रविवार, 25 जून 2023

सत्ता में वापसी हेतु, कोई सियासती समझौता 

सत्ता में वापसी हेतु, कोई सियासती समझौता 

अकांशु उपाध्याय   

नई दिल्ली। देश की आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस 9 साल से अधिक समय से सत्ता में नहीं है। सत्ता में वापसी करने के लिए कांग्रेस विपक्षी एकता का हिस्‍सा बनने के लिए हर तरह के सियासी समझौते करने के लिए तैयार है। खासकर सीटों को बटवारे को लेकर बेहद नरम रवैया अपनाए हुए है। इसको लेकर जब राज्‍यवार लोकसभा सीटों को लेकर छानबीन की, तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आ रहे हैं। विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस के हाथ से देश के 10 बड़े राज्‍य निकल सकते हैं, जहां कांग्रेस की स्थिति भविष्य में दोयम दर्जे वाली बन जाएगी। हालांकि अभी भी इन राज्‍यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है। इनमें से दिल्‍ली, पंजाब और केरल ऐसे तीन राज्‍य हैं, जहां आम आदमी पार्टी व वाम दलों से लेकर कांग्रेस से सीटों को बंटवारा करना आसान नहीं होगा। इन राज्‍यों में संभवत कांग्रेस अकेले ही चुनाव में जाए।

उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर सपा व आरएलडी, बिहार की 40 सीटों पर जेडीयू व आरजेडी, महाराष्ट्र की 48 सीट पर  शिवसेना (ठाकरे) व एनसीपी, पश्चिम बंगाल की 42 सीटों पर  तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु की 39 सीटों पर  डीएमके, केरल की 20 सीटों पर सीपीआई (एम), जम्मू कश्मीर की 6 सीटों पर पीडीपी व नेशनल कॉन्फ्रेंस, झारखंड की 14 सीटों पर  झारखंड मुक्ति मोर्चा, पंजाब की 13 और दिल्‍ली की 7 सीटों पर आम आदमी पार्टी की ओर से ज्‍यादातर सीटों पर दावेदार की जाएगी। जिससे कांग्रेस की स्थिति दोयम दर्जे वाली हो जाएगी। इन राज्‍यों में लोकसभा की 309 सीट हैं।

अरुणाचल प्रदेश की 2, असम की 14, आंध्र प्रदेश की 25, तेलंगाना 17, चंडीगढ़ की 1, छत्तीसगढ़ की 11, दादर एंड नगर हवेली की 1, दमन एंड दीयू की 1, गोवा की 2, गुजरात की 26, हरियाणा की 10, हिमाचल की 4, कर्नाटक की 28, लक्षद्वीप की 1, मध्य प्रदेश की 29, मणिपुर की 2,मेघालय की 2, मिजोरम की 1, नागालैंड की 1, उड़ीसा की 21, पांडिचेरी की 1, राजस्थान की 25, सिक्किम की 1, त्रिपुरा की 2, उत्तराखंड की 5 सीटों पर कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ पाएगी। इन राज्‍यों में लोकसभा की 233 सीटें है।

कांग्रेस को करीब से जानने वाले पत्रकार रशीद किदवई का कहना है कि विपक्षी एकता के कारण कांग्रेस को कई राज्‍यों में काफी नुकसान हो सकता है। कांग्रेस को विपक्षी एकता कायम रखने के साथ ही साथ अपने हितों को भी ध्यान में रखना चाहिए, जिससे क्षेत्रीय दल उस पर भारी न पड़ जाएं।

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