सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

रणनीति: गाजीपुर बॉर्डर 1 किले में तब्दील हुआ

अश्वनी उपाध्याय   

गाजियाबाद। दिल्ली-उत्तर प्रदेश के बीच स्थित गाजीपुर बॉर्डर सोमवार को एक किले में तब्दील हो गया। जहां हजारों किसान नए केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन स्थल पर कई स्तरों पर बैरिकेड लगाए गए हैं और सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई है। प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती जा रही है। भारतीय किसान यूनियन के सदस्य और इसके नेता राकेश टिकैत यूपी गेट पर नवंबर से डटे हुए हैं। प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) और त्वरित कार्य बल (आरएएफ) सहित सैकड़ों सुरक्षा कर्मियों को सतर्क रखा गया है। स्थिति पर नजर रखने के लिए ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है और वाहनों की जांच की जा रही हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान से और अधिक किसान प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आ रहे हैं। पैदल जाने वाले लोगों को रोकने के लिए बैरिकेड के अलावा कंटीले तार लगाए गए हैं। एक आधिकारिक बयान में कहा गया, ”गाजियाबाद के जिलाधिकारी अजय शंकर पांडे और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कलानिधि नैथानी ने दिल्ली-यूपी सीमा पर जारी किसान आंदोलन के बीच गाजीपुर, सीमापुरी और दिलशाद गार्डन इलाकों का दौरा किया और जमीनी हालात की समीक्षा की। बयान में कहा गया कि पांडे और नैथानी ने दिल्ली पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति पर चर्चा की और तैयारियों की समीक्षा की। अधिकारियों ने बताया कि महानिरीक्षक (मेरठ रेंज) प्रवीण कुमार ने गाजियाबाद का दौरा किया। जहां उन्होंने यूपी गेट पर विरोध स्थल और कौशाम्बी पुलिस स्टेशन का दौरा किया। एक अधिकारी ने कहा, “आईजी ने स्थानीय पुलिस और विरोध स्थल पर तैनात पुलिस अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी किए हैं।” वाहनों की आवाजाही को रोकने के लिए फ्लाईओवर से सटे मार्गों पर सड़क पर भारी बैरिकेड लगाए गए हैं। कंटीले तार भी लगाए गए हैं। गौरतलब है, कि तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान दो महीने से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। शाहदरा जिले के दिल्ली पुलिस के कर्मियों को खुद को धारदार हथियार के हमले से बचाने के लिए लोहे के छड़ दिये गए हैं। पुलिस ने बताया कि शाहदरा जिले के अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी 11 पुलिस थानों के प्रभारी अधिकारियों (एसएचओ) द्वारा यह पहल की गई है। पुलिस ने बताया कि प्रत्येक पुलिस थाने ने अपने कर्मियों को लगभग 12 लोहे के छड़ वितरित किये गए हैं। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ”इसका उद्देश्य किसी भी तलवार या धारदार हथियार के हमलों से हमारे कर्मियों को बचाना है। यह उनकी आत्मरक्षा के लिए है। यह पहल शाहदरा जिले के संबंधित पुलिस थानों के एसएचओ ने की थी।” केंद्र के नये कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों द्वारा गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा के बाद यह कदम उठाया गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी और पंजाब सरकार के कई मंत्रियों ने सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की तथा 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के बाद से ‘लापता’ लोगों की सूची सार्वजनिक करने का आग्रह किया। तिवारी के मुताबिक, उन्होंने और पंजाब सरकार के मंत्रियों सुखजिंदर रंधावा, सुख सरकारिया और राजकुमार छबेवाल ने बजट पेश होने के बाद शाह से मुलाकात की। उन्होंने ट्वीट किया, ”बजट के बाद अमित शाह से मुलाकात की। हमने उनसे आग्रह किया कि किसानों के प्रदर्शन के दौरान हिरासत में लिए गए और गिरफ्तार किए गए लोगों की सूची सार्वजनिक की जाए ताकि उन्हें कानूनी कदम उठाने का मौका मिले।”



किम जोंग-उन की पत्नी 1 साल से लापता बताई

प्योंगयांग। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन की पत्नी पिछले एक साल से लापता बताई जा रही हैं। उन्हें आखिरी बार सार्वजानिक रूप से 25 जनवरी 2020 को देखा गया था। री सोल जू के इतने लंबे समय से गायब रहने को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रहीं हैं। यह आशंका भी जताई जा रही है कि किम ने ही अपनी पत्नी को गायब करवा दिया है। वहीं, कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी की वजह से री सोल जू ने खुद को अलग-थलग कर लिया है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, किम जोंग उन की पत्नी री सोल जू को आखिरी बार 25 जनवरी 2020 को देखा गया था। इस दौरान वह राजधानी प्योंगयांग में लूनर न्यू ईयर परफॉर्मेंस के दौरान अपने पति के साथ बैठी हुईं थीं। तभी से उन्हें किसी भी राष्ट्रीय कार्यक्रम में नहीं देखा गया। उन्होंने तानाशाह से 2009 में शादी की थी और 2012 में स्टेट मीडिया ने उन्हें किम जोंग उन की पत्नी के तौर पर संबोधित किया था। कहा जाता है कि री सोल जू को कहीं भी अपनी मर्जी से जाने की इजाजत नहीं है। उन्हें हमेशा पति किम जोंग उन के साथ ही देखा जाता है। 10 अक्टूबर 2020 को प्योंगयांग में मिलिट्री परेड का आयोजन किया गया था, इस दौरान भी वह कहीं नजर नहीं आईं। जबकि री सोल जू हर साल अपने पति के साथ इस कार्यक्रम में शरीक होती थीं।इसके बाद से उन्हें लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। कई लोग आशंका जता रहे हैं कि किम जोंग उन ने उन्हें गायब करवा दिया होगा। ऐसा भी कहा जा रहा है कि कोरोना महामारी के खौफ की वजह से किम की पत्नी ने कहीं भी आना-जाना बंद कर दिया है। वैसे, तानाशाह का जिस तरह का इतिहास रहा है। उसे देखते हुए इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वो अपनी पत्नी को गायब करा सकता है। किम जोंग उन पर अपने चाचा की हत्या का भी आरोप है। इसके अलावा, वो अपने कई अधिकारियों को भी मौत के घाट उतरवा चुके हैं। बता दें कि किम ने 2011 में अपने पिता की मौत के बाद उत्तर कोरिया की सत्ता संभाली थी।

रिलीज: अभिनेता आमिर ने फोन उठाना बंद किया

मनोज सिंह ठाकुर    

मुंबई। आमिर खान की फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ जल्द रिलीज होने वाली है। लेकिन इसकी रिलीज से पहले आमिर ने चौंकाने वाला ऐलान किया है। आमिर खान हमेशा कुछ हटके करते हैं और इस बार भी उन्होंने ऐसा किया है। एक्टर ने ‘लाल सिंह चड्ढा’ की रिलीज तक अपना मोबाइल फोन बंद करने का फैसला किया है।आज कल लोग अपना फोन बंद करना तो दूर कुछ घंटों के लिए भी फोन से दूर नहीं रह पाते। ऐसे में आमिर ने कई दिनों तक फोन से दूर रहने की बात कही है। अभिनेता ने अपने फोन से दूरी बनाने का फैसला इसलिए लिया क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि यह लगातार उनके काम में अड़चन पैदा कर रहा है।हालांकि, ये सब जानते ही हैं कि आमिर खान अपने किरदार में पूरी तरह से ढल जाने के लिए जाने जाते हैं। आखिर वे मिस्टर परफेक्शनिस्ट जो हैं। ये आमिर की आदत रही है कि वे अपने प्रोजेक्ट्स को बहुत ध्यान से करते हैं। ऐसे में आमिर खान नहीं चाहते कि ‘लाल सिंह चड्ढा’ के दरमियान भी उनका फोन बाधा बने। इसलिए अभिनेता ने यह कदम उठाया है। आमिर खान की इस फिल्म का लोगों को बेसब्री से इंतजार है। आमिर की ये फिल्म इस बार भी परंपरा को जारी रखते हुए क्रिसमस पर रिलीज हो। ‘लाल सिंह चड्ढा’ में आमिर के साथ करीना कपूर नजर आने वाली हैं। इससे पहले दोनों ‘3 इडियट्स’ में साथ नजर आए थे। हमेशा की तरह ही ये उम्मीद की जा रही है कि आमिर की फिल्म इस बार भी बॉक्स ऑफिस पर कमाल करेंगे। पीके, दंगल, धूम 3, तारे जमीन पर या फिर गजनी सभी एक से बढ़ कर एक हिट रही हैं।

उत्तराखंड में बारिश और हिमपात की संभावना जारी

उत्तराखंड। प्रदेश में बारिश और हिमपात की संभावना, पढ़िए कैसा रहेगा मौसम
पंकज कपूर  
देहरादून। उत्तराखंड में कड़ाके की ठंड से जल्द निजात मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। मौसम विज्ञान की माने तो उत्तराखंड में जल्द ही मौसम करवट बदल सकता है। मौसम विभाग के अनुसार बुधवार से प्रदेश के पर्वतीय इलाकों में बारिश और बर्फबारी के आसार बन रहे हैं। यह क्रम गुरुवार को भी बना रह सकता है। लिहाजा अगले कुछ और दिन कड़ाके की ठंड में इजाफा होने की संभावना है।
रविवार को जोशीमठ, अल्मोड़ा, मुक्तेश्वर और चम्पावत में न्यूनतम तापमान शून्य से नीचे पहुंच गया। प्रदेश में चम्पावत सबसे ठंडा रहा। यहां न्यूनतम तापमान शून्य से तीन डिग्री सेल्सियस नीचे रिकॉर्ड किया गया।
इस बार शीतकाल में प्रदेश में बारिश बेहद कम हुई है। पांच वर्ष में पहली बार अक्टूबर से जनवरी तक बारिश का आंकड़ा सामान्य से 71 फीसद कम रहा है। उच्च हिमालय को छोड़ दें तो प्रदेश में पांच जनवरी के बाद से हिमपात भी नहीं हुआ है। ऐसे में लोग बारिश और बर्फबारी की उम्मीद लगाए हुए हैं।
राज्य मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह ने बताया कि दो जनवरी को प्रदेश में पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो रहा है। ऐसे में मौसम में बदलाव संभव है। पहाड़ से लेकर मैदान तक सुबह और शाम भले ही सर्द हो, लेकिन दोपहर में धूप गरमाहट का एहसास करा रही है। दून में भी दिन के समय पारा सामान्य से दो डिग्री सेल्सियस अधिक बना हुआ है। हालांकि, रात को पारे में तेजी से गिरावट आ रही है। इधर मैदानी क्षेत्रों में घना कोहरा छाया हुआ है।
मौसम विभाग ने ठंड से बचाव के साथ ही कोहरे में वाहन चलाते समय एतिहात बरतने की सलाह दी है।

शादी-समारोह में बीजेपी-जेजेपी को न्योता नहीं

बीजेपी-जेजेपी नेताओं का बहिष्कार, शादी व समारोह में नहीं देंगे न्योता, 19 खापों की महापंचायत में हुआ फैसला

जींद। जिले के खटकड़ टोल प्लाजा पर शनिवार को जिले की विभिन्न खापों की महापंचायत हुई। इसमें सैकड़ों पुरुष व महिलाओं ने हिस्सा लिया। महापंचायत की अध्यक्षता सर्वजातीय खेड़ा खाप के प्रधान सतबीर पहलवान बरसोला ने की। इसमें 19 खाप प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। महापंचायत शुरू होते ही किसान आंदोलन में जो किसान शहीद हुए हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। इसके बाद विभिन्न खापों के प्रतिनिधियों ने टोल पर ही करीब दो घंटे तक अलग से बैठक की। इस दौरान फैसला लिया गया कि आने वाले दिनों में बीजेपी-जेजेपी नेताओं का बहिष्कार रहेगा। कोई भी व्यक्ति बीजेपी-जेजेपी के नेताओं को किसी शादी समारोह या कार्यक्रम में नहीं बुलाएगा। इसके अलावा फैसला लिया गया कि 7 फरवरी से खटकड़ टोल प्लाजा से जिले के किसान दिल्ली के टिकरी बॉर्डर के लिए पैदल कूच करेंगे। महापंचायत के फैसले का उपस्थित लोगों ने हाथ उठाकर समर्थन किया। महापंचायत में यह भी फैसला लिया गया कि यदि सरकार ने जल्द ही इंटरनेट सेवा बहाल नहीं की तो इसके विरोध में खाप पंचायत फिर से एकत्र होकर कोई कड़ा फैसला लेगी। क्योंकि इंटरनेट सेवा के बंद होने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। पहले कोरोना के चलते लंबे समय तक बच्चे स्कूल नहीं जा सके। जीन्द जिले में बीजेपी-जेजेपी नेताओं को कोई भी व्यक्ति विवाह-शादियों या किसी अन्य कार्यक्रम का न्योता नहीं देगा। यदि कोई ऐसा करता है। तो संबंधित खाप इस पर फैसला लेगी। भाजपा-जजपा नेताओं का हर स्तर पर विरोध करेंगे। इसके साथ ही 7 फरवरी से जिले से किसान सर्वखाप पंचायत के बैनर के साथ दिल्ली के टिकरी बॉर्डर के लिए पैदल कूच करेंगे। कोई भी व्यक्ति घरों पर किसी पार्टी का झंडा नहीं लगाएगा। सभी अपने घरों पर तिरंगा और किसानों से संबंधित यूनियनों के झंडे लगाएंगे। सभी खाप अपने स्तर पर गांवों में कमेटी बनाकर आंदोलन के लिए चंदा एकत्र करे। हरियाणा के कुछ जिलों में बंद इंटरनेट सेवा पर कहा कि सरकार जल्द इंटरनेट सेवा बहाल करे, नहीं तो फिर खाप रोड जाम करने तक के कड़े फैसले ले सकती है। महापंचायत में एक ही बात पर जोर रहा कि दिल्ली में टिकरी बॉर्डर पर ज्यादा से ज्यादा संख्या में किसान पहुंचे। इसके लिए संबंधित खाप अपने स्तर पर रणनीति तैयार करे। बॉर्डर पर जितने किसान बॉर्डर से वापस आएं, उतनी ही संख्या में किसान उसी दिन बॉर्डर पर पहुंचे। खाप प्रतिनिधियों ने कहा कि पूरा हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरा देश किसान नेता राकेश टिकैत के साथ है। केंद्र व यूपी सरकार राकेश टिकैत को अकेला न समझ इस मौके पर बिनैन खाप के प्रधान नफे सिंह नैन, सर्व जातीय दाड़न खाप चबूतरा पालवां प्रधान दलबीर खेड़ी मंसानिया, चहल खाप प्रधान सुरजीत बड़ौदा, कंडेला खाप से राममेहर, ईश्वर कंडेला, कालवन तपा से फकीरचंद नैन, बराह खाप से कुलदीप, माजरा खाप से बिजेंद्र फौजी, देशवाल खाप से रामफल देशवाल, उझाना खाप से चंद्र सिंह, सिक्किम सफा खेड़ी, राकेश खटकड़, ईश्वर फौजी आदि मौजूद रहे।

मृत कर्मचारी की पत्नी अपराधी, पेंशन की हकदार

मृत कर्मचारी की पत्नी अपराधी तो भी फैमिली पेंशन की हकदार- हाईकोर्ट
राणा ओबराय  
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि सरकारी कर्मचारी की विधवा यदि हत्यारिन है, तो भी उसे फैमिली पेंशन देने से इनकार नहीं किया जा सकता। मामला अंबाला निवासी बलजीत कौर की फैमिली पेंशन रोकने के मामले से जुड़ा हुआ है। बलजीत कौर के पति तरसेम सिंह हरियाणा सरकार के कर्मचारी थे। और उनकी 2008 में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद 2009 में उनकी पत्नी पर हत्या का एक मामला दर्ज हुआ था। उनकी पत्नी बलजिंदर कौर को 2011 में दोषी करार दिया गया था। 2011 में उसे दोषी करार देने के बाद हरियाणा सरकार ने उसको दिए जाने वाले वित्तीय लाभ रोक दिए थे। नियम के अनुसार सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की तिथि तक वित्तीय लाभ जारी किए जाते हैं। सेवानिवृत्ति की आयु पूरी होने के बाद पत्नी फैमिली पेंशन की हकदार होती है। हरियाणा सरकार ने यह कहते हुए वित्तीय लाभ तथा फैमिली पेंशन से इनकार कर दिया था। कि पत्नी का आचरण सही नहीं है। और वह दोषी करार दी जा चुकी है।
हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि यह आदेश नियमों के विपरीत है। यदि कर्मचारी का आचरण सही नहीं है। या फिर उसे गंभीर अपराध में दंड मिला है तो उसे सजा के तौर पर पेंशन या अन्य लाभ से महरूम रखा जा सकता है। यदि पत्नी का आचरण सही नहीं है या फिर वह गंभीर मामले में दोषी करार दी जा चुकी है। तो भी वह फैमिली पेंशन व वित्तीय लाभ की हकदार है। हाईकोर्ट ने कहा कि हरियाणा सरकार ने आदेश जारी करते हुए गलती की है। यदि कर्मचारी की हत्या उसकी पत्नी करती है। तभी उसे वित्तीय लाभ से वंचित रखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सोने की अंडे देने वाली मुर्गी को कोई नहीं काटता। कोई पत्नी केवल वित्तीय लाभ के लिए कर्मचारी की हत्या न कर दे इसलिए नियम बनाया गया था।
फैमिली पेंशन एक कल्याणकारी नियम है। जिसे कर्मचारी की मृत्यु की स्थिति में परिवार को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया है। ऐसे में पत्नी किसी अपराधिक मामले की दोषी होकर भी फैमिली पेंशन की हकदार है। हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को दो माह के भीतर याचिकाकर्ता को लंबित वित्तीय लाभ तथा फैमिली पेंशन जारी करने का आदेश जारी किया है।

2 साल की उम्र में गई आंखों की रोशनी,आईएएस

2 साल की उम्र में चली गई आंखों की रोशनी, पहली बार में यूपीएसी परीक्षा पास कर हरियाणा का राकेश बना आईएएस अधिकारी
राणा ओबराय  
चंडीगढ़। कहते है, कि अगर दिल में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो और मजबूत हौसला हो तो उसकी कभी भी हार नहीं होती। दूनियां में ऐसे बहुत से लोग हैं। जिसको इस समाज ने नकारा समझा था। और उन लोगों ने कामयाबी हासिल करके उनको गलत साबित कर दिया। आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं। क्यों कि उन लोगों को कही से प्रेरणा जरूर मिली हैं। सफलता की कई कहानियां न सिर्फ आपको आकर्षित करती हैं। बल्कि भीतर से जज्बे और जुनून से भर देती हैं। ऐसी ही एक कहानी है। दृष्टिबाधित आईएएस राकेश शर्मा की जिन्होंने पहले ही प्रयास में यूपीएससी पास कर न सिर्फ अपने परिवार का नाम रोशन किया। बल्कि यह भी दिखा दिया कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती है। राकेश को देखकर कभी लोगों ने उनके परिवार से कहा था। कि इनको अनाथ आश्रम छोड़ दो। लेकिन लोगों की बातों से बिना इत्तेफाक रखे परिवार ने बेटे का पूरा साथ दिया और इस मुकाम तक पहुंचने में मदद की। राकेश हरियाणा के भिवानी जिले में स्थित एक छोटे से गांव सांवड़ के रहने वाले हैं। राकेश की दो साल की उम्र में ही आंखों की रोशनी चले गई। लेकिन परिवार का धैर्य और आत्मविश्वास कभी नहीं टूटा। परिवार के साथ ही राकेश ने भी कभी हार नहीं मानी। लोगों ने उनकी स्थिति देखकर परिवार से कहा कि उन्हें आश्रम में डाल दें ताकि ठीक से परवरिश हो सके। लेकिन परिवार ने राकेश को आम बच्चे की तरह पाला और हमेशा उनकी हिम्मत बढ़ाई। राकेश ने अपनी आंखें दवा के रिएक्शन की वजह से खोई थी। परिजनों ने राकेश का इलाज भी करवाया पर कुछ फायदा नहीं हुआ और उनका विजन पूरी तरह से चला गया। राकेश को उनकी स्थिति देखकर सामान्य स्कूल में दाखिला नहीं मिला। जिसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई स्पेशल स्कूल में की। बारहवीं स्पेशल स्कूल से पास करने के बाद राकेश ने दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। जहां से उनके आत्मविश्वास को काफी मजबूती मिली। उनका कहना है। कि दिल्ली विश्वविद्यालय में होने वाली एक्टिविटीज और शिक्षक व साथियों के प्रोत्साहन से वे न केवल जीवन के तमाम पहलुओं से वाकिफ हुए, बल्कि उनके भीतर कुछ बड़ा करने की इच्छा ने भी जन्म लिया। दिल्ली नॉलेज ट्रैक से बातचीत करते हुए राकेश ने कई बातें साझा की हैं। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा तैयारी से लेकर अपने जीवन के पहलुओं पर खुलकर बताया। राकेश ने साल 2018 में पहले ही प्रयास में युपीएसी की परीक्षा में सफलता पाई और आईएएस बने। वह बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए और सोशल वर्क में मास्टर्स करने के बाद उन्होंने आईएएस बनकर देश सेवा की ठानी। उन्होंने समाज में बदलाव के लिए आईएएस बनने का सपना देखा जो कि पूरा हुआ। अपनी मेहनत के बदौलत वह पहले ही प्रयास में 608 रैंक हासिल कर आईएएस बन गए। राकेश कहते हैं। कि माता-पिता की कृपा की वजह से ही वह यहां पहुंचे हैं। उनको शिक्षकों का भी भरपूर सहयोग मिला। दिन-रात की मेहनत ने यूपीएससी में सफलता दिलाई।

बिनाण खाप का फैसला, 52 गांवों का समर्थन

किसान आंदोलन को लेकर बिनाण खाप का बड़ा फैसला, 52 गांवों ने दिया समर्थन

जींद। गांव दनौदा के बिनैण खाप के ऐतिहासिक चबूतरे पर किसान आंदोलन को लेकर 52 गांवों के लोगों की महापंचायत हुई। महापंचायत में दनौदा तपा, धमतान तपा, कालवन तपा के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। महापंचायत में शामिल लोगों से सुझाव मांगे गये। जिस पर लोगों ने किसान आंदेालन में अलग-अलग विचार दिए। बिनैण खाप के हर गांव में सभी घरों पर भाकियू का झंडा व तिरंगा झंडा लगाया जाएगा। अध्यक्षता बिनैण खाप के प्रधान नफे सिंह नैन ने की तथा मंच संचालन प्रैस प्रवक्ता रघबीर नैन ने किया।
बिनैण खाप के प्रधान नफे सिंह नैन ने कहा कि किसान आंदोलन मजबूती के साथ चलता रहेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा मत करना। क्योंकि उन्होंने पहले कोई बात नहीं की। उन्होंने कहा कि आरएसएस से जुड़े लोगों को अपने बीच में नहीं आने देना, क्योंकि वे किसानों की बातें सुनकर ऊपर तक पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि मुकेश अंबानी की पत्नी 3 लाख रुपये के कप में चाय पीती है। और अरबों रुपये का बंगला में रहती है। ये किसानों की जमीन खरीदेंगे और उनको ही गुलाम बनाएंगे। वहीं हमें महंगे दाम पर सामान देंगे।
कालवन तपा के प्रधान फकीरचंद ने कहा कि हमें अनाज मंडी के आढ़तियों को भी आंदोलन में शामिल करना चाहिए, क्योंकि तीन कृषि कानून लागू होने से उनको ही ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा। इसलिए जिन किसानों के आढ़ती हैं। उनको समझाएं कि यह लड़ाई उनकी भी हैं। जिला पार्षद मोनू दनौदा ने कहा कि यह किसान आंदोलन सबसे बड़ा आंदोलन बनकर उभरा है। क्योंकि इस आंदोलन में हर धर्म, जाति के लोग शामिल हुए हैं। उन्होंने कहा कि मजदूर किसान से जुड़ा हुआ है। अगर किसान के पास जमीन नहीं रहेगी तो मजदूर के पास रोजगार कैसे रहेगा। उनकी खाप जो भी जिम्मेदारी लगायेगी, तो वह तन-मन-धन से साथ देगा।
प्रेस प्रवक्ता रघबीर नैन ने कहा कि हर जाति, धर्म के लोग बढ़-चढ़कर सरकार के खिलाफ आंदोलन में भाग ले रहे हैं। महापंचायत में शामिल मुस्लिम, ब्राह्मण समाज सहित 36 बिरादरी के लोगों ने भी किसान आंदोलन में हर बच्चे की कुर्बानी देने की बात कही है। इस अवसर पर धमतान तपा प्रधान डॉ. प्रीतम, बलवान दनौदा, बिट्टू नैन, मनदीप दनौदा, बलबीर लौन, ईश्वर खरल, पुरुषोत्तम शर्मा, रत्न सिंह जैलदार, अमर नैन, चांद बहादुर, डा. रामचंद्र, अंग्रेज नैन, मेहर सिंह, कुलदीप आदि मौजूद रहे।
महापंचायत में चार प्रस्ताव हुए हाथ उठाकर पास
बिनैण खाप से प्रत्येक गांव, मोहल्ले से हर धर्म, जाति के लोग दिल्ली बॉर्डर पर जायेंगे। बॉर्डर पर जाने वाले लोगों की समय-समय पर बदली की जायेगी। किसान आंदोलन में बिनैण खाप की अहम भूमिका रहेगी।
गाँवों में हर घर पर किसान यूनियन का झंडा लगाया जायेगा और किसी पार्टी के झंडा हो, उसको उतार लिया जायेगा। किसान यूनियन के साथ तिरंगा झंडा लगाया जाये, तो वे बेहतर रहेगा।आँदोलन में बिनैण खाप अनुशासन में रहेगी। खाप का कोई भी आदमी अनुशासनहीनता नहीं करेगा। प्रधान की बातों पर अमल करेगा। कोई भी व्यक्ति झगड़े की पहल नहीं करेगा।
हर गांव, मोहल्ले से ज्यादा से ज्यादा संख्या में ट्रैक्टर जायेंगे। खाप का हर बच्चा जाति, धर्म और गोत्र से ऊपर उठकर किसान धर्म अपनायेंगे। किसानों से किला वाइज पैसे इकट्ठे किये जायेंगे, जिन गरीब लोगों के पास साधन नहीं हैं। उनको साधन मुहैया करवाए जायेंगे। जो भी बिना जमीन का है। अपनी बिरादरी के नौकरी वालों से चंदा इकट्ठा करेंगे। जो भी चंदा इकट्ठा किया जायेगा, वो गाडिय़ों पर खर्च किया जाएगा और भंडारे में सामान पहुंचाया जाएगा।
पूनिया खाप अर्धनग्न होकर दिल्ली कूच करेगी
सर्वजातीय पूनिया खाप की बैठक रविवार को अर्बन एस्टेट स्थित जाट धर्मशाला में हुई। जिसकी अध्यक्षता खाप के राष्ट्रीय प्रवक्ता एडवोकेट जितेंद्र छातर ने की। खाप ने 36 बिरादरी से 66 दिन से चल रहे किसान आंदोलन में भाग लेने की अपील की। केंद्र सरकार को तुरंत प्रभाव से कृषि कानून पर संसद में पुनर्विचार करके कानून वापस लेने चाहिए। छातर ने कहा कि सर्वजातीय पूनिया खाप अर्धनग्न होकर हजारों की संख्या में दिल्ली कूच करेगी। बैठक में जींद के प्रधान कृष्ण पूनिया सरपंच, जिला कैथल के प्रधान मान सिंह पूनिया, हिसार के प्रधान नरेश पूनिया सरपंच, आजाद पूनिया, सोनी, भागल, कर्ण, सूबेदार प्रताप, महेंद्र, सुबेर पूनिया कोयल आदि मौजूद रहे।

नशीली दवा देकर नौकर करता था रेप, कड़ी सजा

मालकिन को चाय में नशीली दवा देकर नौकर करता था दुष्कर्म, खुलासा होने पर आरोपी को मिली कड़ी सजा

मेदिनीपुर। मालकिन को चाय में नशीला पदार्थ पिला कर उसके साथ दुष्कर्म करने के मामले में शनिवार को प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह विशेष न्यायाधीष मोतीश कुमार ङ्क्षसह ने आरोपित नौकर को बीस वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। 
न्यायाधीश ने दुष्कर्मी नौकर द्वारा मालकिन के साथ दुष्कर्म करने की घटना का वीडियो बनाकर उसे वायरल करने का भय दिखाकर लाखों रुपये ऐंठने के लिए आरोपित को तीन वर्ष की सजा सुनाई। सजा के अलावा साठ हजार रुपया जुर्माना अदा करने और नहीं देने पर एक वर्ष साधारण कारावास की सजा भुगतने का फैसला दिया है। यह सजा पश्चिम बंगाल राज्य के पश्चिमी मेदिनीपुर जिला अन्तर्गत मोहनपुर थाना क्षेत्र के एकपुरा निवासी सुकुमार जाना को दी गयी है।
जानकारी के मुताबिक, इस घटना की प्राथमिकी 28 जून 2019 को पीडि़ता के टंकित आवेदन पत्र के आधार पर सदर थाना में दर्ज की गयी थी ।आवेदन में कहा गया था कि उपरोक्त तिथि से कुछ माह पूर्व पीडि़ता के पति की पोङ्क्षस्टग गया जिला में थी। आरोपित उसके घर में नौकर के रूप में काम करता था। एक दिन जब उसका पति आफिस एवं बच्चे स्कूल चले गये थे। तो उसने आरोपित को चाय बनाने को कहा।आरोपित ने चाय में नशीला पदार्थ मिला दिया। जिसे पीने के बाद वह बेहोश होकर पलंग पर गिर गयी। 
बेहोशी की हालत में आरोपित नौकर ने उसके साथ दुष्कर्म कर इसकी वीडियो बना ली और घर से चला गया। होश आने पर उसे घटित घटना का एहसास हुआ। डर से महिला ने अपने पति को नहीं बतायी। अगले दिन आरोपित पुन काम करने आया और पीडि़ता को अकेला पाकर उसे वीडियो और फोटो दिखाकर उसकी बात मान लेने और नहीं तो इसे सोशल मीडिया एवं वाट्सएप पर वायरल कर देने की धमकी दी।

आजकल तिरंगे पर बड़ा आंसू बहा रहे हैं कुछ लोग

जो लोग 2002 तक अपने कार्यालय पर कभी तिरंगा नहीं फहराते थे... वही आजकल तिरंगे पर बड़ा आंसू बहा रहे हैं। 
अकांशु उपाध्याय  
नई दिल्ली। जो लोग 2002 तक अपने कार्यालय पर कभी तिरंगा नहीं फहराते थे। वही आरएसएस वाले आजकल तिरंगे पर बड़ा आंसू बहा रहे हैं। इससे कौन सहमत नहीं होगा कि तिरंगे का अपमान नहीं होना चाहिए लेकिन पिछले 80 सालों में तिरंगे का संघ परिवारियों से ज्यादा अपमान किसी ने नहीं किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुद 2002 तक अपने नागपुर कार्यालय पर तिरंगा नहीं फहराता था। इसका जवाब इन्होंने आज तक नहीं दिया। साल था... 2001. 26 जनवरी को नागपुर के आरएसएस मुख्यालय में राष्ट्रप्रेमी युवा दल के तीन युवक घुस गए और तिरंगा फहराने का प्रयास किया. ये तीनों थे। बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी। इन तीनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और 12 साल तक मुकदमा चला। उनका अपराध ये था। कि गणतंत्र दिवस पर आरएसएस का तिरंगा झंडा न फहराना उन्हें बुरा लगता था और वे खुद ये काम करने आरएसएस के कार्यालय गए थे। इन तीनों को अगस्त 2013 में नागपुर की एक अदालत ने बाइज्जत बरी किया। इस कांड के बाद 2002 में आरएसएस मुख्यालय पर तिरंगा झंडा फहराया जाने लगा। सवाल ये है। कि आजादी से लेकर 2002 तक आरएसएस के लोग खुद ​अपने मुख्यालय ​पर तिरंगा क्यों नहीं फहराते थे। क्या 2002 के पहले तिरंगा भारत का राष्ट्रध्वज नहीं था। या फिर आरएसएस खुद देशभक्त नहीं था।
क्या आरएसएस तिरंगा इसलिए नहीं फहराता था। क्योंकि आजादी के समय से ही वह भारतीय संविधान और राष्ट्रीय झंडे के खिलाफ था। क्या इसलिए कि इनके गुरु गोलवलकर भारत के तिरंगे झंडे को अशुभ बता चुके थे।  जो खुद दो दशक पहले तक तिरंगा नहीं फहराते थे। वे रिटायर्ड फौजियों और किसानों ने देशभक्ति का सबूत मांगे तो ये बात बेहद अश्लील लगती है। 
जब देश आजाद हुआ। तब भारत के संविधान और तिरंगे झंडे के खिलाफ आरएसएस ने देश भर में अभियान चलाया था। तिरंगे झंडे के खिलाफ आरएसएस और हिंदू महासभा के नेता आग उगलते घूम रहे थे। आरएसएस के सरसंघचालक गोलवलकर ने गुरु पूर्णिमा पर एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था। ‘सिर्फ और सिर्फ भगवा ध्वज ही भारतीय संस्कृति को पूरी तरह प्रतिबिंबित करता है। हमें पूरा यकीन है। अंतत पूरा देश भगवा ध्वज के सामने ही अपना सिर झुकाएगा 
गोलवलकर का कहना था। यह (तिरंगा) कभी भी हिंदुओं के द्वारा न अपनाया जायेगा और न ही सम्मानित होगा। तीन का शब्द तो अपने आप में ही अशुभ है। और तीन रंगों का ध्वज निश्चय ही बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा और देश के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। हिंदू महासभा के नेता वीडी सावरकर ने संविधान सभा में कहा था। भारत का प्रतीक सिर्फ भगवा-गेरू रंग ही हो सकता है। अगर किसी झंडे में ‘कम से कम एक पट्टी भी भगवा नहीं होगी तो हिन्दू उसे अपना झंडा नहीं मानेंगे। आजादी के बाद भी इनकी ये हरकत जारी रही। आरएसएस ने कभी भी तिरंगे को भारतीय राष्ट्र का ध्वज नहीं माना था। लेकिन 2002 के केस के बाद वे देशभक्त बन गए और अब दूसरों से देशभक्ति का प्रमाण मांगते फिरते हैं। गांधी की हत्या में संलिप्तता के मामले में सरदार पटेल ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये प्रतिबंध हटाया गया तो पटेल ने आरएसएस के सामने शर्त रखी थी। कि यह संगठन तिरंगे को राष्ट्रध्वज मानेगा और संविधान का सम्मान करेगा। ऐसे लोग आज भारत के आम किसानों की देशभक्ति पर सवाल उठा रहे हैं। ये सही है कि तिरंगे का सम्मान करना चाहिए। लेकिन ये लेख लिखने तक दिल्ली में आपकी ही सरकार है। लाल किले पर जिसने तिरंगे के पास दूसरा ध्वज फहराया, उसे पकड़ा क्यों नहीं गया? इसका जवाब सीधा सा है। कि कभी वे तिरंगे के खिलाफ लोगों को उकसाते थे। आज तिरंगे की आड़ लेकर लोगों को उकसा रहे हैं।
वे देश के किसानों और रिटायर्ड जवानों को खालिस्तानी और पाकिस्तानी बताने जैसा मूर्खतापूर्ण बकवास कर रहे हैं। लेकिन संघियों को पहले खुद इस बात का जवाब देना चाहिए 2002 के पहले तिरंगा भारतीय राष्ट्र का राष्ट्रध्वज नहीं था। या फिर आरएसएस देशभक्त नहीं था। देश के साथ छलप्रपंच आरएसएस, महासभा और मुस्लिम लीग जैसे संगठन करते हैं। आज ये काम राजनीतिक दल कर रहे हैं। 
भारत के किसानों, मजदूरों और आम लोगों ने तिरंगा अपने लहू की कीमत पर हासिल किया है। मुझे यकीन है। कि जिस दिन उस पर खतरा आएगा, लाखों करोड़ों भारतीय बिना कहे फिर से बलिदान देने को तैयार हो जाएंगे। जिन किसानों के बीच आप खालिस्तानी खोज रहे हैं। उनके बेटे अब भी सीमा पर पहरा दे रहे हैं। जिन्हें इन तथ्यों पर संदेह हो वे शम्सुल इस्लाम, सुभाष गाताडे और सौरभ वाजपेयी जैसे विद्वानों के लेख गूगल कर लें या उनकी किताबें मंगवा लें।

पत्रकार यूनियन के चुनाव संपन्न, इन्हें दी कमान

हरिद्वार: देवभूमि पत्रकार यूनियन के चुनाव संपन्न, इन्हें मिली जिले की कमान
पंकज कपूर  
झबरेड़ा (हरिद्वार)। सोमवार को यहां हुए देवभूमि पत्रकार यूनियन, रजि. के सर्वसम्मत चुनाव में जिला हरिद्वार इकाई के लिए जिला अध्यक्ष पद पर दुष्यंत शर्मा तथा जिला महासचिव पद पर रोहित राणा को चुना गया। उक्त घोषणा करते हुए चुनाव अधिकारी घनश्याम गुप्ता (प्रधानाचार्य, नेशनल कन्या इंटर कालेज,( खानपुर) ने कहा कि उक्त के अलावा सुनील कुमार शर्मा- उपाध्यक्ष, गगन कुमार- प्रचार मंत्री एवं दिनेश कुमार, अमर मौर्या, अनिल त्यागी, प्रमोद कुमार, हनीफ सलमानी व श्रवन गिरी सदस्य कार्यकारिणी चुने गए। सदन ने नवनिर्वाचित अध्यक्ष व महासचिव को अधिकृत किया कि वे परस्पर सहमति से कार्यकारिणी के शेष पदों पर मनोनयन कर 21 सदस्यीय कार्यकारिणी संस्तुति हेतु प्रदेश मुख्यालय को प्रेषित करें। सदन ने सर्वसम्मति से वरिष्ठ पत्रकार श्रीगोपाल नारसन (एडवोकेट) को संरक्षक घोषित किया, जिसका सभी उपस्थित पत्रकारों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। साथ ही चुनाव सम्पन्न कराने हेतु चुनाव अधिकारी श्री घनश्याम गुप्ता का भी आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष विजय जायसवाल व संचालन प्रदेश महासचिव डॉ. वी.डी. शर्मा ने किया। कार्यक्रम में उक्त के अतिरिक्त सर्वश्री अनिल वर्मा – प्रदेश उपाध्यक्ष, रवि अरोड़ा प्रदेश सचिव व शशिकांत मिश्रा- प्रदेश प्रचार मंत्री, दीपक गुलानी- जिला महासचिव देहरादून, नीलेश, प्रमोद कुमार (राष्ट्रीय सहारा), सुनील कुमार शर्मा (कलयुग का तहलका), रोहित कुमार (न्यूज इंडिया चैनल व दैनिक भाष्कर), पुष्पेंद्र कुमार (साधना प्लस न्यूज़ चैनल), गगन धीमान (साधना प्लस), दिनेश कुमार (फ़ास्ट न्यूज़), अमर मौर्य (न्यूज़ चैनल), डाल चंद्र (एच एन एन, न्यूज़ चैनल), अनिल कुमार त्यागी ( बद्री विशाल), हर्ष हसीन (रूड़की) सौरभ गुप्ता (अभिप्रेरणा – रुड़की) आदि उपस्थित थे। अंत में नवनियुक्त जिला अध्यक्ष दुष्यंत शर्मा ने सभी पत्रकार बन्धुओं का आभार व्यक्त किया।

किसानों की आय पर विपरीत प्रभाव, आंदोलन

अकांशु उपाध्याय   
नई दिल्ली। लगातार हो रहे कृषि कानूनों का विरोध देख सोचा लोगो को इसे समझने-जानने कि आवश्यकता है, जैसा कि सरकार का दावा था। किसानों की आय दोगुनी करने का उसके चलते यह कानून बनाए गए है। किन्तु क्या आप जानते है, कि इन कानूनों का विपरीत असर किसानी और खाद्य सुरक्षा पर हो सकता है तो आइए जानते है। विस्तार से आखिर इन कानूनों का विरोध हो क्यों रहा है ? पहला कानून कृषि ट्रेड एंड फैसिलिटेशन पर आधारित है। अर्थात् जिस तरह से आज ऑनलाइन समान कि बिक्री होती है। उसी तरह किसान को भी अपनी फसल बेचने के रास्ते दिए जा सकते है। इस बिल के अनुसार अब किसान अपनी फसल किसी भी राज्य में बिना किसी टैक्स को दिए बेच सकते है। अब इसका विरोध क्यों करना भला तो ठहरिए, 1155 में लागू हुए एपीएमसी में किसानों को अपनी फसल बेचने पर क्या वाकई नुकसान होता है। इसका उत्तर जरूर हा में दिया जा सकता है। क्योंकि यह लाइसेंस धारी बिचौलिए होते है। जिन्हे किसान अपनी फसल बेचता है। और फिर बिचौलिए इस फसल को ट्रेड कंपनी या मार्केट के दुकानदारों को बेचता है। जिसमे कमाई बिचौलियों की होती है। और किसान को सिर्फ उसकी लागत और थोड़ा बहुत ही मुनाफा मिल पाता है। जिस तरह प्रारंभ में ऑनलाइन समान खरीदने पर डिलीवरी फ्री होती थी। किन्तु अब नहीं होती है। क्योंकि कंपनी धंधा मुनाफे के लिए करती है। सरकार का पक्ष - इस कानून के आ जाने से किसान अपनी फसल किसी भी राज्य में प्राइवेट मंडियों में बेच सकता है। हालाकि किसानों को अभी भी दूसरे राज्यों में जाकर अपनी फसल बेचने का अधिकार है। मगर बिचौलिए सिर्फ अपने लाइसेंस अधिकृत एपीएमसी में ही बेच और खरीद सकता है।
विपरीत असर - इस कानून के लागू होने के बाद धीरे धीरे एपीएमसी का उपयोग ना होने से उन्हें बंद होने की संभावना है। फिर किसानों के पास सिर्फ प्राइवेट मंडी ही बचेगी जहा उसे अपने मन मुताबिक दाम नहीं मिलेंगे और मजबूरी में किसानों को फसल को कंपनी के अनुसार दिए दामो पर बेचना होगा। एक राज्य से दूसरे राज्यों में कई किलोमीटर दूर अपनी फसल ले जाने के बाद खर्चों का वहन किसे करना है। यह पता नहीं होगा, सरकार अपने पक्ष में कह रही है। कि एपीएमसी बंद नहीं होगी मगर इसका कोई लिखित प्रावधान नहीं है। इससे एमएसपी की भी कोई गारंटी नहीं होगी की अगर कोई कंपनी फसल की लागत से कम दाम दे तो किसानों के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं होगा अपनी फसल बेचने का। साथ ही राज्यों को मिलने वाला टैक्स भी समाप्त हो जाएगा जो उसे मंडियों के माध्यम से मिलता है।
आम जनता पर असर मंडियों में काम करने वाले मजदूर, अकाउंटेंट, सफाईकर्मी, ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों के पास रोज़गार जाने की पूरी संभावना है। जनता को पैकिंग फूड खरीदने के लिए विवश होना पड़ेगा जो कि उसे महंगे दामों में मिलने की संभावना होगी। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग - कृषि कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लीगल करके किसानों को अधिकार दे रही है। कि जिन फसलों का दाम उसे सही मिले या जिस कंपनी से उसका कॉन्ट्रैक्ट होगा उसी फसल की खेती करे। किसान कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर सकता है। मगर कंपनी नहीं कर सकती है। विपरीत असर - जब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की जाएगी तो 85 प्रतिशत किसान जो की छोटे किसान है। अर्थात् 2 एकड़ से कम  के मालिक है। या लीज़ पर जमीन लेकर किसानी मजदूरी का काम करते है। जो की बहुत ज्यादा फसल नहीं उगा पाएंगे और उन्हें बड़े किसानों या बिचौलियों के साथ जुड़कर है। अपनी फसल को बेचना पड़ सकता है। अगर किसी भी प्रकार का घोटाला होता है। तो राजस्व विभाग का एसडीएम ही उनके केस का निर्णय करेगा और राजस्व विभाग का भ्रष्टाचार किसी से छुपा नहीं है। इससे घोटाले बड़ सकते है और किसानों के शोषण कि भी संभावना है। अगर किसान के साथ कोई बेईमानी होगी तो कितने समय में उसका निराकरण होगा। साथ ही मौसम के कारण हुए नुकसान का क्वालिटी पर असर होगा और किसानों को नुकसान होगा उन्हें उस फसल की एमपीएस भी नहीं दी जाएगी जो दाम कंपनी देगी वह लीगल होगा। आम जनता पर असर - जिन फसलों के दाम किसानों को अच्छा मिलेंगे वे उसी की खेती करेंगे और यह पूर्व में ही फसल को खरीदने का कॉन्टैक्ट होगा जिससे आम जनता को वहीं खरीदना पड़ेगा और इतना ही दाम देना होगा जो कंपनी चाहती है। बड़ी कंपनी में अधिकतर कार्य मशीनों से होते है। इससे बेरोज़गारी बड़ सकती है । एसेंशियल, स्टोरेज - सरकार ने इस कानून में अनिश्चित मात्रा तक कंपनियों को स्टोरेज करने की सुविधा दी है। वह किसानों से खरीद कर अपने पास स्टोर कर सकती है। विपरीत असर इस कानून के जरिए देश में कालाबाजारी बड़ सकती है। कंपनिया तय करेगी कि फ़सल को किस दाम पर देश में बेचना है। कंपनियों का एकाधिकार है। जाएगा और अधिक भाव देकर जनता को चीजे खरीदना पड़ेगी महंगाई सातवे आसमान पर पहुचनें की संभावना होगी। जिस वर्ष कंपनी के पास स्टोक में पर्याप्त मात्रा में फसल होगी उस वर्ष किसानों को सही दाम ना मिलने की भी संभावना है।
यह बात जरूर है। कि एपीएमसी या कृषि मंडियों में कमिया जरूर है मगर उन्हें रिफार्म करने की  जरूरत है ना कि दूसरी प्राइवेट मंडियों को लाना। 
आम आदमी और किसानों के तौर पर सोचिए और फैसला कीजिए, क्या यह कानून सही है।

'मतदाता जागरूकता' अभियान रैली का आयोजन

'मतदाता जागरूकता' अभियान रैली का आयोजन   मतदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए स्कूली बच्चों ने निकाला रैली कौशाम्बी। एन डी कान...