शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

सीएए के खिलाफ रोहतक में प्रदर्शन

हर्षित सैनी
रोहतक। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति जिला रोहतक की कार्यकर्त्ताओं ने सीएए, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में माता दरवाजा पर धरना दिया। धरने की अध्यक्षता राज्य कोषाध्यक्ष राजकुमारी दहिया ने की व संचालन वीना मलिक ने किया।
धरने को संबोधित करते हुए अखिल जनवादी महिला समिति की राज्य महासचिव सविता ने कहा कि आम जनता के सामने रोजी-रोटी, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, आवास, सुरक्षा के लाले पड़े हुए हैं। सभी जरूरी चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर के दाम 850 से ऊपर हो गए हैं। ऐसे में केंद्र की भाजपा सरकार ने देश की एकता को तोड़ने के लिए नागरिकता कानून में परिवर्तन जैसे खतरनाक कदम उठाकर लोगों को धर्म के नाम पर आपस में लड़ाने का षड्यंत्र रचा है।
उन्होंने कहा कि आज पूरे देश में करोड़ों लोग इस कानून के विरोध में सड़कों पर हैं, जिसमें ज्यादा संख्या में महिलाएं हैं क्योंकि यह कानून देश विरोधी, संविधान विरोधी, गरीब विरोधी, दलित विरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी और महिला विरोधी है। इस कानून ने संविधान की मूल भावना धर्म निरपेक्षता पर गहरी चोट की है।
सविता ने कहा कि संविधान में कहीं भी नागरिकता का आधार धर्म नहीं माना गया है परंतु यह कानून पहली बार नागरिकता को धर्म के साथ जोड़ता है। यह देश के लिए बेहद खतरनाक है।
जनवादी महिला समिति की नेता अनीता सांपला व मुनमुन हजारिका ने कहा कि हमारा देश एक गरीब मुल्क है जहां आज भी करोड़ों लोगों को स्कूल जाने का मौका नहीं मिला, ऐसे में अक्सर राशन कार्ड, आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, बैंक खाते आदि में स्पेलिंग या मात्रा गलत होती है तो उसे ठीक करवाने के लिए कितने चक्कर काटने पड़ते हैं।
उनका कहना था कि महिलाओं का अक्सर ससुराल में नाम बदल दिया जाता है। बहुत सी महिलाएं दूसरे राज्यों से शादी करके आई हैं। अनाथ बच्चों और ट्रांसजेंडरों के पास अपनी पिछली कोई पहचान नहीं होती। ऐसे में उन लोगों की नागरिकता को खतरा रहेगा जो दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे। ऐसे लोगों से बहुत संघर्षों से हासिल किए गए वोट का अधिकार, रोजगार, संपत्ति का अधिकार आदि छीन जाएगा।
उन्होंने कहा कि इन तीनों काले कानूनों का असर केवल किसी विशेष समुदाय पर नहीं बल्कि देश के करोड़ों गरीब लोगों पर पड़ेगा हमें मिलकर इसका विरोध करना होगा।
धरने को नागरिक एकता एवं सद्भावना समिति के नेता कैप्टन शमशेर मलिक, बसपा नेता डॉक्टर कश्मीरी, ज्ञान विज्ञान समिति के राज्य अध्यक्ष डॉ आर एस दहिया, मनीषा, रिटायर्ड कर्मचारी संगठन के राज्य उपाध्यक्ष रामकिशन, डीवाईएफआई के राज्य महासचिव संदीप सिंह, एसएफआई के महासचिव सुरेन्द्र ने भी समर्थन किया व धरने में उर्मिल, पूजा, ओमपति,गीता, कमलेश, नेहा, दर्शना, अर्जुन सीमा,शबाना, रेशमा मोनिका, प्रियंका, मूर्ति, राजेश, नरेश, बलजीत,अमित, प्रेम, फूलवती आदि महिलाएं शामिल हुई।


15 दस्तावेज के बावजूद नागरिकता खारिज

गुवाहाटी। असम में एक परिवार को हाईकोर्ट ने भी भारतीय मानने से इंकार कर दिया है। नागरिकता साबित करने की जंग में परिवार खेत तक बेच चुका है। अब ऐसे में कानूनी लड़ाई के लिए सबसे बड़ी फीस की चिंता है। पति बीमार हैं और महिला 150 रुपये प्रतिदिन पर काम कर परिवार का खर्च चला रही है।
15 सरकारी दस्तावेज के बावजूद असम में एक मुस्लिम महिला अपनी नागरिकता की जंग हार गई है। ट्रिब्यूनल ने पहले ही उसे विदेशी घोषित कर दिया था। ऐसे में हाईकोर्ट से मिली नाकामी ने उसके सामने जिंदगी की सारी उम्मीद खत्म कर दी।
बक्सा निवासी 50 वर्षीय जुबेदा बेगम को 2018 में ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया था। हालांकि अपनी नागरिकता साबित करने के लिए उसने 15 सरकारी दस्तावेज दिखाए। मगर जमीन के कागजात, बैंक दस्तावेज, पैन कार्ड भी उसे भारतीय साबित नहीं कर सके।
15 दस्तावेज भी नहीं साबित कर सके नागरिकता
जुबेदा कहती हैं कि मैंने 1966, 1970 और 1971 का अपने पिता जावेद अली का वोटर लिस्ट ट्रिब्यूनल में पेश किया। मगर ट्रिब्यूनल को उनके पिता के साथ उसके लिंक का कोई सबूत नहीं मिला। नागरिकता साबित करने की जंग में मैंने सब कुछ दांव पर लगा दिया। मगर अब हाईकोर्ट से मिली नाकामी के बाद मेरे पास कानूनी लड़ाई के लिए कुछ भी नहीं बचा है।
महिला के पति का कहना है कि पहले ही उन्होंने कानूनी फीस अदा करने के लिए अपनी तीन बिगहा जमीन बेच दी है। अब 150 रुपये प्रतिदिन पर उनकी पत्नी को दूसरे के यहां काम कर परिवार का खर्च चलाना पड़ रहा। नागरिकता साबित करने की लड़ाई ने उनके लिए तो जैसे रही सही उम्मीद भी खत्म कर दिया है। अब सिर्फ मौत ही नजदीक दिखाई दे रही है।
गांव के प्रधान की भी काम नहीं आई गवाही
ट्रिब्यूनल से नागरिकता का दावा खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में अपील की गई। हाईकोर्ट ने भी अपने पूर्व के आदेश का हवाला देते हुए उनके जमा किये दस्तावेज को नागरिकता का पर्याप्त आधार नहीं माना। जब उनसे जन्म प्रमाण पत्र मांगा गया तो उन्होंने गांव के प्रधान से एक प्रमाण पत्र बनवा कर पेश कर दिया।
गवाही के लिए बुलाए गए ग्राम प्रधान ने महिला को जानने और उसके रिहाइश की गवाही दी। मगर इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। पिछले साल नागरिकता पंजीकरण में महिला के परिवार का नाम नहीं आया था। पति और पत्नी दोनों को संदिग्ध वोटर घोषित कर दिया गया है।


रूस की जासूसी, अमेरिका में अरेस्ट

न्यूयॉर्क। रूस के लिए जासूसी करने के संदेह में हेक्टर अलेजांद्रो कैब्रेरा फुएंतेस नाम के मेक्सिको के नागरिक को अमेरिका में गिरफ्तार किया गया है। मेक्सिको के इएल एस्पिनल शहर के मेयर हजाएल माटस ने यह जानकारी दी है। कैब्रेरा मेक्सिको के दक्षिणी राज्य ओक्साका में एक वैज्ञानिक परियोजना में कार्यरत था और चिकित्सा के क्षेत्र में उसने महान उपलब्धियां हासिल की है। 


मिलेनियो न्यूज ने माटस के हवाले से अपने रिपोर्ट में कहा, ”कैब्रेरा हमारे क्षेत्र में एक वैज्ञानिक परियोजना का हिस्सा था और उसे चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के लिए एक उम्मीदवार के तौर पर माना गया था। मिलेनियो न्यूज के अनुसार उसने (कैब्रेरा) रूस के कजान संघीय विश्वविद्यालय से माइक्रोबायोलॉजी और आणविक जीव विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। इसके अलावा उसने जर्मनी के गिएसेन विश्वविद्यालय से भी डिग्री हासिल की है।


यूपी पंचायत चुनाव में बदलेगा आरक्षण

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव 2020 में इस बार बदल जाएगे ग्राम पंचायत का आरक्षण


लखनऊ। उत्तर-प्रदेश पंचायत चुनाव 2020 पर सभी की निगाहें जमी हुई हैं। पंचायत चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई है। चुनाव आयोग मतदाता सूची का पुनरीक्षण अभियान शुरू करने जा रहा है। साथ ही ऐसी उम्मीद है कि नए निर्धारण से उत्तर प्रदेश में पंचायतों के आरक्षण की स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी। पंचायत चुनाव 2015 में हुए चुनाव में जो पंचायत जिस जिस वर्ग के लिए आरक्षित हुई थी, इस बार वह उस वर्ग के लिए आरक्षित नहीं होगी। उत्तर प्रदेश में कुल 59,163 ग्राम पंचायतें हैं, प्रदेश में 16 करोड़ लोग गांव में रहते हैं। 14वें वित्त, मनरेगा और स्वच्छ भारत मिशन के वार्षिक औसत निकाला जाए तो एक पंचायत को 20 लाख से 30 लाख रुपए मिलते हैं। चक्रानुक्रम से पंचायत का आरक्षण परिवर्तित हो जाएगा। मान लीजिए कि अगर इस वक्त किसी ग्राम पंचायत का प्रधान अनुसूचित जाति वर्ग से है तो अब इस बार के चुनाव में उस ग्राम पंचायत का प्रधान पद ओबीसी के लिए आरक्षित हो सकता है। उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव 2020 के लिए नए चक्रानुक्रम के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जाति महिला, अनारक्षित, महिला, अन्य पिछड़ा वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग महिला, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जनजाति महिला के वर्गों में नए सिरे से आरक्षण तय किया जाएगा। प्रदेश का पंचायती राज विभाग आरक्षण में बदलाव की यह कवायद जुलाई-अगस्त में पूरी करेगा क्योंकि नए आरक्षण का निर्धारण चुनाव से तीन महीने पहले किया जाता है। उत्तर प्रदेश निर्वाचन आयोग अपर निर्वाचन आयुक्त वेद प्रकाश वर्मा ने बताया कि मार्च से पंचायतों की वोटर लिस्ट का वृहद पुनरीक्षण अभियान शुरू करने की तैयारी है। नगर विकास विभाग से शहरी क्षेत्र में शामिल की गई पंचायतों के ब्योरे का इंतजार है। यह अभियान 30 जून तक चलेगा।


कार्बन उत्सर्जन में भारत का 77वां नंबर

वाशिंगटन। बच्चों के पालन-पोषण तथा खुशहाली से संबंधित सूचकांक (फ्लोरिशिंग इंडेक्स) में भारत काफी पीछे है। 180 देशों में भारत का 131वां स्थान है। संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। भारत प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन (सस्टेनेबिलिटी इंडेक्स) के मामले में 77वें स्थान पर है। दुनियाभर के 40 से अधिक बाल एवं किशोर स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक आयोग ने बुधवार को रिपोर्ट जारी की। यह शोध डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ तथा द लैंसेट मेडिकल जर्नल के संयुक्त तत्वावधान में हुआ है।


नॉर्वे पहले स्थान पर: उत्तर जीविता, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पोषण के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर है। इसके बाद दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और चाड हैं। हालांकि, प्रतिव्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के मामले में चाड को छोड़कर बाकी के देश बहुत पीछे हैं। अल्बानिया, आर्मेनिया, ग्रेंडा, जॉर्डन, मोलदोवा, श्रीलंका, ट्यूनीशिया, उरुग्वे तथा वियतनाम 2030 के प्रतिव्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य के मुताबिक चल रहे हैं। 
180 देशों की क्षमता का आकलन: रिपोर्ट में 180 देशों की क्षमता का आकलन किया गया है। ये देश सुनिश्चित कर पाते हैं या नहीं कि उनके यहां के बच्चे पले-बढ़ें और खुशहाल रहें। खुशहाली सूचकांक का संबंध किसी भी राष्ट्र में मां-बच्चे की उत्तर जीविता, पलने, बढ़ने तथा उसके कल्याण से है। 


क्या हैं मानक: खुशहाली सूचकांक में मां एवं पांच साल से कम आयु के बच्चों की उत्तर जीविता, आत्महत्या दर, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुविधा, बुनियादी साफ-सफाई और भीषण गरीबी से मुक्ति तथा बच्चे का फलना-फूलना आदि आता है।


नौनिहालों को टिकाऊ भविष्य देने का प्रयास नहीं
रिपोर्ट में कहा गया कि कोई भी देश अपने नौनिहालों को टिकाऊ भविष्य देने के पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है। रिपोर्ट के अग्रणी शोधकर्ताओं में से एक यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में प्रो. एंथनी कोटेलो ने कहा कि दुनिया का कोई भी देश ऐसी परिस्थितियां मुहैया नहीं करवा रहा है, जो हर बच्चे के विकसित होने और स्वस्थ्य भविष्य के लिए आवश्यक है। उन्हें जलवायु परिवर्तन तथा व्यावसायिकता का सीधे-सीधे खतरा है।


मिकेला की घोषणा, बनेगी पोर्न स्टार

ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित हॉलीवुड फिल्म मेकर स्टीवन स्पीलबर्ग की बेटी मिकेला स्पीलबर्ग ने पोर्न स्टार बनने की घोषणा कर दी है। मिकेला ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके परिवार ने भी उनके इस फैसला का काफी सपोर्ट किया है। मिकेला ने जैसे ही ये घोषणा की तो हर तरफ इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई. ये कोई पहली बार नहीं है जब कोई पोर्न स्टार इसको लेकर चर्चा में रही है। इससे पहले मिया खलीफा भी कुछ ऐसे ही कारणों के चलते सुर्खियां बटोर चुकी हैं।मिया खलीफा सिर्फ 21 साल की उम्र में पोर्न इंडस्ट्री का जाना-पहचाना नाम बन गई थीं। मिया की लोकप्रियता इस कदर थी कि उन्हें पोर्न हब ने अपनी लिस्ट में सबसे पहले स्थान पर रखा था। यानी मिला सबसे ज्यादा सर्च होने वाली एक्ट्रेस बन गई थीं। अब मिया खलीफा पोर्न इंडस्ट्री को अलविदा कह चुकी हैं और अपनी पर्सनल लाइफ पर पूरा ध्यान दे रही हैं। उन्होंने अपने बॉयफ्रेंड रॉबर्ट सैंडबर्ग से इंगेजमेंट कर ली थी।



मिया खलीफा ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में पोर्न इंडस्ट्री के बारे में अनसुनी बातें बताई थीं। उन्होंने बताया था कि पोर्न इंडस्ट्री कैसे काम करती है और राजी नहीं होने पर क्या पोर्न स्टार्स के साथ जोर-जबरदस्ती की जाती है। 
एक चैनल के प्रोग्राम में मिया खलीफा से जब पूछा गया कि गूगल पर आपका नाम सर्च करते ही कुछ वीडियो आते हैं और क्या आपको लगता है कि आप पोर्न स्टार शब्द से पीछा छुड़ा लोगे? उन्होंने कहा, ‘मैं ज्यादा गूगल फ्रेंडली नहीं हूं। मैं अपने साथ जुड़े पोर्न स्टार शब्द से निकलने का प्रयास कर रही हूं। मैंने विकिपीडिया पर भी पोर्न स्टार हटाने की कोशिश की है, लेकिन कंपनी ने नहीं सुनी।’ मिया खलीफा ने बताया था, ‘उन्हें सड़क पर किसी लड़के ने बताया था कि वह उनके साथ काम करना चाहता है। बाद में मैं जब स्टूडियो में गई तो पता चला यहां पोर्न शूट होती है। वहां काम करने वाले सभी लोग अच्छे लगे। वहां मुझे बिल्कुल भी असहज महसूस नहीं हुआ। पहली बार मैंने पोर्न फिल्म नहीं की थी। पहली बार तो सिर्फ मुझसे बात हुई थी।’ पोर्न स्टार ने आगे बताया, ‘दूसरी बार मैं जब स्टूडियो पहुंची तो मैंने पोर्न मूवी शूट की। स्टूडियो काफी सुंदर था और मेरे साथ कुछ भी ऐसा नहीं हुआ जो मुझे खराब लगता।’


मिया खलीफा से जब पूछा गया कि जब वो लोग आपसे ऐसा एक्ट करने के लिए कहते थे जो आप नहीं करना चाहती हैं तो क्या होता था। मिया खलीफा ने बताया था, ‘नहीं, वो आप पर किसी भी तरह का दवाब नहीं डाल सकते हैं। अगर वो जबरदस्ती कोई भी सेक्स एक्ट जबरदस्ती करवाएंगे तो वह रेप बन जाएगा।’ मिया खलीफा का करियर लोकप्रियता के साथ विवादों में भी रहा है। मिया ने एक वीडियो हिजाब पहनकर शूट की थी, जिसके बाद उन्हें ISIS से धमकी भी मिलने लगी थी। मिया ने बताया था कि धमकियों के चलते अंत में उन्होंने पोर्न इंडस्ट्री छोड़ने का फैसला किया था।


सफलता की दिशा में बढ़ती 'दिशा'

मुंबई। ऐक्ट्रेस दिशा पाटनी बॉलिवुड में अपने लिए एक अलग मुकाम बनाने में धीरे-धीरे ही सही सफल होती दिख रही हैं। हालिया फिल्म मलंग के कारण दिशा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस फिल्म से उनके फैंस खुश हैं। अब दिशा पाटनी बॉलिवुड की टॉप ऐक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा के नक्शेकदम पर चलना चाहती हैं। पाटनी का मानना है कि वह प्रियंका चोपड़ा से बेहद प्रेरित हैं और वह उन्हीं की तरह बनना चाहती हैं।


दिशा पाटनी ने कहा कि वह बॉलिवुड की देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा को काफी फॉलो करती हैं। उन्होंने कहा कि उनके लिए प्रियंका एक प्रेरणा की तरह हैं। दिशा कहती हैं, एक छोटे शहर से आकर ना सिर्फ बॉलिवुड बल्कि आज हॉलिवुड में अपना मुकाम बनाना आसान काम नहीं। प्रियंका ने जो किया है, उससे अपने देश का नाम भी ऊंचा हुआ है।
प्रियंका से खुद को जोड़ते हुए दिशा कहती हैं कि मैं भी उनकी तरह ही एक छोटे शहर बरेली से आती हूं। अपने करियर के बारे में विस्तार से बात करते हुए दिशा कहती हैं, मैं बॉलिवुड में पहले मजबूत पकड़ बनाना चाहती हूं। पाटनी आगे कहती हैं, मैंने यहां सभी बड़े ऐक्टर्स के साथ काम किया है और अच्छे रोल मुझे ऑफर हो रहे हैं। हालांकि दिशा का मानना है कि अभी उन्हें बॉलिवुड में बेहतर मुकाम के लिए काफी काम बाकी है।
यह पूछने पर कि प्रियंका की तरह क्या वह भी हॉलिवुड में जाना चाहती हैं? दिशा ने कहा, सच कहिए तो अभी मैंने इस बारे में कुछ सोचा नहीं है। मेरा कोई एजेंट भी नहीं है, जो मुझे हॉलिवुड तक ले जाए। मैं मानती हूं कि हॉलिवुड के लिए ऑडिशन देना तक इतना आसान नहीं है। मैं फिलहाल बॉलिवुड में अच्छा काम कर रही हूं और भगवान से यही प्रार्थना है कि बेहतर काम यहां करती रहूं।
वर्कफ्रंट की बात करें तो दिशा पाटनी हालिया फिल्म मलंग में दिखी हैं। इस फिल्म में उनके साथ आदित्य रॉय कपूर थे। इसके बाद वह सलमान खान की फिल्म राधे में दिखेंगी। इसे प्रभुदेवा डायरेक्ट कर रहे हैं।


आसिम-सुहाना को लांच करेंगे करण

मुंबई। हाल में बिग बॉस 13 के विजेता की घोषणा हो गई और इस बार के विनर सिद्धार्थ शुक्ला बने। हालांकि इस सीजन में फर्स्ट रनरअप रहे मॉडल आसिम रियाज की भी अच्छी खासी फैन फॉलोइंग है। एक दिन पहले ही कुछ ऐसी खबरें आई थीं कि प्रड्यूसर डायरेक्टर करण जौहर आसिम रियाज को शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान के साथ स्टूडेंट ऑफ द इयर 3 बॉलिवुड में लॉन्च कर सकते हैं। अब इस मुद्दे पर करण जौहर का रिऐक्शन आ गया है। 
करण जौहर ने अपने ऑफिशल ट्विटर अकाउंट पर इन खबरों पर रिऐक्ट किया है। उन्होंने लिखा, स्टूडेंट ऑफ द इयर 3 के बारे में इस समय बिल्कुल बेबुनियाद खबरें बनाई जा रही हैं। मेरा सभी से आग्रह है कि कृपया मनगढंत खबरों को प्रकाशित न करें।


वैसे बता दें कि शाहरुख की बेटी सुहाना के बॉलिवुड डेब्यू का इंतजार फैन्स पिछले काफी समय से कर रहे हैं। अभी तक सुहाना के डेब्यू के बारे में कुछ भी कन्फर्मेशन नहीं मिला है और वह इस समय न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही हैं। वैसे कम ही लोगों को पता है कि आसिम रियाज ने वरुण धवन की फिल्म मैं तेरा हीरो में एक छोटा सा किरदार निभाया था।


विश्व में शिवरात्रि की धूम मची है

आध्यात्म की दृष्टि से भारत दुनिया भर में शानदार देश है। यहां 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा और भी कई ऐसे तीर्थस्थल हैं, जहां भगवान भोलेनाथ के भव्य मंदिर हैं और कई विशेष अवसरों पर देश-दुनिया से शिवभक्तों की भीड़ जुटती है।खासकर महाशिवरात्रि के अवसर पर देशभर के असंख्य शिव मंदिरों में भगवान भोलेनाथ के जयकारे गूंजते हैं। हर ओर भक्तिमय माहौल होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सात समंदर पार भी कई देशों में बम भोले के जयकारे लगते हैं।


देश में जम्मू कश्मीर में अमरनाथ, उत्तराखंड में केदारनाथ, गुजरात में सोमनाथ, उज्जैन में महाकाल, वाराणसी में काशी विश्वनाथ, भुवनेश्वर में लिंगराज, मध्य प्रदेश में खजुराहो जैसे अनेक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिर हैं। इससे इतर भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बड़ी श्रद्धा और निष्ठा के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है।


जम्मू कश्मीर: हमारे पड़ोसी हिंदू देश नेपाल का पशुपतिनाथ महादेव का मंदिर भी विश्वविख्यात है। नेपाली शैली का शानदार उदाहरण यह मंदिर 11वीं सदी में बनवाया गया था, जबकि 17वीं सदी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। यह भव्य मंदिर करीब 4 हजार वर्गमीटर में फैला हुआ है। बागमती नदी के किनारे बने मंदिर में भगवान शिव यहां पंचमुखी शिवलिंग के रूप में पूजे जाते हैं। स्थानीय लोगों के अलावा भारतीय पर्यटक और अन्य देशों से लोग बड़ी संख्या में दर्शन करने पहुंचते हैं।


नेपाल: बात करें पड़ोसी देश श्रीलंका की, तो त्रेतायुग में लंकापति रावण भगवान शिव के बहुत बड़े उपासक थे। यहां के छोटे से गांव मुनेश्वरम में भव्य स्थापत्य कला का प्रतीक शिव मंदिर है, जो दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली में बनवाया गया है। इस परिसर में पांच मंदिर हैं, जिनमें सबसे सुंदर और बड़ा मंदिर भगवान शिव का है। इसका संबंध रामायण काल से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि लंका विजय के बाद भगवान राम ने यहां शिव की आराधना की थी। यहां सालों भर भारत से श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं।


श्रीलंका: स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में शिवा टेंपल के नाम से एक छोटा सा खूबसूरत मंदिर है। इस मंदिर के गर्भगृह में शिव लिंग के पार्श्व में नटराज रूप में शिव एवं देवी पार्वती की प्रतिमाएं हैं। न केवल महाशिवरात्रि, बल्कि भगवान शिव से जुड़े हरेक पर्व यहां भक्ति भाव के साथ मनाया जाता हैै।


 स्विट्जरलैंड: ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न में साल 1987 में शिवा-विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया गया, जहां भगवान शिव और विष्णु के साथ अन्य देवी-देवता भी पूजे जाते हैं। मंदिर का उद्घाटन भारत के कांचीपुरम और श्रीलंका के 10 पुजारियों द्वारा कराया गया था। मंदिर की वास्तुकला भारतीय और ऑस्ट्रेलिया कला का मिश्रण है।


ऑस्ट्रेलिया: मलेशिया में स्थित अरुलमिगु श्रीराजा कली अम्मन मंदिर-जोहोर बरु में स्थित है। पहले मंदिर का रूप छोटा था, जो आज भव्य स्वरूप में परिवर्तित हो गया है। मंदिर का निर्माण साल 1922 के आसपास किया गया। करीब तीन लाख मोतियों को दीवार पर चिपका कर मंदिर के गर्भगृह की सजावट की गई है।


मलेशिया: न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में भगवान शिव नवदेश्वर शिवलिंग के रूप में पूजे जाते हैं। इस मंदिर का निर्माण महामंडलेश्वर स्वामी शिवेंद्र महाराज एवं यज्ञ बाबा के मार्गदर्शन में हिन्दू शास्त्रों के अनुरूप कराया गया था। साल 2004 में इस शिव मंदिर को भक्तों के लिए खोला गया।


न्यूजीलैंड: इन मंदिरों के अलावा दुनियाभर के कई देशों में भगवान शिव के मंदिर हैं, जहां पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा की जाती है। मलेशिया की राजधानी क्वालालंपुर में भी भगवान शिव का मंदिर है, वहीं कैलिफोर्निया के लिवेरमोरे में और इंडोनेशिया के जावा द्वीप में भी भगवान भोलेनाथ के मंदिर हैं। भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी वाले मॉरीशस में तो भगवान शिव की पूजा देखने लायक होती है।


बढ़ रही है भूख 'समसामयिक'

लिमटी खरे


परिवर्तन प्रकृति का नियम है, साल दर साल, दशक दर दशक रहन सहन, खान पान आदि में परिवर्तन आना आम बात है। यह परिवर्तन अगर समाज या व्यक्ति के हित में है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए, पर दिखावे, चोचलों के लिए अगर परिवर्तन का लबादा ओढ़ा जा रहा है तो इसकी निंदा करते हुए इसे त्यागने की महती जरूरत है। शादी ब्याह या अन्य आयोजनों में पहले जहां कुछ दशक पहले तक पुड़ी, सब्जी, रायता, पुलाव, पापड़, बूंदी, एक मिठाई और छांछ से ही काम चल जाया करता था, अब इसका स्थान अनेक तरह के व्यंजनों ने ले लिया है। थाली का आकार तो नहीं बढ़ा, यह घटता ही चला गया, पर पकवानों की तादाद में कई गुना बढ़ोत्तरी हो चुकी है। पहले हलवाईयों (खाना बनाने वालों) के पास चुनिंदा आईटम ही हुआ करते थे, जिसके चलते लोगों के पास कम विकल्प होते थे, पर अब तो केटरिंग का व्यवसाय करने वाले व्यवसाईयों के पास उनके मेन्यू में कम से कम एक हजार तरह के आईटम देखने को मिलते हैं। पुड़ी की ही अगर बात की जाए तो आज कम से कम दो दर्जन से ज्यादा प्रकार की पुड़ी परोसी जाती हैं।


कुछ समय पहले तक महानगरों या बड़े शहरों में ही मंहगी शादियों और रिसेप्शन का चलन हुआ करता था। अब इस तरह परंपराओं ने गांव तक में पैर पसार लिए हैं। गांव में पुड़ी, सब्जी, रायता आदि के बजाए अब आधुनिक तरह से टेबिल पर खाना लगाया जाकर खिलाने का चलन चल पड़ा है। पंगतों में बिठाकर, दोना पत्तल में खिलाने का रिवाज अब इतिहास में शामिल हो चुका है। अब तो खड़े होकर खाने का चलन है। शादी ब्याह या अन्य आयोजनों में सबसे ज्यादा खर्च सजावट, दिखावे और खानपान में किया जाता है। कार्यक्रम समाप्त होने पर सजावट को अलग कर दिया जाता है। जितने लोगों के हिसाब से खाना बनाया जाता है, वह अक्सर बच जाता है जिसके चलते केटरिंग वाले इसे नाली में बहा देते हैं। इसका कारण यह है कि पशुओं को वे कहां खोजें, भूखे जरूरत मंद लोगों को खोजने में वे अपना समय जाया करना नहीं चाहते। शादी ब्याह के उपरांत दूसरे दिन पंडाल के आसपास मख्खियां भिनभिनाते देखी जा सकती हैं।


जब टेबिल पर चार तरह की पुड़ी, तीन तरह की रोटी, दस तरह की सब्जियां, दो से तीन तरह की दाल, पच्चीस तरह की सलाद, एक दर्जन से ज्यादा प्रकार के अचार, तीन तरह के पुलाव या चावल, चायनीज, चाट, पकौड़े, दस तरह की मिठाईयां, तीन तरह के रायते, चार तरह के पापड़ होंगे तो आप सभी को एक एक बार चखने का प्रयास जरूर करेंगे। जो आपको पसंद आएगा, वह आप खाएंगे, पर जो आपकी थाली में बच गया है, उसे आप वापस तो रखने से रहे। देश सहित दुनिया भर में थाली में बचा खाना कितनी बड़ी समस्या है इस बात का अंदाजा अनेक तरह के सर्वेक्षण के बाद आई रिपोर्टस के आधार पर लगाया जा सकता है।


कहा जाता है कि दुनिया भर में एक बार खाने के लिए जितना भोजन तैयार किया जाता है उसका एक तिहाई भोजन बर्बाद हो जाता है। इस भोजन की तादाद इतनी होती है कि दुनिया भर के दो अरब लोग इसे खा सकते हैं। अन्न की बर्बादी को देखकर सरकारें चिंतित दिखतीं हैं तो गैर राजनैतिक सामाजिक संगठनों की पेशानी पर भी इसे लेकर बल पड़ते दिखते हैं, पर इसके बाद भी इस बर्बादी को रोकने की दिशा में किसी तरह की ठोस पहल का न हो पाना आश्चर्य जनक ही माना जाएगा।


भारत के बारे में ही अगर बात की जाए तो देश की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ अन्नदाता किसान को ही माना जाता है। जब भी आप सड़क या रेल मार्ग के जरिए कहीं से गुजरते हैं तो आपको आसपास लहलहाते खेत दिखाई दे जाते हैं। देश में अन्न की खासी पैदावार है। एक अनुमान के हिसाब से देश में लगभग 25 करोड़ टन से ज्यादा खाद्यान्न का उत्पादन होता है। अब आप अंदाजा लगाईए कि इतनी विपुल मात्रा में अन्न के उत्पादन के बाद भी देश में हर चौथा व्यक्ति भूखा ही सोने पर मजबूर है।


किसानों को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने के लिए सरकारों के द्वारा तरह तरह की योजनाएं बनाई गईं हैं। इन योजनाओ की जमीनी हकीकत क्या है इसे देखने की फुर्सत शायद किसी को नहीं मिल पाती है। सरकारी स्तर पर किसानों की धान, गेंहूं आदि को समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है। इसके उचित रखरखाव के चलते इसमें से लगभग तीस से चालीस फीसदी अनाज या तो सड़ जाता है या अंकुरित हो जाता है। ऐसा नहीं है कि हुक्मरान इस बात से वाकिफ नहीं हैं! इसके बाद भी अन्न की बर्बादी रूकने का नाम नहीं ले रही है। एक अनुमान के अनुसार देश में हर साल इक्कीस सौ करोड़ किलो गेहूॅ बर्बाद हो जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महज इतना ही गेंहूॅ आस्ट्रेलिया में हर साल पैदा किया जाता है।


भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 21 करोड़ टन सब्जियां और 12 करोड़ टन फल सिर्फ इसलिए खराब हो जाता है क्योंकि वितरण प्रणाली में अनेक तरह की खामियां हैं। हाल ही में ग्लोबल हंगर इंडेक्स (विश्व भूख सूचकांक) 2018 जारी हो गया है। इस सूचकांक के अनुसार देश में भुखमरी की स्थिति बहुत खराब है। इस सूचकांक में विश्व के 119 देशों का समावेश किया गया था, जिसमें भारत का स्थान अंत से महज पंद्रह ऊपर अर्थात 103वीं पायदान पर है।


इस सूचकांक में भारत के लिए राहत की बात सिर्फ यह मानी जा सकती है कि वह पाकिस्तान (जो 106 पायदान पर है) से आगे है, पर नेपाल और बंग्लादेश जैसे देशों से भारत बहुत पीछे है। भारत पिछले साल 100वें स्थान पर था। इस सूचकांक का अगर अध्ययन किया जाए तो छः करोड़ अस्सी लाख लोग आज भी रिफ्यूजी कैंप में रहने को मजबूर हैं। 2014 के बाद विश्व भूख सूचकांक में भारत की स्थिति में लगातार ही गिरावट दर्ज की जाती रही है। 2014 में भारत 55वें स्थान पर था, तो 2015 में यह 80वें स्थान पर जा पहुंचा और 2016 में 97वें स्थान पर तो 2018 में यह सौवें स्थान पर पहुंचा और पिछले साल तीन पायदान उतरकर यह 103वें स्थान पर आ गया।


एक आंकलन के अनुसार देश में लगभग बीस करोड़ से अधिक लोग कुपोषित माने जाते हैं। देश में अन्न की बरबादी हो रही है वहीं दूसरी ओर कुपोषत लोगों की तादाद बढ़ती ही जा रही है। इस तरह के आंकड़े निश्चित तौर पर रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा करने के लिए पर्याप्त माने जा सकते हैं।


कुछ शहरों में रोटी बैंक की शुरूआत की गई है। उत्साही युवाओं के द्वारा सोशल मीडिया व्हाट्सऐप और फेसबुक पर घरों में बचने वाली रोटी, दाल, सब्जी आदि को दान देने की अपीलें की जा रहीं हैं। युवा बचे हुए खाने को एकत्र कर जरूरत मंद लोगों तक इसे ले जा रहे हैं। कमोबेश हर शहर में एक कचरा गाड़ी मोहल्ले मोहल्ले से होकर गुजरती है। इस कचरा गाड़ी में चालक के बाजू वाली सीट को निकालकर अगर उसमें रोटी और सब्जी, दाल आदि के लिए पात्र रखवा दिए जाएं तो लोगों के घरों में बचा खाना लोग इसमें डाल सकते हैं। स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए इस खाने को जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जा सकता है।


इसके अलावा शादी ब्याह में कैटरिंग करने वालों को भी जिला स्तर पर प्रशासन के द्वारा ताकीद किया जा सकता है कि बचे हुए खाने को उनके द्वारा एक निर्धारित स्थान पर ले जाकर छोड़ दिया जाए। इस खाने को भी स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए जरूरत मंद लोगों में बटवाया जा सकता है। देश भर में शहरों के हिसाब से एक मोबाईल या हेल्प लाईन नंबर भी जारी किया जा सकता है, जिस पर कॉल करने पर प्रशासन के द्वारा निर्धारित संस्थाओं के सदस्यों के द्वारा घरों घर से बचा हुआ भोजन एकत्र किया जा सकता है। देखा जाए तो सरकार को शादी ब्याह एवं अन्य समारोहों में मेहमानों की संख्या निर्धारित करने के लिए कानून भी बनाया जाना चाहिए। 2011 में यूपीए सरकार ने इसकी पहल भी की थी, पर यह भी परवान नहीं चढ़ पाया।


दूषित जल से जूझते नागरिक

शरद खरे


सिवनी। जिला मुख्यालय में नागरिक दूषित जल के कारण बीमार पड़ रहे हैं। नगर पालिका परिषद इस मसले पर पूरी तरह मौन ही अख्तियार किये हुए है। पालिका का यह दायित्व है कि वह लोगों को साफ और पीने योग्य जल मुहैया कराये। नगर पालिका अपने दायित्वों को भूलकर तरह तरह के बहानेबाजी में ही उलझी दिख रही है।


शहर में पानी किस तरह का प्रदाय हो रहा है, इस बारे में देखने सुनने की फुर्सत चुने हुये पार्षदों को भी शायद नहीं है। पालिका का अपना जलकार्य विभाग है। जलकार्य विभाग क्या कार्य कर रहा है, इस बारे में भी किसी को कुछ नहीं पता है। सभी के सभी 62 करोड़ 55 लाख रुपये की जुगत में उलझे दिखते हैं। तत्कालीन निर्दलीय विधायक दिनेश राय ने भी बबरिया जलावर्धन की जाँच की। वहाँ जल शोधन सामग्री अमानक पाये जाने के बाद भी पालिका ने इस दिशा में कोई सुधार नहीं किया।


शहर में पानी गंदा क्यों आ रहा है, इस बारे में पालिका के अधिकारियों का अलग आलाप है। अधिकारियों का कहना है कि पानी गंदा इसलिये आ रहा है क्योंकि जल प्रदाय की पाइप लाइन, नाले नालियों में से होकर गुजरती है। इसमें कहीं लीकेज होने पर गंदगी, पानी के साथ आ जाती है।पालिका की दलील, हो सकता है सही हो पर इस सबसे नागरिकों को क्या सरोकार होना चाहिये? जाहिर है नहीं, क्योंकि पालिका की यह नैतिक जवाबदेही है कि वह लोगों को दो नहीं तो कम से कम एक ही वक्त साफ और पर्याप्त पानी तो मुहैया कराये। पालिका के पास अपना एक इंजीनियरिंग अमला है। क्या इंजीनियरिंग अमला यही देखने बैठा है कि कहाँ पाईप लीकेज है और गंदगी उससे जा रही है। पालिका के तकनीकि अमले का यह दायित्व है कि वह उन स्थानों पर जहाँ पाईप लीकेज है वहाँ उसे दुरूस्त करे।


वर्षों से यही देखने में आ रहा है कि पालिका का अमला यह कहकर अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर रहा है कि पाइप के लीकेज से गंदगी जा रही है। अगर ऐसा है तो लाखों करोड़ों रूपयों की फिटकरी खरीदकर जल शोधन का क्या औचित्य है, जाहिर है नहीं। लोगों को अगर गंदा पानी ही पीना है तो फिर शासन के लाखों करोड़ों रूपयों की होली क्यों?


यह आलम तब है जब दिनेश राय वर्तमान में भाजपा के विधायक हैं। जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह ने भी पिछले साल 28 फरवरी तक का अल्टीमेटम ठेकेदार को इस जलावर्धन योजना को आरंभ करवाने के लिये दिया है। वैसे देखा जाये तो बड़े संपन्न लोग तो घरों में आरओ फिल्टर के जरिये शोधित पानी को पी रहे होंगे किन्तु आम जनता का क्या? आम जनता तो गंदा, बदबूदार, दूषित पानी पीकर बीमार हो रही है। इस मामले में चुनी हुई परिषद भी मौन ही साधे बैठी है। वार्ड के पार्षद भी निश्चिंत हैं मानो सब कुछ ठीक ठाक ही है। जिलाधिकारी प्रवीण सिंह अब नगर पालिका के प्रशासक बन चुके हैं तब उनसे जनापेक्षा है कि इस मामले में पहल कर जनता को कम से कम साफ पानी ही मुहैया करवायें।


 


कबाड़ी को बेची 100 डायल इनोवा कार

मुजफ्फरनगर। अखिलेश सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना यूपी डायल 100 की इनोवा तीन साल में नीलाम हो गई है। ये गाड़ी मामूली दुघर्टना में क्षतिग्रस्त हुई थी, जोकि आसानी से ठीक हो सकती थी। मुजफ्फरनगर पुलिस ने औने- पौने दामों पर इनोवा को नीलाम कर अब आम लोगों का वाहन बनाने का काम किया है। गाड़ी को सोतीगंज के कबाड़ियों ने चार लाख में खरीद लिया है, जिसकी मरम्मत शुरू कर दी गई। कबाड़ी का दावा है कि दस दिन में आरटीओ से इनोवा के नए कागज भी बन जाएंगे।  
 
चोरी और लूट के वाहन का सोतीगंज कमेला बन चुका है। सोतीगंज के कबाड़ियों के शहर में कई ठिकाने भी हैं। जहां पर वाहनों का कटान हो रहा है। सदर स्थित चाट बाजार के पास सोतीगंज के कबाड़ियों का नया अड्डा बना। जहां पर 2017 मॉडल की डायल 100 इनोवा को एक क्रेन से लाया गया। अमर उजाला ने कबाड़ी के हाथों में डायल 100 की इनोवा को मोबाइल में कैद कर लिया। कबाड़ी ने बताया कि मुजफ्फरनगर से इनोवा को नीलामी में छुड़वाया है। जिसकी वह मरम्मत करके नए रजिस्ट्रेशन पर आम लोगों का वाहन बनाएगा। उसने बताया कि उसकी आरटीओ से भी बात हो गई है। गाड़ी का एक ही हिस्सा क्षतिग्रस्त था, जबकि इंजन से लेकर अन्य गाड़ी का हिस्सा ठीक है। तीन साल में गाड़ी कबाड़ी के हाथों में पहुंच गई इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि तीन साल पुरानी गाड़ी की नीलामी नहीं हो सकती। इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए। 


पुलिस पर सवाल: पुलिस के वाहनों की मरम्मत कराने और उनकी देखरेख के लिये पुलिस में अलग से एमटी (मोटर ट्रांसपोर्ट) विभाग बना है। इसके बावजूद भी डायल 100 की गाड़ी को इस विभाग ने ठीक कराना उचित नहीं समझा। जबकि यह इनोवा मामूली दुघर्टना में ही क्षतिग्रस्त हुई है। वहीं, नीलामी में इनोवा को छुड़ाने वाला कबाड़ी दावा कर रहा है कि दस दिन में इनोवा नए कागजों के साथ सड़क पर दौड़ती नजर आएगी।


सपा और अब भाजपा की: सपा सरकार ने करोड़ों रुपये की लागत से लखनऊ में अत्याधुनिक कंट्रोल रूम बनाया। पुलिसिंग बेहतर करने के लिए ढाई साल पहले सभी जिले को डायल 100 की इनोवा और बोलेरो गाड़ी दी। जिनका रजिस्ट्रेशन 2017 का है। मेरठ में 61, मुजफ्फरनगर में 54 गाड़ियां दी गईं। भाजपा सरकार में इसका नाम डायल 112 हो गया। सीएम आदित्यनाथ ने पुलिस को निर्देश दिए कि डायल 112 को और भी सशक्त करें, ताकि परेशानी होने पर यह वाहन सबसे पहले उसके पास पहुंचे। लेकिन बृहस्पतिवार को सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना कबाड़ियों के हाथों में दिखाई दी। 


इसकी जांच होगी: एडीजी मेरठ जोन प्रशांत कुमार का कहना है कि डायल 100 की इनोवा मुजफ्फरनगर में नीलाम हुई है, गाड़ी कितनी क्षतिग्रस्त है, इसका टेक्निकल मुआयना हुआ है या नहीं, इसकी जांच होगी। पुलिस का कोई वाहन बिना जांच के नीलाम नहीं हो सकता। मुजफ्फरनगर पुलिस से जानकारी की जाएगी।


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रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा 16.37 लाख के पार हुआ  पंकज कपूर  देहरादून। उत्तराखंड में चारधाम यात्रा 2024 को लेकर यात्रियों में गजब का उत्साह देखा जा...