रविवार, 2 अगस्त 2020

बगैर विचार-विमर्श के नई 'शिक्षा नीति'

नई दिल्ली। कांग्रेस ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इस पर न संसद में विचार-विमर्श हुआ और ना ही इसके कार्यान्वयन में कोई पारदर्शिता बरती गई है। कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला, वरिष्ठ नेता एम पल्लम राजू तथा प्रो. राजीव गौड़ा ने रविवार को यहा संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि शिक्षा नीति 2020 में मानवीय विकास, ज्ञान प्राप्ति, गंभीर चिंतन एवं जिज्ञासा की भावना को दरकिनार कर स्कूल एवं उच्च शिक्षा में बदलाव के लिए बुनियादी सोच विचार की बजाय सिर्फ शब्दों का भ्रमजाल, चमक-दमक, दिखावा एवं आडंबर को ही महत्व दिया गया है। उन्होंने कहा ” नई शिक्षा नीति लागू करने में न परामर्श, न चर्चा, न विचार विमर्श और न पारदर्शिता, अपने आप में बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा नीति 2020 की घोषणा कोरोना महामारी के संकट के बीच क्यों की गई और वह भी तब, जब सभी शैक्षणिक संस्थान बंद पड़े हैं। सिवाय भाजपा-आरएसएस से जुड़े लोगों के पूरे शैक्षणिक समुदाय ने आगे बढ़ विरोध जताया है कि शिक्षा नीति 2020 के बारे कोई व्यापक परामर्श, वार्ता या चर्चा हुई ही नहीं।”


कांग्रेस प्रवक्ताओं ने कहा कि हमारी अगली पीढ़ियों के भविष्य का निर्धारण करने वाली इस महत्वपूर्ण शिक्षा नीति को पारित करने से पहले मोदी सरकार ने संसदीय चर्चा या परामर्श की जरूरत भी नहीं समझी। इसके विपरीत जब कांग्रेस ‘शिक्षा का अधिकार कानून’ लायी थी तो उस समय संसद के अंदर तथा बाहर इसके हर पहलू पर व्यापक चर्चा हुई थी। बजट में शिक्षा पर छह प्रतिशत खर्च करने की सिफारिश की गई है। इसके विपरीत मोदी सरकार में बजट में शिक्षा पर खर्च 2014-15 में 4.14 प्रतिशत से घटाकर 2020-21 में 3.2 प्रतिशत किया है। यहां तक कि चालू वर्ष में कोरोना महामारी के चलते इस बजट की राशि में भी लगभग 40 प्रतिशत की कटौती होगी जिससे शिक्षा पर होने वाला खर्च कुल बजट के दो प्रतिशत के बराबर ही रह जाएगा। यानि शिक्षा नीति 2020 में किए गए वादों एवं उन वादों को पूरा करने के बीच जमीन आसमान का अंतर है।         


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