बुधवार, 20 जुलाई 2022

जुबैर को तिहाड़ जेल से रिहा करने का आदेश: एससी

जुबैर को तिहाड़ जेल से रिहा करने का आदेश: एससी 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर को उनके ट्वीट को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज सभी एफआईआर में अंतरिम जमानत देते हुए जमानत की शर्त लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि ज़ुबैर को ट्वीट करने से रोका जाए। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एडिशनल एडवोकेट जनरल के ऐसी शर्त लगाने के अनुरोध को ठुकरा दिया। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यूपी एएजी गरिमा प्रसाद से कहा, यह एक वकील से ऐसा कहने जैसा है कि आपको बहस नहीं करनी चाहिए। हम एक पत्रकार से कैसे कह सकते हैं कि वह एक शब्द भी नहीं लिखेगा या नहीं बोलेगा?

एएजी ने जवाब दिया कि जुबैर “पत्रकार नहीं” है। इसके अलावा एएजी ने प्रस्तुत किया कि सीतापुर एफआईआर में जुबैर को अंतरिम जमानत देते हुए 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ द्वारा पारित आदेश में एक शर्त थी कि वह ट्वीट पोस्ट नहीं करेंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर जुबैर कोई आपत्तिजनक ट्वीट करते हैं तो वह कानून के प्रति जवाबदेह होंगे, लेकिन उन्होंने कहा कि “किसी को बोलने से रोकने वाला अग्रिम आदेश” जारी नहीं किया जा सकता। जज ने पूछा, अगर कानून के खिलाफ कोई ट्वीट होता है, तो वह जवाबदेह होंगे। कोई अग्रिम आदेश कैसे पारित किया जा सकता है कि कोई नहीं बोलेगा? जब एएजी ने कहा कि एक शर्त होनी चाहिए कि जुबैर सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने जवाब दिया, सभी सबूत सार्वजनिक डोमेन में हैं। 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने दोहराया, हम यह नहीं कह सकते कि वह दोबारा ट्वीट नहीं करेंगे। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने आदेश दिया कि जुबैर को बुधवार शाम 6 बजे तक तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया जाना चाहिए, बशर्ते कि वह मामलों के संबंध में जमानत बांड प्रस्तुत कर रहा हो। पीठ ने यूपी पुलिस की 7 एफआईआर को दिल्ली पुलिस की एफआईआर के साथ जोड़ दिया, यह देखते हुए कि मामलों की विषय वस्तु समान हैं और दिल्ली पुलिस ने व्यापक जांच की है। पीठ ने कहा कि ट्वीट के संबंध में जुबैर के खिलाफ दर्ज किसी भी भविष्य की एफआईआर को दिल्ली पुलिस को हस्तांतरित किया जाना चाहिए और स्पष्ट किया कि वह भविष्य में इस तरह की एफआईआर में भी जमानत के हकदार होंगे। पीठ ने उन्हें सभी एफआईआर रद्द करने की मांग के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता भी दी।

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