सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

'वसंत' देवी सरस्वती पूजन 'अध्यात्म'

'वसंत' देवी सरस्वती पूजन      'अध्यात्म'
 महामृत्युंजय मंत्र ("मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र") जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है, यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान "शिव" की स्तुति हेतु, की गई एक वन्दना है। इस मंत्र में भगवान 'शिव' को 'मृत्यु को जीतने वाला' बताया गया है। यह गायत्री मंत्र के समकक्ष सनातन धर्म (हिंदू) का सबसे व्यापक रूप से प्रसिद्ध एवं उपयोग किए जाने वाला मंत्र है। सोमवार उपवास में 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप अत्यंत हितकारी माना गया है। मृत्यु पर विजय पर्याप्तता तल करने का मात्र एक यही साधन है।
 "त्रयंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव वंदनात मृत्युयोर्मुक्षीय मामृतातः नमः शिवाय्

 "वसंत पंचमी-सरस्वती पूजा"
वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक सनातन धर्म (हिंदुओं) का विशेष त्योहार माना जाता है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर, उत्तर भारत के साथ अन्य कई देशों में भी  श्रद्धा भाव के साथ बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती हैं, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना-सा चमकने लगता हैं। जौ और गेहूं की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियां मँडराने लगतीं हैं। भर-भर तेज स्वर के साथ भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता हैं। बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा आराधना की जाती है।  कहीं-कहीं विष्णु भगवान एवं कामदेव की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
बसन्त पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। 
हालांकि, विश्व में क्रियात्मक परिवर्तन ने मौसम चक्र को बिगाड़ दिया है। परंतु सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वो पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात, फिर सर्दी का बदलता निर्धारित क्रम में बदलाव के साथ ही अन्न-धान व प्रसन्नता प्रदान करता है।
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु  'निर्भयपुत्र'


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