शनिवार, 30 जनवरी 2021

मुसलमान नारों को दरकिनार कर, भीड़ को बढ़ाएं

मोहम्मद जाहिद 

नई दिल्ली। एक होती है बुद्धी और दूसरी होती है "जड़बुद्धी"। जो लोग कह रहे हैं कि किसान आंदोलन में मुसलमानों के शामिल होने से आंदोलन कमज़ोर हो जाएगा। वह पिछले अनुभवों के आधार पर कुछ हद तक तो सही हैं पर ऐसे लोग "जड़बुद्धी" वाले लोग हैं। ऐसे लोग इतिहास के कब्र को सीने में दबाए सोचते रहते हैं। जबकि आज का दौर बदलती परिस्थीति के अनुसार तौर तरीके और रणनीति बदलने की है। जड़बुद्धी अर्थात "बुद्धी का स्थिर होना" अर्थात कोई नयी क्रिएटिवटी ना कर पाने वाला।

मुसलमानों को किसान आंदोलन में बिल्कुल शामिल होना चाहिए, पर वह मंच और जज़बाती तकरीरों और "नारे तकबीर" जैसे इस्लामिक नारों से दूर रहकर सिर्फ़ भीड़ की संख्या बढ़ाएँ। वह किसान आंदोलन के "चेहरे" नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ "सिर" बनें , भीड़ बनें , और किसान आंदोलन को मज़बूती दें। इससे दो फायदे होंगे , एक तो किसान आंदोलन मज़बूत होगा और बढ़ती भीड़ सरकार की चूलें हिलाएँगी और दूसरा मुसलमानों को राजनैतिक आदोलन करने का ढंग भी आएगा।

दरअसल मुसलमान एक जज़बाती कौम है , उसने दाढ़ी टोपी वाले 25-100 लोगों को अपने साथ देखा तो वह अपने आंदोलन का मकसद भूल कर "नारे तकबीर अल्लाह ओ अकबर" का नारा लगाने लगती है। धार्मिक आयोजन में तो यह सब ठीक है पर सरकार से लड़ाई लड़ने के लिए हो रहे किसी राजनैतिक आंदोलन में ऐसे नारे आंदोलन की विफलता का प्रमुख कारक है क्युँकि आपके राजनैतिक आंदोलन में ऐसे नारों के साथ कोई गैरमज़हब का आपका ही साथी आपके साथ खड़ा नहीं होगा। मौजूदा सरकारें भी ऐसे लगे नारों को उछालकर "तालिबान" ब्ला ब्ला का आरोप लगाकर पूरी मुहिम फुस्स कर देगी। और दूसरी कौमें ऐसे नारे सुनकर आपके विरुद्ध हो जाएँगी। जैसे आप हो जाते हैं।

दरअसल इस देश का मुसलमान अपने हक के लिए लड़ाई लड़ने के तौर तरीके आज़ादी के 70 साल बाद भी सीख और समझ नहीं पाया है तो उसके कारण है। उसने सभाओं को केवल धार्मिक जलसों या मुशायरों में ही देखा या सुना है , यह जलसे या तो तबलीगी जलसे रहे हैं या मस्जिद के मिंबर पर से मौलाना की तकरीरें।इसीलिए वह अपने समाज के लोगों की भीड़ देखते ही उसी रंग और जोश में आ जाता है "नारे तकबीर" लगाने लगता है। यह गलत है।

राजनैतिक आंदोलन धार्मिक नारों या उसके कलेवर से दूर रहना चाहिए , ऐसे आंदोलन की सफलता में सबका सहयोग चाहिए होता है , "जैसा देश वैसा भेष" की तर्ज पर ही राजनैतिक आंदोलन चलना चाहिए और सबसे जरूरी है मंच पर बोलने के तौर तरीके सीखना। इसीलिए कहा , एक विद्यार्थी के रूप में सिर्फ गिनती बढ़ाने के लिए मुसलमानों को किसान आंदोलन में शामिल होना चाहिए।

नरेश-राकेश टिकैत को अपनी गलती का एहसास हो गया है , उनका साथ दीजिए और उनसे कुछ सीखिए कि कैसे 12 घंटे पहले की एक काल पर कई लाख लोग "महापंचायत" में आ जाते हैं। किसान आंदोलन में शामिल होईए और पुराना समीकरण बहाल कीजिए , यही आज की रणनीति है यही आज की ज़रूरत है। जाईए और आंदोलन का ढंग सीखिए और मुजफ्फरनगर दंगों के कारण हुए राजनैतिक और सामाजिक विभाजन को खत्म कर दीजिए।

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