सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

सामाजिक पशु कमिलिड अथवा लामा

लामा (Lama glama), एक कैमिलिड पशु है जो दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है। इसे एक पालतू पशु के रूप में एंडियन लोगों द्वारा प्रागैतिहासिक काल से भी पहले से पाला जाता है और यह उनकी बोझा ढोने, ऊन और मांस की आवश्यकताओं को पूरा करता है।पूर्ण विकसित लामा की ऊँचाई 1.7 मीटर (5.5 फुट) से 1.8 मीटर (6 फुट) तक होती है। इनका वजन 130 किग्रा (280 पाउंड) and 200 किग्रा (450 पाउंड) के बीच होता है। जन्म के समय एक लामा छौने, जिसे क्रिआ कहते हैं का वजन 9.1 किग्रा (20 पाउंड) and 14 किग्रा (30 पाउंड) के बीच हो सकता है। लामा एक सामाजिक पशु है और यह दूसरे लामाओं के साथ झुंड में रहना पसन्द करते हैं। इनसे प्राप्त ऊन अत्यन्त मुलायम और लैनोलिन (अंग्रेजी: Lanolin; ऊन का मोम) से मुक्त होता है। लामा एक बुद्धिमान प्राणी है जो किसी सरल काम को कुछ प्रयासों के बाद करना सीख सकता है। यदि किसी लाम को बोझा ढोने के काम में लगाया जाये तो यह अपने वजन का 25% से 30% तक वजन कुछ मीलों तक ढो सकते हैं।


लामाओं का प्रादुर्भाव उत्तरी अमेरिका के मैदानों में लगभग ४ करोड़ वर्ष पहले हुआ था। जहां से प्रवास कर दक्षिण अमेरिका में आये। पिछले हिमयुग के अंत में (10,000–12,000 वर्ष पहले) उत्तरी अमेरिका से कैमेलिड विलुप्त हो गये। 2007 तक दक्षिण अमेरिका में लगभग 70 लाख लामा और अलपाका थे और 20 वीं सदी के अंत में आयात होने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में इनकी संख्या क्रमश: 158000 और 100000 के करीब है।


'जेवर' की घटती आबादी

जेवर (western tragopan) या (western horned tragopan) (Tragopan melanocephalus) एक मध्य आकार का फ़ीज़ॅन्ट कुल का पक्षी है जो हिमालय में पश्चिम में उत्तरीय पाकिस्तान के हज़ारा से पूर्व में भारत के उत्तराखण्ड तक पाया जाता है।इस जाति को आईयूसीएन लाल सूची के अंतर्गत असुरक्षित वर्ग में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि इसकी छोटी और छितरी हुयी आबादी घटती जा रही है और निरन्तर वनोन्मूलन और वनों के घटने के कारण इसका संकुचित क्षेत्र खण्डित होता जा रहा है।


आकार:-नर का आकार लगभग २८ इंच (७२ से.मी.) का होता है जबकि मादा का आकार तक़रीबन २४ इंच (६१ से.मी.) तक का होता है। नर की पूँछ की लंबाई लगभग १०.५ इंच (२७ से.मी.) जबकि मादा की पूँछ लगभग ८ इंच (२१ से.मी.) तक की होती है। पंखों का फैलाव नर में क़रीब ११ इंच (२८ से.मी.) तथा मादा में ९.५ इंच (२४ से.मी.) तक का होता है।


आहार:-इस पक्षी का आहार मूलतः वृक्षों और बांस की पत्तियाँ होता है।


आवास:-यह प्रायः जंगलों में रहने वाला पक्षी है और ग्रीष्म ऋतु में पहाड़ों के हिम क्षेत्रों के आसपास ही रहना पसंद करता है जबकि शीत ऋतु में यह ५,००० फ़ीट की ऊँचाई तक उतर आता है।


प्रजनन:-यह पक्षी अप्रैल से मई तक प्रजनन करते हैं और इनके घोंसले में छः अण्डे भी देखे गये हैं।


खजूर का गुण और उपयोग

हम भोजन में यूं तो कई पदार्थ खाते हैं, लेकिन कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जिन्हें मौसम विशेष के अलावा वर्षभर प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे ही पदार्थों की जानकारी इस कॉलम के माध्यम से हम देना चाहते हैं। इस बार खारक के संबंध में जानिए।


छुहारे को खारक भी कहते हैं। यह पिण्ड खजूर का सूखा हुआ रूप होता है, जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और मुनक्का होता है। छुहारे का प्रयोग मेवा के रूप में किया जाता है। इसके मुख्य भेद दो हैं- 1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर।


गुण : यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खांसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह शीतवीर्य होता है, पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।


परिचय : यह 30 से 50 फुट ऊंचे वृक्ष का फल होता है। खजूर, पिण्ड खजूर और गोस्तन खजूर (छुहारा) ये तीन भेद भाव प्रकाश में बताए गए हैं। खजूर के पेड़ भारत में सर्वत्र पाए जाते हैं। सिन्ध और पंजाब में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती है। पिण्ड खजूर उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, सीरिया और अरब देशों में पैदा होता है। इसके वृक्ष से रस निकालकर नीरा बनाई जाती है।


रासायनिक संघटन : इसके फल में प्रोटीन 1.2, वसा 0.4, कार्बोहाइड्रेट 33.8, सूत्र 3.7, खनिज द्रव्य 1.7, कैल्शियम 0.022 तथा फास्फोरस 0.38 प्रतिशत होता है। इस वृक्ष के रस से बनाई गई नीरा में विटामिन बी और सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। कुछ समय तक रखने पर नीरा मद्य में परिणत हो जाती है। पके पिण्ड खजूर में अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्व होते हैं और शर्करा 85 प्रतिशत तक पाई जाती है।


उपयोग : खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है।


विश्व का दूसरा बड़ा महासागर

अन्ध महासागर या अटलांटिक महासागर उस विशाल जलराशि का नाम है जो यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीपों को नई दुनिया के महाद्वीपों से पृथक करती है। क्षेत्रफल और विस्तार में दुनिया का दूसरे नंबर का महासागर है जिसने पृथ्वी का १/५ क्षेत्र घेर रखा है। इस महासागर का नाम ग्रीक संस्कृति से लिया गया है जिसमें इसे नक्शे का समुद्र भी बोला जाता है। इस महासागर का आकार लगभग अंग्रेजी अक्षर 8 के समान है। लंबाई की अपेक्षा इसकी चौड़ाई बहुत कम है। आर्कटिक सागर, जो बेरिंग जलडमरूमध्य से उत्तरी ध्रुव होता हुआ स्पिट्सबर्जेन और ग्रीनलैंड तक फैला है, मुख्यतः अंधमहासागर का ही अंग है। इस प्रकार उत्तर में बेरिंग जल-डमरूमध्य से लेकर दक्षिण में कोट्सलैंड तक इसकी लंबाई १२,८१० मील है। इसी प्रकार दक्षिण में दक्षिणी जार्जिया के दक्षिण स्थित वैडल सागर भी इसी महासागर का अंग है। इसका क्षेत्रफल इसके अंतर्गत समुद्रों सहित ४,१०,८१,०४० वर्ग मील है। अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर इसका क्षेत्रफल ३,१८,१४,६४० वर्ग मील है। विशालतम महासागर न होते हुए भी इसके अधीन विश्व का सबसे बड़ा जलप्रवाह क्षेत्र है। उत्तरी अंधमहासागर के पृष्ठतल की लवणता अन्य समुद्रों की तुलना में पर्याप्त अधिक है। इसकी अधिकतम मात्रा ३.७ प्रतिशत है जो २०°- ३०° उत्तर अक्षांशों के बीच विद्यमान है। अन्य भागों में लवणता अपेक्षाकृत कम है।


अंध महासागर की पृष्ठधाराएँ नियतवाही पवनों के अनुरूप बहती हैं। परंतु स्थल खंड की आकृति के प्रभाव से धाराओं के इस क्रम में कुछ अंतर अवश्य आ जाता है। उत्तरी अन्ध महासागर की धाराओं में उत्तरी विषुवतीय धारा, गल्फ स्ट्रीम, उत्तरी अन्ध प्रवाह, कैनेरी धारा और लैब्रोडोर धाराएँ मुख्य हैं। दक्षिणी अन्ध महासागर की धाराओं में दक्षिणी विषुवतीय धारा, ब्राजील धारा, फाकलैंड धारा, पछवाँ प्रवाह और बैंगुला धाराएँ मुख्य हैं।


व्यापार का आधार 'स्वेज नहर'

स्वेज नहर (Suez canal) लाल सागर और भूमध्य सागर को संबंद्ध करने वाली एक नहर है। सन् 1859 में एक फ्रांसीसी इंजीनियर फर्डीनेण्ड की देखरेख में स्वेज नहर का निर्माण शुरु हुआ था। यह नहर आज 162 किमी लंबी, 60 मी चौड़ी और औसत गहरी 16.5 मी है। दस वर्षों में बनकर यह तैयार हो गई थी। सन् 1869 में यह नहर यातायात के लिए खुल गई थी। पहले केवल दिन में ही जहाज नहर को पार करते थे पर 1887 ई. से रात में भी पार होने लगे। 1866 ई. में इस नहर के पार होने में 36 घंटे लगते थे पर आज 18 घंटे से कम समय ही लगता है। यह वर्तमान में मिस्र देश के नियंत्रण में है। इस नहर का चुंगी कर बहुत अधिक है। इस नहर की लंबाई पनामा नहर की लंबाई से दुगुनी होने के बाद भी इसमें पनामा नहर के खर्च का 1/3 धन ही लगा है।


इतिहास:-इस नहर का प्रबंध पहले "स्वेज कैनाल कंपनी" करती थी जिसके आधे शेयर फ्रांस के थे और आधे शेयर तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों के थे। बाद में मिस्र और तुर्की के शेयरों को अंग्रेजों ने खरीद लिया। 1888 ई. में एक अंतरराष्ट्रीय उपसंधि के अनुसार यह नहर युद्ध और शांति दोनों कालों में सब राष्ट्रों के जहाजों के लिए बिना रोकटोक समान रूप से आने-जाने के लिए खुली थी। ऐसा समझौता था कि इस नहर पर किसी एक राष्ट्र की सेना नहीं रहेगी। किन्तु अंग्रेजों ने 1904 ई. में इसे तोड़ दिया और नहर पर अपनी सेनाएँ बैठा दीं और उन्हीं राष्ट्रों के जहाजों के आने-जाने की अनुमति दी जाने लगी जो युद्धरत नहीं थे। 1947 ई. में स्वेज कैनाल कंपनी और मिस्र सरकार के बीच यह निश्चय हुआ कि कंपनी के साथ 99 वर्ष का पट्टा रद्द हो जाने पर इसका स्वामित्व मिस्र सरकार के हाथ आ जाएगा। 1951 ई. में मिस्र में ग्रेट ब्रिटेन के विरुद्ध आंदोलन छिड़ा और अंत में 1954 ई. में एक करार हुआ जिसके अनुसार ब्रिटेन की सरकार कुछ शर्तों के साथ नहर से अपनी सेना हटा लेने पर राजी हो गई। पीछे मिस्र ने इस नहर का 1956 में राष्ट्रीयकरण कर इसे अपने पूरे अधिकार में कर लिया।


उपयोगिता:-इस नहर के कारण यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका का सरल और सीधा मार्ग खुल गया और इससे लगभग 6,000 मील की दूरी की बचत हो गई। इससे अनेक देशों, पूर्वी अफ्रीका, ईरान, अरब, भारत, पाकिस्तान, सुदूर पूर्व एशिया के देशों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के साथ व्यापार में बड़ी सुविधा हो गई है और व्यापार बहुत बढ़ गया है।


भगवान राम का उपदेश

भगवान राम का उपदेश 
जीते रहो! आज हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे थे! यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा, आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया हमारे यहां परंपरागतो से ही उस मनोहर वेद वाणी का प्रसार होता रहता है! जिस पवित्र वेद वाणी में उस मेरे देव परमपिता परमात्मा की महती का वर्णन किया जाता है! क्योंकि वह परमपिता परमात्मा वर्णनीय माने गए हैं और जो भी मानव उसको अपना वर्णन बना लेता है! वह प्राय: उसी को प्राप्त हो जाता है! इसलिए हमारा वेद मंत्र यह कहता है! हे मानव, तू प्रभु को अपना वर्णनीय बना, क्योंकि उसका वर्णन और अपना ना बहुत अनिवार्य है! उसको अपनाने वाला प्राणी संसार में महान और पवित्र बन जाता है! आने वाले काल में बेटा उसकी बहुत प्रशंसा होती है! वह वर्तमान में भी प्रंस्सनीय हो जाता है और आने वाला जो जगत है उसमें उसकी महान कृतियों का प्रदर्शन होता रहता है! तो इसलिए हमारा वेद मंत्र कहता है! हे मानव, तू परमपिता परमात्मा को अपना वर्णन बना,क्योंकि उसको वरण करने वाला यज्ञपुरुष कहलाता है! उसको अपनाने वाला बेटा अध्यात्मिक विज्ञानवेता कहलाता है! अध्यात्मिकता में मानव की प्रतिष्ठा नहीं रहती है! तो आओ मेरे प्यारे हम परमपिता परमात्मा को अपना वर्णनीय स्वीकार करें! उसको अपने में धारण करते हुए महान और पवित्रता की उस पगडंडी को ग्रहण करने वाले बने! उस पगडंडी को ग्रहण करने वाले नाना ॠषिवर अपने प्रभु के आंगन में उसकी ज्ञानमयी धारा में रत हो गए हैं! आज का हमारा वेद मंत्र हमें यह उच्चारण कर रहा है कि हम उस देव की महिमा का गुणगान गाने वाले बने! हम उस महान जगत को जो आंतरिक और ब्रह् जगत में दोनों में अपनी प्रतिष्ठा में निहित रहता है! हम उस अपने प्रभु का गुणगान गाते हुए इस सागर से पार होना चाहते हैं! जो नाना प्रकार का यह संसार सागर के रूप में हमें दृष्टिपात आता रहता है! इसमें नाना प्रकार के उद्घोष होते रहते हैं और वह उद्घोष बड़े उच्च विचित्र आभा में, आंगन में प्रवेश करते रहते हैं! आज का हमारा वेद मंत्र क्या कह रहा है? आज का हमारा वेद मंत्र यज्ञ के संबंध में और प्राण के संबंध में बड़ी ऊंची वार्ता कह रहा है! क्योंकि वायुमंडल को पवित्र बनाते हुए हम आध्यात्मिक विज्ञानवेता बने और विज्ञान में हम परिणत हो जाए! जिस विज्ञान के लिए मानव परंपरागतो से ललायित हो रहा है और जिस विज्ञान के लिए मानव ऊंची-ऊंची उड़ान उड़ रहा है! हम उसी ज्ञान, हम उस विज्ञानवेता के स्वाध्याय में अपने को ले जाते चले जाएं! जिससे मानव समाज का वास्तव में कल्याण हो जाए! वेद का वाक्य कहता है! मानव को प्रणायाम करना चाहिए, प्राण की प्रतिष्ठा में व्रत रहना चाहिए! जैसे प्राण अपने में गतिशील है, गति देने वाला है तो मानव उस प्रभु को अपना गतिशील स्वीकार करते हुए, अपने मनोनीत हृदय को ऊंचा बनाना चाहते हुए इस संसार को प्रतिभा में हम इसमें प्रतिनिधित्व करने वाले बने! जिससे हमारे जीवन की धारा एक महानता में परिणत हो जाए! मैं आज तुम्हें उस क्षेत्र में ले जा रहा हूं! जिस क्षेत्र की चर्चा बेटा में पुन:-पुन: प्रकट करता रहता हूं!


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 22, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-79 (साल-01)
2. मंगलवार ,22 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष, तिथि- नवमी, संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:20,सूर्यास्त 05:55
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-30+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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