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बुधवार, 12 जुलाई 2023

शिव की पूजा में 'केतकी' का फूल चढ़ाना पाप

शिव की पूजा में 'केतकी' का फूल चढ़ाना पाप

सरस्वती उपाध्याय 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, किसी भी देव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें उनकी पसंदीदा वस्तुएं दी जाती हैं। सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं को अर्पित करना प्रचलित है। लेकिन कुछ चीजें देवताओं को देने से वे जल्द ही नाराज़ हो जाते हैं। आइए पता करें...!

सावन का महीना बहुत पावन और पवित्र है। यह कहते हैं कि इस माह में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया एक छोटा सा काम भी बहुत जल्द काम करेगा। शिव भगवान बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। ऐसे में श्रद्धालु महादेव को अपनी प्रिय वस्तुएं देते हैं। लेकिन शास्त्र कहते हैं कि कुछ चीजें भूलकर भी महादेव को नहीं देनी चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र कहता है कि भगवान शिव को एक फूल भी नहीं देना चाहिए। यह एक केतकी का फूल है। शिव पुराण में एक कथा है, जो बताती है कि पूजा में केतकी के फूल का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता है ?

आइए, केतकी के फूल और भगवान शिव के बारे में जानें...!

केतकी के फूल की पौराणिक कथा...

शिव पुराण में भगवान शिव को केतकी का फूल अर्पित न करने की कथा के बारे में बताया गया है। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच विवाद हो गया कि कौन सर्वश्रेष्ठ है और इस विवाद को खत्म करने के लिए दोनों को भगवान शिव के पास जाना पड़ा। उस समय महादेव ने एक ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कर उसका आदि और अंत खोजने को कहा। साथ ही, कहा कि जो खोज लेगा, वहीं श्रेष्ठ कहलाएगा।

इस तरह से आदि अंत खोजने की हुई शुरुआत

ज्योतिर्लिंग का आदि-अंत खोजने के लिए भगवान विष्णु ऊपर की ओर और ब्रह्मा जी नीचे की ओर बढ़ें। 

शिवलिंग का आदि-अंत खोजने के लिए ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने लाख कोशिश की। लेकिन उन्हें कुछ न मिला। जब ब्रह्मा जी अंत ढूंढते-ढूंढते थक गए, तब उन्हें रास्ते में केतकी का फूल मिला।ब्रह्मा जी ने केतकी के फूल को बहलाकर शिव दी के आगे झूठ बोलने को कहा और दोनों ने महादेव के सामने जाकर झूठ बोलकर ये स्वीकार किया कि उन्हें शिवलिंग का अंत मिल गया।

भगवान शिव ने दिया केतकी को श्राप

महादेव जानते थे कि ब्रह्मदेव झूठ बोल रहे हैं और उनकी इस बात से वे क्रोधित हो गए और ब्रह्मा जी को पांचवा सिर काट दिया। वहीं, केतकी के फूल को शाप दिया कि शिल जी को पूजा में केतकी के फूल का इस्तेमाल वर्जित रहेगा।

तब से ही महादेव की पूजा में केतकी के फूल को चढ़ाना मना है। केतकी का फूल चढ़ाना पाप माना गया है। इसलिए सावन या महादेव की पूजा के समय भूलवश भी केतकी का फूल अर्पित न करें।

मंगलवार, 11 जुलाई 2023

नदियों में स्नान करना पुण्य कर्म, जानिए विधि 

नदियों में स्नान करना पुण्य कर्म, जानिए विधि 


पुण्य अवसरों पर नदियों में इस तरह से करें स्नान 

राजेंद्र गुप्ता

अक्सर लोग अमावस्या या पूर्णिमा पर या किसी विशेष दिन जब स्नान करने जाते हैं, तो बस दो या तीन चार डुबकी लगा कर आ जाते हैं। लेकिन, ऐसा तो आप किसी भी नदी में कर सकते हैं। यह स्नान तो साधारण ही हुआ। नदी के पास रहने वाले लोग ऐसा स्नान रोज ही करते हैं। तब क्या है तीर्थ, माघ, अमावस्या, पूर्णिमा और कुंभ में स्नान करने के नियम जिससे स्नान का पूर्ण लाभ मिले?

प्रात: काल स्नान का महत्व : तीर्थ में प्रात: काल स्नान करने का महत्व है। प्रात: काल स्नान करने से दुष्ट विचार और आत्मा पास नहीं आते। रूप, तेज, बल पवित्रता, आयु, आरोग्य, निर्लोभता, दुःस्वप्न का नाश, तप और मेधा यह दस गुण प्रातः स्नान करने वाले को प्राप्त होते हैं। अतएव लक्ष्मी, पुष्टी व आरोग्य की वृद्धि चाहने वाले मनुष्य को सदेव स्नान करना चाहिए।

नदी स्नान की विधि : उषा की लाली से पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है। इससे प्रजापत्य का फल प्राप्त होता है। नदी से दूर तट पर ही देह पर हाथ मलमलकर नहा ले, तब नदी में गोता लगाएं। शास्त्रों में इसे मलापकर्षण स्नान कहा गया है। यह अमंत्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ और शुचिता दोनों के लिए आवश्यक है। देह में मल रह जाने से शुचिता में कमी आ जाती है और रोम छिद्रों के न खुलने से स्वास्थ में भी अवरोध होता है। इसलिए मोटे कपड़े से प्रत्येक अंग को रगड़-रगड़ कर स्नान करना चाहिए।

शिखा धारण कर रखी है तो : निवीत होकर बेसन आदी से यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर लें। इसके बाद शिखा बांधकर दोनों हाथों में पवित्री पहनकर आचमन आदी से शुद्ध होकर दाहिने हाथ में जल लेकर शास्त्रानुसार संकल्प करें। संकल्प के पश्चात मंत्र पड़कर शरीर पर मिट्टी लगाएं। इसके पश्चात गंगाजी की उन उक्तियों को बोलें। इसके पश्चात नाभी पर्यंत जल मे जाकर, जल की ऊपरी सतह हटाकर, कान औए नाक बंद कर प्रवाह की और या सूर्य की और मुख करके स्नान करें। तीन, पांच ,सात या बारह डुबकियां लगाए। डुबकी लगाने से पहले शिखा खोल लें।

हमारे शरीर में 9 छिद्र होते हैं उन छिद्रों को साफ-सुधरा बनाने रखने से जहां मन पवित्र रहता है वहीं शरीर पूर्णत: शुद्ध बना रहकर निरोगी रहता है। मलपूर्ण शरीर शुद्ध तीर्थ में स्नान करने से शुद्ध होता है। इस प्रकार दृष्टफल-शरीर की स्वच्छता, अदृष्टफल-पापनाश तथा पुण्य की प्राप्ति, यह दोनों प्रकार के फल मिलते हैं। अशक्तजनों को असमर्थ होने पर सिर के नीचे ही स्नान करना चाहिए अथवा गीले कपड़े से शरीर को पोछना भी एक प्रकार का स्नान है।

स्नान में निषिद्ध कार्य : नदी के जल में वस्त्र नहीं निचोड़ना चाहिए। जल में मल-मूत्र त्यागना और थूकना नदी का पाप माना गया है। शोचकाल वस्त्र पहनकर तीर्थ में स्नान करना निषिद्ध है। तेल लगाकर तथा देह को मलमलकर नदी में नहाना मना है।

स्नान के बाद क्या करें : हिन्दू धर्म अनुसार स्नान और ध्यान का बहुत महत्व है। स्नान के पश्चात ध्यान, पूजा या जप आदि कार्य सम्पन्न किए जाते हैं।

अध्यात्म: सावन में 'महामृत्युंजय' मंत्र का करें जाप

अध्यात्म: सावन में 'महामृत्युंजय' मंत्र का करें जाप


अयोध्या। सावन का पवित्र माह चल रहा है। सावन का यह माह भगवान शंकर को समर्पित होता है। सावन में भगवान शिव की आराधना करने से समस्त मनोकामना की भी पूर्ति होती है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, सावन के महीने में अगर सच्चे मन से भगवान शंकर को प्रसन्न करना है, तो प्रत्येक दिन शिव मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए। रुद्राभिषेक करना चाहिए। ऐसी मान्यता है, जो भी भक्त सच्चे मन और सच्ची श्रद्धा से सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना करते है। उनके मंत्रों का जप करता है, तो भगवान शंकर जल्दी प्रसन्न होते हैं। आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताएंगे महामृत्युंजय मंत्र के बारे में, तो चलिए जानते हैं।

अयोध्या के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित कल्कि राम बताते हैं, कि सावन का पवित्र महीना चल रहा है। ऐसे में देवाधिदेव महादेव की प्रसन्नता के लिए लोग नाना प्रकार के उपाय कर रहे हैं। इसी उपाय के बीच भगवान शंकर का अमोघ मंत्र महामृत्युंजय मंत्र एक ऐसी संजीवनी मंत्र है, जो समस्त कामनाओं की सिद्धि करने वाला है। दीर्घायु जीवन की प्राप्ति सौभाग्य की प्राप्ति कालसर्प दोष से मुक्ति जो भी भक्त इस मंत्र की अभिलाषा के साथ जब करता है। भगवान भोलेनाथ उसकी सारी मुरादें पूरी करते हैं।

देवा दी देव महादेव को महामृत्युंजय मंत्र काफी प्रिय माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र का जप करने से भगवान शंकर जल्द प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं को पूरा करते हैं। इतना ही नहीं, महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु से भी बचा जा सकता है।

महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए आसन पर बैठकर जब करना चाहिए। पूरब दिशा की तरफ मुंह करके मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र का जप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का अवश्य प्रयोग करना चाहिए। मंत्र का जप करने वाले दिन में मांस और प्याज लहसुन का सेवन करना वर्जित होता है. इतना ही नहीं स्वच्छ और भक्ति भाव के साथ भगवान शंकर के मंत्र का जप करना चाहिए।

अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं और आप इससे निजात पा रहे हैं, तो अपने घर में महामृत्युंजय मंत्र का जप करें ऐसा करने से सभी परेशानियां दूर होंगी।

अगर आपको भैया डर सता रहा है और आप भविष्य में होने वाली बातों को लेकर परेशान हैं, तो आप महामृत्युंजय का जप कर सकते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र का जप करके आप आर्थिक तंगी और कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं, और अगर आप पैसों की तंगी से परेशान है, तो प्रतिदिन महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

शुक्रवार, 16 जून 2023

भगवाइयों की रीत: न प्राण जाएं, न वचन ही जाई 

भगवाइयों की रीत: न प्राण जाएं, न वचन ही जाई 

राजेंद्र शर्मा

एक बात तो भगवाइयों के विरोधियों को भी माननी पड़ेगी। भगवाई जो कहते हैं, वो करते जरूर हैं। हमेशा की तो हम नहीं कहते, पर पिछले चालीस साल से ज्यादा से ही तो हम ही देख रहे हैं। तब कहा था कि मंदिर वहीं बनाएंगे। मंदिर वहीं बन रहा है या नहीं!

हां! चार दशक से ज्यादा लग गए। बेशक, इस बीच अडवाणी पीएम के डिप्टी के डिप्टी ही रह गए और मोदी गुजरात से आकर पीएम बन गए। सारथी जी रथी बन गए और रथी मार्गदर्शक बनकर राह देखते ही रह गए।

वहीं, मोदी अगले साल बड़े चुनाव से पहले, भव्य मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे हैं। इसीलिए, तो कहते हैं कि भगवाइयों के घर में देर तो हो सकती है, पर जो कह दिया, सो पूरा जरूर करते हैं। अपने भगवाई, रघुकुल वालों से कम हैं क्या ? रघुकुल की रीत रही है — प्राण जाय, पर वचन न जाई। भगवाइयों की रीत और आगे वाली है–न प्राण जाएं, न वचन ही जाई !

लेकिन, स्मृति ईरानी के दरबार में तो चालीस साल तो क्या चालीस घंटे की भी देर नहीं है ? देखा नहीं, कैसे ईरानी ने अपनी अमेठी में एक मीडिया हाउस के पत्रकार को प्यार से समझाया कि उनसे मुंह खुलवाने की जिद नहीं करे। ईरानी ने कुछ कहने-कुछ बोलने की जिद करने पर, मालिक से कहने का वचन भी दिया था और चौबीस घंटे से पहले-पहले, अखबार के मालिक ने उनके अपना वचन पूरा करने के सम्मान में, पत्रकार को दरवाजा दिखा दिया और मालिक ने पत्रकार को सिर्फ दरवाजा ही नहीं दिखाया।

उसने तो अतीत में जाकर, विगत प्रभाव से ही पत्रकार को दरवाजा दिखा दिया। उसने कहा — कौन पत्रकार ? हमारा ऐसे किसी पत्रकार से न कभी कोई संबंध था, न है और न होगा ! ईरानी ने जो कहा, उससे भी सवाया कर के दिखा दिया। पत्रकार को ‘हैं’ से ‘था’ कराने का वादा था, पर उन्होंने तो पत्रकार को ‘कभी नहीं था’ ही करा दिया।

लेकिन, कोई यह न समझे कि स्मृति ईरानी ने कोई अपनी नाराजगी या अपना रौब दिखाने के लिए ही पत्रकार से जो कहा था, सो किया। बेशक, मोदी का उनके सिर पर वरदहस्त है और मोदी ने भी मालिकों से कह-कहकर, नौ साल में बहुतेरे पत्रकारों को, वर्तमान से भूतपूर्व कराया है।

रवीश जैसों को भूतपूर्व कराने के लिए तो, उनके चैनल को ही खरीदवाकर, पत्रकारों समेत चैनल की स्वतंत्रता को बाकी सब चैनलों की तरह भूतपूर्व कराया है। फिर भी ईरानी ने जो कहा, वह सिर्फ अपने आदर्श, मोदी अनुसरण करने का ही मामला नहीं है। उनके जो कहा, सो किया में उनकी अपनी ऑरीजिनेलिटी भी है। ऑरीजिनेलिटी है, खांटी हिंदुत्व की सेवा की ! ईरानी ने वादे के मुताबिक, मालिक से शिकायत की, पत्रकार विपिन यादव की।

लेकिन, मालिक ने विपिन यादव को तो खैर पहचानने से ही इंकार कर दिया, लेकिन राशिद हुसैन से कह-बताकर अपने मीडिया हाउस का पट्टा उतरवा लिया। इस तरह गेहूं के साथ, शाह साहब ने जिसे घुन बताया था, वह भी पिस गयाफिर भी जो भारत को डैमोक्रेसी की मम्मी डिक्लेअर होते देखकर खुश नहीं होते हैं, उन्हें तो इसमें भी पत्रकार की नौकरी जैसी छोटी चीज ही दिखाई दे रही है, जबकि अब पता चल रहा है कि वह नौकरी भी बिना तनख्वाह वाली थी — पट्टा ले जाओ, खुद कमाओ-खाओ !

अरे भाई ये भी तो देखो कि सेंगोल वाले राजा लोग जो कहते हैं, वह करते जरूर हैं। हमें पक्का है कि एक दिन खाते में पंद्रह लाख भी आएंगे और अच्छे दिन भी। साल की दो करोड़ के हिसाब से नई नौकरियां भी आ जाएंगी। बस जरा-सी देरी पर उम्मीद छोड़ बैठना तो देशप्रेम नहीं है।

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

मानकर बेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू की

अकांशु उपाध्याय       

नई दिल्ली। सालबेग 17वीं शताब्दी की शुरूआत में मुगलिया शासन के एक सैनिक थे, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग की माता ब्राह्मण थीं, जबकि पिता मुस्लिम थे। उनके पिता मुगल सेना में सूबेदार थे। इसलिए सालबेग भी मुगल सेना में भर्ती हो गए थे। एक बार मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए सालबेग बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव सही नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर बेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव सही हो चुके थे।

इसके बाद बेग ने मंदिर में जा कर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया क्योंकि जगन्नाथ पुरी नें गैर हिन्दू का प्रवेश वर्जित है। इसके बाद सालबेग मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, बावजूद उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर बेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनको दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया। 

बुधवार, 18 अगस्त 2021

शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत माना गया

शिव कल्याणकारी और पालनहार हैं। वह कलयुग में भी अपने भक्तों की हर कदम पर रक्षा करते हैं। शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत मंगलकारी माना गया है। सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिव प्रदोष काल में कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों की स्तुति करते हैं। इस समय वह प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और इस वक्त भक्तों द्वारा की गई उनकी पूजा और मनोकामना वह आसनी से टाल नहीं पाते हैं। ऐसे में अगर प्रदोष व्रत किसी खास दिन और किसी खास योग में पड़ता है तो उसका महत्व बढ़ जाता है।
ज्योतिषाचार्य पं. मुकेश मिश्रा ने बताया कि हर महीने में प्रदोष व्रत शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 20 अगस्त को रखा जाएगा। प्रदोष व्रत का तिथि, योग, और वार के संगम से महत्व बढ़ जाता है। कुल 27 योग होते हैं। 20 तारीख को शुक्रवार के दिन आयुष्मान योग पड़ रहा है जो इस व्रत को खास बनाता है। इस दिन व्रत रखने से यश, आयु और वैभव प्राप्त होता है। इसी प्रकार हर दिन के हिसाब से व्रत के बाद मिलने वाले वरदान कुछ खास हो जाते हैं।
पं. मिश्रा ने बताया कि कलयुग में मानसिक शांति की समस्या आम होती जा रही है। सोमवार को चन्द्रमा प्रधान होता है। जब प्रदोष व्रत इस दिन पड़ता है तो अभिषेक करने से मन को शांति मिलती है और मनोस्थिति मजबूत होती है। इस दिन व्यक्ति को ध्यान मुद्रा में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
मंगलवार का दिन शरीर और रक्त का कारक माना जाता है। चिकित्सक द्वारा दी गई दवाओं के साथ  शिव की पूजा अर्चना करने से रक्त संबंधी बीमारियों से आराम मिलता है। इस दिन शिव मंगलकारी वरदान देते हैं इसलिए किसी के घर में काफी दिनों से मांगलिक कार्य न हुए हो या घर में किसी की शादी नहीं हो रही हो तो मंगवार को पड़ने वाला प्रदोष यह सारी समस्याओं को दूर कर देता है।
बुधवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यापार कार्यों में आश्चर्य जनक लाभ होते देखा जा सकता है। इस दिन प्रदोष व्रत और अभिषेक करने से बुद्धि कुशार्ग होती है और व्यक्ति सद्मार्ग पर चलता है। परिवार में सभी सदस्यों का कल्याण होता है।
गुरूवार को पड़ने वाले कल्याणकारी प्रदोष व्रत का फल जातक को अध्यात्म की ओर ले जाता है। कलयुग में लोग भगवान से थोड़ा दूर होते जा रहे हैं। इस दिन की जाने वाली शिव की पूजा से भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है। लोगों में सकरात्मकता का संचार होता है।
शुक्र प्रतिष्ठा और सौन्द्रर्य का कारक होता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा से दाम्पत्य जीवन में सुधार आता है। परिवार में परस्पर प्रेम बढ़ता है। समाज में मान-सम्मान की वृद्धी होती है। शुक्र ग्रह पेट की बीमारियों से संबंध रखता है इसलिए इस दिन भगवान शिव का ध्यान और पूजा-अर्चना पेट की समस्याओं से राहत मिलती है।

शनि शिव के परम भक्तों में से एक हैं। इसलिए शनिवार को प्रदोष व्रत पड़ने से जो भक्त शिव की पूजा करता है उसे शनि भगवान कुदृष्टि का कोपभाजन नहीं बनना पड़ता है। रोगों से मुक्ति का भी वरदान मिलता है। यह व्रत सबके लिए कल्याणकारी होता है।
रविवार ऊर्जा का कारक होता है। इस दिन भगवान शिव की अर्चना करने से तेज की प्राप्ती होती है। सूर्य के कारण आंखों के रोग से आराम मिलता है और मन में आने वाले बुरे विचारों से मुक्ती मिलती है।

सोमवार, 16 अगस्त 2021

प्रदोष व्रत: शिव को अधिक प्रिय है सावन का महीना

सावन का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है। इस महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है। इस महीने में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। हर महीने में दो प्रदोष व्रत रखें जाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रदोष व्रत शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। इस बार प्रदोष व्रत 05 अगस्त 2021 को पड़ा था। वहीं शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 20 अगस्त, शुक्रवार को रखा जाएगा। इस व्रत को करने से कुंडली में चंद्र दोष दूर होता है।
पूजा करने का संकल्प लें
प्रदोष व्रत के दिन सुबह- सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़ पहनें। इसके बाद भगवान शिव की पूजा करने का संकल्प लें। इसके बाद घर के पूजा स्थल को साफ कर गंगाल छिड़के। अब भगवान शिव की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। फिर भगवान के सामने घी का दीपक का जलाएं। भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि का अभिषेक करें।अगर आप व्रत रखते हैं तो शाम के समय में प्रदोष काल में भोलानाथ और माता पार्वती की पूजा करने से आपके घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है। इस दिन सात्विक भोजन करें। भोलेनाथ का अधिक से अधिक ध्यान करें। इस दिन शिवाष्टक और चालीस पढ़ना लाभदायक होता है। भोलनाथ की विधि- विधान से पूजा करने के बाद माता पार्वती और गणेश जी की पूजा अर्चना करें। इस दिन भगवान शिव को खीर का भोग चढ़ाएं।
शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 20 अगस्त, शुक्रवार को रखा जाएगा। प्रदोष के दिन विधि विधान से भगवान शिव के साथ देवी पार्वती का पूजन किया जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के 45 मिनट पहले से 45 मिनट बाद तक माना जाता है।प्रदोष व्रत के दिन व्रत रखने से घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है। इस दिन भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। मान्यता है कि भोलनाथ अपने भक्तों से सबसे जल्दी प्रसन्न होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि सावन में प्रदोष व्रत रखने और कामेश्वर शिव का पूजन करने से उत्तम रूप पारिवारिक संतोष रहता है और जीवनसाथी का भी सुख प्राप्त होता है।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

तीज: शुक्ल-पक्ष की तिथि 11 मिनट पर शुरू होगी

हरियाली तीज 2021 शुभ मुहूर्त-विशेष योग
श्रावण मास के शुक्ल-पक्ष की हरियाली तीज 2021 शुभ मुहूर्त-विशेष योग श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि प्रारंभ 10 अगस्त दिन मंगलवार की शाम 06 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी। यह तिथि बुधवार की शाम को 04 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी। 11 अगस्त को शिव योग शाम 06 बजकर 28 मिनट तक है। शिव योग में हरियाली तीज का व्रत रखा जाएगा। इस दिन रवि योग भी सुबह 09:32 बजे से पूरे दिन रहेगा। इस दिन विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 39 मिनट से दोपहर 03 बजकर 32 मिनट तक है। राहुकाल दोपहर 12 बजकर 26 मिनट से दोपहर 02 बजकर 06 मिनट तक है।

रविवार, 25 जुलाई 2021

22 अगस्त तक चलेगा सावन का महीना: महत्व

आज से सावन का माह आरम्भ हो रहा है। जो 22 अगस्त तक चलेगा। सनातन धर्म में सावन का माह बेहद अहम माना गया है। ये महीना महादेव को काफी प्रिय होता हैं। इस माह में महादेव भक्त भगवान शिव तथा माता पार्वती की उपासना करते हैं। इतना ही नहीं कुछ लोग व्रत रखते हैं। परपरा है कि इस माह में विधि- विधान से आरधना करने से आपकी सभी इच्छाएं पूरी होती है। महादेव को भाग, धतूरा, बेलपत्र, फूल, फल आदि चीजें अर्पित की जाती है। भोलेनाथ को बेलपत्र बेहद प्रिय हैं।

स्कंदपुराण में बेलपत्र का जिक्र किया गया है। इस पुराण के मुताबिक, एक बार माता पार्वती ने अपना पसीना पोंछकर फेंका जिसकी कुछ बूंदे मंदार पार्वती पर गिरी जिससे बेल के पेड़ की उत्पत्ति हुई है। 

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता: नवरात्रि

माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।

मार्कंडेय के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मावैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। इनके नाम इस प्रकार हैं- माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करे। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

नवदुर्गाओं में

नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है। ऐसा माना गया है कि माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विश्वास किया जाता है कि इनकी आराधना से भक्त को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माँ की कृपा का पात्र बन सकता ही है। माँ की आराधना के लिए इस श्लोक का प्रयोग होता है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।

स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

अर्थ

हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

या देवी सर्वभू‍तेषु महागौरी रूपेण संस्थिता: नवरात्रि

माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

स्वरूप

इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी।' इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

कथा

माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं। जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं। वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है। उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है। उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।

एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”। महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था। वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।

पूजन विधि

अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा करते हैं।

महत्व

माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।

मां महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है। इसकी उपासना से अर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इसके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए। महागौरी के पूजन से सभी नौ देवियां प्रसन्न होती है।

उपासना

पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए। 

या देवी सर्वभू‍तेषु महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।

रविवार, 18 अप्रैल 2021

या देवी सर्वभू‍तेषु 'कालरात्रि' रूपेण संस्थिता: नवरात्रि

माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी - काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृित्यू, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालात्री के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं। माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस,भूत, प्रेत, पिसाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है। जो उनके आगमन से पलायन करते हैं |यह ध्यान रखना जरूरी है कि नाम, काली और कालरात्रि का उपयोग एक दूसरे के परिपूरक है। हालांकि, इन दो देवीओं को कुछ लोगों द्वारा अलग-अलग सत्ताओं के रूप में माना गया है। डेविड किन्स्ले के मुताबिक, काली का उल्लेख हिंदू धर्म में लगभग 600 ईसा के आसपास एक अलग देवी के रूप में किया गया है। कालानुक्रमिक रूप से, कालरात्रि महाभारत में वर्णित, 600 ईसा पूर्व - 300 ईसा के बीच वर्णित है। जो कि वर्त्तमान काली का ही वर्णन है। सिल्प प्रकाश में संदर्भित एक प्राचीन तांत्रिक पाठ, सौधिकागम, देवी कालरात्रि का वर्णन रात्रि के नियंत्रा रूप में किया गया है। सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य (सिद्धियों और निधियों विशेष रूप से ज्ञान, शक्ति और धन) का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है और अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।

वर्णन

इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।

कालरात्रि का रक्तपान

माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

महिमा

माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है।लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।

माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। वे शुभंकारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए।

नवरात्रि दिवस

नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए।

मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर।

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

या देवी सर्वभूतेषु कात्यायनी रूपेण संस्थिता: नवरात्रि

कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं। परम्परागत रूप से देवी दुर्गा की तरह वे लाल रंग से जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि उत्सव के षष्ठी को उनकी पूजा की जाती है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। 'कात्यायनी' अमरकोश में पार्वती के लिए दूसरा नाम है। संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेेमावती व ईश्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है में भी प्रचलित हैं।यजुर्वेद के तैत्तिरीय अणवय में उनका उल्लेख प्रथम किया है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं। जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। वे शक्ति की आदि रूपा है। जिसका उल्लेख पाणिनी पर महाभाष्य में किया गया है। जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में रचित है। उनका वर्णन देवीभागवत पुराण और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में किया गया है। जिसे 400 से 500 ईसा में लिपिबद्ध किया गया था। बौद्ध और जैैैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रंथों, विशेष रूप से कालिका पुराण (10 वीं शताब्दी) में उनका उल्लेख है। जिसमें उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है।

कथा

माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है। कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।

कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया। तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं। ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।

उपासना

नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो। उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए। जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

महिमा

माँ को जो सच्चे मन से याद करता है। उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

या देवी सर्वभू‍तेषु स्कंदमाता रूपेण संस्थिता: नवरात्रि

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

कथा

भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

स्वरूप

स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।

महत्व

नवरात्रि-पूजन के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है। साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है। इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।

माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है। यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है। हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है।

उपासना

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

या देवी सर्वभूतेषु कुष्मांडा रूपेण संस्थिता: नवरात्रि

नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।

महिमाजब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंंह है।

माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। विधि-विधान से माँ के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख स्वरूप संसार उसके लिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है। माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।

उपासना

चतुर्थी के दिन माँ कूष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'

अर्थ: हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं।

पूजन

इस दिन जहाँ तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माताजी प्रसन्न होती हैं। और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

या देवी सर्वभूतेषु चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता: नवरात्रि

माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है। माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।

श्लोक:- पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||

स्वरूप

माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।

कृपा

मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं। इनकी आराधना सद्यः फलदायी है। माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है। इनका ध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिए इस घंटे की ध्वनि निनादित हो उठती है।

माँ का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। इनकी आराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति-गुण की वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। माँ चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करते हैं।

माँ के आराधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता रहता है। यह दिव्य क्रिया साधारण चक्षुओं से दिखाई नहीं देती, किन्तु साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव भली-भाँति करते रहते हैं।

विद्यार्थियों के लिए मां साक्षात विद्या प्रदान करती है। वहीं, देवी साधक की सभी प्रकार से रक्षा करती है।

साधना

हमें चाहिए कि अपने मन, वचन, कर्म एवं काया को विहित विधि-विधान के अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध एवं पवित्र करके माँ चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना में तत्पर हों। उनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।

हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए परम कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में तृतीय दिन इसका जाप करना चाहिए।

मां चन्द्रघंटा को नारंगी रंग प्रिय है। भक्त को जहां तक संभव हो, पुजन के समय सूर्य के आभा के समान रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए।

उपासना

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। भोजन में दही और हलवा खिलाएँ। भेंट में कलश और मंदिर की घंटी भेंट करना चाहिए।


मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी संस्थिता: नवरात्र

ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। यह जानकारी भविष्य पुराण से ली गई हे।
ब्रह्मचारिणी- नवदुर्गाओं में द्वितीय
श्लोक:-दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||

शक्ति:- इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।
फल:- माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।

माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।

उपासना:- प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

'वसंत' देवी सरस्वती पूजन 'अध्यात्म'

'वसंत' देवी सरस्वती पूजन      'अध्यात्म'
 महामृत्युंजय मंत्र ("मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र") जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान "शिव" की स्तुति हेतु, की गई एक वन्दना है। इस मंत्र में भगवान 'शिव' को 'मृत्यु को जीतने वाला' बताया गया है। यह गायत्री मंत्र के समकक्ष सनातन धर्म (हिंदू) का सबसे व्यापक रूप से प्रसिद्ध एवं उपयोग किए जाने वाला मंत्र है। सोमवार उपवास में 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप अत्यंत हितकारी माना गया है। मृत्यु पर विजय पर्याप्तता तल करने का मात्र एक यही साधन है।
 "त्रयंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव वंदनात मृत्युयोर्मुक्षीय मामृतातः नमः शिवाय्

 "वसंत पंचमी-सरस्वती पूजा"
वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक सनातन धर्म (हिंदुओं) का विशेष त्योहार माना जाता है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर, उत्तर भारत के साथ अन्य कई देशों में भी  श्रद्धा भाव के साथ बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती हैं, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना-सा चमकने लगता हैं। जौ और गेहूं की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियां मँडराने लगतीं हैं। भर-भर तेज स्वर के साथ भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता हैं। बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है।  कहीं-कहीं विष्णु भगवान एवं कामदेव की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
बसन्त पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। 
हालांकि, विश्व में क्रियात्मक परिवर्तन ने मौसम चक्र को बिगाड़ दिया है। परंतु सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वो पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात, फिर सर्दी का बदलता निर्धारित क्रम में बदलाव के साथ ही अन्न-धान व प्रसन्नता प्रदान करता है।
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु  'निर्भयपुत्र'


मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

जीवन में दुख भी जरूरी है

जीवन में दुःख भी जरूरी है
एक सूफी फकीर था, शेख फरीद। उसकी प्रार्थना में एक बात हमेशा होती थी। उसके शिष्य उससे पूछने लगे कि यह बात हमारी समझ में नहीं आती हैं कि हम भी प्रार्थना करते हैं, औरों को भी हमने प्रार्थना करते देखा है। लेकिन यह बात हमें कभी समझ में नहीं आती, तुम रोज-रोज यह क्या कहते हो कि हे प्रभु, थोड़ा दुःख मुझे तू रोज देते रहना ? यह भी कोई प्रार्थना है ? लोग प्रार्थना करते हैं, सुख दो; और तुम प्रार्थना करते हो, हे प्रभु, थोड़ा दुःख रोज देते रहना।
फरीद ने कहा कि सुख में तो मैं सो जाता हूँ और दुःख मुझे जगाता है। सुख में तो मैं अक्सर परमात्मा को भूल जाता हूँ और दुःख में मुझे उसकी याद आती है। दुःख मुझे उसके करीब लाता है। इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ, हे प्रभु, इतना कृपालु मत हो जाना कि सुख-ही-सुख दे दे। क्योंकि मुझे अभी अपने पर भरोसा नहीं है। तू सुख-ही-सुख दे दे तो मैं सो ही जाऊँ। जगाने को ही कोई बात नहीं रह जाए। अलार्म ही बंद हो गया। तू अलार्म बजाता रहना, थोड़ा-थोड़ा दुःख देते रहना, ताकि याद उठती रहे, मैं तुझे भूल न पाऊँ, तेरा विस्मरण न हो जाए।
सरस्वती-||

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए 'वार' दिया परिवार

राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए वार दिया परिवार 

गुरु गोविन्द सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक क्षण 

हेमन्त साहू

 21 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित आनंद पुर साहिब का किला छोड दिया। 22 दिसंबर को गुरु साहिब अपने दोनों बडेे पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में व गुरु साहिब की माता और दोनों छोटे साहिबजादे अपने रसोइए के घर पहुंचे । चमकौर की जंग शुरू और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बडे साहिबजादे  अजीत सिंह उम्र महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजादे  जुंझार सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित धर्म और देश  की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए। 23 दिसंबर को गुरु साहिब की माता गुजरी जी और दोनों छोटे साहिबजादो को मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान ने गिरफ्तार कर सरहिंद के नवाब को सौप दिया ताकि वह  गुरु गोबिंद सिंह जी से अपना बदला ले सके । 

गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोडना पडा। 24 दिसंबर को तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया। 25 और 26 दिसंबर को छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनने के लिए लालच दिया गया। 27 दिसंबर को साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह  को तमाम जुल्म ओ जबर उपरांत जिंदा दीवार में चिन ने के बाद जिबह (गला रेत) कर शहीद कर किया गया जिसकी खबर सुनते ही माता गुजरीने अपने प्राण  त्याग दिए। इस बलिदानी कथा की चर्चा जन जन में हो ताकि लोगों को धर्म  रक्षा के लिए पूरा परिवार वार देने वाले  गुरुगोबिंद सिंह जी के जीवन से प्रेरणा लेकर प्रत्येक हिन्दू भी अपना  जीवन धर्म के लिए लगा सके ।

'संविधान' का रक्षक इंडिया समूह, भक्षक भाजपा

'संविधान' का रक्षक इंडिया समूह, भक्षक भाजपा  संदीप मिश्र  शाहजहांपुर। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा कि मौजूदा...