शनिवार, 12 दिसंबर 2020

त्रिशाला ने दिया पिता के अडिक्शन पर जवाब

संजय दत्त की सायकोथेरपिस्ट बेटी त्रिशाला ने दिया पिता के ड्रग अडिक्शन पर जवाब

मनोज सिंह ठाकुर
मुंबई। संजय दत्त की बेटी त्रिशाला दत्त सायकोथेरपिस्ट हैं। वह सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव हैं। इंस्टाग्राम पर त्रिशाला ने फॉलोअर्स के सवालों के जवाब दिए हैं। इनमें एक यूजर ने उनके पिता संजय दत्त के ड्रग अडिक्शन से जुड़ा सवाल किया है। त्रिशाला ने इसका लंबा-चौड़ा और काफी अच्छा जवाब दिया है। इसको उन्होंने अपनी इंस्टा स्टोरी पर शेयर भी किया है।
संजय दत्त की बेटी त्रिशाला दत्त सायकोथेरपिस्ट हैं। वह सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव हैं। इंस्टाग्राम पर त्रिशाला ने फॉलोअर्स के सवालों के जवाब दिए हैं। इनमें एक यूजर ने उनके पिता संजय दत्त के ड्रग अडिक्शन से जुड़ा सवाल किया है। त्रिशाला ने इसका लंबा-चौड़ा और काफी अच्छा जवाब दिया है। इसको उन्होंने अपनी इंस्टा स्टोरी पर शेयर भी किया है।
लत लगने पर इंसान खो देता है कंट्रोल
यूजर ने पूछा है, क्योंकि आप साइकॉलजिस्ट हैं, आपके पिता के ड्रग अडिक्शन पर आपका क्या कहना है? इस पर त्रिशाला ने जवाब दिया है, पहली बात तो यह ध्यान देना जरूरी है कि अडिक्शन एक क्रोनिक डिजीज है, जिसमें ड्रग्स लेना मजबूरी बन जाता है और इंसान का कंट्रोल नहीं होता, जबकि इसके परिणाम नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं। शुरुआत में सब लोग अपनी इच्छा से ड्रग्स लेते हैं लेकिन बार-बार ड्रग्स लेने से दिमाग में बदलाव हो जाता है और अडिक्टेड इंसान का खुद पर नियंत्रण नहीं रहता है और दिमाग ड्रग्स लेने को काबू करने की इच्छाशक्ति को रोकने लगता है।
हमेशा रहते हैं बीमारी के वापस आने के चांस
दिमाग के बदलाव इतने गहरे होते हैं कि यह बीमारी वापस आने वाली मानी जाती है। ड्रग के उपयोग से डिसऑर्डर के शिकार हुए लोग जब ठीक होने की प्रक्रिया में होते हैं तो ड्रग्स की तरफ वापस आने का खतरा रहता है चाहे वो कई साल पहले ड्रग्स छोड़ चुके हों। त्रिशाला ने यूजर को ड्रग अडिक्शन के कॉम्प्लिकेशंस समझाए हैं आखिर में संजय दत्त के बारे में लिखा है।
पिता पर गर्व है, नहीं है शर्मिंदा होने वाली बात
त्रिशाला ने लिखा है, जब मेरे पिता के पुराने ड्रग अडिक्शन की बात आती है तो वह हमेशा ठीक होने की प्रक्रिया में रहेंगे। यह एक बीमारी है जिससे उन्हें हर दिन लडऩा है, जबकि वह अब इसे ले भी नहीं रहे। मुझे अपने पिता पर गर्व है कि उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें यह समस्या थी, इनीशिएटिव लिया और मदद लेने आगे आए। इसमें एक रत्ती शर्मिंदा होने वाली बात नहीं है।

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