ शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम और विद्यांजलि पोर्टल की शुरुआत की।

प्रधानमंत्री ने कहा, ”आज शिक्षक पर्व पर अनेक नई परियोजनाओं का शुभारंभ हुआ है। यह पहल इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश अभी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आजादी के 100वें वर्ष में भारत कैसा होगा, इसके लिए देश आज नए संकल्प ले रहा है। आज जो योजनाएं शुरु हुई हैं, वह भविष्य के भारत को आकार देने में अहम भूमिका निभाएंगी।”

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति सिर्फ नीति ही नहीं, बल्कि सहभागिता आधारित है और इसके निर्माण से लेकर इसके क्रियान्वयन के हर स्तर पर देश के शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और शिक्षकों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने कहा, ”अब हमें इस भागीदारी को एक नए स्तर तक लेकर जाना है, हमें इसमें समाज को भी जोड़ना है। जब समाज मिलकर कुछ करता है तो इच्छित परिणाम अवश्य मिलते हैं। और आपने ये देखा है कि बीते कुछ वर्षों में जनभागीदारी अब फिर भारत का राष्ट्रीय चरित्र बनता जा रहा है।”

स्वच्छता अभियान, उज्जवला योजना , डिजिटल लेने देन जैसे कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले छह-सात वर्षों में जनभागीदारी की ताकत से भारत में ऐसे-ऐसे कार्य हुए हैं, जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के विभिन्न माध्यमों का उपयोग करते हुए भारत की शिक्षा व्यवस्था ने दुनिया को अपनी सामर्थ्य दिखायी है।

उन्होंने कहा, ”इन मुश्किल परिस्थितियों में हमने जो सीखा है, उन्हें अब आगे बढ़ाने का समय है।” उन्होंने कार्यक्रम में शामिल छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि लंबे समय बाद स्कूल जाना, दोस्तों से मिलना और क्लास में पढ़ाई करने का आनंद ही कुछ और है। साथ ही उन्होंने सभी को सचेत किया कि उत्साह के साथ-साथ उन्हें कोरोना नियमों का पालन भी पूरी कड़ाई से करना है। कार्यक्रम के दौरान शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी, राजकुमार रंजन सिंह और सुभाष सरकार भी उपस्थित थे। 

मानकर बेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू की

अकांशु उपाध्याय       

नई दिल्ली। सालबेग 17वीं शताब्दी की शुरूआत में मुगलिया शासन के एक सैनिक थे, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग की माता ब्राह्मण थीं, जबकि पिता मुस्लिम थे। उनके पिता मुगल सेना में सूबेदार थे। इसलिए सालबेग भी मुगल सेना में भर्ती हो गए थे। एक बार मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए सालबेग बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव सही नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर बेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव सही हो चुके थे।

इसके बाद बेग ने मंदिर में जा कर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया क्योंकि जगन्नाथ पुरी नें गैर हिन्दू का प्रवेश वर्जित है। इसके बाद सालबेग मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, बावजूद उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर बेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनको दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया। 

'पत्रकार' की गोलियों से भूनकर हत्या की, प्रदर्शन

'पत्रकार' की गोलियों से भूनकर हत्या की, प्रदर्शन  संदीप मिश्र  जौनपुर। बाइक पर सवार होकर जा रहे पत्रकार की दिनदहाड़े गोलियों से भूनक...