बुधवार, 11 सितंबर 2019

यमाचार्य नचिकेता वार्ता (धर्मवाद)

गतांक से ...
आज जो आपने संतान को कहा है। आठवां पुत्र को कहा है। उस समय महाराजा जानवी कहता है कि यह मानव के जीवन में स्वभाविक प्रणाम की इच्छा होती है। एक मानव माता-पिता जो अपने गृह में कर्म करते हैं तो कर्म करने के पश्चात मानव को प्रणाम की इच्छा होती है। उस परिणाम में मानव का यह स्वभाव बन जाता है कि वह पितृ यज्ञ करता है और पिता बनने की उसे स्‍वत: एक आत्मा की कृपा जागृत होती है। इसलिए मैंने आप पुत्र की आभाचरण की है। महाराज जानवी के इन वाक्यों को सकाम करने वाले ऋषियों ने कहा कि प्रभु हम यह जान सकते हैं कि आत्मा से मोक्ष का, पुत्र का क्या संबंध है? उन्होंने कहा कि मोक्ष का और पुत्र का विशेष कोई संबंध नहीं है। परंतु जो मानव त्याग पूर्वक रहता है इस संसार में त्याग से रहता है। क्योंकि पुत्र जो होता है वह माता-पिता का हृदय होता है। परंतु वह जो हृदय है वही तो हृदय वर्चसी से बना देता है और जो एक ह्रदय को त्याग करके एक ह्रदय देव गति को प्राप्त कराता हुआ वह मोक्ष की पगडंडी को प्राप्त कर लेता है। परंतु देखो मैंने बहुत पुरातन काल में अपने वाक्यों को निर्णय देते हुए कहा था। महाराजा जानवी ने जब यह वाक्य कहा तो ॠषिवर उनके वाक्य से संतुष्ट होने लगे। उन्होंने कहा कि महाराज मोक्ष क्या है? पुत्र की आभा तो समाप्त हो जाती है। उन्होंने कहा कि जैसे मानव आत्मा और परमात्मा का पुत्र है और मोक्ष में जाने के पश्चात वह परमात्मा को प्राप्त हो जाता है। परमात्मा में आधारित आनंद को प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार पुत्र बनने में ही मानव अपने ब्रह्मवेग, ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर सकता है। जैसे आचार्य कुल में प्रवेश करके शिष्य जब ज्ञान की आभा मे रमन करता है और ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उसकी उत्कृष्ट इच्छा होती है तो मुनिवरो, वह पुत्र बनकर के, शिष्य बनकर के उनके चरणों को छू कर के ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त करता है। क्योंकि देखो वह उसका पुत्र है। क्योंकि पुत्र ही पिता के आंगन को प्राप्त हो जाता है पिता मन आंगन में प्रवेश करके जैसे मोक्ष में जाने वाला आत्मा प्रकृति की तरंगों को त्याग करके वह परमात्मा ब्रह्म रूपी पित्र के द्वार पर प्रवेश कर जाता है। इसी प्रकार शिष्य अपने गुरु के द्वार में प्रवेश कर जाता है। ब्रह्म ज्ञानी बन जाता है। ब्रह्मज्ञानी बन करके उसको क्रियाओं में लाता है। क्रिया मे ला करके वह रजोगुण तमोगुण को समाप्त कर देता है। वह उन में प्रवेश करके ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है। आज मैं विशेष चर्चा प्रकट करने नहीं आया हूं विचार देने आया हूं। आज मैं तुम्हें यह वाक्य प्रकट करने को आया हूं कि राजा जो ब्रह्म वेता होना चाहिए। जब राजा के राष्ट्र में राजा ब्रह्मवर्ता होता है तो उस समाज में उस प्रजा के वैभव को कोई भी मानव नष्ट नहीं कर सकता। क्योंकि उसका राजा ब्रह्म वेता है वह भव्यता बनकर के ब्राह्म लीन रहता है ब्रह्मा में समादिष्ट रहता है। अपने वैभव कि उसे चिंता नहीं होती वह अपने कर्तव्य का काम कर रहा है। प्रातकाल यज्ञ कर रहा है। मानव समय पर अपने अन्‍न का शोधन कर रहा है तो वह राजा ऊंचा है इसीलिए वेद का ॠषि कहता है कि राजा तो ब्रह्मवेता होना चाहिए। जो  राजा ब्रह्म वेता बन के परमाणुओं को जान लेता है। वह देव रूप हो जाता है वह प्रत्येक पर अपना अनुशासन कर लेता है और जो अनुशासन नहीं कर सकता वह प्राणी नहीं कहलाता। संसार में वह पामर कह लाया जाता है।


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