सोमवार, 8 मार्च 2021

पंजाब: ₹1,68,015 करोड़ का बजट किया पेश

राणा ओबराय   

चंडीगढ़। पंजाब राज्य विधानसभा में सोमवार को वर्ष 2021-22 के लिये 1,68,015 करोड़ रुपये का बजट पेश किया गया। जिसमें फसल ऋण माफी योजना के तहत 1.13 लाख किसानों के 1,188 करोड़ रुपये के फसली ऋण माफ करने का प्रस्ताव किया गया है। पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने राज्य विधानसभा में 2021- 22 का बजट पेश करते हुये राज्य में बुजुर्गों की पेंशन 750 रुपये से बढ़ाकर 1,500 रुपये महीना करने की भी घोषणा की है। इसके साथ ही उन्होंने शगुन योजना के तहत दी जाने वाली राशि को भी 21 हजार रुपये से बढ़ाकर 51,000 रुपये करने का प्रस्ताव किया। बादल ने कहा, कि फसल रिण माफी योजना के अगले चरण में राज्य सरकार 1.13 लाख किसानों का 1,186 करोड़ रुपये और भूमिहीन किसानों का 526 करोड़ रुपये का फसल कर्ज माफ करेगी। राज्य की अमरिंदर सिंह सरकार के मौजूदा कार्यकाल का यह आखिरी बजट है। राज्य में अगले साल के शुरुआती महीनों में चुनाव होने हैं।

महिला दिवस पर पीएम समेत नेताओं ने दी बधाई

अकांशु उपाध्याय   

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं को बधाई दी और कहा कि भारत को उनकी तमाम उपलब्धियों पर गर्व है। मोदी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैं अदम्य नारी शक्ति को सलाम करता हूं। देश की महिलाओं की तमाम उपलब्धियों पर भारत को गर्व होता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में काम करना हमारी सरकार के लिए सम्मान की बात है।’’ प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने संबोधनों में जिक्र करते हैं कि उनकी सरकार की विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों के केंद्र में महिलाएं हैं। इस संदर्भ में वह रसोई गैस की आपूर्ति, जन धन योजना के तहत बैंक खाते खोलना, हर घर शौचालय बनाये जाने की योजनाओं का उल्लेख करते हैं। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर शुभकामनाएं देते हुए एक संदेश में कहा कि हमें नारियों के खिलाफ किसी भी तरह की भेदभाव का उन्मूलन करने का संकल्प लेना चाहिए, जिससे उनके लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित हो सके और वे अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल कर सकें। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला स्वास्थ्यकर्मियों को सलाम करते हुए कहा कि उनके योगदान ने कोरोना वायरस के खिलाफ भारत की जंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘नो ‘हीरो’ विदआउट ‘हर’ (नारी बिना के बिना कोई नायक नहीं हो सकता)।’’ उन्होंने लिखा, ‘‘कोविड-19 संकट के इस समय में नारी शक्ति की निस्वार्थ और मजबूत भूमिका सामने आयी। इस महिला दिवस पर हम कोरोना वायरस के खिलाफ भारत की लड़ाई में योगदान देने वाली 60 लाख से अधिक महिला स्वास्थ्यकर्मियों को सलाम करते हैं।’’ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने महिला दिवस की बधाई देते हुए कहा कि यह दिन देश और प्रदेश की प्रगति में महिलाओं के योगदान को दर्शाता है। हमारी महिला शक्ति ने अपनी प्रतिभा से सिद्ध कर दिया है कि वे हर प्रकार की चुनौतियों का मजबूती से सामना कर सकती हैं। वे अब हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं और देश-प्रदेश का नाम रोशन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बालिकाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य सहित उनके सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है।

देश में संक्रमण के 18,599 नए मामले सामने आएं

अकांशु उपाध्याय   

नई दिल्ली। भारत में एक दिन में कोविड-19 के 18,599 नए मामले सामने आने के बाद देश में संक्रमितों की संख्या बढ़कर 1,12,29,398 हो गई। देश में लगातार तीसरे दिन 18 हजार से अधिक नए मामले सामने आए हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से सोमवार सुबह आठ बजे जारी अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, देश में लगातार छठे दिन उपचाराधीन मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अभी 1,88,747 लोगों का कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज चल रहा है। जो कुल मामलों का 1.68 प्रतिशत है। देश में मरीजों के ठीक होने की दर में गिरावट दर्ज की गई है। जो अब 96.91 प्रतिशत है। वहीं कोविड-19 से मृत्यु दर 1.41 प्रतिशत है। आंकड़ों के अनुसार, वायरस से 97 और लोगों की मौत के बाद देश में मृतक संख्या बढ़कर 1,57,853 हो गई। आंकड़ों के अनुसार, देश में अभी तक कुल 1,08,82,798 लोग संक्रमण मुक्त हो चुके हैं।देश में पिछले साल सात अगस्त को संक्रमितों की संख्या 20 लाख, 23 अगस्त को 30 लाख और पांच सितम्बर को 40 लाख से अधिक हो गई थी। वहीं, संक्रमण के कुल मामले 16 सितम्बर को 50 लाख, 28 सितम्बर को 60 लाख, 11 अक्टूबर को 70 लाख, 29 अक्टूबर को 80 लाख, 20 नवम्बर को 90 लाख और 19 दिसम्बर को एक करोड़ के पार चले गए थे। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, देश में सात मार्च तक 22,19,68,271 नमूनों की कोविड-19 संबंधी जांच की गई है। इनमें से 5,37,764 नमूनों की जांच रविवार को की गई थी।

पेट्रोल-डीजल के दाम पर सदन में किया हंगामा

अकांशु उपाध्याय  

नई दिल्ली। राज्यसभा में सोमवार को कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी सदस्यों ने विभिन्न पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि को लेकर हंगामा किया। जिसके कारण उच्च सदन की बैठक एक बार के स्थगन के बाद दोपहर एक बजे तक के लिए स्थगित कर दी गयी। सभापति एम वेंकैया नायडू ने शून्यकाल में कहा कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडगे की ओर नियम 267 के तहत कार्यस्थगन नोटिस मिला है। जिसमें उन्होंने पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि के मुद्दे पर चर्चा का अनुरोध किया है। नियम 267 के तहत सदन का सामान्य कामकाज स्थगित कर किसी अत्यावश्यक मुद्दे पर चर्चा की जाती है।

क्या खिलाड़ी धोनी के रिकॉर्ड्स तोड़ देंगे ऋषभ ?

अहमदाबाद। अनुभवी भारतीय खिलाड़ी रोहित शर्मा ने कहा कि ऋषभ पंत की आक्रामक बल्लेबाजी शैली से टीम-टीम प्रबंधन को तब तक कोई परेशानी नहीं है। जब तक वह अपना ‘काम’ ठीक तरीके से कर रहे हैं। भारत के दिग्गज विकेटकीपर एमएस धोनी के रिकॉर्ड को तोड़ देंगे। अनुभव के साथ, ऋषभ पंत एक लंबा रास्ता तय करेंगे। उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ चौथे टेस्ट मैच के दूसरे दिन के खेल के बाद शुक्रवार को कहा कि इस तरह से बल्लेबाजी करते हुए पंत जब असफल हो तो लोगों को उनकी आलोचना करने में कमी करनी चाहिए। कुछ समय पहले तक गैर जिम्मेदाराना शॉट खेलने के लिये आलोचना का सामना करने वाले पंत ने इंग्लैंड के खिलाफ चौथे और अंतिम टेस्ट के दूसरे दिन 118 गेंद में 101 रन की पारी खेल कर मैच पर भारत का दबदबा कायम कर दिया।
भारत ने 6 मार्च को अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में इंग्लैंड के खिलाफ शानदार जीत दर्ज करते हुए टेस्ट सीरीज 3-1 से जीती। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज जीतना हो या इंग्लैंड के खिलाफ, जो खिलाड़ी हीरो बनकर उभरा उसका नाम है। ऋषभ पंत. अब पूर्व भारतीय विकेटकीपर और चीफ सेलेक्टर किरण मोरे ने कहा है। कि पंत एक दिन धोनी के रिकॉर्ड्स तोड़ देंगे।
पंत ने चौथे टेस्ट मैच में 101 रनों की पारी खेलकर भारत को रफ पैच से खेल में वापस ला दिया और वाशिंगटन सुंदर के साथ एक मजबूत साझेदारी बनाई। वापसी में सुंदर ने 96 रनों की रोमांचक पारी खेलकर भारत को कमांडिंग पोजिशन में धकेल दिया। मुख्य कोच रवि शास्त्री ने भी पंत की तारीफ की और कहा कि उन्होंने पिछले कुछ महीनों में शिविर में किसी और की तुलना में कड़ी मेहनत की है। खेल और फिटनेस से संबंधित उनके निरंतर ट्रेनिंग ने उन्हें ये परिणाम दिए हैं।
इसी संदर्भ में, भारत के पूर्व विकेटकीपर किरण मोरे भी उन लोगों की सूची में शामिल हो गए जो इस समय पंत की प्रशंसा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह अब तक के 20 टेस्ट मैचों में पंत का दूसरा टेस्ट मैच शतक है। उनकी प्रगति को ध्यान में रखते हुए वह दिन दूर नहीं जब वह भारत के दिग्गज विकेटकीपर एमएस धोनी के रिकॉर्ड को तोड़ देंगे। अनुभव के साथ, ऋषभ पंत एक लंबा रास्ता तय करेंगे।
किरण मोरे ने पंत की तारीफ में कहा, ‘आप हर दिन सीखते हैं। आप अलग-अलग पिचों पर अलग-अलग मिट्टी के प्रकारों को रखकर सीखते हैं। आप दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्पिनरों और पेसरों को ध्यान में रखकर सीखते हैं। जो इस समय भारत के पास हैं। आपको अवलोकन करके सीखना होगा वह एमएस धोनी के रिकॉर्ड को तोड़ देंगे अनुभव के साथ पंत एक लंबा रास्ता तय करेंगे।

झारखंड: गांव में अक्सर दिव्यांग पैदा होते है बच्चे

रांची। झारखंड के घाटशिला के डुमरिया प्रखंड के चाईडीहा गांव मे कई ऐसे बच्चे है। जो कुपोषित के शिकार है। आज सोमवार को ये बच्चे दिव्यांग होकर लाचार और बेवश होकर खाट पर पड़े हैं। कई ऐसे कुपोषित बच्चे थे। जिनकी मौत हो चुकी है। चाईडीहा के रहने वाले जगदीश सिंह के दो पुत्र और पुत्री है। दो पुत्री तो ठीक है। लेकिन दो पुत्र दोनों कुपोषित के शिकार होने पर दो में से एक की मौत हो चुकी है और दूसरा घाट पर पड़े पड़े अपनी लाचार अपनी जिन्दगी के दिन गिन रहा है। कुपोषित बच्चा कृष्णा सिंह दिनभर अपने घाट पर ही पड़े रहते है। ना बोल पाते है। और ना ही चल पाते है। उसकी मां बसंती सिंह दिनभर अपने बेटे की देखभाल में लगी रहती है। पहले दो पुत्र कृष्णा सिंह और मेघनात सिंह - जिसमें छोटा मेघनाथ सिंह की मौत हो चुकी है। पहले दोनों भाई एक ही खाट पर पड़ा रहते थे। लेकिन अब मेघनाथ सिंह की मौत के बाद कृष्णा सिंह अकेल ही खाट पर पड़ा रहता है। चाईडीहा गांव में रूद्ध सिंह की पुत्री यशोदा सिंह भी कुपोषण का शिकार है। अभी वह तीन साल की है। लेकिन चल नही पाती है। और ना ही बोल पाती है। अपनी मां की गोद में ही वह खेलती रहती है। रूद्ध सिंह ने अपनी पुत्री को डॉक्टरों को दिखाया जिस पर डॉक्टरों ने कहा कि आने वाले समय में बच्ची चलेगी और बोलेगी भी। लेकिन तीन साल होने को है बच्ची ना ही चल पाती है। और ना ही बोल पाती है। इस गांव में विशेश्वर सिंह जिनका एक हाथ दिव्यांग है। विशेश्वर सिंह भी बताते है। कि उनका एक हाथ बचपन से ही खराब है। एक हाथ खराब होने पर वह कही काम भी नही कर पाता है। दिव्यांग से जो पेंशन 1000 रूपय मिलता है। उसी से वह अपना घर चलाता है। इसी गांव में कुपोषित बच्चा जिनकी मौत हो गई है। वह दशरथ सिंह के 14 वर्षीय पुत्र, मिलू सिंह के 3 वर्षीय पुत्री और कृष्णा पातर के 4 वर्षीय पुत्र की मौत हो चुकी है। ग्रामीण बताते है। कि इस गांव में अक्सर दिव्यांग बच्चा ही पैदा हुआ, किस कारण से उन्हें नहींं पता नहीं है।

फ्रांस: डसॉल्ट के मालिक ओलिवियर दसॉ की मौत

पेरिस। फ्रांस के अरबपतियों में से एक और राफेल फाइटर जेट बनाने वाली कंपनी के मालिक ओलिवियर दसॉ की हेलिकॉप्‍टर हादसे में मौत हो गई। दसॉ फ्रांस की संसद के सदस्‍य थे। ओलिवियर दसॉ छुट्टियां मनाने गए थे। इसी दौरान उनका निजी हेलिकॉप्टर नॉर्मंडी दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उनकी मौत हो गई। दसॉ की मौत पर फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने शोक जताया है। फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ट्विटर पर लिखा, ‘ओलिवियर दसॉ फ्रांस से प्यार करते थे। उन्होंने उद्योगपति, स्थानीय निर्वाचित अधिकारी, कानून निर्माता, वायु सेना के कमांडर के तौर पर देश की सेवा की. उनका आकस्मिक निधन एक बहुत बड़ी क्षति है। उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति गहरी संवेदना।
गौरतलब है। कि ओलिवियर 2002 से लेस रिपब्लिक पार्टी के विधायक थे। और इनके दो भाई और बहन थे। साथ ही वह परिवार के उत्तराधिकारी थे। उनके दादा मार्सेल, एक विमानिकी इंजीनियर और प्रतिष्ठित आविष्कारक थे। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांसीसी विमानों में इस्तेमाल किया जाने वाला एक प्रोपेलर विकसित किया था। जो आज भी विश्वभर में प्रसिद्ध है।
बता दें कि दुर्घटना के दौरान ओलिवयर छुट्टियों पर थे। 2020 फोर्ब्स की अमीरों की सूची के अनुसार डसॉल्ट को अपने दो भाइयों और बहन के साथ दुनिया का 361वां सबसे अमीर शख्स बताया गया था। उन्होंने अपनी राजनीतिक भूमिका के कारण किसी भी तरह के हितों के टकराव से बचने के लिए दसॉ बोर्ड से अपना नाम वापस ले लिया था।
 

दक्षिणपंथी भाजपा के कोबरा बनकर लौटे अभिनेता

मनोज सिंह ठाकुर 
मुंबई। ये तस्वीर है गौरांग चक्रवर्ती की। दूसरा नाम मिथुन चक्रवर्ती। 1982 की डिस्को डांसर का जिम्मी। इस जिम्मी की शोहरत ऐसी थी, कि सोवियत यूनियन में राजकपूर के बाद सबसे ज़्यादा इसी का चेहरा पहचाना गया। वो भारत का पहला डिस्को डांसर था। पुणे का प्रोडक्ट होने से पहले मिथुन नक्सली थे। अपने भाई की एक्सीडेंट में मौत के बाद उन्हें परिवार के पास लौटना पड़ा वरना वो नक्सल आंदोलन की राह पर निकल ही चुके थे।
1976 में मिथुन को मृगया में एक्टिंग का मौका मिला और पहली ही फिल्म के बाद उनकी झोली में बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड था। 80 का पूरा दशक मिथुनमय था। शोहरत उनकी सोवियत यूनियन तक पहुंची और 1986 में वो देश के सबसे ज्यादा टैक्स देनेवाले शख्स बन गए। 1989 में तो उनकी 19 फिल्म बाज़ार में थीं। और एक-दूसरे के कलेक्शन के लिए ही चुनौती बन गईं। मिथुन हिंदी फिल्मों के अलावा दूसरी भाषाओं में भी फिल्में कर रहे थे। इतना सारा काम करते हुए 90 के दशक में उनको थकान होने लगी। नतीजतन वो ऊटी चले गए और वहां एक शानदार होटल बनवाया।
मुंबई के शोर से बचने के लिए उन्होंने ऐलान कर दिया कि जो फिल्में ऊटी या आसपास शूट होंगी वो उनमें ही काम करेंगे और डिस्काउंट भी देंगे। इस ऐलान ने कम बजट वालों को एक मौका दे दिया और उसके बाद हमारी पीढ़ी ने उनकी वो फिल्में देखीं जो बजट में बेहद कमज़ोर थीं लेकिन मिथुन की वजह से शानदार बिज़नेस कर रही थीं। 1995 की एक फिल्म जल्लाद में उन्हें फिल्मफेयर की ओर से बेस्ट विलेन का अवॉर्ड भी मिल गया। नायक से लेकर खलनायक तक मिथुन ने कोई भी रोल नहीं छोड़ा था।
गरीब से लेकर अमीर, सताये हुए पात्र से लेकर सताने वाले तक, बदला लेनेवाले से लेकर हंसोड़ तक के रोल में वो हिट रहे। उन्होंने अंधाधुंध फिल्में साइन कर डाली। हालत ये थी। कि खुद तो वो 1995 से 1999 तक देश के सबसे बड़े टैक्सपेयर थे लेकिन उनकी एक फिल्म का बिज़नेस दूसरी फिल्म का बिज़नेस काट रहा था। प्रोड्यूसर्स को इस समस्या का समाधान नज़र ही नहीं आ रहा था। मिथुन ही मिथुन के लिए चुनौती बन सकते थे। बाकी सब दूसरे नंबर थे। छोटे बजट वालों के लिए मिथुन तारनहार थे।
दूसरी तरफ कल तक नक्सली रहे मिथुन ने होटल्स की पूरी चेन ही खोल डाली। ऊटी से शुरू हुआ सफर मधुमलाई, दार्जिलिंग, कोलकाता तक चला गया था। इसके अलावा मिथुन्स ड्रीम फैक्ट्री नाम का उनका प्रोडक्शन हाउस फिल्में बना रहा था। जिसके अपने दर्शक थे। 90 के आखिर तक आते-आते उन्होंने बंगाली फिल्मों में ही काम करना शुरू कर दिया मगर जब उनका कम बैक हिंदी में हुआ तो उन्होंने गुरू जैसी फिल्म भी दी। इसके अलावा वो हर साल इक्का-दुक्का हिंदी फिल्में करते ही रहे हैं।
वीर, गोलमाल-3, हाउसफुल-2, ओह माई गॉड, खिलाड़ी 786 के अलावा उन्होंने बेटे मिमोह के साथ भी फिल्म की। मिथुन को खास उनकी खास तरह की फिल्में ही नहीं बनाती बल्कि इसके इतर किए गए काम भी हैं। जिस सिंटा को आज इंडस्ट्री जानती है। वो दिलीप कुमार और सुनील दत्त के साथ मिलकर मिथुन ने ही बनाई थी। टीवी पर भी उनकी उपस्थिति पिछले कई सालों से बनी हुई है। बंगाली दर्शकों के ज़हन पर तो मिथुन 35 सालों से हावी हैं। बिग बॉस का बांग्ला वर्ज़न वही होस्ट करते हैं। तृणमूल कांग्रेस ने मिथुन को 2014 में राज्यसभा भेजा लेकिन 2016 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
वैसे लोगों को कम ही जानकारी है। कि प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए ममता का समर्थन उन्होंने ही जुटाया था। सारिका के साथ मिथुन की मुहब्बत हमेशा चर्चा में रही। 1979 में मिथुन ने शादी सारिका से नहीं हेलेना ल्यूक से की। इसके बाद योगिता बाली उनकी पत्नी बनीं। 80 के दशक तक आते -आते श्रीदेवी उनसे प्यार कर बैठीं। अफवाहें उड़ने लगी कि दोनों ने गुपचुप शादी कर ली है। बाद में मिथुन ने इन अफवाहों की पुष्टि कर दी। वो शादी भी अपने अंत तक पहुंच ही गई और मिथुन फिर से योगिता बाली के साथ थे।
आज मिथुन दा 71 साल के हैं। ज़िंदगी के तमाम उतार चढ़ावों के साथ उन्होंने राजनीति का भी एक चक्र पूरा जी लिया। धुर वामपंथी से होते हुए वो 2014 में टीएमसी के सहारे राज्यसभा चले गए थे। संसद में उन्होंने तीन बार से ज़्यादा चेहरा नहीं दिखाया। फिर 2016 में शारदा चिटफंड स्कीम में उनका नाम आया. ईडी ने तलब कर लिया. अचानक मिथुन को अहसास हुआ कि उनकी सेहत ख़राब है। तो एक ही साथ सांसदी, टीएमसी, सियासत सबको छोड़ दिया। 
अब वो दक्षिणपंथी भाजपा के कोबरा बनकर लौटे हैं। चर्चा ये है कि पहले एक अन्य दिग्गज को बल्लेबाज़ी करनी थी मगर उसने सेहत का हवाला दे दिया तो उनकी जगह मिथुन दा उतरे हैं। ये तो पता नहीं कि मिथुन सिर्फ प्रचार करेंगे या चुनाव भी लड़ेंगे लेकिन राजनीति में उनकी गहरी रुचि होने के बावजूद निष्क्रियता बहुत चर्चित रही है। देखें कि ये वाला डिस्को कब तक चलता है।

बलिया में महंत ने किशोरी से किया दुष्कर्म, मुकदमा

संदीप मिश्र 
बलिया। एक किशोरी से बलिया जिले के खैराखास मठ के महंत और उसके दो शिष्यों द्वारा पिछले सात वर्षों से दुष्कर्म करने का मामला प्रकाश में आया है। कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने 3 जनवरी 2021 को पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। लेकिन आरोपी पुलिस की गिरफ्त से अभी दूर हैं।
पीड़िता ने शुक्रवार को बलिया में डीआईजी आजमगढ़ मंडल, सुभाष चंद्र दूबे से शिकायत किया कि आरोपी महंत और उसके शिष्य उसे डरा धमका रहे हैं। इसके बाद यह मामला सामने आया। पीड़िता का आरोप है। कि अदालत से आदेश के बाद भी पुलिस आरोपियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
मूल रूप से सुल्तानपुर निवासी और वर्तमान में उभांव थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली किशोरी ने आरोप लगाया है। कि महंत भूपन तिवारी उर्फ मौना बाबा, निवासी सदर गोड़वा थाना ललिया जनपद बलरामपुर और उसका शिष्य जगत नारायण दुबे निवासी खैराखास थाना उभाव जनपद बलिया और राजेश कुमार गुप्ता उर्फ पप्पू निवासी मालगोदाम रोड, बेल्थरा रोड थाना उभांव जनपद बलिया वर्ष 2015 से उसका शारीरिक शोषण कर रहे थे।
पीड़िता के मुताबिक, मठ का महंत उसका रिश्तेदार है। उसके पिता की मृत्यु के बाद शिक्षा-दीक्षा के लिए वह उसे मठ ले आया था। मामले में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है। और शीघ्र ही आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। मामले का खुलासा करने के लिए प्रभावी जांच का निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिया गया है।

रैली में भीड़, ₹66 लाख में 3 रेलगाड़ियां बुक की

 अकांशु उपाध्याय 
नई दिल्ली। नरेन्द्र मोदी की रैली में भीड़ जुटाने के लिए बीजेपी ने 66 लाख रुपए में 3 रेलगाड़ियां बुक कीं। अलीपुरद्वार, मालदा और हरीशचंद्रपुर से गाड़ियां रवाना हुईं। मिलेनियम पोस्ट की ख़बर के मुताबिक़ 22-22 बोगियों वाली दो ट्रेन की बुकिंग 26 और 22 लाख में हुई। जबकि, 16 बोगी वाली एक ट्रेन 18 लाख में बुक हुई।
अब 11 महीने पहले की उन तस्वीरों के बारे में सोचिए जब देश के अलग-अलग कोनों से लाखों-करोड़ों लोग अप्रत्याशित लॉकडाउन के बाद जानवरों की तरह पैदल चल रहे थे। सैकड़ों लोग सड़कों पर चलते-चलते मर गए थे। 
मोदी सरकार और बीजेपी तब तमाशा देख रही थी। अलबत्ता, विपक्षी पार्टियों ने जब मज़दूरों के लिए बसें बुक कीं तो उसमें अड़ंगा डाल रही थी। पूरे देश से झूठ बोल रही थी। कि ट्रेन किराये का 85 फ़ीसदी हिस्सा सब्सिडी के तौर पर केंद्र सरकार दे रही है। मज़दूरों से पैसे लूटे जा रहे थे। 
मज़दूर जब घर जाना चाह रहे थे तो सरकार जाने नहीं दे रही थी। अभी लोग घर में हैं तो उन्हें घर से उठाकर मैदान लाने के लिए ट्रेन चलवा रही है।

सीरीज की फिल्में देखने का शौक, जीवन समाप्त

जिन भी दोस्तों को हॉलीवुड की एक्शन, हॉरर या थ्रिलर सीरीज की फिल्में देखने का शौक है। उन्होंने फाइनल डेस्टीनेशन सीरीज की फिल्में जरूर देखी होगी। इस सीरीज में एक कांसेप्ट है। मौत हर किसी के जीवन को समाप्त करने के लिए एक योजना बनाती है। प्लान तैयार करती है। अगर किसी तरह से उसने मौत को मात दे दी। बच गया तो मौत फिर प्लान बी पर काम करती है। उससे भी बच गया तो प्लान सी पर काम करती है। मौत अपनी कोशिशें बार-बार करती है।
इसी को अब हम कुछ दूसरे संदर्भ में देखेंगे। विशेषज्ञों का मानना है, कि हमारी धरती की उम्र लगभग साढ़े चार अरब साल की है। शुरुआत में हमारी धरती अंतरिक्ष में घूमता गैस और धूल का गुबार भर था। लेकिन, धीरे-धीरे यह ठंडी होती गई। ठंडा होने के साथ-साथ इसके ऊपर की परत जमती गई। जैसे उबलने के बाद जब दूध ठंडा होना शुरू करता है तो उस पर मलाई जम जाती है। ऊपर मिट्टी की परत मोटी होने के साथ ही नीची जगहों पर पानी भर गया और समुद्रों का निर्माण हुआ।
धरती की ऊपरी परत कुछ इसी तरह से मोटी होती गई। अंदर खौलते लावे के ऊपर जमी हुई मलाई की मोटी परत की तरह। धरती पर जीवन कैसे पैदा हुआ होगा इसे लेकर तमाम अलग-अलग थ्योरियां हैं। कहा जाता है। कि लगभग साढ़े तीन अरब साल पहले समुद्र मे पहली बार इस प्रकार के छोटे कण पनपने लगे थे। फासिल के रूप में जीवन के पहले साइनो बैक्टीरिया के मिलते हैं। ये बैक्टीरिया फोटोसिंथेसिस करते थे। और वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ते थे। भारत में जीवन के सबसे पुराने निशान 1600 मिलियन पुराने हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और राजस्थान में भी सेडीमेंटरी रॉक में जीवन के सबसे पुराने स्वरूप फासिल यानी जीवाश्म के रूप में मिलते हैं।
जाहिर है कि उत्पत्ति के समय जीवन एक कोशिकीय और सरल था। सरल का मतलब है। कि कोशिका अपने आप में पूरी तरह से आत्मनिर्भर थी। यानी वो कोशिका खुद का पोषण भी करती थी। और प्रजनन भी करती थी। जीवन के सरल रूपों से जटिल रूप पैदा हुए। कोशिकाएं अलग-अलग कामों के लिए विशेषीकृत होती गईं और ऊतकों का निर्माण हुआ। जीवन के तमाम रूपों के फलने-फूलने के बाद कहानी शुरू होती है। महाविनाश की। जिसके बारे में ही कहे जाने का यहां उद्देश्य है।
धरती अब तक पांच महाविनाश झेल चुकी है। और छठवें महाविनाश से गुजर रही है। लगभग 444 मिलियन सालों पहले धरती पर पहला महाविनाश आया। इस महाविनाश की चपेट में उस समय धरती पर मौजूद जीवन का ज्यादातर हिस्सा काल-कवलित हो गया। कश्मीर और लद्दाख में मिलने वाले जीवाश्मों से भी इस महाविनाश की गवाही मिलती है। बहुत कुछ नष्ट हो गया। लेकिन, धरती धीरे-धीरे इस महाविनाश से उबर गई। जीवन ने कुछ दूसरे रूप धरकर फलना-फूलना शुरू कर दिया।
लेकिन, 375 मिलियन सालों पहले दूसरा महाविनाश आ गया। धरती का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया। बहुत सारे जीव इस गर्मी को बरदाश्त नहीं कर पाए। माना जाता है। कि समुद्र के नीचे मौजूद ज्वालामुखियों के फूटने से समुद्र के पानी का तापमान बहुत ज्यादा हो गया। बहुत सारा जीवन नष्ट हो गया। समुद्र में पाए जाने वाले 75 फीसदी जीव समाप्त हो गए। लद्दाख की जंस्कार वैली में भी इस महाविनाश का शिकार हुए जीवों के जीवाश्म मिलते हैं।
समय लगा पर धरती इस महाविनाश से उबर गई। लेकिन, लगभग 250 मिलियन सालों पहले फिर से बहुत सारे ज्वालामुखियों के फूटने की शुरुआत हुई। माना जाता है। कि यह महाविनाश लगभग दस लाख सालों तक चलता रहा और इसके परिणाम स्वरूप समुद्र में रहने वाले 95 फीसदी जीव नष्ट हो गए। ज्वालामुखियों से निकलने वाली राख और गैस की परत आसमान पर छा गई और इसके चलते धरती पर सूरज की रोशनी का पहुंचना भी बंद हो गया। इसके चलते धरती बेहद ठंडी हो गई। धरती लगभग पूरी तरह से ही मरने लगी।
लेकिन, धरती समाप्त नहीं हुई। उसने मौत को चकमा दे दिया। फिर से जीवन फलने-फूलने लगा। जीवन ने इस बार पहले से अलग रूप धरा। पर लगभग 201 मिलियन सालों पहले फिर से महाविनाश शुरू हुआ। इस महाविनाश ने भी धरती का सत्तर फीसदी जीवन नष्ट कर दिया।
इसके बाद, लगभग 65 मिलियन सालों पहले पांचवा महाविनाश शुरू हुआ। उल्कापिंडों के धरती से टकराने के चलते बहुत ज्यादा एनर्जी और गर्मी पैदा हुई। यह महाविनाश हमारे लिए सबसे ताजा है। इसी महाविनाश के फलस्वरूप धरती पर पैदा होने वाले सबसे बड़े जीव यानी डायनासोर भी विलुप्त हो गए। आपको यह जानकर शायद हैरत हो कि आज से लगभग दो सौ सालों पहले कोई डायनसोर के बारे में जानता भी नहीं था। जब 1820 के बाद पहली बार विज्ञानियों को खुदाई में विशालकाय हड्डियां व फासिल मिलना शुरू हुईं तो उन्होंने अनुमान लगाया कि यह कोई विशालकाय छिपकली जैसा जीव रहा होगा।
अपने जीवन काल से धरती ये पांच महाविनाश झेल चुकी है। और छठवें का सामना कर रही है। महाविनाशों में एक बात सामान्य है। धरती पर मौजूद जीवन को नष्ट करने में गर्मी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। कभी वो गर्मी हजारों ज्वालामुखियों के फटने से पैदा हुई तो कभी उल्कापिंड के टकराने से। गौर से देखें तो हमने बीते दो सौ सालों में धरती को लगभग वैसा ही गर्म कर दिया है। जिससे जीव-जंतुओं का जीना दूभर हो गया है। इसके चलते जीवों की तमाम प्रजातियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं। ये ऐसी प्रजातियां हैं। जो धरती पर जीवन को आधार देती हैं।
खास बात यह भी है। कि इससे पहले जो महाविनाश हुए हैं, उनका कारण कोई न कोई प्राकृतिक या खगोलीय घटना रही है। ऐसा पहली बार हो रहा है। कि धरती पर रहने वाली ही कोई प्रजाति इस महाविनाश को जन्म दे रही हो। कुदरत ने अपने लाखों सालों के विकासक्रम में जिस प्रजातियों को सबसे ज्यादा विकसित किया हो, उसी की कारगुजारियां कुछ ऐसी हों कि उससे पूरी धरती के ही खतम होने का खतरा पैदा होने लगे।
इनके विलुप्त होने का मतलब है। कि धरती पर जीवन नष्ट होगा। यह हमारे सामने हो रहा है। हम इसे नष्ट होते हुए देख रहे हैं। हमने ज्यादातर जंगल काट डाले हैं। ज्यादातर समुद्रों को जहरीला बना दिया है। ज्यादातर बर्फ को गला डाला है। ज्यादातर नदियों को सुखा डाला है। धरती की उर्वरता नष्ट कर डाली है। कीटों की ज्यादातर प्रजातियां नष्ट होने की कगार पर हैं। मधुमक्खी भी इसी में से एक है। इसमें खास बात क्या है। शायद इस महाविनाश का दौर भी अगले सौ-डैढ़ सालों में पूरा हो जाए। बहुत सारी प्रजातियां नष्ट हो जाएं। बहुत सारी प्रजातियां नष्ट हो जाएं। हो सकता है। कि नष्ट होने वाली प्रजातियों में मनुष्य भी शामिल हो।
अगर हम फाइनल डेस्टीनेशन वाली बात पर लौटें, तो यह कहा जा सकता है। कि महाविनाश इस धरती को मारने की एक योजना बनाता है। धरती इस मौत को चकमा देती है। लेकिन हर बार जब महाविनाश खतम होता है। तो प्रजातियां वहीं नहीं रहतीं। बल्कि ऐसी प्रजातियां पैदा होती हैं। जो नए वातावरण में जीवन जीने के ज्यादा अनुकूल होती हैं। पुरानी प्रजातियां समाप्त हो जाती हैं, नई प्रजातियां पैदा होती हैं।
हो सकता है, कि इस महाविनाश से हमारे वर्तमान समय में मौजूद तमाम प्रजातियां सर्वाइव नहीं कर पाएं। लेकिन, इतना तय है, कि यह धरती सर्वाइव करेगी। यहां पर जीवन फलेगा-फूलेगा। हो सकता है। कि जीवन को हम लोग अभी जिस रूप में देख रहे हैं। आगे जीवन उससे कुछ अलग रूप में दिखे। लेकिन, जीवन दोबारा से पैदा जरूर होगा।
क्योंकि, धरती के पास मौत को चकमा देने के हुनर हैं। उसने इससे पहले के पांच महाविनाशों में ऐसा किया है। उम्मीद है। कि आगे भी ऐसा ही होगा।
हिरोशिमा, नागासाकी और चेर्नोबिल जैसी जगहें जो न्यूक्लियर हमले या न्यूक्लियर दुर्घटनाओं में नष्ट हुई हैं। वहां भी कुछ समय की चुप्पी के बाद जीवन ने अपने रंग दिखाए ही हैं। हालांकि, एक महाविनाश की तुलना में ये घटनाएं बहुत ही छोटी और तुच्छ हैं।

देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मंदिर सर्वाधिक

जन गण मन के आराध्य भगवान शिव सहज उपलब्धता और समाज के आखरी छोर पर खडे व्यक्ति के लिए भी सिर्फ कल्याण की कामना यही शिव है। किरात भील जैसे आदिवासी एवं जनजाति से लेकर कुलीन एवम अभिजात्य वर्ग तक अनपढ़ गंवार से लेकर ज्ञानी अज्ञानी तक सांसारिक मोहमाया में फंसे लोगो से लेकर तपस्वियों, योगियों, निर्धन, फक्कडों, साधन सम्पन्न सभी तबके के आराध्य देव है भगवान शिव, भारत वर्ष में अन्य देवी-देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मन्दिर सर्वाधिक है। हर गली मुहल्ले गांव देहात घाट अखाडे बगीचे पर्वत नदी जलाशय के किनारे यहां तक की बियाबान जंगलों मे भी शिवलिंग के दर्शन हो जाते है। यह इस बात का साक्ष्य है कि हमारे श्रृजनता का भगवान शिव में अगाध प्रेम भरा है। वस्तुत: इनका आशुतोष होना अवघडदानी होना केवल वेलपत्र या जल चढानें मात्र से ही प्रशन्न होना आदि कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो इनको जन गण मन का देव अर्थात् महादेव बनाती है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना गया है। शिव को अनादि अनन्त अजन्मां माना गया है। यानि उनका न आरम्भ है न अन्त ।न उनका जन्म हुआ है न वे मृत्यु को प्राप्त होते है। इस तरह से भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर है। शिव की साकार यानि मुर्ति रूप एवम निराकार यानि अमूर्त रूप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याण कारी माना गया है। धार्मिक आस्था से इन शिव नामों का ध्यान मात्र ही शुभ फल देता है। शिव के इन सभी रूप और नामों का स्मरण मात्र ही हर भक्त के सभी दु:ख और कष्टों को दूर कर उसकी हर इच्छा और सुख की पूर्ति करने वाला माना गया है।इसी का एक रूप गाजीपुर जनपद के आखिरी छोर पर स्थित कामेश्वर नाथ धाम कारो जनपद बलिया का है।रामायण काल से पूर्व में इस स्थान पर गंगा सरजू का संगम था और इसी स्थान पर भगवान शिव समाधिस्थ हो तपस्यारत थे। उस समय तारकासुर नामक दैत्य राज के आतंक से पूरा ब्रम्हांड व्यथित था। उसके आतंक से मुक्ति का एक ही उपाय था कि किसी तरह से समाधिस्थ शिव में काम भावना का संचार हो और शिव पुत्र कार्तिकेय का जन्म हो जिनके हाथो तारकासुर का बध होना निश्चित था। देवताओं के आग्रह पर देव सेनापति कामदेव समाधिस्थ शिव की साधना भूमिं कारो की धरती पर पधारे। सर्वप्रथम कामदेव ने अप्सराओं ,गंधर्वों के नृत्य गान से भगवान शिव को जगाने का प्रयास किया। विफल होने पर कामदेव ने आम्र बृक्ष के पत्तों मे छिपकर अपने पुष्प धनुष से पंच बाण हर्षण प्रहस्टचेता सम्मोहन प्राहिणों एवम मोहिनी का शिव ह्रदय में प्रहार कर शिव की समाधि को भंग कर दिया। इस पंच बाण के प्रहार से क्रोधित भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। तभी से वह जला पेंड युगो युगो से आज भी प्रमाण के रूप में अपनी जगह पर खडा है।इस कामेश्वर नाथ का वर्णन बाल्मीकि रामायण के बाल सर्ग के 23 के दस पन्द्रह में मिलता है। जिसमे अयोध्या से बक्सर जाते समय महर्षि विश्वामित्र भगवान राम को बताते है की देखो रघुनंदन यही वह स्थान है जहां तपस्या रत भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। कन्दर्पो मूर्ति मानसित्त काम इत्युच्यते बुधै: तपस्यामि: स्थाणु: नियमेन समाहितम्।इस स्थान पर हर काल हर खण्ड में ऋषि मुनी प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष रूप से साधना रत रहते है। इस स्थान पर भगवान राम अनुज लक्ष्मण एवम महर्षि विश्वामित्र के साथ रात्रि विश्राम करने के पश्चात बक्सर गये थे। स्कन्द पुराण के अनुसार महर्षि दुर्वासा ने भी इसी आम के बृक्ष के नीचे तपस्या किया था।महात्मां बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां पर रूके थे। ह्वेन सांग एवम फाह्यान ने अपने यात्रा बृतांत में यहां का वर्णन किया है। शिव पुराण देवीपुराण स्कंद पुराण पद्मपुराण बाल्मीकि रामायण समेत ढेर सारे ग्रन्थों में कामेश्वर धाम का वर्णन मिलता है। महर्षि वाल्मीकि गर्ग पराशर अरण्य गालव भृगु वशिष्ठ अत्रि गौतम आरूणी आदि ब्रह्म वेत्ता ऋषि मुनियों से सेवित इस पावन तीर्थ का दर्शन स्पर्श करने वाले नर नारी स्वयं नारायण हो जाते है। मन्दिर के ब्यवस्थापक रामाशंकर दास के देख रेख में करोणो रूपये खर्च कर धाम का सुन्दरीकरण किया गया है। चितबडागांव मुहम्मदाबाद मार्ग पर धर्मापुर में भव्य प्रवेश द्वार, कामेश्वर धाम के पास पोखरे के समीप भव्य द्वार, सत्संग हाल,प्रवचन मंच,समेत अनेक निर्माण कार्य सम्पन्न है और कुछ का निर्माण कार्य चल रहा है। शिव रात्रि एवम सावन मास में लाखो लोग यहा आकर बाबा कामेश्वर नाथ का दर्शन पूजन करते है। सावन मास में लोग उजियार घाट से गंगा स्नान कर गंगा जल लेकर कारो आते है और बाबा कामेश्वर नाथ जी को अर्पित करते है। 

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