सोमवार, 31 अगस्त 2020

पूर्व राष्ट्रपति की हालत बिगड़ी, संक्रमण

प्रणब मुखर्जी की हालत बिगड़ी, फेफड़ों में संक्रमण के कारण हुआ सेप्टिक शॉक।


नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत रविवार के बाद से बिगड़ी है और वह अभी भी बेहोशी की हालत में वेंटीलेटर पर हैं। अस्पताल की ओर से बताया गया है कि उनके फेफड़ों में संक्रमण की वजह से वह सेप्टिक शॉक में हैं। मुखर्जी को गत 10 अगस्त को सेना के रिसर्च एंड रैफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अस्पताल ने आज जारी मेडिकल बुलेटिन में कहा, “श्री मुखर्जी की हालत में रविवार के बाद से गिरावट दर्ज की गयी है। फेफड़े में संक्रमण के कारण उनके कुछ अन्य अंगों की कार्यप्रणाली भी प्रभावित हो रही है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम उनकी स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए है। वह लगातार गहरी बेहोशी में और वेंटीलेटर पर हैं। ” पूर्व राष्ट्रपति के मस्तिष्क में जमे खून के थक्के को हटाने के लिए पिछले दिनों उनका ऑपरेशन किया गया था।               


बिहार में बाढ़ के कारण पूरी फसलें बर्बाद

बिहार में बाढ़ से खेतों में लगी पूरी फसल 105 प्रखंडों में बर्बाद , सरकारी मदद की आस किसानों को


पटना। बिहार में बाढ़ क्या आई, आधे दर्जन जिले के लोगों के रोज का निवाला ही छीन ले गई। 33 प्रतिशत फसल नुकसान वाले प्रखंडों की संख्या भले 234 प्रखंड हो, लेकिन 105 प्रखंड ऐसे हैं जहां किसानों को अनाज के लिए अब अगली फसल का ही इंतजार करना होगा। उनकी पूरी फसल बाढ़ में डूब गई है। ऐसे किसानों की निगाहें, अब सरकारी सहायता पर ही टिकी है। 
कुल खेती का 22 प्रतिशत फसल चौपट राज्य में इस बार खरीफ मौसम में 36.76 लाख हेक्टयर में खेती हुई है। धान की खेती 32.78 लाख हेक्टेयर और मक्के की 3.98 लाख हेक्टेयर में हुई। बाढ़ ने जिन फसलों को 33 प्रतिशत से अधिक नुकसान किया है उसका रकबा 7.53 लाख हेक्टेयर है। यानि कुल रकबे का लगभग 22 प्रतिशत भाग बाढ़ से प्रभावित हुआ। लेकिन, अगर प्रखंडों में हुई खेती के अनुसार गणना करें तो सौ से अधिक ऐसे प्रखंड है जहां की खेती पूरी तरह चौपट हो गई। 
कई जिलों में 90 प्रतिशत तक नुकसान आधा दर्जन जिले ऐसे हैं जहां जितनी खेती हुई उसकी 70 से 90 प्रतिशत तक फसल चौपट हो गई। दरभंगा जिले में जितने रकबे में धान और मक्का की खेती हुई, उसका 90 प्रतिशत भाग चौपट हो गया। मुजफ्फरपुर में 81 प्रतिशत तो खगड़िया में 74 प्रतिशत फसल नष्ट हो गई। इसके अलावा सहरसा, पूर्वी चम्पारण और पश्चिमी चम्पारण जिलों में भी नुकसान का प्रतिशत 60 से ऊपर है। 
लंबे समय तक टिकी बाढ़ 
राज्य में इस बार बाढ़ की अवधि काफी लंबी रही। धान की रोपनी खत्म होते ही आर्द्रा नक्षत्र से बाढ़ शुरू हो गई। अगस्त तक फसल खेतों में डूबी रही। ऐसे में पौधे भी छोटे थे और पानी भी ज्यादा दिन टिका, लिहाजा फसल को बचाना कठिन हो गया। 
खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी 
इस बार खरीफ की रोपनी समय पर हो गई थी। समय पर मानसून के आने के कारण किसानों ने खूब मेहनत की और धान के साथ मक्के की खेती भी बढ़े उत्साह से की। लेकिन उनकी यह खुशी ज्यादा दिन तक नहीं टिकी। अभी पूरी तरह धान की रोपनी हुई भी नहीं हुई कि बाढ़ ने दस्तक दे दी।   
बाढ़ प्रभावित जिले 
वैशाली, सारण, सीवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी,  समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, कटिहार, शिवहर, भागलपुर, सीतामढ़ी, मधेपुरा, सहरसा, अररिया और पूर्णिया। 
आपदा प्रबंधन का प्रावधान
68 सौ रुपए प्रति हेक्टेयर असिंचित क्षेत्र में फसल नष्ट होने पर13 हजार 500 प्रति हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र में फसल नष्ट होने पर 18 हजार प्रति हेक्टेयर पेरेनियल (सलाना) फसल में 
12 हजार 200 रुपए प्रति हेक्टेयर तीन फीट बालू जमा होने पर 39 हजार प्रति हेक्टेयर जमीन की व्यापक क्षति होने पर।               


गाजियाबाद में फिर पत्रकार पर हमला

गाजियाबाद मे एक बार फिर हुआ के टीवी न्यूज़ चैनल के पत्रकार पर हमला, दी जान से मारने की धमकी।


अश्वनी उपाध्याय


गाजियाबाद। जनपद में एक बार फिर के टीवी न्यूज़ चैनल के पत्रकार पर हुआ हमला गांव की बदहाली को कवरेज करने गए पत्रकार के साथ ग्राम प्रधान के बेटे ने मारपीट की और जान से मारने की धमकी दी। आपको बता दें के न्यूज़ चैनल के संवाददाता जयवीर मावी का आरोप है कि चैनल ने गांव की बदहाली को लेकर खबर कवरेज करने के लिए कहा था। जिसके बाद वो खबर कवरेज करने के लिए लोनी टीला शाहबाजपुर गांव पहुंचा, उसी दौरान वहां पर ग्राम प्रधान के बेटे के साथ उसके कुछ साथी पहुंचे और पत्रकार जयवीर मावी के साथ मारपीट करने लगे और जान से मारने की धमकी दे डाली। आपको बता दे कि इससे पहले भी खुद ग्राम प्रधान पत्रकार जयवीर मावी को फोन पर धमकी दे चुका है। अब पत्रकार ने अपनी जान का खतरा बताते हुए प्रशासन से सुरक्षा की मांग की है। वहीं इस तरह की लगातार घटनाएं सामने आने पर सवाल उठना लाजिमी हैं कि अभी कुछ दिन पहले ही पत्रकार विक्रम जोशी की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। प्रशासन पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बदमाशों पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं करता हैं या फिर ऐसे ही एक के बाद एक पत्रकारों पर हमला होता रहेगा और उनकी जान जाती रहेगी।             


बैंगन की खेती, नस्ले, विधि और व्यापार

बैंगन की खेती अधिक ऊंचाई वाले स्थानों को छोड़कर भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में प्रमुख सब्जी की फसल के रूप में की जाती है।


यह वर्ष में दो बार उगाया जाता है, अक्टूबर नवंबर तथा जुलाई अगस्त। पौष्टिकता की दृष्टि से इसे टमाटर के समकक्ष समझा जाता है। बैंगन की हरी पत्तियों में विटामिन ‘सी’ पाया गया है। इसके बीज क्षुधावर्द्धक होते हैं तथा पत्तियां मन्दाग्नि व कब्ज में फायदा पहुंचाती हैं।भूमि का चुनाव:- इसकी खेती अच्छे जल निकास युक्त सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। बलुई दोमट से लेकर भारी मिट्टी जिसमें कार्बिनक पदार्थ की पर्याप्त मात्रा हो, उपयुक्त होती है। भूमि का पी.एच मान 5.5-6.0 की बीच होना चाहिए तथा इसमें सिंचाई का उचित प्रबंध होना आवश्यक है।


उन्नत किस्में:- बैंगन मुख्यतः बैंगनी, सफेद, हरे, गुलाबी एवं धारीदार रंग के होते हैं। आकार में गोलकार, अंडाकार, लंबे एवं नाशपाती के आकार के होते हैं। 


बागवानी एवं कृषि-वानिकी शोध कार्यक्रम, रांची में किये गये अनुसन्धान कार्यो के फलस्वरूप निम्नलिखित किस्में इस क्षेत्र के लिए विकसित की गई है:-


पंजाब बहार:- इस किस्म के पौधे की लंबाई 93 सैं.मी. होती है। इसके फल गोल, गहरे जामुनी रंग के और कम बीजों वाले होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 190 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


पंजाब नंबर 8 :- यह किस्म दरमियाने कद की होती है। इसके फसल दरमियाने आकार के, गोल और हल्के जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
जमुनी जी ओ आई (एस 16):- यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई है और इसके फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं।


पंजाब बरसाती:- यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है और यह किस्म फल छेदक को सहनेयोग्य है। इसके फल दरमियाने आकार के, लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


पंजाब नीलम:- यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है और इसके फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


पूसा परपल लौंग:- यह जल्दी पकने वाली किस्म है, सर्दियों में यह 70-80 दिनों में और गर्मियों में यह 100-110 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के बूटे दरमियाने कद के और फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


पूसा परपल क्लसचर:- यह किस्म आई. सी. ए. आर. नई दिल्ली द्वारा बनाई गई है। यह दरमियाने समय की किस्म है। इसके फल गहरे जामुनी रंग और गुच्छे में होते हैं। यह किस्म झुलस रोग को सहने योग्य होती है।


पूसा हाइब्रिड 5 :- इस किस्म के फल लंबे और गहरे जामुनी रंग के होते है। यह किस्म 80-85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 204 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


अन्य किस्में


स्वर्ण शक्ति:- पैदावार की दृष्टि से उत्तम यह एक संकर किस्म है। इसके पौधों कि लंबाई लगभग 70-80 सेंटीमीटर होती है। फल लंबे चमकदार बैंगनी रंग के होते हैं। फल का औसतन भार 150-200 ग्रा. के बीच होता है। इस किस्म से 700-750 क्वि./हे. के मध्य औसत उपज प्राप्त होती है।


स्वर्ण श्री:- इस किस्म के पौधे 60-70 सेंटीमीटर लम्बे, अधिक शाखाओंयुक्त, चौड़ी पत्ती बाले होते हैं। फल अंडाकार मखनिया-सफेद रंग के मुलायम होते हैं। यह भुरता बनाने के लिए उपयुक्त किस्में है। भू-जनित जीवाणु मुरझा रोग के लिए सहिष्णु इस किस्म की पैदावार 550-600 क्वि./हे. तक होती है।


स्वर्ण मणि:- इसके पौधे 70-80 सेंटीमीटर लंबे एवं पत्तियां बैगनी रंग की होती है। फल 200-300 ग्राम वजन के गोल एवं गहरे बैंगनी रंग के होते हैं। यह भूमि से उत्पन्न जीवाणु मुरझा रोग के लिए सहिष्णु किस्म है। इसकी औसत उपज 600-650 क्वि./हे. तक होती है।


स्वर्ण श्यामलीभू:- जनित जीवाणु मुरझा रोग प्रतिरोधी इस अगेती किस्म के फल बड़े आकार के गोल, हरे रंग के होते हैं। फलों के ऊपर सफेद रंग के धारियां होती है। इसकी पत्तियां एवं फलवृंतों पर कांटे होते हैं। रोपाई के 35-40 दिन बाद फलों की तुड़ाई प्रारंभ हो जाती है। इसके व्यजंन बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। इसकी लोकप्रियता छोटानागपुर के पठारी क्षेत्रों में अधिक है। इसकी उपज क्षमता 600-650 क्वि./हे. तक होती है। इस प्रतिभाक्षेत्र में उग्र रूप में पाए जाने वाले जीवाणु मुरझा रोग के लिए यह एक प्रतिरोधी किस्म है। इसके फल बड़े आकार के लंबे चमकदार बैंगनी रंग के होते है। इसके फलों की बाजार में बहुत मांग है। किस्मं की उपज क्षमता 600-650 क्वि./हे. के बीच होती है।


बैंगन की बीज की बुआई, खाद एवं उर्वरक।


पौधे तैयार करना


पौधशाला की तैयारी:- पौधशाला में लगने वाली बीमारियों एवं कीटों के नियंत्रण हेतु पौधशाला की मिट्टी को सूर्य के प्रकाश से उपचारित करते हैं। इसके लिए 5-15 अप्रैल के बीच 3*1 मी. आकार की 20-30 सेंटीमीटर ऊँची क्यारियां बनाते हैं। प्रति क्यारी 20-25 कि. ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 1.2 कि.ग्रा. करंज कि खली क्यारी में डालकर अच्छी तरह मिलाते हैं। तत्पश्चात क्यारियों की अच्छी तरह सिंचाई करके इन्हें पारदर्शी प्लास्टिक कि चादर से ढंक कर मिट्टी से दबा दिया जाता है। इस क्रिया से क्यारी से हवा एवं भाप बाहर नहीं निकलती और 40-50 दिन में मिट्टी में रोगजनक कवकों एवं हानिकारक कीटों कि उग्रता कम हो जाती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई के लिए ऐसी 20-25 क्यारियों की आवश्यकता होती है।


बीज की बुआई:- बैगन कि शरदकालीन फसल के लिए जुलाई-अगस्त में, ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी-फरवरी में एवं वर्षाकालीन फसल के लिए अप्रैल में बीजों की बुआई की जानी चाहिए। एक हेक्टेयर खेत में बैगन की रोपाई के लिए समान्य किस्मों का 250-300 ग्रा. एवं संकर किस्मों का 200-250 ग्रा. बीज पर्याप्त होता है।


पौधशाला में बुआई से पहले बीज को उपचारित करें। बुआई 5 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी लाइनों में करें। बीज से बीज की दुरी एवं बीज की गहराई 0.5-1.0 सेंटीमीटर के बीच रखें। बीज को बुआई के बाद सौरीकृत मिट्टी से ढकें । पौधशाला को अधिक वर्षा एवं कीटों के प्रभाव से बचाने के लिए नाइलोन की जाली लगायें।


खाद एवं उर्वरक:- अच्छी पैदावार के लिए 200-250 क्वि./हे. की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त फसल में नत्रजन (260-325 कि.ग्रा. यूरिया), फॉस्फोरस, पोटाश, उचित मात्रा में मिलाएं।


बैगन की संकर किस्मों के लिए अपेक्षाकृत अधिक पोषण कि आवश्यकता होती है। 


पौध रोपण:- बुआई के 21 से 25 दिन पश्चात पौधे रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं। बैंगन की शरदकालीन फसल के लिए जुलाई-अगस्त में, ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी-फरवरी में एवं वर्षाकालीन फसल के लिए अप्रैल-मई में रोपाई की जानी चाहिए।


रोपाई शाम के समय करें, एवं इसके बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे पौधों की जड़ों का मिट्टी के साथ सम्पर्क स्थापति हो जाता है। बाद में मौसम के सिंचाई की जा सकती है। फसल की समय-समय पर निदाई-गुड़ाई करनी आवश्यक होती है।


तुड़ाई:- बैंगन के फलों की मुलायम अवस्था में तुड़ाई करनी चाहिए। तुड़ाई में देरी करने से फल सख्त व बदरंग हो जाते हैं साथ ही उनमें बीज का विकास हो जाता है, जिससे बाजार में उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलता।


कीट एवं रोग नियंत्रण।


तना एवं फल बेधक:- यह कीट फसल को बहुत  नुकसान पहुंचाता है। इसके पिल्लू  शीर्ष पर पत्ती के जुड़े होने के स्थान पर छेद बनाकर घुस जाते हैं,तथा उसे अंदर से खाते हैं ।


फसल में फेरोमोन पाश लगाकर इस कीट के प्रभाव को कम किया जा सकत है। फलों पर कीट पर प्रकोप दिखाई देने पर नीम के बीच के रस का 4% की दर से घोल बनाकर 15 दिनों पर प्रयोग करें।


जैसिड्स:- ये कीट पत्तियों की सतह से लगकर रस चूसते हैं। जिसके फलस्वरूप पत्तियां पीली पर जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं।  


एपीलेकना बीटल:- ये कीट पौधों की प्रारंभिक अवस्था में बहतु हानि पहुंचाते हैं। ये पत्तियों को खार छलनी सदृश बना देते हैं। अधिक प्रकोप की दशा में पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। इनकी रोकथाम के लिए कार्बराइल (2.0 ग्रा./ली.) अथवा पडान (1.0 ग्रा. ली.) का 10 दिन के अंतर पर प्रयोग करें।              


देश में 78 हजार से अधिक नए मामले

नई दिल्ली। देश में लगातार दूसरे दिन भी कोरोना संक्रमण के 78 हजार से अधिक नए मामले सामने आए जिससे संक्रमितों की संख्या 35.21 लाख के पार पहुंच गई हालांकि राहत की बात यह है कि स्वस्थ होने वालाें की संख्या में बढ़ोतरी हुई है जिससे सक्रिय मामले महज 21.59 प्रतिशत रह गए हैं।केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 24 घंटों में कोरोना संक्रमण के 78,512 नए मामलों के साथ संक्रमितों का आंकड़ा 36,21,245 हो गया। इसी अवधि में 60,867 मरीज स्वस्थ हुए हैं जिससे कोरोना से मुक्ति पाने वालों की संख्या 27,74,801 हो गयी है। स्वस्थ होने वालों की तुलना में संक्रमण के नये मामले अधिक होने से सक्रिय मामले 16,673 बढ़कर 7,81,975 हो गये हैं।


देश के 971 और संक्रमितों की मौत होने से मृतकों की संख्या 64,469 हाे गयी। देश में सक्रिय मामले 21.59 प्रतिशत और रोगमुक्त होने वालों की दर 76.63 प्रतिशत है जबकि मृतकों की दर 1.78 प्रतिशत है। कोरोना से सबसे गंभीर रूप से प्रभावित महाराष्ट्र में सक्रिय मामलों की संख्या 8422 बढ़कर 1,93,889 हो गयी तथा 296 लोगों की मौत होने से मृतकों का आंकड़ा 24,399 हो गया। इस दौरान 7690 लोग संक्रमणमुक्त हुए जिससे स्वस्थ हुए लोगों की संख्या बढ़कर 5,62,401 हो गयी।


देश में सर्वाधिक सक्रिय मामले इसी राज्य में हैं। दक्षिणी राज्यों में आंध्र प्रदेश में इस दौरान मरीजाें की संख्या 1,448 बढ़ने से सक्रिय मामले 99,129 हो गये। राज्य में अब तक 3884 लोगों की मौत हुई है, वहीं कुल 3,21,754 लोग संक्रमणमुक्त हुए हैं। कर्नाटक में पिछले 24 घंटों के दौरान मरीजों की संख्या में 1645 की वृद्धि हुई है और यहां अब 88,110 सक्रिय मामले हैं। राज्य में मरने वालों का आंकड़ा 5589 पर पहुंच गया है तथा अब तक 2,42,229 लोग स्वस्थ हुए हैं।


तमिलनाडु में सक्रिय मामलों की संख्या 52,721 हो गयी है तथा 7231 लोगाें की मौत हुई है। वहीं राज्य में अब तक 3,62,133 लोग संक्रमणमुक्त हुए हैं। आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी इस दौरान 1306 मरीजों की वृद्धि हुई है जिससे सक्रिय मामले 54,666 हो गये हैं तथा इस महामारी से 3423 लोगों की मौत हुई है जबकि 1,67,543 मरीज ठीक हुए हैं। तेलंगाना में कोरोना के 31,299 सक्रिय मामले हैं और 827 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 92,837 लोग इस महामारी से ठीक हुए है।                       


सीएम नीतीश ने खुद को आइसोलेट किया

रायपुर। प्रदेश मे कोरोना का संक्रमण दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री के सलाहकार राजेश तिवारी और उनके पूरे परिवार की कोरोना रिपोर्ट पॉजेटिव आयी थी, अब मुख्यमंत्री के OSD की कोरोना रिपोर्ट पॉजेटिव आ गयी है। OSD के साथ-साथ मुख्यमंत्री के PSO की भी कोरोना रिपोर्ट पॉजेटिव आयी है। मुख्यमंत्री के करीबियों के पॉजेटिव होने के बाद प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मच गया है। इधर मुख्यमंत्री ने अब खुद को क्वारंटीन कर लिया है।


खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी है कि वो चार दिन के लिए खुद को आइसोलेट कर रहे हैं।मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर बताया है कि उनके ओएसडी और पीएसओ की रिपोर्ट कोरोना पॉजेटिव आयी है। हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की रिपोर्ट कोरोना निगेटिव है। लेकिन एहितियातन उन्होंने खुद को आइसोलेट कर लिया है। उन्होंने प्रदेशवासियों को सतर्क रहने की सलाह दी है।                


संगीत के साथ ऑपरेशन की इजाजत मिली

मनोज सिंह ठाकुर


पटना। कहा जाता है कि अच्छा संगीत मनुष्य को आत्मिक शांति प्रदान करता है। इसका जीवन में खासा महत्व है। यह भी कहा जाता है कि संगीत के सुरों से तनाव को कम करने में मदद मिलती है। पटना के इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल सांइस आईजीआईएमएस के हद्य रोग संस्थान में अब ओपन हार्ट की सर्जरी कराने वाले मरीजों को संगीत की सुविधा के साथ ऑपरेशन की इजाजत दी गई है। यह भी बताया जा है कि अब मरीजों को बेहोश करने की जरुरत नहीं पड़ेगी, बल्कि डॉक्टर और मरीज एक दूसरे से लगातार बातचीत कर सकेंगे। इस दौरान मरीज अपनी पंसद के संगीत में भजन से लेकर फ्यूजन तक का आनंद ले सकेंगे। इतना ही नहीं किसी तरह की तकलीफ होने पर मरीज डॉक्टर से अपने दर्द को भी सांझा कर सकेंगे। प्रसार भारती न्यूज सर्विस-पीबीएनएस के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक आईजीआईएमएस में यह सुविधा बहाल कर दी गई है। इसमें पहले चरण में पांच मरीजों को चुना गया है। जिन्हें पहले से सांस की कोई बीमारी नहीं है। बिहार में पहली बार किसी सरकारी संस्थान ने इस तरह की सुविधा प्रदान की गई है। यह भी बताया जा रहा है कि कोरोना संक्रमित मरीजों को भी म्यूजिक थेरेपी देकर उनका तनाव कम किया जायेगा। म्यूजिक थेरेपी का यह शोध ईरान के मजांदरन यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेस ने किया था, जिसे यूएस के जर्नल ने प्रकाशित किया। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन ने इस शोध को प्रकाशित किया। इस शोध ने पाया गया था कि संगीत सुनने से मरीज का दर्द कम हो जाता है। इस रिसर्च में ओपन हार्ट सर्जरी के बाद मरीज को संगीत सुनने की सलाह भी गई थी। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ के साथ किए गए शोध में 60 मरीजों पर अध्ययन किया गया। इसमें 56 महिलाएं थी, जिन्होंने कहा कि संगीत सुनने से सर्जरी के दौरान उन्हें दर्द कम हुआ शोध में यह भी खुलासा हुआ कि इन मरीजों को सर्जरी के बाद भी दर्द कम महसूस हुआ। इसमें वैज्ञानिकों ने रोगियों को आईसीयू में एमपी3 प्लयेर व हेडफोन लगाकर संगीत सुनने की सलाह दी थी। यह शोध ईरान के मजांदरन यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेस ने किया था, जिसे यूएस के जर्नल ने प्रकाशित किया था।


इस संदर्भ में आखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान दिल्ली- एम्स की रेमोटोलोजी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉक्टर उमा कुमार कहती हैं कि संगीत का प्रभाव स्वास्थ पर पड़ता है और कानों में संगीत की ध्वनि सीधे मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है। उनके मुताबिक कान के माध्यम से संगीत मस्तिष्क के जिस भाग में जाता है, वहां बहुत असर डालता हैं, इससे कुछ न्यूरो केमिकल रिलीज होते हैं | उनके मुताबिक यह एक प्रकार का सकारात्मक हरमोन्स रिलीज करता है, जिससे सोचने समझने की ताकत बढ़ती है। यह बहुत प्रभाव डालते हैं रक्तचाप को कम करते हैं।                 


इंडोनेशिया में 6.0 तीव्रता का भूकंप, झटके

इंडोनेशिया में 6.0 तीव्रता का भूकंप, झटके  अखिलेश पांडेय  जकार्ता। इंडोनेशिया के पूर्वी प्रांत मालुकु में सोमवार के तेज झटके महसूस किए गए। इ...