महंगाई बनी अभिशाप 'विवेचना'
विकासशील राष्ट्रों के सामने महंगाई और बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। कोरोना वायरस के कारण परिस्थितियों की जटिलता बढ़ती जा रही है। विकास की गति स्थिर हो गई है, जिसका निम्न आय वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कोरोना वायरस के समान घातक और खतरनाक सिद्ध होगा।
भारत की हालिया तस्वीर अनुमान के विपरीत है। देश में वायरस के साथ-साथ बेरोजगारी की मार झेल रही जनता के जीवन में महंगाई तांडव कर रही है। कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन में खूब कालाबाजारी की गई है। जिसका सीधा संबंध गरीब जनता से ही रहा है। अब सभी वस्तुओं पर मूल्य वृद्धि से व्यवस्था चरमरा गई है। अति आवश्यक और खाद सामग्री जैसी वस्तुओं के मूल्य में 10 से 25 फ़ीसदी तक वृद्धि की गई है। जिसके कारण जनता को अनावश्यक भार झेलना पड़ेगा। निम्न आय और बेरोजगारी से ग्रस्त परिवारों के लिए यह किसी अभिशाप से कम नहीं है। आधुनिक भारत कुपोषण और भुखमरी की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसके लिए सरकार की नीतियों में दोष खोजे जा सकते हैं। लेकिन यह अकारण परिश्रम करने के जैसा है। सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के परिणाम स्वरूप देश की जनता लंबे समय तक इस संकट को अपने साथ लेकर चलती रहेगी। इसका सरकार के पास ना कोई उपाय है और ना कोई उपचार। झूठे-सच्चे दावे और वायदों के साथ इस संकट को देश की गरीब जनता को झेलना होगा।
नेतृत्व की क्षमताओं का परीक्षण बुरा दौर होता है।
नेता तो नेता ही होता है, कोई एक-दो चोर होता है।
पालूराम
रविवार, 23 अगस्त 2020
महंगाई बनी अभिशाप 'विवेचना'
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