नई दिल्ली। वाम दलों के नेतृत्व में सात विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर कोरोना महामारी के शिकार गरीब लोगों की सुरक्षा, कल्याण तथा आजीविका के लिए कार्रवाई करने की मांग की है। पत्र में श्रम कानूनों में किये जा रहे बदलाव की तीखी आलोचना भी की गई है।
माकपा, भाकपा, फारवर्ड ब्लॉक, भाकपा (माले) रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल आदि ने राष्ट्रपति कोविंद को लिखे पत्र में कहा है कि एक तरफ तो कोरोना के कारण लॉकडाउन होने से मजदूर, किसान तथा वंचित समाज के लोग बुरी तरह परेशान हैं और उन्हें सैकड़ों किलोमीटर दूर पैदल चलकर अपने गांव वापस जाना पड़ रहा है। सरकार ने उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किए हैं और न ही उन्हें मुफ्त राशन देने की व्यवस्था की है।
दूसरी तरफ महाराष्ट्र में 17 गरीब लोग ट्रेन से कटकर मर गये हैं तथा विजाग में गैस लीक की घटना के कारण 12 लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसी स्थिति में सरकार 44 श्रम कानूनों में परिवर्तन कर उन्हें 4 कोड में बदल रही है जो पूरी तरह से श्रम विरोधी और संविधान विरोधी है। सरकार ने कार्यपालिका के आदेश के जरिए श्रमिकों के काम के घंटे आठ घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिए हैं जो कि पूरी तरह गैर कानूनी है और हरियाणा, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश तथा राजस्थान जैसे राज्यों में फैक्ट्री कानून को बदले बिना यह बदलाव लागू किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में तीन साल के लिए सभी श्रम कानूनों को निरस्त कर दिया गया है जबकि मध्यप्रदेश में 1000 दिन के लिए इन कानूनों को निरस्त किया गया है। एक तरफ तो सरकार ‘आपके द्वार सरकार’ का नारा लगाती है और दूसरी तरफ इन मजदूरों को बुनियादी अधिकारों से वंचित कर रही है और उनके अधिकारों को छीन रही है। उन्होंने राष्ट्रपति कोविंद से अपील की है कि वे इन गरीब मजदूरों की रक्षा के लिए तत्काल हस्तक्षेप करें और संवैधानिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखें।