प्रयागराज। देश की आजादी के पहले प्रयागराज में कई रहीस लोग थे। जो खुलकर दान करते थे। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों के लिए इनके घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। इन्हीं में एक थे लाला मनोहरदास। वे 19वीं शताब्दी में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के सबसे बड़े रईसों में से थे। कपड़े के व्यापार, साहूकारों तथा विविध उद्योगों से उन्होंने करोड़ों रुपये की संपति अर्जित की थी। वे केवल रईस ही नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यों के लिए भी मदद करते थे। नगर में उनके सहयोग से बने अनके जनोपयोगी स्थान तथा भवन उनकी सहदयता तथा दानशीलता के प्रतीक हैं। वे राजाओं और अंग्रेजों को भी कर्ज दिया करते थे। चौक जीरोरोड निवासी बाबा अभय अवस्थी बताते हैं कि लाला मनोहरदास के परबाबा लाला आत्मराम 1765 में प्रयागराज आए थे। उनके पिता का नाम कंधई लाल तथा बाबा का नाम लाला गप्पूमल था। लाला मनोहरदास का जन्म प्रयागराज के रानीमंडी में हुआ था। उनका मुख्य व्यापार कपड़े का था। उनके नील के 18 गोदाम थे। लाला मनोहरदास साहूकारी का भी काम करते थे। अभय अवस्थी बताते हैं कि लाला मनोहरदास व्यापारियों को ही नहीं बल्कि निकटवर्ती जिलों के ताल्लुकेदारों एवं राजाओं तक को ऋण दिया करते थे। वे कतिपय अंग्रेज अधिकारियों को कर्ज दिया करते थे। 1874 में ट्रुप के लिखे प्रयागराज के गजेटियर में उनकी गणना प्रदेश के सबसे बड़े महाजनों में की गई थी। उन्होंने गंगागंज एवं सुलेमसराय में विशाल बाग लगवाए। एक समय उनके कर्जदारों में बारा के राजा वंशपति सिंह, कानपुर के लाल तुलसीराम, जबलपुर के राजा गोकुलचंद भी थे। इसके बदले उन्हें काफी संपत्ति मिली। ऋण वसूली में उन्हें सिविल लाइंस क्षेत्र में कई बंगले मिले थे।
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