शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

'सारस' पक्षी ने कई वर्षो से भारत आना बंद किया

'सारस' पक्षी ने कई वर्षो से भारत आना बंद किया 

अखिलेश पांडेय/नरेश राघानी 

टोमस्क/उदयपुर/जयपुर। सर्दियों में आने वाली साईबेरियन सारस पक्षी ने कई वर्षो से भारत आना बंद कर दिया है। पक्षी विशेषज्ञ एवं पूर्व वन संरक्षक डा सतीश शर्मा के अनुसार संसार में क्रेनों की 15 प्रजातियां ज्ञात है जो तीन वशों एन्टीगोन, बालिएरिका तथा ग्रूस में सम्मिलित की गई हैं। ज्ञात 15 प्रजातियों में कभी 5 भारत में मिलती थी लेकिन कई वर्षो से साइबेरिया क्षेत्र से सर्दियों में आने वाली साईबेरियन सारस ने आना बंद कर दिया और हमारे देशो में केवल 4 सारस या क्रेन प्रजातियां ज्ञात है। साईबेरियन सारस राजस्थान के केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान में आती थी लेकिन अब वे नहीं आ रही है।

उन्होंने बताया कि जानी पहचानी सारस क्रेन जिसे वैज्ञानिक भाषा में ग्रूस एन्टीगोन कहते है, स्थानीय प्रजाति है तथा देश छोड कर नहीं जाती। काली गर्दन की सारस की संख्या जम्मू कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षैत्रों में गर्मी में तो उत्तर पूर्व भारत में सर्दी में पहुंचती है। कुरजां (ग्रूस विरगो) तथा कॉमन क्रेन (ग्रूस-ग्रूस) हमारे यहां हिमालय के उस पार के सूदूर क्षेत्रों में सर्दी की ऋतु में देशान्तर गमन कर अक्टूबर के आस-पास आने लगती है तथा फरवरी मार्च में गर्मी प्रारंभ होने पर प्रवास समाप्त कर वापस लौट जाती है। कुरजां को राजस्थान का जन-जन जानता है।

जोधपुर जिले का खीचन गांव कुरजां प्रवास के लिये न केवल देश बल्कि विदेशों में भी जाना जाता है। खीचन के लोग बडे स्नेह व आत्मीयता से सदियों से कुरजां के प्रवास को सुरक्षित एवं यादगार बनाते आ रहे है। खीचन में उनके रहने तक उनको भोजन के रुप में नियमित चुग्गा दिया जाता है। कुरजां के साथ कॉमन क्रेन को भी देखा जा सकता है। ये दोनो क्रेन बडे झूण्ड बनाकर रहने, उड़ने, खाना खाने एवं आराम करने की प्रवृति रखती है। क्रेन या सारस जब उड़ान भरती है तो यह अपनी गर्दन आगे एवं पैर पीछे की तरफ लम्बे फैलाकर उड़ते है। उड़ान में पंक्ति या वी आकार में उड़ने से ये अपना ईंधन बचाती है।

क्रेन अपना जोड़ा बनाने के बाद वफादारी से स्थायी रिश्ते निभाते है। कहते है जोड़े में एक की मृत्यु होने पर दुसरा साथी खाना पीना छोड मृत्यु को गले लगा लेता है। इसी प्रवृति के कारण न केवल भारत में बल्कि दूसरे देशों में भी क्रेनों को आदर दिया जाता है। हिमालय के उस पार बौध धर्म के अनुयायी भी क्रेनों का आदर करते है। हमारे धर्म ग्रंथों एवं लोक गीतों में सारस एवं कुरजा की बडी महिमा है। 

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