बुधवार, 9 नवंबर 2022

चंद्रचूड़ ने 50वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली

चंद्रचूड़ ने 50वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वरिष्ठतम न्यायाधीश को राष्ट्रपति भवन में मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ दिलाई। राष्ट्रपति मुर्मू ने 17 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया था। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ (धनंजय यशवंत चंद्रचूड.) का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था। वह 10 नवंबर 2024 को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश पद लिए निर्धारित 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होंगे।

भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यू. यू. ललित ने 11 अक्टूबर को न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को अपना उत्तराधिकारी बनाने की सिफारिश केंद्र सरकार से की थी। शीर्ष अदालत की परंपरा के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में वरिष्ठतम न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश बनाने की परंपरा रही है। इस क्रम में न्यायमूर्ति ललित के बाद में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ आते हैं। न्यायमूर्ति ललित ने 27 अगस्त 2022 को भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली थी। वह मुख्य न्यायाधीश के रूप में 74 दिनों के अपने संक्षिप्त कार्यकाल के बाद आठ नवंबर 2022 को 65 साल की उम्र में सेवानिवृत्त हो गए।

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ के पिता न्यायमूर्ति वाई. वी. चंद्रचूड़ सबसे अधिक समय - लगभग सात साल और चार महीने- तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे। न्यायमूर्ति वाई. वी. चंद्रचूड़ 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहे। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम की डिग्री और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट (एसजेडी) प्राप्त करने के बाद बॉम्बे उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में वकालत की।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को 13 मई 2016 को शीर्ष अदालत का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। इससे पहले 29 मार्च 2000 से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (31 अक्टूबर 2013) नियुक्त होने तक मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में ऑनर्स के साथ स्नातक और कैंपस लॉ सेंटर (दिल्ली विश्वविद्यालय) से एलएलबी पढ़ाई पूरी की। उन्हें 13 मई 2016 को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। इससे पहले उन्होंने 31 अक्टूबर 2013 से सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया।

डॉ. चंद्रचूड़ को अधिवक्ता से पदोन्नत कर 29 मार्च 2000 को बॉम्बे उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने वर्ष 1998 से 2000 तक भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी कार्य किया। जून 1998 में उन्हें बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ मुंबई विश्वविद्यालय और ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ, अमेरिका में में तुलनात्मक संवैधानिक कानून के विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे।

राहत: उपचुनाव के नोटिफिकेशन के लिए निर्देश दिए

राहत: उपचुनाव के नोटिफिकेशन के लिए निर्देश दिए

अकांशु उपाध्याय/संदीप मिश्र 

नई दिल्ली/रामपुर। सुप्रीम कोर्ट से समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता आजम खान को बड़ी राहत दी है और साथ ही रामपुर में 11 नवंबर के बाद उपचुनाव के नोटिफिकेशन के लिए इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया को निर्देश दिए हैं। समाजवादी पार्टी लीडर आजम खान को मिली 48 घंटे की मोहलत रामपुर का चुनाव 11 के बाद घोषित करे आयोग जिला अदालत के फैसले के बाद सुप्रीम फैसला।

समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रामपुर में चुनाव कराने को लेकर फिलहाल अभी पूरी प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने रामपुर सत्र अदालत को आदेश दिया है कि वह पहले आजम खान की अपील पर विचार करे। इसके बाद चुनाव आयोग को नतीजे के आधार पर 11 नवंबर को या उसके बाद रामपुर विधानसभा सीट के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के लिए एक गजट अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया। मालूम हो कि आजम खान को रामपुर कोर्ट ने भड़काऊ भाषण देने के मामले में दोषी करार दिया था। सपा नेता ने इस आदेश को सेशन्स कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले में अब 10 नवंबर को सुनवाई होने है।

समाजवादी पार्टी लीडर आजम खान को 48 घंटे की मोहलत दी। इसके साथ ही आजम खान को सजा की सुनवाई के लिए जिले एमपी एमएलए कोर्ट जाने की सलाह दी। अब रामपुर विधानसभा के चुनाव का नोटिफिकेशन 11 को जारी होगा। यह अभी कल यानी 10 नवंबर को होना था। डीवाई चंद्रचूड़ की कोर्ट ने दिया फ़ैसला। अगर जिले की एमपी एमएलए कोर्ट ने सजा को स्थगित कर दिया तो चुनाव रुक भी सकता है।समाजवादी पार्टी लीडर आजम खान ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी। जिस पर कोर्ट ने उत्‍तर प्रदेश सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की खंडपीठ ने यूपी सरकार से कहा कि आखिर आजम खान को अयोग्‍य ठहराने की क्या जल्दी थी आपको कम से कम उन्हें कुछ मोहलत देनी चाहिए थी।

आस्था के प्रतीकों का लगातार अपमान, आरोप लगाया 

आस्था के प्रतीकों का लगातार अपमान, आरोप लगाया 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर हिन्दू समुदाय एवं उनके आस्था के प्रतीकों केे लगातार अपमान का आरोप लगाया और उसने सेकुलरिज़्म का मतलब हिन्दू धर्म के अपमान के भाव की अभिव्यक्ति बना दिया है। भाजपा के प्रवक्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाताओं से कहा, “छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में कांग्रेस महापौर की उपस्थिति में एक बार फिर हिंदू देवी-देवताओं के प्रति अपमानजनक टिप्पणी करने का मामला सामने आया है।”

उन्होंने कहा कि यह मामला इसलिए और गंभीर हो जाता है कि अगर आप विगत कुछ समय का घटनाक्रम देखें तो यह कोई एक पृथक या छोटी घटना नहीं है। दो दिन पहले कांग्रेस कर्नाटक के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष ने हिंदू शब्द के लिए 'गंदा' शब्द प्रयोग किया। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि  राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लोगों के कान में कौन सा मंत्र फूंक रहे हैं कि वोट जोड़ने के लिए हिंदू भावनाओं और अस्मिता पर चोट करना हो तो पीछे मत रहना। उन्होंने कहा, ‘और यह प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है. एक दौर में कभी कहा हिंदू आतंकवादी है, कभी कहा हिंदू तालिबान तो कभी हिंदू बोको हराम, ये कारनामे भारत की सबसे पुरानी पार्टी के हैं।

भारत के साथ मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध यूएसए 

भारत के साथ मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध यूएसए 

अकांशु उपाध्याय/अखिलेश पांडेय 

नई दिल्ली/वाशिंगटन डीसी। राष्ट्रपति जो बाइडेन नीत अमेरिकी सरकार का कहना है कि वह रूस से दूरी बनाने के दौरान भारत के साथ मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध है। व्हाइट हाउस ने यह जानकारी दी। व्हाइट हाउस के अनुसार, ऐसे कई देश हैं जिन्होंने इस कठिन तथ्य को पहचान लिया है कि रूस ऊर्जा या सुरक्षा क्षेत्र में विश्वसनीय स्रोत नहीं है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने मंगलवार को दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जब रूस के साथ भारत के संबंधों की बात आती है, तो अमेरिका ने लगातार यह स्पष्ट किया है कि यह एक ऐसा रिश्ता है, जो कई दशकों में विकसित और मजबूत हुआ है। और वास्तव में यह शीत युद्ध के दौरान बना और मजूबत हुआ जब अमेरिका, भारत के लिए आर्थिक, सुरक्षा व सैन्य भागीदार बनने की स्थिति में नहीं था।

उन्होंने कहा, ‘‘अब परिस्थितियां बदल गई हैं। पिछले 25 साल में इसमें बदलाव आया है। यह वास्तव में एक विरासत है, एक द्विपक्षीय विरासत, जिसे इस देश ने पिछले 25 साल में हासिल किया है। वास्तव में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के प्रशासन ने सबसे पहले इसकी शुरुआत की थी।’’ प्राइस ने कहा कि अमेरिका ने आर्थिक, सुरक्षा और सैन्य सहयोग समेत हर क्षेत्र में भारत के साथ अपनी साझेदारी को गहरा करने की कोशिश की है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह एक ऐसा बदलाव है जिस पर हम हमेशा से स्पष्ट रहे हैं, यह रातों-रात नहीं हो सकता यहां तक कि कुछ महीनों या शायद कुछ वर्षों में भी संभव नहीं है। भारत एक बड़ा देश है, एक विशाल देश है, एक बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसकी कई जरूरते हैं।’’ प्राइस ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘इसलिए, भारत से जिस बदलाव व पुनर्व्यवस्था की उम्मीद करते हैं, उसको लेकर मौजूदा प्रशासन भारत के साथ काम करने को लेकर प्रतिबद्ध है। यह न केवल मौजूदा प्रशासन के लिए बल्कि आने वाली सरकारों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।’’ भारत द्वारा रूस से तेल की खरीदी पर किए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अमेरिका ने तेल और गैस, ऊर्जा क्षेत्र को लेकर रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों में छूट सोच-समझकर दी है।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत में ऊर्जा की अत्यधिक मांग है वह रूस से तेल और ऊर्जा के अन्य स्रोत हासिल करता है यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो लगाए गए प्रतिबंधों के विरुद्ध हो।’’ प्राइस ने कहा कि अमेरिका पहले भी स्पष्ट कर चुका है कि अब रूस के साथ हमेशा की तरह व्यापार करने का समय नहीं है और यह दुनिया भर के देशों पर निर्भर करता है कि वे रूस के साथ उन आर्थिक संबंधों को कम करने के लिए क्या कर सकते हैं।

यह कुछ ऐसा है जो सामूहिक हित में है, लेकिन यह दुनिया भर के देशों के द्विपक्षीय हित के लिए भी जरूरी है कि समय के साथ-साथ रूसी ऊर्जा पर अपनी निर्भरता में कमी करना सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा, ‘‘ ऐसे कई देश हैं जिन्होंने इस कठिन तथ्य को पहचान लिया है कि रूस ऊर्जा के क्षेत्र में विश्वसनीय स्रोत नहीं है। रूस सुरक्षा संबंधी क्षेत्र में विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता नहीं है। रूस पर किसी भी क्षेत्र में भरोसा नहीं किया जा सकता।’’

टी-20 वर्ल्ड कप: रोहित के बाद कोहली भी चोटिल हुए

टी-20 वर्ल्ड कप: रोहित के बाद कोहली भी चोटिल हुए

मोमीन मलिक 

नई दिल्ली। आईसीसी टी-20 वर्ल्ड कप 2022 के सेमीफाइनल से ठीक पहले भारतीय क्रिकेटर्स एक के बाद एक चोटिल होते जा रहे हैं। कल कप्तान रोहित शर्मा थ्रो डाउन अभ्यास के दौरान चोटिल हो गए थे और आज विराट कोहली भी चोटिल हो गए। हर्षल पटेल के साथ प्रैक्टिस के दौरान गेंद इतनी जोर से लगी कि विराट कुछ देर अभ्यास पिच पर ही बैठे रहे।

घटना का वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। फैंस विराट के चोटिल अपडेट की बात कर रहे हैं। कोई इसे सामान्य घटना मान रहा है तो कोई चोट को गंभीर बता रहा है। हालांकि इसके बाद ये खबर आई है कि विराट कोहली फिलहाल ठीक हैं और उन्होंने फैन्स के साथ सेल्फी भी क्लिक की है।

इजरायल: नेतन्याहू ने आश्चर्यजनक रूप से वापसी की

इजरायल: नेतन्याहू ने आश्चर्यजनक रूप से वापसी की

अखिलेश पांडेय 

वाशिंगटन डीसी/जेरूसलम। इज़रायल के राजनीतिक जादूगर ने एक बार फिर कर दिखाया। 2021 में पद से हटाए गए नेतन्याहू इजरायल के पहले प्रधान मंत्री हैं, जिन्हें महाभियोग का सामना करना पड़ा और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे अभी भी चल रहे हैं। ऐसे में बेंजामिन नेतन्याहू ने आश्चर्यजनक रूप से वापसी की है। केवल चार वर्षों में चार अनिर्णायक चुनावों के बाद, एक नवंबर को पांचवें राष्ट्रीय चुनाव में इजरायल ने नेतन्याहू के दक्षिणपंथी दल को निर्णायक जीत दिलाई।

कुछ मायनों में यह एक बड़े आश्चर्य के रूप में नहीं आना चाहिए। नेतन्याहू वर्षों से उनके राजनीतिक जीवन को खत्म बताने वालों को धता बता रहे हैं। उन्होंने 1999 में अपनी हार के बाद जीत हासिल की, फिर 2006 के चुनावों में एक अपमानजनक हार के बाद वह फिर जीतकर आए। अब, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों नफ्ताली बेनेट और यायर लैपिड के लिए पिछले साल प्रीमियरशिप हारने के बाद नेतन्याहू के करियर को खत्म करने की घोषणा करने वाले पंडित एक बार फिर गलत साबित हुए हैं।

नेतन्याहू की जीत का मतलब है कि लगभग चार साल तक इजरायल को पंगु बनाने वाला गतिरोध आखिरकार खत्म हो सकता है, जिसे अब 64 सीटों का बहुमत दिया गया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी परेशानी खत्म हो जाएगी – बल्कि बढ़ भी सकती है। इजरायल की राजनीति के एक विद्वान के रूप में, मेरा मानना ​​​​है कि शासन से जुड़ा एक दु:स्वप्न इजरायल के सबसे लंबे समय तक प्रधान मंत्री रहे नेतन्याहू की प्रतीक्षा कर रहा है।

लिबरल, तुलनात्मक रूप से
नेतन्याहू इजरायल के इतिहास में सबसे दक्षिणपंथी और धार्मिक सरकार बनाने के लिए तैयार हैं। उनकी दक्षिणपंथी लिकुद पार्टी अति-राष्ट्रवादी और अति-रूढ़िवादी सहयोगियों के साथ गठबंधन में शासन करेगी। इन पार्टियों में से एक, धुर दक्षिणपंथी रिलीजियस ज़ियोनिस्ट पार्टी के कट्टरपंथी एजेंडे में वेस्ट बैंक, जिसे वह इसराइल में शामिल करना चाहते हैं, में यहूदी बस्तियों का निरंकुश विस्तार करना; सैनिकों को अपने वरिष्ठ अधिकारियों से पूर्व अनुमति, जैसा कि फिलहाल नियम है, के बिना फिलिस्तीनी हमलावरों पर गोली चलाने में सक्षम बनाना; ‘‘वफादार’’ अरब नागरिकों को इज़राइल में उनके घरों से निष्कासित करना; और टेंपल माउंट पर यहूदी प्रार्थना की अनुमति देना शामिल है। दशकों से अल-अक्सा मस्जिद परिसर में प्रार्थना करने की अनुमति नहीं होने के चलते इस कार्य को मुसलमानों द्वारा एक उकसावे के रूप में देखा जाएगा पार्टी सामाजिक मुद्दों पर भी गहरी रूढ़िवादी है, उदाहरण के लिए पार्टी ने येरूशलम प्राइड परेड पर प्रतिबंध लगाकर समलैंगिक अधिकारों को वापस लेने का आह्वान किया है।

ऐसी नीतियां न केवल अंतरराष्ट्रीय समुदाय और कई इजरायलियों और फिलिस्तीनियों के लिए खतरनाक हैं, बल्कि वे नेतन्याहू को उनके अगले कार्यकाल में अंतहीन सिरदर्द देने का भी दम रखती हैं। हालांकि लंबे समय से इज़राइल के प्रमुख दक्षिणपंथी नेता होने के बावजूद, नेतन्याहू अपने कुछ नए राजनीतिक सहयोगियों की धुर-दक्षिणपंथी, धार्मिक विचारधारा को साझा नहीं करते हैं। मेरी 2014 की किताब, ‘‘व्हाई हॉक्स बीकम डव्स’’ में, मैं पूर्व प्रधानमंत्रियों और नेतन्याहू के प्रतिद्वंद्वियों एरियल शेरोन और एहुद ओलमर्ट के एक पूर्व-शीर्ष सहयोगी को यह कहते हुए उद्धृत करता हूं कि नेतन्याहू हालांकि ‘‘दक्षिणपंथी लोगों से घिरे हुए हैं, फिर भी इस समूह के सबसे उदार व्यक्ति हैं ”।

एक अलग विचारधारा
निश्चित रूप से, नेतन्याहू के पास एक रूढ़िवादी विश्वदृष्टि है। फिर भी, वह एक धर्मनिरपेक्ष, व्यावहारिक और जोखिम से बचने वाले राजनेता भी हैं। उनका लचीलापन वर्षों से कई मौकों पर प्रदर्शित होता रहा है। अपने पहले कार्यकाल में, उन्होंने ओस्लो शांति प्रक्रिया को जारी रखा, जिसकी उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में तीखी आलोचना की थी, हेब्रोन प्रोटोकॉल और वाई रिवर मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर किए, जिसके कारण वेस्ट बैंक के क्षेत्रों से इजरायल की वापसी हुई। गाजा पट्टी से 2005 के एकतरफा विघटन के लिए उन्होंने तीन बार वोट किया – फिर वापसी के विरोध में इस्तीफा दे दिया। और जून 2009 में, उन्होंने द्वि-राज्य समाधान का सार्वजनिक रूप से समर्थन करके एक फ़िलिस्तीनी राज्य के लिए अपने आजीवन विरोध को त्याग दिया।

फिर, उन्होंने बाद में अपनी स्थिति उलट दी। नेतन्याहू ने 2009 में राष्ट्रपति बराक ओबामा की मांग को भी स्वीकार कर लिया, ताकि शांति वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए यहूदी बस्ती के निर्माण में 10 महीने की रोक लग सके – बातचीत जो अंततः किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पाई। इसी तरह, अतीत में, नेतन्याहू ने चरमपंथियों के प्रभाव को कम करने के लिए मध्यमार्गी घटकों के साथ व्यापक-आधार वाले गठबंधन बनाने का प्रयास किया। लेकिन अब नेतन्याहू समर्थक और विरोधी गुट इजरायल की राजनीति में मजबूती से शामिल हो गए हैं और ऐसे में नेतन्याहू के पास वैचारिक रूप से संकीर्ण, धुर दक्षिणपंथी गठबंधन बनाने के अलावा कोई वास्तविक विकल्प नहीं है।

खुद का बनाया राक्षस
वास्तव में, धुर दक्षिणपंथ का उदय, जिसे वह तैयार कर रहे हैं, बड़े पैमाने पर नेतन्याहू का अपना खुद का बनाया एक राक्षस है। जैसे-जैसे इजरायली समाज दक्षिणपंथ की ओर जा रहा है, वह अधिक धार्मिक और रूढ़िवादी बन गया है, नेतन्याहू ने अपने आधार का विस्तार करने के लिए दक्षिण और वाम के बीच विवाद को बढ़ाया। पिछले एक दशक में नेतन्याहू ने खुद अपने देश में लोकलुभावन राष्ट्रवाद की लहर दौड़ाई है। उन्होंने और उनके वफादारों ने आलोचकों को – चाहे वे मीडिया के सदस्य हों, सुरक्षा प्रतिष्ठान के पूर्व वरिष्ठ सदस्य, राजनीतिक मध्यमार्गी या फिर चाहे रूढ़िवादी समर्थक से प्रतिद्वंद्वी बने साथी – वामपंथी, आउट-ऑफ-टच अभिजात्य बताकर उनकी आलोचना की।

एक चुनौती बहुत दूर?
संभावित कलह के अग्रदूत के रूप में, नेतन्याहू पहले ही संकेत दे चुके हैं कि उनकी सरकार रिलीजियस जिओनिस्ट पार्टी के होमोफोबिक एजेंडे को समायोजित करने के लिए एलजीबीटीक्यू अधिकारों के संबंध में यथास्थिति में बदलाव नहीं करेगी। पिछली मिसाल को देखते हुए, मेरा मानना ​​​​है कि यह भी संभव है कि वह टेंपल माउंट पर यहूदियों को प्रार्थना करने से रोककर यथास्थिति बनाए रखेंगे – एक ऐसी स्थिति जिसका उन्होंने अतीत में पालन किया है। हालांकि टेंपल माउंट पर यहूदी उपासकों की चढ़ाई को नियंत्रित करना उनके लिए मुश्किल हो सकता है, जो हाल के वर्षों में काफी बढ़ गया है।

नए गठबंधन की प्राथमिकताओं में शीर्ष पर रहना, हालांकि, एक ऐसा मुद्दा है जिससे नेतन्याहू को व्यक्तिगत रूप से लाभ होगा: न्यायपालिका में सुधार जैसे परिवर्तनों का व्यावहारिक प्रभाव अदालतों और अटॉर्नी जनरल के अधिकार को कमजोर करना होगा। नेतन्याहू के मुकदमे को रद्द करने वाला कानून पारित करना भी कार्ड में हो सकता है। अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों का पीछा करते हुए इजरायल के नाजुक लोकतंत्र को संरक्षित करना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है – जिसपर पार पाना नेतन्याहू जैसे राजनीतिक जादूगर को भी दुर्गम लग सकता है।

सुधारों को आधे-अधूरे बताने वाली टिप्पणी, कटाक्ष 

सुधारों को आधे-अधूरे बताने वाली टिप्पणी, कटाक्ष 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ‘तारीफ’ करने पर कहा है, गडकरी ने…मनमोहन के 1991 के…आर्थिक सुधारों की…भरपूर प्रशंसा की। रमेश ने कहा, वित्त मंत्री महोदया (निर्मला सीतारमण) ने कहा था कि…आर्थिक सुधार अधपके थे…कल मास्टरशेफ गडकरी ने उन्हें पका दिया…मुझे लगता है…अब वह इसे पचा पाएंगी।

कांग्रेस ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 1991 के सुधारों को आधे-अधूरे बताने वाली उनकी टिप्पणी के लिए बुधवार को कटाक्ष किया और कहा कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रशंसा करके खुद ही सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने आर्थिक सुधारों के जरिये देश को नई दिशा देने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री सिंह की मंगलवार को प्रशंसा करते हुए कहा था कि इसके लिए देश उनका ऋणी है।

वहीं गत सितंबर में सीतारमण ने एक कार्यक्रम में 1991 की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों को आधे-अधूरे सुधार’ करार दिया था और कहा था कि उस समय अर्थव्यवस्था सही तरीके से नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा थोपी गई बाध्यताओं के कारण खोली गई थी।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, 16 सितंबर को वित्त मंत्री महोदया ने कहा था कि 1991 के आर्थिक सुधार आधे-अधूरे (अधपका) थे। कल, मास्टरशेफ गड़करी ने खुद ही सब कुछ स्पष्ट कर दिया और डॉ. मनमोहन सिंह के 1991 के आर्थिक सुधारों की भरपूर प्रशंसा की। मुझे लगता है कि अब वह इसे पचा पाएंगी।

यहां एक कार्यक्रम में गडकरी ने कहा था, उदार अर्थव्यवस्था के कारण देश को नयी दिशा मिली। उसके लिए देश मनमोहन सिंह का ऋणी है। गडकरी ने मनमोहन की नीतियों से नब्बे के दशक में महाराष्ट्र की सड़कों के लिए पैसे जुटाने में मिली मदद का भी जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि सिंह की तरफ से शुरू किए गए आर्थिक सुधारों की वजह से वह महाराष्ट्र का मंत्री रहने के दौरान इन सड़क परियोजनाओं के लिए धन जुटा पाए थे।

रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा 16.37 लाख के पार हुआ

रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा 16.37 लाख के पार हुआ  पंकज कपूर  देहरादून। उत्तराखंड में चारधाम यात्रा 2024 को लेकर यात्रियों में गजब का उत्साह देखा जा...