मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

शक्तिशाली लोगों ने बंधक बनाई न्याय प्रणाली

न्याय प्रणाली अमीरों और शक्तिशाली लोगों द्वारा बंधक बना ली गई है: सुप्रीम कोर्ट बार अध्यक्ष


नई दिल्ली। वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने एक कार्यक्रम में कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट के जज किसी राजनेता की प्रशंसा करते हैं तो वे अधीनस्थ अदालतों को क्या संदेश देते हैं? इसका केवल यही संदेह होता है, मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मामले तय न करें। कार्यपालिका के पक्ष में जाने के लिए जज क़ानून के परे जा चुके हैं।
श्री अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने शुक्रवार को एक ऑनलाइन लेक्चर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यह याद रखना प्रासंगिक है कि महात्मा गांधी ने कहा था कि कानून की अदालत से बड़ी एक अदालत है। अंतरात्मा की अदालत.
उन्होंने कहा कि अन्याय को खत्म करने के लिए कानून पर भरोसा करने के बजाय प्रबुद्ध जनता की राय मौजूदा समय की मांग है। दवे मानवाधिकार वकील गिरीश पाटे की पुण्यतिथि के मौके पर बोल रहे थे, जिनका साल 2018 में निधन हो गया था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, ‘वह दलित और असुरक्षित (लोगों) के रक्षक थे। उन्होंने मानवीय गरिमा के लिए लड़ाई लड़ी और उनके मुद्दों को उठाया, चाहे वे गुजरात स्थित दांग के आदिवासी रहे हों या गन्ना श्रमिक। उन्होंने कभी पीआईएल (जनहित याचिका) का दुरुपयोग नहीं किया। उन्होंने आगे कहा, ‘न्यायपालिका में हुए अतिक्रमणों पर लगातार नजर रखने में बेंच और बार अपनी भूमिका निभा पाने में विफल रहे हैं। अपनी सामाजिक भूमिका निभाने में वकील सबसे अधिक विफल रहे हैं। मुझे यह कहते हुए खेद है कि हमारे न्यायाधीश न्याय प्रशासन में अपनी अंतरात्मा की आवाज को भूल गए हैं, जिसे उन्हें अपने कर्तव्यों के निर्वहन में हर सेकेंड याद रखना चाहिए।’
उन्होंने कहा, ‘भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली अमीरों और शक्तिशाली लोगों द्वारा बंधक बना ली गई है।’जजों के सभी राजनीतिक विचारों से ऊपर होने की संविधान सभा की बहसों की ओर ध्यान दिलाते हुए दवे ने आगे कहा, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता न केवल बाहर से प्रभावित हुई है बल्कि यह भीतर से भी खत्म हो गई है। 1993 से बड़े पैमाने पर स्वतंत्र जजों की नियुक्ति नहीं करके कॉलेजियम प्रणाली ने न्याय, संविधान और राष्ट्र के प्रशासन का बहुत बड़ा नुकसान किया है।
उन्होंने आगे कहा, ‘कानून का शासन खतरे में हैं. पिछले 30-35 साल में जिस तरह की (न्यायिक) नियुक्तियां की गई हैं उन्होंने बहुत कुछ अधूरा छोड़ दिया है जिससे संस्थान को बड़ी क्षति पहुंची है. वे न्यायाधीश कहां हैं जो आज के राजनीतिक दबाव को झेलने में सक्षम हैं?’
उन्होंने कहा, ‘प्रवासी श्रमिकों की मदद करने के लिए 30 मार्च को एक याचिका दायर की गई थी और अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को एक ‘प्रमाण पत्र’ दे दिया कि प्रवासी संकट खत्म हो गया है।


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