शुक्रवार, 21 मई 2021
2 अज्ञात बदमाशों ने गोली मारकर हत्या की, लोनी
गाजियाबाद: 26 दिन बाद जिले की कमान संभाली
अश्वनी उपाध्याय
गाजियाबाद। कोरोना वायरस महामारी ने हर ओर कहर बरपाया हुआ है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के तमाम प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच खुद जिले के मुखिया यानी जिलाधिकारी कोरोना के शिकार हो गए थे। अब करीब 26 दिन बाद कोरोना को मात देने के बाद जिलाधिकारी अजय शंकर पांडेय ने दोबारा जिले की कमान संभाल ली है।
अजय शंकर पांडेय पिछले महीने 24 अप्रैल को कोरोना वायरस की चपेट में आ गए थे। जिसके बाद उन्हें बुखार हुआ और सांस में लेने की तकलीफ हो रही थी। डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें कौशांबी के यशोदा हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। हॉस्पिटल में अजय शंकर पांडे को आईसीयू रूम मुहैया कराया गया था लेकिन तबीयत थोड़ा ठीक होने पर जिलाधिकारी ने अपना आईसीयू बेड छोड़ दिया। जिलाधिकारी ने तत्काल आईसीयू बेड किसी और जरूरतमंद को देने के लिए कहा, स्वयं के लिए सिंगल रूम भी मना कर दिया और सेमी प्राइवेट रूम में एक अन्य कोविड पॉजिटिव मरीज के साथ कमरा साझा किया।जिलाधिकारी अजय शंकर पांडे को इसी महीने की 6 मई 2021 को यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल से कोविड नेगेटिव होने के साथ ही छुट्टी दे दी गई। ख़ास बात यह रही कि जिलाधिकारी पांडेय इस दौरान भी अपने फोन, वीडियो कॉलिंग एवं इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से बैठकें करते रहे. यूं तो जिलाधिकारी की गैरमौजूदगी में GDA के वीसी और आईएएस कृष्णा करुणेश चार्ज संभाल रहे थे लेकिन अस्पताल से भी अजय शंकर पांडे का काम जारी था।
आपको बता दें कि गाजियाबाद के जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी के साथ ही एडीएम प्रशासन संतोष कुमार वैश्य, जिला पूर्ति अधिकारी डॉ. सीमा, अपर नगर मजिस्ट्रेट खालिद अंजुम भी कोरोना से संक्रमित पाए गए थे। जिसके बाद ये अधिकारी घर पर उपचार ले रहे थे। जिले के इन अधिकारियों के अलावा जिला महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. संगीता गोयल, डॉ. कृष्णा, डॉ. संगीता, डॉ. मुकेश, आरपी सिंह, डॉ. आरसी गुप्ता, डॉ. मदन लाल भी संक्रमित पाई गई थीं।
सीएचसी में बरसात का पानी भरने से सेवाएं ठप
अवैध वसूली करते दो एंबुलेंस चालक अरेस्ट किए
दोनों एंबुलेंस चालकों की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि यादव एंबुलेंस सर्विस का मालिक अशोक कुमार यादव और सांई एंबुलेंस सर्विस का मालिक हरिओम यादव भाई-भाई हैं। दोनों के पास 11 एंबुलेंस हैं, जिनका वे संचालन कर रहे हैं। लेकिन पकड़ी गई दोनों एंबुलेंस का पंजीकरण एंबुलेंस के रूप में नहीं करवाया गया हैं। आरोपितों के कार्यालय पर भी पुलिस ने दबिश दी लेकिन वहां पर अन्य एंबुलेंस और अशोक यादव नहीं मिला। अन्य नौ एंबुलेंस और अशोक यादव की तलाश की जा रही है।
पुण्यतिथि पर राजीव चौक का लोकार्पण किया
चिपको आंदोलन की प्रेरणा बने, बहुगुणा का निधन
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। जाने माने पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन से पहचान बनाने वाले सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार 21 मई को निधन हो गया है। उनकी कोरोना रिपोर्ट पिछले दिनों पॉजिटिव आई थी। हालांकि, गुरुवार शाम तक बहुगुणा की हालत स्थिर थी। उनका ऑक्सीजन सेचुरेशन 86% पर था। डायबिटीज के साथ वह कोविड निमोनिया से पीड़ित थे। 94 वर्षीय बहुगुणा को कोरोना होने पर गत आठ मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। गुरुवार को एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल ने बताया, उनका उपचार कर रही चिकित्सकों की टीम ने इलेक्ट्रोलाइट्स व लीवर फंक्शन टेस्ट समेत ब्लड शुगर की जांच और निगरानी की सलाह दी है। उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा, बहनोई डा.बीसी पाठक ने एम्स में भर्ती करवाया था।बता दें कि देहरादून स्थित शास्त्रीनगर स्थित अपने दामाद डॉ. बीसी पाठक के घर पर रह रहे सुंदरलाल बहुगुणा ने कुछ दिन पहले बुखार आया था। तो घर पर ही डॉक्टरों की निगरानी में उनका इलाज शुरु हो गया था। लेकिन बुखार नहीं उतरने पर तीसरे दिन उन्हें एम्स ले जाने की सलाह दी गई। राजीव ने बताया कि अस्पताल में उनका आरटीपीसीआर टेस्ट व अन्य जांचे की गई थी।इधर उनके पुत्र राजीव नयन ने सोशल मीडिया पर पिता को एडमिट करने की पोस्ट डाली तो देखते ही देखते उनकी यह सूचना वायरल होने लगी थी। सोशल मीडिया पर सैकड़ों की संख्या में उनके प्रशंसकों ने पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा की सलामती की कामना भी की थी।
हिमालय के रक्षक सुंदरलाल बहुगुणा की सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन थी। वह गांधी के पक्के अनुयायी थे और जीवन का एकमात्र लक्ष्य पर्यावरण की सुरक्षा था। उनका जन्म 9 जनवरी, 1927 को उत्तराखंड के टिहरी में हुआ था। सुंदरलाल ने 13 वर्ष की उम्र में राजनीतिक करियर शुरू किया था। 1956 में शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया।
उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला। बाद में उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला। 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया। पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा। चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था। गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे। सुंदरलाल बहुगुणा ने गौरा देवी और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी। 26 मार्च, 1974 को चमोली जिले की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गया।
1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई। सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था। एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था। टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा। उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया। टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कड़ा विरोध किया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वह हिमालय में होटलों के बनने और लग्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी थे। महात्मा गांधी के अनुयायी रहे बहुगुणा ने हिमालय और पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कई बार पदयात्राएं कीं।
ब्लैक फंगस के मामलों की संख्या-5,500 तक पहुंचीं
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। देश में कोरोना मरीजों की संख्या में कमी आ रही है। हालांकि, कुछ मरीज जो कोरोना पर काबू पा चुके हैं। उनमें म्यूकोर्मिकोसिस पाया गया है। ब्लैक फंगस के मामलों की संख्या 5,500 तक पहुंच गई है। यह बीमारी अब तक 300 से ज्यादा लोगों की जान ले चुकी है।
इससे यह भी पता चलता है कि ब्लैक फंगस अब सीधे दिमाग पर हमला कर रहा है। गुजरात के सूरत में यह अपनी तरह का पहला मामला है। इससे स्वास्थ्य व्यवस्था में चिंता बढ़ गई है। सूरत में एक 23 वर्षीय व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हुआ था। युवक ने समय पर इलाज कराकर कोरोना पर काबू पा लिया।
लेकिन फिर उन्हें ब्लैक फंगस म्यूकोर्मिकोसिस हो गया। अब तक ब्लैक फंगस फेफड़ों और आंखों को खतरे में डाल रहा था। लेकिन अब ब्लैक फंगस सीधे दिमाग तक पहुंच गया है। इलाज करने वाले डॉक्टर ने कहा कि यह पहली बार था जब उन्होंने इस प्रकार फंगस को देखा। डॉक्टरों ने मरीजों से ज्यादा सतर्क रहने की अपील की है। क्योंकि ब्लैक फंगस सीधे दिमाग में पहुंच गया है। मरीजों का एमआरआई स्कैन होना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि दिमाग में ब्लैक फंगस के पहुंचने की जानकारी व्यक्ति को चक्कर आने या बेहोश होने के बाद ही समझ आती है। डॉक्टरों ने कहा कि ब्लैक फंगस सूरत के एक युवक के दिमाग में खून के जरिए पहुंचा होगा। विशेष रूप से इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के दिशानिर्देशों में भी चक्कर आना या सिर में सूजन का उल्लेख नहीं है।
वैज्ञानिकों ने उगाया दुनिया का सबसे महंगा मशरूम
श्रीराम मौर्य
गांधीनगर। गुजरात के वैज्ञानिकों ने दुनिया का सबसे महंगा मशरूम उगा लिया है। कोर्डीकेप्स मिलिटर्स के इस मशरूम में एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी डायबिटिक, सूजन रोधी, कैंसर रोधी, मलेरिया रोधी, थकान रोधी, एचआईवी रोधी और एंटी वायरल गुण हैं। सेहत के लिए बेहद गुणकारी यह मशरूम शरीर में ट्यूमर के आकार को कम करने में मदद भी करता है। इस मशरूम की 1 किलो मात्रा की कीमत करीब 1.50 लाख रुपए है। कच्छ के गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डिजर्ट इकोलोजी के वैज्ञानिकों ने कोर्डीकेप्स मिलिटर्स को 90 दिनों के अंदर लैब के नियंत्रित वातारण में उगाया। उन्होंने 35 जार में इस मशरूम को उगाया है। पता चला है कि मशरूम की इस प्रजाति का इस्तेमाल चीन और तिब्बत की प्राकृतिक दवाइयों में लंबे समय से होता रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक संस्थान के डायरेक्टर वी.विजय कुमार ने बताया, ‘मशरूम की कोर्डीकेप्स मिलिटर्स प्रजाति को हिमालयीन सोना कहा जाता है। इसका सेवन करने से सेहत को कई लाभ होते हैं। साथ ही यह कई बीमारियों को रोकने में बहुत मददगार है।’ यह मशरूम शरीर में ट्यूमर को होने से रोकता है और यदि ट्यूमर हो जाए तो उसके आकार को कम करने में मदद करता है। शुरुआती अध्ययन में पता चला है कि इस मशरूम का अर्क महत्वपूर्ण नतीजे दे सकता है। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक कार्तिकेयन ने बताते हैं, ‘लोगों पर मेडिकल ट्रायल करने के लिए नियामक मंजूरी मांगी गई है। हम इस मशरूम का अतिरिक्त प्रभाव प्रोस्टेट कैंसर पर भी खोज रहे हैं। हालांकि, कोविड-19 महामारी के चलते इसमें देरी हो गई है।’ वैज्ञानिकों की योजना है कि वे भारतीय परिस्थिति में इस प्रजाति के कैंसर रोधी और एंटी वायरल गुणों की जांच करें। ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में इसे उपयोगी पाने के बाद संस्थान ने अब कारोबारियों को इसका प्रशिक्षण देने का फैसला किया है। ताकि इस मशरूम की खेती की जा सके। वैसे तो लैब में इस मशरूम की खेती के एक हफ्ते के प्रशिक्षण का शुल्क एक लाख रुपये है। लेकिन संस्थान सामान्य शुल्क पर प्रशिक्षण देगा। बता दें कि इस रिसर्च टीम में निरमा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जिगना शाह और गाइड वैज्ञानिक जी जयंती भी शामिल थे।
भारत को 8 करोड़ वैक्सीन देगा, पहले भी मदद की
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। भारत में जानलेवा कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच अमेरिका की तरफ से भारत को कोरोना टीके की आठ करोड़ डोज देने की खबर है। हालांकि विदेश मंत्रालय ने कहा है कि सरकार अमेरिका से संपर्क में है, लेकिन अभी तक भारत को मिलने वाली डोज़ की जानकारी नहीं है। भारत को आठ में से छह करोड़ वैक्सीन देने की मांग उठ चुकी है।
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रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा 16.37 लाख के पार हुआ
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